30.1.21

एसिड अटैक ‘आख़िर कब तक’ नाटक को खूब मिली वाहवाही




वाराणासी: (30/01/2021) एसिड अटैक पीड़िता की हिम्मत और हौसले की कहानी ‘आख़िर कब तक ?’ देख दर्शक भावों से भर गए। महिलाओं को लेकर समाज में फैली कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए रेड ब्रिगेड ट्रस्ट और आक्सफैम इंडिया आगे आया है। ट्रस्ट की लड़कियों ने मिलकर महिला अधिकार और हिंसा के ख़िलाफ़ ‘ग्लोबल एक्शन वीक’ के तहत कार्ययोजना बनाई है। इसके तहत शनिवार को अस्सी घाट पर नुक्कड़ नाटक किया गया।

कला और साहित्य को समझने के लिए गहरी अंतर्दृष्टि जरूरी

नई दिल्ली/उदयपुर।  कला और साहित्य दो भिन्न क्षेत्र नहीं हैं, बल्कि एक - दूसरे से गहरे स्तर तक जुड़े हुए हैं। ऐसी कोई भी महीन या बारीक रेखा नहीं है,जो इन्हें अलगाती हो।  कला और साहित्य की अंतःसूत्रता को समझने के लिए, दोनों का  सूक्ष्म निरीक्षण बेहद जरूरी है। गहरी अंतर्दृष्टि के संभव होने पर ही कला और साहित्य का वास्तविक रसास्वादन करने की अर्हता अर्जित की जा सकती है।

सतयुग फिल्म सिटी में समाने वाला है!

SANJEEV SHRIVASTAVA-
    
 
श्रीमान सत्यवादी!

एक सत्यवादी रिपोर्टर ने सेनापति की तरह सीना तानकर पूछा - टिकैत एक बात पर टिकते क्यों नहीं?

एक सत्यवादी एंकर गुरुभक्त आरुणि की तरह स्क्रीन पर ही लेट गया और  टिप्पणी की - टिकैत आखिर चाहते हैं?

एक सत्यवादी नेता मामा शकुनि की तरह बोल बैठा - टिकैत को कोई भड़का रहा है।

गोयाकि पहली बार किसी इंसान को भाप का इंजन बनते देखा, जिसमें कोई कोयला डाल कर शोला भड़का रहा था!

29.1.21

बेदर्द हाकिम से फरियाद क्या करना

Rajanish Pandey
 
जहां बेदर्द हाकिम हों वहां फरियाद क्या करना...?

सत्ता का मूल चरित्र होता है..दमन करना.. चाहे राजशाही सत्ता हो या तानाशाही सत्ता या यह कह सकते है..जिस पर आप दम्भ भरते है..लोकतांत्रिक सत्ता..जिसे आप चुनते है या बनाते है या बिगाड़ते है.

'जनसंचार' नहीं, 'जनसंवाद' में भरोसा करते थे गांधी : बनवारी

नई दिल्ली, 29 जनवरी। "अगर हमें महात्मा गांधी जैसा संचारक बनना है, तो आज हम तकनीक का सहारा लेंगे। लेकिन हमें यह समझना होगा कि आज की तकनीक जनसंचार पर आधारित है, जबकि गांधी जी जनसंवाद पर भरोसा करते थे।" यह विचार वरिष्ठ पत्रकार एवं गांधीवादी चिंतक श्री बनवारी ने शुक्रवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम 'शुक्रवार संवाद' में व्यक्त किए।

