तंग गलियों से निकलकर, आसमान की बात कर
राम को मान और रहमान की भी बात कर
अपने बारे में हमेशा सोचना है ठीक पर
चंद लम्हों के लिए, आवाम की भी बात कर
बहारों के मौसम सभी को रास आते हैं मगर
सदियों से सूने पडे़, बियाबान की भी बात कर
तरक्कियां सबके लिए होती नहीं हैं एक-सी
अंतिम सीढ़ी पर खड़े, इंसान की भी बात कर
सिमट गई दुनिया लगती है, शहरों के ही इर्द-गिर्द
गावों में बसने वाले, हिन्दुस्तान की भी बात कर
टाटा--बिरला-अंबानियों के, कहो किस्से खूब पर
आत्महत्या कर रहे, किसान की भी बात कर
ख्वाब अपने कर सभी पूरे मगर
जिन्दा रहने के किसी अरमान की भी बात कर
9.4.08
गजल
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4 comments:
भागीरथ जी,साधुवाद स्वीकारिये, गहरी बाते कह दीं गज़ल के बहाने से....
VAKAI KAFI GAHRAAI HAI IS GAJAL MEIN.DHANYAVAD SWIKAR KIJIE .
Bhai,
Ek bhagirath ganga le ke aaye or ek bhagirath jindgi ke roop ko bayan kar gaye,
aapke bhagirath prayas ka sadhuvaad, Behrareen hai
भाई भागीरथ अच्छी गजल लिखने के लिए बधाई स्वीकारें। बहुत खूब। लिखते रहिए।
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