29.12.20

अपने मन की बात की जगह किसानों के मन की बात सुनें मोदी

 बहरे कानों को सुनाने के लिए बजाई ताली थाली

आंदोलन को बदनाम करने में लगी सरकार हो रही किसानों से अलग-थलग


लखनऊ : अन्नदाता किसानों को अपमानित करने, आंदोलन पर दमन करने और आंदोलन के खिलाफ दुष्प्रचार करने के लिए रोज राष्ट्र को सम्बोधित करने वाले प्रधानमंत्री मोदी को अपने मन की बात करने की जगह भीषण ठंड में एक माह से दिल्ली के बाहर बैठे किसानों के मन की बात सुननी चाहिए। उन्हें किसानों की कानूनों की वापसी, एमएसपी पर कानून बनाने, विद्युत संशोधन विधेयक रद्द करने और पराली कानून से किसानों को राहत देने की मांग पूरी कर भीषण ठंड में जान गंवाते अन्नदाता की जान बचाने की पहल करनी चाहिए। यह बात किसान आंदोलन के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर आज आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट और मजदूर किसान मंच के कार्यकर्ताओं ने मन की बात कार्यक्रम का विरोध करते हुए कही। आज उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों के गांवों में बहरे कानों को सुनाने के लिए मन की बात कार्यक्रम के दौरान ताली, थाली और सुपा बजाया गया। यह जानकारी एआईपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी व मजदूर किसान मंच के महासचिव डा. बृज बिहारी ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में दी। आज सुबह ही सोनभद्र के एआईपीएफ के जिला संयोजक व प्रदेश उपाध्यक्ष कांता कोल को उनके घर से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इसकी जानकारी होने पर घोरावल के कई गांव के एआईपीएफ कार्यकर्ताओं ने आदिवासियों के नरसंहार के लिए चर्चित उभ्भा गांव में स्थित पुलिस चौकी का घेराव कर लिया।  

भारतीय डाक विभाग की गौरवशाली परम्परा पर मंडराता संकट


नरेंद्र तिवारी
सेंधवा, मप्र

यह सुनकर बेहद अफसोस हुआ की उत्तरप्रदेश में कानपुर डाक विभाग द्वारा माफिया सरगना छोटा राजन ओर बागपत जेल में मारे गए शार्प शूटर अपराधी मुन्ना बजरंगी के फोटो वाले डाक टिकिट जारी कर दिए।यह बड़ी भूल कैसे हुई, क्यो हुई? यह जांच का विषय है।कानपुर डाक विभाग की इस घटना ने भारतीय डाक विभाग की गौरवशाली परंपरा पर प्रश्न चिन्ह अंकित करते हुए यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि समय के साथ आर्थिक दिक्कतों से विश्व की सबसे बड़ी डाक व्यवस्था भी जूझ रही है।भारतीय डाक प्रणाली का अपना गौरवशाली ओर समृद्ध इतिहास है। इतिहास डाक टिकटों का भी है जिसे आम भारतीय जनमानस श्रद्धा और सम्मान की दृष्टि से देखता है।इसे संग्रहित कर रखता है किंतु आय बढ़ाने की धुन में भारत सरकार द्वारा माई स्टाम्प योजना लागू की जिसमे निर्धारित राशि जमाकर कोई भी व्यक्ति या कम्पनी अपनी पसन्द के चित्र के साथ डाक टिकिट जारी करवा सकता है।

28.12.20

उपज का सही दाम न मिलने के कारण किसान आत्महत्या करते हैं : अन्ना हजारे


किसानों को खर्चें पर आधारित सही दाम ना मिलने का क्या कारण है?