किसान आंदोलन पूरी तरह से सियासी आंदोलन बन गया है

अजय कुमार, लखनऊ                      

देश से ऊपर कोई नहीं हो सकता है। चाहें आम हो या फिर कोई खास शख्स। अगर कोई यह मुगालता पालता है कि देश उसके बिना चल-बढ़ नहीं सकता है या फिर कोई दहशतगर्दी के बल पर देश की अखंडता अथवा उसके सम्मान के साथ खिलवाड़ कर सकता है। 26 जनवरी जैसे पावन राष्ट्रीय पर्व पर जिस तरह से नया कृषि कानून वापस लेने की आड़ में मुठ््ठी भर अराजक तत्वों ने देश को शर्मसार किया वह किसी माॅफी के काबिल नहीं है। इससे खतरनाक स्थिति यह है कि मोदी विरोधी खेमा अपनी ओछी राजनीति चमकाने के लिए देश की अस्मिता को चुनौती देने वाले किसानों की हठधर्मी को अनदेखा करके अपनी सियासी रोटियां सेंकने में लग गई हैं। यह वह नेता हैं जो अपने बल पर मोदी से मुकाबला नहीं कर पाते हैं इसलिए कभी यह एनआरसी की आड़ में मुसलमानों को भड़काते हैं तो कभी किसानों को उकसाते हैं। इसी तरह यह लोग मोदी को पटकनी देने के लिए एवार्ड वापसी गैंग का साथ देते हैं तो कभी उन लोगों के साथ खड़े हो जाते हैं जो यह कहते घूमते रहते हैं कि देश अब रहने लायक नहीं रह गया है। यहां रहने में डर लगता है। कुल मिलाकर जिन नेताओं को मोदी के विकल्प के रूप में जनता ने पूरी तरह से ठुकरा दिया है, वह अराजक तत्वों के साथ तक खड़े हो जाने से परहेज नहीं करते हैं,बल्कि उन्हें उकसाने का भी काम करते हैं। ताकि मोदी सरकार की राह में रोड़े खड़े किए जा सकें। यह सिलसिला मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद शुरू हुआ था जो उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद आज तक जारी है। मोदी विरोधी इन नेताओं पर न तो तिरंगे के अपमान का असर पड़ता है, न देश की अखंडता को चुनौती देने वालों से इन्हें किसी तरह का कोई गुरेज रहता है,क्योंकि इनका एजेंडा अपनी सियासत चमकाने तक ही सीमित रहता है। यह दुखद है कि एक तरफ किसान, आंदोलन के नाम पर जगह-जगह हाई-वे जाम करके बैठ गए है दूसरी तरह हाई-वे अवरूद्ध होने के चलते लोगों को आवागमन में परेशानी हो रही है। क्षेत्रीय लोगों का काम धंधा ठप हो गया है। लोग भुखमरी के कगार पर आ गए हैं, लेकिन इसकी किसी नेता को चिंता नहीं हैं।  

28.1.21

सभी किसान नेता बनेंगे बलि का बकरा..

26 जनवरी को हुई हिंसा को लेकर पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए कई किसान नेताओं पर केस दर्ज किए है.जिन किसान नेताओं ने रैली करने की शांतिपूर्ण जिमेदारी लेते हुए दिल्ली पुलिस के साथ एनओसी पर साइन किए थे. वह सभी किसान नेता बलि का बकरा बनेंगे. देखा जाए तो सभी किसान नेताओ पर एनओसी तोड़ने के आरोप में केस दर्ज कर लिए गए हैं.क्योंकि सभी किसान नेताओं ने एनओसी पर साइन किए थे.

दीप सिद्धू तो सरकार का ही मोहरा है किसानों के ख़िलाफ़ ...

 Dharam Veer-
    
 कोई भी ऐसा आंदोलनकारी हिंसा नहीं चाहता जो अपनी माँगें लोकतंत्र के रास्ते से मनवाना चाहता है । हिंसा के रास्ते से सरकार को कदम पीछे खींचने के लिए मज़बूर करना किसी भी देश में मुश्किल होता है और भारत जैसे बहुलतावादी देश में तो यह मुश्किल ही  नही नामुमकिन है । हिंसा फैल जाने का अर्थ ही है आंदोलन का सरकार के पक्ष में चले जाना इसीलिए हर सरकार शांतिपूर्ण आंदोलन को ख़त्म करवाने के लिए अंतिम रास्ता हिंसा को बनाती है ।

