इस बदलते दौर में इतना तो ख्याल रखा है।
हया के चादर में रिश्तों को संभाल रखा है।।
तलाशते तलाशते जिनको इक उम्र गुजर गई अपनी।
उस मंजिल को तमाम रास्तों ने संभाल रखा है।।
मुकददर को कोसने वालों सुन लो।
अपने हाथों में तुमने वो मलाल रखा है।।
इस सूरत में ढूढते हो हमारे सीरत की तस्वीर क्यूं।
वक्त ने दे के सबकुछ हमें अब भी फटेहाल रखा है।।
इजाजत हो तो जरा मसजिद तक हो आउं मैं भी।
इक मुददत से इस दिल में गुनाहों को पाल रखा है।।
अबरार अहमद
13 comments:
बहुत खूब। हर एक शेर बहुत ही शानदार है। बधाई।
दिल खोलकर रख दिया अबरार तुमने। ऐसे ही लिखते रहो। मेरी शुभकानाएं तुम्हारे साथ है।
अबरार भाईजान,बेहतरीन रचना है,प्रशंसा जितनी करी जाये कम लग रही है.....
masha allah,
dil ke dard ko dil se bahar nikala.
aapke dard ko ek bhadaasi hi samajh sakta hai.
Jai Bhadaas
Jai Jai Bhadaas
बहुत अच्छी ग़ज़ल है अहमद भाई .
मियां आपके शेर में इतना वजन कहाँ से पैदा होता है.
मैं तो रदीफ और काफिये में ही उलझ कर रह जाता हूँ.
ग़ज़ल की अन्तिम पंक्ति जिसे मकता या मसला कहते हैं
बेहतरीन है.
bahut khub. dil khush kar dya.
अबरार भाई, सुभान अल्लाह! मियां समां बाँध दिया आपने तो..... वाह
very very beautiful...is se zyada kuchh nahi kahungi varna vo bhi kuchh galat samjha jayega...haha
kya bat hai masha allah
भाई अबरार अहमद बेहतरीन गजल के लिए मुबारकबाद। यूं ही लिखते रहें और दिखते रहें।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
हौसलाअफजाई के लिए सभी भडासी साथियों का धन्यवाद। आप सबका स्नेह पाकर गदगद हूं। आगे भी ऐसे ही आप सब के प्यार और इज्जत की कामना करता हूं। बडे भईया सुरशे नीरव जी से आशीर्वाद चाहूंगा।
apun thora paachhe aayaa abraar bhaai magar majaa aa gayaa.
mahsus ki jaanevaali rachnaa ke liye badhai
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