हर राज्य में कृषि मूल्य आयोग होता हैं। इस कृषि मूल्य आयोग में, राज्य के सभी कृषि विद्यापीठ के विभिन्न कृषि उपज के वैज्ञानिक खेती की जुताई, बुवाई, बीज, उर्वरक, पानी, फसल कटाई, उत्पादन के लिए मजदुरी का दाम, बैल तथा कृषि यांत्रिक मुआवजा और कृषिउपज को मंडी तक ले जाने का खर्चा ऐसा कूल मिल कर लागत की रिपोर्ट बना कर राज्य कृषिआयोग द्वारा केंद्रीय कृषि आयोग को भेजा जाता हैं। केंद्रिय कृषि मूल्य आयोग केंद्रीय कृषि मंत्री के दायरे में कार्य करता है। इसलिए केंद्रिय कृषि मंत्री के प्रभाव में केंद्रिय कृषि आयोग राज्य कृषि मूल्य आयोग की रिपोर्ट में दिए हुए दाम में बिना वजह 10 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक कटौती कर देता है। परिणास्वरुप, किसानों को खर्चे पर आधारित सही दाम नहीं मिलता। एक तरफ किसानों के जीवनावश्यक जरुरतों में कपड़ा, बर्तन जैसे आवश्यक वस्तुओं के दाम बढते जा रहे है। और कृषि उपज से मिल रहें दाम बहुत ही कम मिल रहें हैं। इस कारण किसान मुसिबत में हैं।

26.12.20

एक नहीं, अनेक प्रकार की होनी चाहिए पुलिस!

गोविंद गोयल
वरिष्ठ पत्रकार, श्रीगंगानगर (राजस्थान)
 

एक पुलिस, हजार झंझट! लावारिस लाश मिली। पुलिस बुलाओ। कचरे मेँ भ्रूण पड़ा है। पुलिस उठाएगी/उठवाएगी। सड़क दुर्घटना। पुलिस के बिना कुछ नहीं। लावारिस डैड बॉडी का संस्कार भी पुलिस की सिरदर्दी। आग लगी तो पुलिस। झगड़ा हुआ तो पुलिस। कोई नेता आया तो पुलिस। आंदोलन तो पुलिस। कलक्टर के खिलाफ नारेबाजी तो पुलिस और मिलने जाओ तो पुलिस। सड़कों से सामान हटवाए, पुलिस। चालान काटे पुलिस। धार्मिक शोभायात्रा के आगे पुलिस। पीछे पुलिस।

25.12.20

फ़ारूक़ी साहब की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता !!




‘गुफ़्तगू’ ने पेश किया ‘खिराज-ए-अक़ीदत

प्रयागराज। मशहूर उर्दू आलोचक शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के निधन पर साहित्यक
संस्था गुफ़्तगू’ की तरफ से हरवारा, धूमनगंज स्थित गुफ़्तगू कार्यालय में
उन्हें खिराज-ए-अक़ीदत पेश किया गया। अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा
कि पाकिस्तान के ‘निशान-ए-इम्तियाज़’ एवार्ड से लेकर पद्मश्री और सरस्वती
सम्मान तक का सफ़र तय करने वाले शम्सुरर्हमान फ़ारूक़ी ने निधन से पूरी
दुनिया में उर्दू अदब का जो नुकसान हुआ है,  उसकी भरपाई कभी नहीं की जा
सकती। मीर तक़ी मीर की शायरी पर लिखी उनकी किताब पूरे उर्दू अदब के इतिहास
में अद्वितीय है।  उनके सारे का रेखांकन और मूल्याकंन पूरी तरह इमानदारी
करना भी आसान नहीं होगा। श्री ग़ाज़ी ने कहा कि फ़ारूक़ी साहब ने उर्दू की
सेवा के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, रूस, हालैंड, न्यूजीलैंड,
थाईलैंड, बेल्जियम, कनाडा, तुर्की, पश्चिमी यूरोप,सउदी अरब और कतर आदि
देशों का दौरा किया था। अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड के कई
विश्वविद्यालयों में कई बार लेक्चर दिया था।

24.12.20

अपनी ही छपी हिंदी का खंडन करा रहा है जागरण

दैनिक जागरण ख़बरों में हिंदी को लेकर खुद ही भ्रमित है. हिंदी के शब्दों और इसकी  शुद्धता को लेकर पाठक भी नहीं समझ पा रहे हैं कि क्या सही है और क्या गलत? हर शनिवार को इस अख़बार में सप्तरंग परिशिष्ठ प्रकाशित होता है. इसमें एक कॉलम होता है "हिंदी हैं हम". इसे आचार्य पंडित पृथ्वी नाथ पांडेय लिखते हैं. वह खुद को भाषाविद बताते हैं. पहले डॉ पृथ्वी नाथ पांडेय नाम से लिखते थे...अब डॉ के बजाय आचार्य पंडित ....लिखने लगे हैं.