25.1.21

अफसर नहीं, कम्युनिकेटर बनिए : जयदीप भटनागर

नई दिल्ली, 25 जनवरी। ''अगर आप एक काबिल अधिकारी बनना चाहते हैं, तो आपको प्रशासन से जुड़े सभी नियमों को सीखना चाहिए तथा एक अफसर की तरह नहीं, बल्कि एक कम्युनिकेटर की तरह लोगों से संवाद करना चाहिए।'' यह विचार ऑल इंडिया रेडियो के समाचार सेवा प्रभाग के प्रधान महानिदेशक श्री जयदीप भटनागर ने भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) में भारतीय सूचना सेवा, ग्रुप ‘ए’ के प्रशिक्षु अधिकारियों के नए बैच के स्वागत समारोह के दौरान व्यक्त किए। कार्यक्रम में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, दूरदर्शन न्यूज़ के महानिदेशक श्री मयंक कुमार अग्रवाल, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग की महानिदेशक सुश्री मोनी दीपा मुखर्जी एवं पत्र सूचना कार्यालय में महानिदेशक श्रीमती वसुधा गुप्ता तथा श्री राजेश मल्होत्रा भी मौजूद थे।

दौसा में होगा देशभर के पत्रकारों का महाकुंभ

 आराध्यदेव श्री नीलकंठ महादेव की देवनगरी, दौसा में होगा देशभर के पत्रकारों का महाकुंभ 13 व 14 मार्च को,  नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया, (एनयूजेआई)  का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन

जयपुर। नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया, (एनयूजेआई) सम्बद्ध - इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स, ब्रुसेल्स, बेल्जियम का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन राजस्थान की राजधानी जयपुर के सबसे नजदीकी जिला होने का गौरव प्राप्त "दौसा" में होगा।

69000 शिक्षक भर्ती घोटाला : कोर्ट ने दिया जांच का आदेश

सौरभ सिंह सोमवंशी
प्रयागराज


 
69000 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में कतिपय गंभीर अनियमितताओं के मद्देनज़र आईपीएस अफसर और वर्तमान में आई जी सिविल डिफेंस अमिताभ ठाकुर द्वारा मुक़दमा दर्ज करने हेतु प्रस्तुत प्रार्थनापत्र पर स्पेशल सीजेएम कोर्ट, प्रयागराज ने एसपी क्राइम प्रयागराज को जांच कर 10 फरवरी तक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।

24.1.21

ईस्ट इंडिया कम्पनी की दत्तक पुत्री भाजपा सरकार



सत्य पारीक


अपनी नीतियों के चलते भाजपा सरकार को ईस्ट इंडिया कम्पनी की दत्तक पुत्री की उपाधि से नवाजा जाना चाहिए जो उसकी चाल चरित्र चेहरे को दर्शाती है , जैसे संयुक्त भारत पर राज करने का अधिकार ईस्ट इंडिया कम्पनी ने " फुट डालो राज करो " की नीति से किया उसी तर्ज पर भाजपा ने हिन्दू-मुस्लिम का साम्प्रदायिक कार्ड खेल कर देश की सत्ता सम्भाली जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत थी , जिसका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बनाया गया मग़र इस पद पर दावेदारी वर्षों से लालकृष्ण आडवाणी की थी , मोदी ने अपने शासन के पहले पांच साल के कार्यकाल में विदेशों की सैर सपाटे कर भारत को विश्व गुरु बनाने व स्वंय को विश्व स्तरीय नेता बनाने के लिए अरबों रुपए फूंक डाले व विदेश मंत्री के होते हुए भी उनके अधिकारों पर अतिक्रमण किये रखा ।

