अभी इंडिया टीवी पर रजत शर्मा जी को देखा मुस्कराते हुए एक रिपोर्ट को बता रहे थे । रिपोर्ट थी दिल्ली में पकड़ा गया किन्नर बनाने का कारखाना ,यह मुद्दा इतना गम्भीर है लेकिन शर्मा जी हैं कि मुस्कराहट बिखेरे चले जा रहे हैं और लालसिंह नामक व्यक्ति से पूछ रहे हैं कि क्या होता है वगैरह-वगैरह.... । यह मुद्दा ठीक वैसा है जैसे कि लोग स्वेच्छा से अंग कटवा कर भिक्षा मांगने के पेशे में उतर जाते हैं । जब लोगों ने देख लिया कि इस तरह से भी कमाई हो सकती है तो क्या फर्क पड़ता है चलो इधर भी हाथ आजमा लेते हैं और अपराधियों ने इस क्षेत्र को भी नहीं छोड़ा पर इसका यह मतलब तो नहीं कि हम सभी लैंगिक विकलांग लोगों से डरने लगें कि कहीं दोस्ती बना कर अपने जैसा न बना लें । अरे जब एड्स रोगियों से मित्रता करने से वो आप को रोगी बनाना नही चाहते तो भला प्राकृतिक रूप से जन्में लैंगिक विकलांग ऐसा क्यों चाहेंगे दरअसल यह तो मात्र पैसे के लालच में अंधे हुए अपराधी किस्म के लोगों का काम रहता है और आप सब समझ सकते हैं कि अपराध की प्रकृति किसी भी जाति धर्म ,क्षेत्र,भाषा या लिंग से हो सकती है यह एक असहज सी मनोरुग्ण स्थिति है । इसलिए मनीषा दीदियों से न डरें..................
जय जय भड़ास
28.2.08
अपराधी तो कोई भी हो सकता है क्या स्त्री ,क्या पुरुष और क्या हिजड़ा ......
Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
Labels: अपराधी, मनीषा, लैंगिक विकलांग
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1 comment:
सत्य कहा डाक्टर साब आपने, वैसी भी हमें इन शारीरिक विकलांगता को सहानुभूति या ओछे नजरिये से देखने के बजाय, इनके मुख्यधारा में शामिल करने को विचार करना है ना की कुछ लोगों के कारण एक समुदाय विशेष पर प्रश्नचिन्ह अंकित करना है.....
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