पत्रकारों के सवाल उठाने पर हमले क्यों?

बिना मांगे कृषि कानून लाने वाली सरकार पत्रकार सुरक्षा  की मांग पर मौन क्यों? लोकतंत्र बचाने के लिए डब्ल्यूजेआई ने अविलंब पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग की

नई दिल्ली : पत्रकारिता के गढ़ दिल्ली और संपूर्ण क्रांति का सूत्र स्थल पटना ने सरकार के सामने यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया है. वह है किसान कल्याण का हित और लोकतंत्र व पत्रकारिता की रक्षा का।

सत्ता के दम पर किसान से किसान को भिड़वा रही भाजपा!

CHARAN SINGH RAJPUT-

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैदा हो रही खूनी संघर्ष की आशंका


इसे भाजपा की बेशर्मी ही कहा जाएगा कि जब किसान आंदोलन को खालिस्तान के नाम पर बदनाम न किया जा सका। टोपी के नाम पर बदनाम न किया जा सका। नकली किसान के नाम पर बदनाम न किया जा सका, विपक्ष के नेताओं के बरगलाने के नाम पर बदनाम न किया जा सका। जब अपने लोगों को आंदोलन में भेज माहौल खराब न किया जा सका तो अब किसान को किसान से ही लड़ाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया। अब मोदी सरकार के साथ ही भाजपा शासित राज्यों के नेता शासन और प्रशासन के दम पर किसानों को आंदोलन के विरोध में तैयार कर रहे हैं। दबाव बनाकर कानूनों का समर्थन करा रहे हैं। गौतमबुद्धनगर में कुछ भाजपा नेताओं ने किसान संघर्ष समिति के कुछ नेताओं को विश्वास में लेकर किसान कानूनों के पक्ष में समर्थन दिलवा दिया दिया। भाजपा नेताओं का ऐसा करने से समिति में शामिल सपा नेताओं में भारी आक्रोश देखने को मिल रहा है।

पत्रकारिता के आदर्श पुरुष थे मालवीय और वाजपेयी : राम बहादुर राय

पंडित मदन मोहन मालवीय एवं श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित हुआ कार्यक्रम

नई दिल्ली, 24 दिसंबर। ''पत्रकारिता के क्षेत्र में पंडित मदन मोहन मालवीय एवं अटल बिहारी वाजपेयी के विचार और उनका आचरण पत्रकारों के लिए आदर्श हैं। इन दोनों राष्ट्रनायकों ने हमें यह सिखाया कि पत्रकारिता का पहला कर्तव्य समाज को जागृत करना है।'' यह विचार पद्यश्री से अलंकृत वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय ने गुरुवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम 'योद्धा पत्रकार : पुण्य स्मरण' में व्यक्त किए। भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित इस समारोह में प्रसार भारती बोर्ड के सदस्य एवं अटल बिहारी वाजपेयी के तत्कालीन मीडिया सलाहाकार श्री अशोक टंडन, आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, अपर महानिदेशक श्री के. सतीश नंबूदिरीपाड एवं अपर महानिदेशक (प्रशिक्षण) श्रीमती ममता वर्मा भी मौजूद थीं।

इफ्को दुर्घटना का सच सामने लाए प्रबंधन

 मृत व घायल कर्मियों के प्रति व्यक्त की संवेदनाएं

लखनऊ 24 दिसम्बर 2020, इलाहाबाद के फूलपुर स्थित खाद के इफ्को कारखाने में अमोनिया गैस रिसाव के कारण मृत हुए दो कर्मियों वी. पी. सिंह और अभय नंदन और घायल हुए अन्य कर्मियों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए प्रेस को जारी अपने बयान में वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने कहा कि इफ्को के प्रबंधन को इस दुर्घटना के कारणों की सच्चाई जनता के सामने लानी चाहिए और इसकी जवाबदेही तय करनी चाहिए।

23.12.20

वोराजी, जिन्होंने सत्ता को पत्रकारिता का रसूख बताया!