अंजुम ग़ाज़ीपुरी का निधन





टी-सीरिज में थी अंजुम ग़ाज़ीपुरी की ख़ास जगह
 

दिलदारनगर (ग़ाज़ीपुर) । अंजुम ग़ाज़ीपुरी के निधन हो जाने पर साहित्यिक संस्था
‘गुफ़्तगू’ की तरफ से बहुअरा गांव में शोक प्रकट किया गया। गुफ्तगू के
अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि बहुअरा गांव के रहने वाले अंजुम
ग़ाज़ीपुरी ने गुलशन कुमार की टी-सीरिज की बनने वाले आडियो कैसेट के लिए
बहुत सारे गीत, ग़ज़ल, नात आदि लिखे। इनके लिखे गीत को तस्लीम आरिफ़, तृप्ति
शाक्या, बरखा रानी आदि ने आवाज़ दी। अस्सी और नब्बे के दशक में ‘ख़्वाजा का
दर नूरानी’, ‘रमजान की बातें’, ‘टाइम बम है तेरी जवानी’ समेत दो दर्जन से
अधिक बने आडियो कैसेट के लिए अंजुम ग़ाज़ीपुरी ने गीत लिखे। उस दौर में इन
आडियो कैसेट की खूब बिक्री हुई, अपनी ख़ास किस्म की शायरी की वजह से
गुलशन कुमार के करीबी लोगों में शामिल हो गए थे अंजुम ग़ाज़ीपुरी।

22.1.21

नेताजी के 'एक्शन' में था उनके 'कम्युनिकेशन' का राज : रेणुका मालाकर

आईआईएमसी में आयोजित हुआ 'शुक्रवार संवाद' कार्यक्रम

नई दिल्ली, 22 जनवरी। "नेताजी सुभाष चंद्र बोस बोलने से ज्यादा काम करने में विश्वास रखते थे। असल में उनके 'एक्शन' यानी कार्य करने की भावना में ही उनके 'कम्युनिकेशन' का राज छिपा हुआ था।" यह विचार नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रपौत्री एवं नेताजी सुभाष बोस-आईएनए ट्रस्ट की महासचिव सुश्री रेणुका मालाकर जी ने शुक्रवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम 'शुक्रवार संवाद' में व्यक्त किए। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी एवं अपर महानिदेशक श्री के. सतीश नंबूदिरीपाद भी मौजूद थे।

17.1.21

अब भिखमंगा बनने के​ लिए भी होगी परीक्षा!

आपने अब तक आईएएस, कांस्टेबल, कंपाउंडर, फौजी, पटवारी बनने के लिए परीक्षाएं होते देखी होंगी, जिनके लिए देश के नौजवान किताबें घोटते रहते हैं। लेकिन क्या अब भिखमंगा बनने के लिए भी परीक्षा लगेगी?!

16.1.21

नाटक की सार्थकता उसके पढ़े जाने में नहीं, उसके देखे जाने में : असग़र वजाहत

हिन्दू कालेज में वेबिनार

दिल्ली। नाटक पढ़ने की चीज नहीं है, वह देखे जाने की चीज है। नाटक की सार्थकता उसके मंचन किये जाने में होती है। नाटक में निहित अथाह संभावनाओं के कारण इसमें लोगों की रुचि बनी रहती है, क्योंकि नाटक के भीतर विश्लेषण की, नए आयाम खोजे जाने की बहुत संभावनाएं होती हैं। सुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार असग़र वजाहत ने हिन्दू कालेज की हिंदी नाट्य संस्था 'अभिरंग' के सत्रारम्भ समारोह में उक्त विचार व्यक्त किए। प्रो. वजाहत ने ‘‘नाटक : लेखन से मंचन तक’’ विषय पर ऑनलाइन वेबिनार में कहा कि नाटक को जितने भी लोग पढ़ते हैं, जरूरी नहीं कि सभी के भीतर उस नाटक की एक ही जैसी छवि बने। उन्होंने कहा कि लेखक से लेकर निर्देशक तक, सभी अपने कल्पनाशीलता के अनुसार अपने अपने मन में उस नाटक उसकी छवि बनाते हैं। नाटक के मंच तक पहुंचने तक के सफ़र में वो अनेक विभागों से हो कर गुजरती है और इस प्रक्रिया में उसका स्वरूप हर पायदान पर निखरता जाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कैमरा मैन, लाइटिंग विभाग, संगीत, कॉस्टयूम, मंच सज्जा आदि सभी विभाग नाटक के मूल स्वरूप में अपना अपना योगदान देते जाते हैं, उसमें अपना कुछ जोड़ते जाते हैं, और इन पायदानों से गुजरने और निखरने के बाद नाटक का मूल टेक्स्ट मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। व्याख्यान का समाहार में प्रो. वजाहत ने कहा कि नाटक एक कलात्मक विधा है, मंच इसकी जरूरतों को पूरा करता है; मंच का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता, नाटक लेखन उसे सार्थकता देती है।

