आपके शहर में कोई रहता है,
आप उसे नहीं जानते,
शायद वो भी आपको नहीं जानता,
लेकिन आपके और उसके बीच एक रिश्ता है
अजनबी होने का
और जब आप जब होते है
अपने ए.सी. दफ्तर के गद्देदार कुर्सी पर,
उस समय वो बीन रहा होता है,
कूडे के ढेर में से
अपने लिये कुछ काम की चीज़े,
और जो आप पेप्सी की बोतल
फेंक देते है पी कर,
वहीं बोतल उसे रात का खाना देती है,
क्योंकी वो है
कूडा बीनने वाला हमारा एक रिश्तेदार.
पर कितने अन्जान है हम
अपने अपने ए.सी. दफ्तरों में
कि नहीं पहचान पाते है
अपने हीं रिश्तेदार को.........
ऐसे ही एक दिन
जब वो कूडे के ढेर पर से
कूडा उठा रहा होगा.
कोई ट्रक आके उसके पास
पिच्च...........
और हमारा ये रिश्तेदार
चला जायेगा हमसे दूर
हमसे कोई शिकायत किये बिना.
19.4.08
हमारा रिश्तेदार
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2 comments:
आलोक भाई,झिंझोड़ कर रख दिया अंदर तक...
bhai bada dard hai,
sihran si ho rahihai.
kitna satya or kitna katu
niruttar hoon............
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