    -जयराम शुक्ल

मार्च 1985 के दूसरे हफ्ते जब मोतीलाल वोरा मध्यप्रदेश के  मुख्यमंत्री के तौरपर शपथ ली तो दूसरे दिन अखबार की सुर्खियों में उनकी योग्यता व कर्मठता के बखान की जगह परिस्थितिजन्य खड़ाऊँ मुख्यमंत्री का विशेषण मिला। बात स्वाभाविक भी लगती थी। 11मार्च को अर्जुन सिंह ने दूसरी बार शपथ ली, लेकिन राजीव गांधी को क्या सूझा कि उन्हें दूसरे दिन ही चंडीगढ़ के राजभवन में बतौर राज्यपाल शपथ लेने का हुक्म जारी कर दिया।

22.12.20

कोविड -19 की वैक्सीन : दावे हैं दावों का क्या ?

- शैलेन्द्र चौहान

कम से कम पिछले छह महीनों से बहुत बेसब्री से दुनिया को कोरोना वैक्सीन का इंतजार है. कब वैक्सीन आए और कब कोरोना विदा हो. लेकिन आपात् स्थिति में त्वरित गति से विकसित वैक्सीन की विश्वसनीयता और उसके प्रभाव को लेकर कुछ चिंता भी है कि आखिर यह वैक्सीन कितनी सुरक्षित है. अब कई कंपनियों की वैक्सीन के उपयोग की अनुमति कुछ देशों में मिल गई है. यूं दावा तो सभी कंपनियां यही कर रही हैं कि उनकी वैक्सीन प्रभावी और सुरक्षित है पर इसके प्रभाव और परिणाम की अभी प्रतीक्षा है. जहाँ ब्रिटेन में फाइजर, मॉडर्ना सहित लगातार उनके उपयोग को अप्रूवल मिल रहा है वहीं भारत में सीरम इंस्टीट्यूटऔर भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल के आवेदनों को स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक कमेटी द्वारा मंजूरी नहीं मिल सकी. दोनों ही कंपनियों से अगली बैठक में और डाटा देने को कहा गया है. हालांकि बैठक की तारीख अभी तय नहीं है. वैक्सीन की उपयुक्तता पर अंतिम निर्णय ड्रग कंट्रोलर आफ इंडिया उर्फ डीजीसीआई द्वारा लिया जाएगा.

घुमक्कड़ी : कसौली - एक अलहदा संसार...

सक्षम द्विवेदी-

पर्वतों में हमेशा ही एक अलहदा आकर्षण होता है। यहाँ पर प्रकाश परावर्तन, बादल व छाया इतने खूबसूरत बिंब उत्पन्न करते हैं कि ये तय कर पाना मुश्किल हो  जाता है कि किस ओर नेत्रों को केंद्रित किया जाए ? कसौली की विशिष्टता यहाँ का धार्मिक सद्भाव व हर ओर फैले हुए रंग-बिरंगे फूल हैं। यहाँ के कुछ फूलों की सुगंध इतनी विशिष्ट है कि वे सीधे गले में जाकर टकराती है।

21.12.20

वरिष्ठ पत्रकार ने पत्र लिखकर पूछा- कृषि संशोधन कानून की जरूरत क्यों पड़ी?

 श्रीमान नरेन्द्रसिंह तोमर

कृषि मंत्री भारत सरकार

 नई दिल्ली

विषय:- कृषि संशोधन कानून की जरूरत क्यों पड़ी?

