रायपुर में समाज के ठेकेदारों ने 01 अप्रैल को एक लड़की को अर्धनग्ग होकर दौडऩे पर मजबूर कर दिया। लड़की दौड़ नहीं रही थी बल्कि उसे शहर के कुछ शरीफ लोग दौड़ा रहे थे। लड़की पर यह आरोप था कि वह जिस्मफरोशी करती है और समाज सुधारने का ठेका लेकर चलने वाले कथित लंपटों को यह मंजूर नहीं था कि वह अपना पेट पालने के लिए इस धंधे को अपनाए। जो समाज सुधारक लड़की के पीछे भेडिय़ा नजरें लिए दौड़ रहे थे शायद उन्हें पुलिस की शह मिली हुई थी। यदि पुलिस की शह नहीं होती तो मजदूरों और कर्मचारियों की जायज मांगों पर लाठी बरसाने वाली पुलिस लड़की के पीछे भागने वालों को रोकती, उन्हें खदेड़ती। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। जो लड़की जान बचाकर पुलिस के पास पहुंची, पुलिस का सबसे पहला सवाल ही यही था कि गलत काम करोगी तो लोग पूजा नहीं करेंगे? गलत तो होगा ही। लड़की ने बताया कि वह पहले गलत काम करती थी लेकिन पिछले ६ महीने से उसने यह धंधा छोड़ दिया है बावजूद इसके पुलिस यह मानने को तैयार नहीं हुई। खैर जैसे-तैसे लड़की बच तो गई लेकिन पुलिस उसे किसी खास कारण से न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर सकी। पुलिस से पूछने पर पता चला कि वह विवेचना में जुटी हुई है। अब पुलिस उससे पूछ रही है कि बताओ कल कहां-कहां? किसने-किसने तुम्हारे शरीर को छुआ है? और कहां हाथ लगाया है? लड़की के साथ ऐसा क्यों हुआ इसकी भी अपनी तथा-कथा है। दरअसल लड़की के माता-पिता बचपन में ही चल बसे हैं। बहन और भाई का पेट भरने के लिए जब वह घर से बाहर निकली तो हर किसी ने उसके जिस्म को घूरना शुरू किया। हर कोई उसकी मदद तो करना चाहता था लेकिन बदले में अपने शरीर की बीमारी और तपिश जरूर देना चाहता था। मां-बाप के प्यार से महरूम लड़की दो सूखी रोटी के आगे हर किसी के सामने बिछती चली गई। लड़की स्वयं स्वीकारती है कि उसकी जिन्दगी में कई लोग आए और चले गए, लेकिन जब कभी भी उसने सुधरने की कोशिश की तो लोगों ने उसे नरक में धकेलने का ही काम किया। कल एक अप्रैल को शहर में जो कुछ घटित हुआ उसके पीछे केवल लड़की की जिस्मफरोशी ही नहीं है। लड़की जहां रहती है वहां कुछ ऐसे लोग भी रहते हैं जो खाली मकानों पर कब्जा करने का काम करते हैं। बताते हंै कि एक ऐसे ही जमीन दलाल की नजर पिछले कई दिनों से लड़की के उस मकान पर पड़ी हुई है जिसे उसके पिता ने बनवाया था। रिद्धी-सिद्धी अपार्टमेंट के एक कमरे में लड़की की पहचान एक ऐसे व्यक्ति से जिसने उसे दिलासा दिलाया कि वह उसे इस नरक की जिन्दगी से उबार लेगा। लड़के ने अपना वचन भी निभाया, लेकिन एक दिन बेहद संदिग्ध ढंग से उस नौजवान की भी मौत हो गई जिसने उसका साथ देने की कसम खाई थी। पति का साथ छूटने के बाद लड़की ने अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए गलत रास्ता अख्तियार जरूर किया, लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वह इस धंधे से बाहर आ गई। लड़की कल जब सड़क पर दौड़ रही थी तो चीत्कारते हुए यह भी कह रही थी कि जब गलत काम नहीं करो तो बोलते हैं कि गलत करो॥ कोई तो बचाओ। मां, मैं मर जाऊंगी... कोई तो बचा लो।
(दर्पण से यह पोस्ट जस की तस यहाँ दे रहे हैं )
साभार-हरिभूमि
प्रस्तुतकर्ता मंतोष कुमार सिंह
4.4.08
मां, मैं मर जाऊंगी... कोई तो बचा लो।
Labels: जिस्मफरोशी, नरक की जिन्दगी, समाज सुधारने का ठेका
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3 comments:
भयानक है। क्या करें?
सही गलत क फ़ैसला करने क अधिकार इन ठेकेदारो को किसने दे दिया !! आखिर वो भी तो गलत हि कर रहे है ""
शर्मनाक बात है
चलिये मैं एक मार्ग सुझाता हूं वैसे तो लगभग सभी बुद्धिमान लोग उस बेहतरीन उपाय को जानते हैं, घटना की कड़े शब्दों में निंदा करिये,तीव्र भर्त्सना करिये और फिर चुपचाप बैठ जाइए.....
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