12.1.21

झारखंड में जारी है अर्द्धसैनिक बलों की गुंडागर्दी

रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार

गिरिडीह जिला के ढोलकट्टा गांव में सीआरपीएफ ने अंत्येष्टि में जुटे ग्रामीणों को पीटा

झारखंड में सरकार बदल गयी है, लेकिन अर्द्धसैनिक बलों (सीआरपीएफ) की गुंडागर्दी जारी है। सीआरपीएफ जब भाकपा (माओवादी) के खिलाफ अभियान चलाने के लिए जंगलों में जाती है, तो वहाँ ग्रामीणों को भी बेवजह पीटने व गाली-गलौज करने से बाज नहीं आती है।

Shashi Tharoor should be projected by Congress as party’s choice for CM in Kerala

 Press Release

Former Congress Spokesperson and Author Sanjay Jha joined KLF Bhava Samvad to discuss his book, The Great Unravelling: India After 2014 (Westland, 2021). The session was moderated by Senior Journalist and Political Analyst Rasheed Kidwai. Mr Kidwai is also known to be the foremost chronicler of Congress party, he is the author of books like Sonia: A Biography and 24 Akbar Road. Talking about his book, Jha mentioned, "I got very concerned about the country at one point. I feel India is an incredible country, great democracy. But it isn't just the ruling government that will have a stake in India's future and so does the opposition. Every individual voice matters.”

11.1.21

रिपोर्टर के साथ हो रही बदसलूकी, खुद जिम्मेदार

राहुल शुक्ला की कलम से

किसान प्रर्दशन के दौरान न्यूज़ चैनल और फिल्ड रिपोर्टरों के साथ हो रही बदसलूकी, जिम्मेदार है ये लोग
 
इस साल सितम्बर माह में केंद्र सरकार नें 3 नये कृषि कानून बनाए हैं। जिसको लेकर देशभर के किसान संगठन इस कानून के लागू होने के बाद से लगातार खूद को असुरक्षित महसूस कर रहे है, किसानों का मानना है कि सरकार उनकी कृषिमंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को सौंपना चाहती है। इसलिये अब देशभर के किसान संगठन आर-पार के मूड में है। किसान अब बिना किसी मध्यस्था के सीधे सरकार से 121 करना चाहते है। इनका कहना है कि सरकार की नियत साफ नही है, लिहाजा किसानों का सरकार से विश्वास उठ गया है। इसी बीच अगर सरकार के अलावा किसी ने देश के आमजन से अपना विश्वास खोया है, तो वो है देश की मिडिया। जिसका परिणाम अब किसान प्रर्दशन के दौरान देखने को मिल रहा है। न्यूज चैनलो के फिल्ड रिपोर्टर की रीपोर्टींग के दौरान  किसान गोदी मिडिया हाय-हाय के नारे लगा रहा है।  
 