श्रीमान ,
 
मुझे ये तो पता नहीं आपका खेती बाड़ी से कोई सम्बन्ध है या नहीं लेकिन खाते तो आनाज फल या मेवे ही होंगे जो खेती की उपज है फिर भी आप व्यक्ति गत रूप से तो दुखी होंगे कि आपकी सरकार अन्नदाता से सौतेला व्यवहार क्यों कर रही है ? आपकी सरकार ने खेतों की उपज पर जीवन यापन करने वाले किसानों से बार बार वायदा किया है कि उनकी फसल आय दोगुनी कर देंगे , उस वायदे की पूर्ति के लिए महामारी से पीड़ित देश में आपका विभाग एक एक करके तीन कृषि संशोधन अध्यादेश महामहिम राष्ट्रपति से जारी कराए जो आपकी सरकार की मंशा पर स्वंय शक की सुई इंगित करती है जिसे और मजबूत करने के लिए आपकी सरकार ने कोरोना काल में प्रतिपक्ष के साथ संसदीय परम्पराओं को तक में रख कर पहले लोकसभा में फिर राज्यसभा में ध्वनि मत से पारित कराया जो शतप्रतिशत आपकी सरकार की नियत पर सवालिया निशान लगाती है आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी ? भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अपने बहुमत का दुरुपयोग किया ? ये पूरा कार्यक्रम पूरी तरह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के घोर खिलाफ है जबकि आपकी पार्टी स्वच्छ लोकतंत्र की पैरोकार रही है तोमर जी आप भली भांति जानतें हैं कि आपकी पार्टी ने देश के मुसलमानों के बाद दूसरी बड़ी बिरादरी किसानों को रुष्ट किया है एक को संघ के कारण तो दूसरी को उधोगपतियों को दोनों बिरादरी जनाधार वाली हैं ये जानते हुए भी आपकी सरकार बड़े वोट बैंक को नाराज कर किसे खुश करना चाहती है जिसे देश की जनता तो जान चुकी है लेकिन आप दबाए बैठें हैं ।

19.12.20

काकोरी काण्ड बलिदान दिवस की 93वीं बरसी पर श्रद्धांजलि सभा, वीर रस कवि सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन

 



क्रांतिकारी राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खां,  ठाकुर रौशन सिंह  व पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत को यूँ ही नहीं भुलाया जा सकता है । खाली हाथ कोई जंग नहीं जीती जा सकती ।अंग्रेजी हुकूमत को कांटे की टक्कर देने के लिए जरूरी था हथियारों से लैस होना और उसके लिए चाहिए पैसा । जी हां क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आते । सो क्रांतिकारियों को जो रास्ता समझ में आया सो उन्होंने अपनाया और दे डाला ट्रेन डकैती को अंजाम । जो आगे चलकर काकोरी कांड के नाम से मशहूर हुआ । खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत सच साबित हुई । ट्रेन डकैती में मिली छोटी सी धनराशि मगर जिसकी वजह से मौत को गले लगाना पड़ा । क्रमशः 17 व 19 दिसम्बर,  1927 को इन चारों आजादी के परवानों को अलग अलग जेलों में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था । जिनकी कहानी सुनकर रगों में खून उबाल मारने लगता है ऐसे अमर सपूतों को  नमन करते हुए   काकोरी स्थित शहीद मंदिर में मार्तण्ड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के द्वारा पण्डित बेअदब लखनवी के संयोजन में  आयोजित श्रद्धांजलि समारोह, कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में कवियों व शायरों ने अमर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने अपने कलाम पेश किया ।

