दैनिक भास्कर ने अपने साप्ताहिक साहित्यक पेज 'दस्तक' (21 फरवरी) के केन्द्र में ब्लॉग जगत को फोकस किया है। इस में एक तरफ़ जहाँ कोंफी हाउस के पतन के बाद विमर्श के लिये ब्लोगिंग को एक बेहतर मंच बताया गया हैं वहीं आरकुट का विकल्प भी। आईटी क्षेत्र के मशहूर तकनीकी सलाहकार रवि रतलामी के आतिथ्य संपादन में प्रकाशित इस खास पेज का मुख्य आलेख लंदन में कार्यरत मीडियाकर्मी अनामदास ने 'ब्लोगिंग ने बनाए दोस्त' शीर्षक से लिखा है । इस आलेख में सामजिक -सांस्कृतिक और वैचारिक गत्विधियों के अकाल से जूझ रहे हिन्दी समाज के लिए ब्लोग्स को मानसून का दर्जा दिया गया है। आलेख में अप्रत्यक्ष रूप से 'भड़ास' और 'मोहल्ला' का जिक्र भी किया गया है वहीं प्रभा साक्षी डॉट कॉम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच, देवाशीष, रवीश कुमार, अनिल रघुराज, समीर लाल, अभय तिवारी और ब्लागवाणी के संचालक मैथिली गुप्त के वैचारिक आलेख और टिप्पणियां हैं साथ ही रवि शंकर श्रीवास्तव का ब्लॉग बनाने को लेकर उपयोगी आलेख। 'व्यावसायिक ब्लोगिंग' शीर्षक से लिखे बालेन्दु दाधीच के आलेख में ब्लोगिंग को पत्रकारिता के समान धन कमाने का जरिया भी बताया गया है। जबकि अभय तिवारी ने अपनी टिपण्णी में ब्लोगिंग को एक बीमारी करार दिया है। जब कि रवीश कुमार ने ब्लोगिंग को साहित्य के भविष्य के साथ जोड़कर देखा है । पेज में ब्लोगिंग के इतिहास पर नज़र डालते हुए बताया गया है की आज लगभग हिन्दी के 3 हज़ार , अंग्रेजी के 3.5 करोड़ ब्लॉग सक्रिय हैं जिस में 37 फीसदी जापानी भाषा तथा 36 फीसदी अंग्रेजी भाषा के ब्लॉग हैं
-आशेन्द्र सिंह singh.ashendra@gmail.com
2 comments:
आशेन्द्र सिंह
आपके पोस्ट ने उत्साहित किया . आज ही मेरे मित्र मदन गर्ग आए थे इस विषय को लेकर आपकी पोस्ट पर भी चर्चा हुई.सच दुनिया कितनी पास-पास सी हो गयी है.
अंतर्जाल पे जो कुछ किया जा रहा है प्रारम्भिक अवस्था ही कही जाएगी अन्य देशों के सापेक्ष . हमारे कोशिशें कल का आधार [बुनियाद] बनेगी.
पोस्ट के लिए आभार
गिरीश भाई
आप की टिप्पणी के लिए शुक्रिया.
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