बर्थडे पार्टी में डीजे बजाने को लेकर कनपुरिया पत्रकारों ने किया बवाल



कानपुर. कल्‍यानपुर थाना क्षेत्र के शारदा नगर में बुद्धवार की रात में डीजे बजाने को लेकर कुछ स्‍थानीय पत्रकारों का एक रेस्‍टोरेन्‍ट मालिक से विवाद हो गया। विवाद इस कदर बढ़ा कि वहां जमकर लात घूंसे चलने लगे। मारपीट में कई लोग घायल हो गए बताये जाते हैं।

9.1.21

धार्मिक अतिक्रमण के चंगुल में हांफता सरकारी सिस्टम


अजय कुमार, लखनऊ


लखनऊ। इतिहास कभी छूट नहीं बोलता है। बशर्ते लिखने वाले की नियत साफ रही हो। वह किसी एक खास विचारधारा से प्रभावित न हो। पिछली कई सदियों में क्या हुआ ? कैसे हुआ ? किसने किया ? कब किया ? क्यों किया? यह सब इतिहास के पन्नों में दर्ज है। जिसे हम कभी इतिहास तो कभी बेहद गर्व के साथ अपनी संस्कृति का हिस्सा बताते हैं। भारत में कब-कब किन-किन ‘हस्तियों’ ने जन्म लिया। यह भी इतिहास के पन्नों से ही पता चलता है। इन महान हस्तियों के नाम पर कई शहरों, गांव-देहातों, संस्थाओं, सड़कों, स्टेशनों, भवनों आदि का नाम रखा गया है। तमाम धर्मो के इन महान विभूतियों का देश तो सम्मान करता ही है इसके साथ-साथ जिस कुल में इन हस्तियों ने जन्म लिया, वह कुल भी इन महान हस्तियों के  साथ अपने आप को जोड़कर गौरवान्वित महसूस करता है,लेकिन सिक्के का एक पहलू और भी है। समाज में एक ऐसा तबका भी मौजूद है जिसके लिए किसी पीर बाबा की मजार, कब्रिस्तान-शमशान घाट, धार्मिक स्थल आदि  आस्था के स्थल इबादत/पूजापाठ की बजाए अतिक्रमण करके कमाई का जरिया बन गए हैं। इनको न सरकार का डर रहता है, न ही जनता की परेशानियों से इनका वास्ता है। यह ऐसे रंगे सियार होते हैं जिनके ऊपर हाथ डालने से शासन-प्रशासन ही नहीं सरकार तक डरती है।  

5.1.21

टकराव की ओर जा रहा है किसान आंदोलन

CHARAN SINGH RAJPUT-

भले ही 8 तारीख को लोग किसानों और सरकार की वार्ता से बड़ी उम्मीदें लगाए बैठे हों पर मुझे नहीं लगता है कि अब कोई बात बनेगी। इसके पीछे सरकार की बदनीयत है। सरकार ने जिस तरह से पूंजीपतियों के दबाव में ये तीन नए कानून बनाये हैं। सरकार किसी भी सूरत में कानून वापस लेती नहीं दिखाई दे रही है। एमएसपी पर भी लिखित में आश्वासन की बात तो की जा रही है पर कानून लाने की पर सरकार राजी नहीं है। किसान कानूनों के वापस लिए बिना मानने वाले नहीं हैं। किसानों ने कानून वापस कराकर ही वापस जाने किस एलान कर दिया है। गणतंत्र दिवस पर परेड में शामिल होने की तैयारी किसानों ने शुरू कर दी है।

गांवों की हवा भी जहरीली हो गई!