बंगला देश की दोस्ती ने बता दिया की पडोसी ही पडोसी के काम आता है

कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में वर्चुअल बैठकें हो रही हैं| हाल ही में  भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ अपनी बैठक में वर्चुअल बैठक का जिक्र किया और कहा कि दोनों नेताओं के बीच यह माध्यम नया नहीं है और दोनों नेता इस माध्यम से बातचीत करते रहे हैं| दोनों नेताओं के बीच बैठक ऐसे समय में हुई जब बांग्लादेश की आजादी को 50 साल पूरे हुए हैं और देश विजय दिवस मना रहा है |मोदी ने इस मौके पर कहा कि वैश्विक महामारी के कारण ये वर्ष चुनौतीपूर्ण रहा है लेकिन संतोष का विषय है कि भारत और बांग्लादेश के बीच अच्छा सहयोग रहा, वैक्सीन के क्षेत्र में भी हमारे बीच अच्छा सहयोग चल रहा है | इस सिलसिले में हम आपकी आवश्यकताओं का भी विशेष ध्यान रखेंगे.| मोदी ने कहा आगे कहा कि विजय दिवस के तुरंत बाद हमारी मुलाकात और भी अधिक महत्व रखती है| एंटी लिब्रेशन फोर्सेस पर बांग्लादेश की ऐतिहासिक जीत को आपके साथ विजय दिवस के रूप में मनाना हमारे लिए गर्व की बात है | दूसरी तरफ प्रधानमंत्री हसीना ने 1971 के युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि देते हुए  उन्होंने बांग्लादेश की आजादी में भारतीय फौज और भारत की अहम भूमिका को याद किया| हसीना ने भारत को "सच्चा दोस्त" बताया|  हसीना ने पिछले साल दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में दोनों नेताओं की मुलाकात को याद भी किया| कोरोना वायरस महामारी का जिक्र करते हुए हसीना ने कहा कि दुनियाभर में लाखों लोगों की इस वजह से मौत हुई, करोड़ों लोगों की आजीविका प्रभावित हुई और बीमारी के कारण अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है|

18.12.20

किसानों को आतंकी बताने वाले न्यूज चैनलों को कांग्रेसी सरकारें क्यों दे रही हैं विज्ञापन?


-सुरेशचंद्र रोहरा

भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बतौर छत्तीसगढ़ सरकार के 2 वर्ष पूर्ण हो गए हैं. ऐसे समय में परंपरा रही है सरकार अपनी नीतियों विकास और कामकाज के प्रदर्शन विज्ञापन जारी करे. यह परंपरा भूपेश बघेल सरकार भी निभा रही है. यह सब ठीक है.  मगर मुख्यमंत्री जी...! कुछ ऐसे राष्ट्रीय चैनलों में विज्ञापन चल रहे हैं जिन पर आरोप है कि वे किसानों को देशद्रोही, आतंकवादी बता रहे हैं. ऐसा करते हुए पत्रकारिता धर्म का निर्वहन नहीं किया. किसानों की जायज मांगों के खिलाफ देशभर में माहौल बनाने का काम ये चैनल करते रहे हैं. यह देखकर बहुत कष्ट हुआ. माननीय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी, आप से मेरी करबद्ध प्रार्थना है, जनहित में मांग है कि ऐसे मीडिया संस्थान को छत्तीसगढ़ सरकार आपके मुख्यमंत्री काल में एक रुपए का भी विज्ञापन न जारी करे. 

 


16.12.20

JFA bats for supports to newspaper industry but with condition

 
JFA bats for supports to newspaper industry but with condition
Guwahati: Journalists’ Forum Assam (JFA) advocates for due supports to
the Indian newspaper industry, which is facing an exceptional crisis
because of the Covid-19 pandemic affecting both of its circulation and
advertise revenues since March 2020,  but with the condition that
every media group would pay their employees according to the concerned
wage board guidelines endorsed by the Supreme Court of India.

बदलते परिवेश में बदलती नजर आ रही है पत्रकारिता



पत्रकार सत्येन्द्र सिंह राजपुरोहित


कल देश गुलाम था पत्रकार आजाद, लेकिन आज देश आजाद है और पत्रकार गुलाम। देश में गुलामी जब कानून था तो पत्रकारिता की शुरुआत कर लोगों के अंदर क्रांति को पैदा करने का काम हुआ। आज जब हमारा देश आजाद है तो हमारे शब्द गुलाम हो गए हैं। कल जब एक पत्रकार लिखने बैठता था तो कलम रुकती ही नहीं थी, लेकिन आज पत्रकार लिखते-लिखते स्वयं रुक जाता है, क्योंकि जितना डर पत्रकारों को बीते समय में परायों से नहीं था, उससे ज्यादा भय आज अपनों से है।

मजदूरों की गुलामी के दस्तावेज हैं मोदी सरकार के लेबर कोड


काम के घंटे 12, सैकड़ों साल के संघर्ष से हासिल अधिकार का खात्मा

    जमाखोरी, न्यूनतम समर्थन मूल्य के खात्मे, ठेका खेती के जरिए जमीनों पर कब्जा करने और देश की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालकर खेती किसानी को देशी विदेशी कारपोरेट घरानों के हवाले करने की आरएसएस-भाजपा की मोदी सरकार की कोशिश के खिलाफ पूरे देश के किसान आंदोलनरत है। सरकार और आरएसएस के प्रचार तंत्र द्वारा आंदोलन को बदनाम करने, उस पर दमन ढाने और उसमें तोड़-फोड़ करने की तमाम कोशिशों के बावजूद आंदोलन न सिर्फ मजबूती से टिका हुआ है बल्कि उसके समर्थन का दायरा भी लगातार बढ़ रहा है। किसान विरोधी तीनों कानूनों को रद्द करने, विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य का  कानून बनाने की मांग जोर पकड़ रही है और ‘सरकार की मजबूरी-अडानी, अम्बानी, जमाखोरी‘ का नारा जन नारा बन रहा है।

12.12.20

साहित्य के एलियन्स


सुनील जैन राही
एम-9810960285


साहित्य धरा पर छुपे हुए एलियन्स की खबर सुन साहित्य जगत थर्रा गया। साहित्य के एलियन्स कैसे होंगे? साहित्य में उन्हें किस रूप में जाना जाएगा। अगर उनकी पहचान नहीं हुई तो साहित्य का बड़ा नुकसान होगा। इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा? जब साहित्य में भी एलियन्स हैं तो उन्हें सामने लाना जरूरी है। अगर सामने नहीं आते तो भितरघात की संभावना बढ़ जाएगी। भितरघात साहित्य की मूल प्रवृत्ति है। अगर इस पर उनका कब्जा हो गया तो साहित्य के भितरघातियों का क्या होगा? पहले ही भितरघात से साहित्य तार-तार हुआ जा रहा है। साहित्य भितरघात से ही तो समृद्ध होता है और अगर यह विधा ही एलियन्स के पास चली गयी तो साहित्य में बचेगा क्या?

11.12.20

डांवाडोल शहडोल की दूसरी मिसाल

 मध्यप्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने आरटीआई के नजरिए से अपने फेसबुक पेज पर एक तीखी पोस्ट लिखी है। बच्चों की लगातार मौत के कारण सुर्खियों में बने आदिवासी बहुल शहडोल जिले की डंवाडोल हालत पर यह पोस्ट पूरे प्रशासनिक तंत्र पर सवाल खड़े कर रही है। उन्होंने इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि यहाँ केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी कौशल विकास योजना में भारी गोलमाल है...

9.12.20

'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के लेखक ने सुसाइड क्यों किया?

आशाओं का संचार करते धारावाहिक के लेखक की निराशा... भारतीय टेलीविजन जगत के सुप्रसिद्ध हास्य धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा दर्शको का प्रिय,मनोरंजक सीरियल बीते 12 बरसो से लगातार बना हुआ है। इसके लेखकों में से एक अभिषेक मकवाना की आत्महत्या की खबर ने बहुत निराश किया है। यही नही कोरोनाकाल मे अभिनय की दुनिया के चर्चित चेहरों के द्वारा जीवन समाप्त करने की निराशावादी सोच ने भी मन को बहुत दुखी किया है। यह भी लगा कि फिल्मी दुनियाँ के लेखकों,कलाकारों का वास्तविक दुनियाँ से कोई सरोकार नही होता है।जीवन को समाप्त करने की भावना का प्रबल होना निराशावादी प्रवृत्ति का उदाहरण है।इसे सादगी पूर्ण जीवन शैली से दूर किया जा सकता है।गांधी की सादगी इस दौर में जीने का बेहतर तरीका हो सकता है।

10 दिसंबर जयंती पर विशेष : हिन्दू-मुस्लिम एकता और आज़ादी के नायक - मौलाना मोहम्मद अली जौहर

 

"दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के बाद,
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के बाद।"