 PRADEEP SHUKLA-

मानक से 5 गुना उपर पहुंचा इंडेक्स ,सांस लेना दूभर ,एक सप्ताह में पीएम 2.5  हुआ खतरनाक की स्थिति में        





प्रदेश के अति प्रदूषित महानगर वाराणसी एवं औद्योगिक परिक्षेत्र सिंगरौली में वायु प्रदूषण के बढ़ते तेवर के बीच  मिर्जापुर जिला भी कदम ताल मिला रहा है। बीते 24 घंटे में  चुनार क्षेत्र के  बरेवा गांव का एयर क्वालिटी इंडेक्स  सबसे ज्यादा 250  से 350 के  मध्य दर्ज किया गया। नगरों महानगरों में प्रदूषण के स्तर पर हाय तोबा मचती है किंतु इस गांव के हालात पर  मंत्री विधायक अधिकारियों से लेकर लोकतंत्रर की आवाज  मीडिया की भी आवाज नहीं निकल रही है। लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण एवं धुंध में ग्रामीणों का सांस लेना दूभर होता जा रहा है।  सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि इस गांव की निर्मलता का आकलन करा कर महामहिम राष्ट्रपतिि जी इस गांव को राष्ट्रीय निर्मल गांव का भी खिताब दे चुके हैं।।   

3.1.21

भास्कर को कोटा में फिर मिली करारी हार

 जस्टिस मजिठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू कराने की मांग के बाद कर्मचारियों को नौकरी से निकालने के मामले में राजस्थान के कोटा से दैनिक भास्कर को  एक बार फिर करारी हार का सामना करना पड़ा।यहाँ बाकी बचे भास्कर कर्मचारियों के पक्ष में  श्रम न्यायालय कोटा द्वारा अवार्ड जारी किया गया। यानी कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय दिया गया है।

ठाकुर प्रसाद सिंह मूलतः पत्रकार ही रहे

९६वीं जयन्ती, दीपदान तथा ‘सोच विचार’ के विशेषांक का लोकार्पण


ठाकुर प्रसाद सिंह ने कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर कार्य किया और साहित्य में अपनी कृतियों के जरिए अवदान किया लेकिन वे मूलतः पत्रकार ही रहे।  ठाकुर प्रसाद सिंह की ९६वीं जयन्ती पर साहित्यिक संघ और ठाकुर प्रसाद सिंह स्मृति साहित्य संस्थान द्वारा मंगलवार को वाराणसी के नाटी इमली चौराहे पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपदान तथा मासिक पत्रिका ‘सोच विचार’ के ठाकुर प्रसाद सिंह विशेषांक का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। समारोह में ये विचार वक्ताओं ने व्यक्त किए।

बदलते परिवेश में बदलती नजर आ रही है पत्रकारिता

-पत्रकार सत्येन्द्र सिंह राजपुरोहित


कल देश गुलाम था पत्रकार आजाद, लेकिन आज देश आजाद है और पत्रकार गुलाम। देश में गुलामी जब कानून था तो पत्रकारिता की शुरुआत कर लोगों के अंदर क्रांति को पैदा करने का काम हुआ। आज जब हमारा देश आजाद है तो हमारे शब्द गुलाम हो गए हैं। कल जब एक पत्रकार लिखने बैठता था तो कलम रुकती ही नहीं थी, लेकिन आज पत्रकार लिखते-लिखते स्वयं रुक जाता है, क्योंकि जितना डर पत्रकारों को बीते समय में परायों से नहीं था, उससे ज्यादा भय आज अपनों से है।

2.1.21

सरकार को मेरी लाश दे देना, वो मेरे अंगों को बेचकर पैसे कमा लेगी!

असित नाथ तिवारी-

सब तरफ खामोशी है। सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी इस देश के लिए बहुत बड़ी घटना थी। किसान की खुदकुशी तो जैसे कोई घटना ही नहीं है। इसी से पता चलता है कि इस दौर में भीड़ की प्राथमिकता क्या है। आप भेंड़ बनाए जा चुके हैं। कोई है जो आपको भेंड़ की तरह हांकता जा रहा है और आप भेंड़चाल  चलते जा रहे हैं। आपके विवेक पर नियंत्रण कर वो आपको बता रहा है कि भेंड़चाल ही राष्ट्रवाद है।