मौलाना मोहम्मद अली जौहर को मोहम्मद अली के नाम से भी जाना जाता है जो स्वतंत्रता के भावुक सेनानियों में थे। वह एक बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे और उन्होंने  ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रयासों में एक बड़ी भूमिका निभाई थी। वह एक भारतीय मुस्लिम नेता, कार्यकर्ता, विद्वान, पत्रकार  कवि /शायर,एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ और एक बेहतरीन वक्ता भी थे ।  रोहिलात्री के यूसुफ ज़ई कबीले से ताल्लुक रखते थे जो पठानों का एक धनी और प्रबुद्ध परिवार था। मौलाना मोहम्मद अली जौहर का जन्म 10 दिसंबर 1878 को रामपुर रियासत में शेख अब्दुल अली खान के घर हुआ। उनकी माता आबादी बानो बेगम को 'बी अम्मा' के नाम से जाना जाता है। पांच भाई-बहनों में वह सबसे छोटे थे।  वह दिग्गज अली बंधुओं में से एक और मोहम्मद अली मौलाना शौकत अली के भाई थे। मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली भारतीय राजनीति में 'अली बन्धुओं' के नाम से मशहूर हैं।

किसान आंदोलन की गूंज अब भारत के खेतों तक पहुंची

नरेंद्र तिवारी

सेंधवा : बेशक दिल्ली में जारी किसान आंदोलन अब राष्ट्रव्यापी हो गया है। केंद्र सरकार इन कानूनों को वापिस लेती है,या आंशिक संसोधन करती है,यह आगामी दिनों में साफ हो पाएगा। आंदोलन कब तक जारी रहेगा यह भी किसान संगठनों की आगामी रणनीति के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।बहरहाल किसानों के दिल्ली जाने वाले रास्तो को खोद देने वाली सरकार,किसानों पर वाटर केनन,अश्रुगैस,लाठियां चलाने वाली सरकार, बयानों ओर तर्को के माध्यम से पूरे आंदोलन पर दोषारोपण करने वाली सरकार, आंदोलन को विपक्षी राजनीति से प्रेरित बताने वाली सरकार अब किसानों की मांगों को सुनने के लिए बाध्य हुई है। बातचीत के अनेको दौर अब तक बेनतीजा रहे है। भारत बंद के बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को किसान संगठनों के नेताओ को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है। किसान आंदोलन को लेकर सरकार के मंत्रियों ,पक्ष-विपक्ष नेताओ, एवं सोशल मीडिया पर चल रही बहसों पर देश का किसान कान लगाए हुए है।वे किसान जो दिल्ली पहुचकर आंदोलन में तो शामिल नही हो सके वे यह सब देखकर,सुनकरअपनी धारणाए निर्मित कर रहे है।वह यह भी जान रहे है की सरकार का किसानों के प्रति क्या रवैय्या है? और विपक्षी दल क्या चाहते है?दरअसल अब यह आंदोलन भारत के खेतों में कार्यरत किसानों की चर्चा का विषय बन चुका है।

8.12.20

किसान आंदोलन पर गोदी मीडिया का दिवालियापन तो देखिए…

Himanshu Sharan

किसानों को खालिस्तानी कहने वाले मीडिया के चाटुकार सच में दिमागी तौर पर या तो पंगु हैं या फिर उनकी समझ उनका साथ नहीं दे रही...आंखों पर पट्टी बांधकर ऐसे चाटने में लगे हैं जैसे सरकार इन्हे चाशनी लगा के चटा रही है...ये दिमागी तौर पर अंधे ये भी भूल गए कि जिन किसानों पर लाठियां बरसीं वो भूखे जवानों को खाना भी खुद बना कर खिला रहे थे...

6.12.20

हर ट्रेन की यही कहानी , टूटे फ्लश – बेसिन में पानी !!

हर ट्रेन की यही कहानी , टूटे फ्लश – बेसिन में पानी !!: हम भारतीयों की किस्मत में ही शायद सही – सलामत यात्रा का योग ही नहीं लिखा है । किसी सफर में सब कुछ सामान्य नजर आए तो हैरानी होती है । कोरोना काल में उत्तर प्रदेश की मेरी वापसी यात्रा का अनुभव कुछ ऐसा ही रहा । कई मामलों में …