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5.4.08

मर कर अल्लाह से ही सीधे जानूंगी कि सच कौन बोल रहा है?

रक्षंदा आपा,जैसा आपने लिखा कि इस्लाम है ही ऐसा तो जरा गौर से देखिए आगे लिखी एक-दो नहीं बल्कि बहत्तर अलग-अलग मान्यताओं के द्वारा इस्लाम की व्याख्या करने वाले अंदाज़ और बताइये कि किसको मानूं मैं?शायद मैं भी अपने मजहब को सर्वश्रेष्ठ मानती हूं लेकिन किसके चश्मे से दुनिया और सत्य को देखूं आधी उम्र गुजर जाने पर भी समझ नहीं पाई हूं और लगता है कि शायद जब इतने विरोधाभास हैं तो समझ भी न पाऊंगी। कुछ साल पहले तक मैं अपने अब्बा हुजूर से सुनती आयी थी कि इस्लाम पुनर्जन्म की धारणा को नहीं मानता लेकिन हो सकता है कि आपको ये जान कर अजीब लगे कि इन बहत्तर अलग-अलग सोचों में से एक सोच,"तनसिख़िया" पुनर्जन्म की धारणा को मानती है लेकिन हममें साहस नहीं है कि हम कह सकें कि इन सब में आपस में इतना भेद क्यों है? सारे के सारे गला फाड़ कर खुद को सच और बाकी लोगों की सोच को गलत बताने में जुटे रहते हैं। आप तो पढ़ी-लिखी हैं फिर भी मजहबी बातों पर टिप्पणी करने से मैं बचती थी लेकिन आज आपने मज़बूर कर दिया कि मैं लिखूं भले ही मुझे मार डाला जाए परवाह नहीं है इन जाहिलों की। आज भी हम चौदह सौ साल पहले बोले और बताए गये नबी के सत्य को ठीक से न समझ पाए लेकिन उसी आदिम परिवेश के सोच की वकालत करते हैं,कितनी बातें ऐसी हैं जिनका मेरे पास कोई उत्तर नहीं है कि क्या मानव धरती पर एलियन्स हैं या फिर मानव के क्रमिक विकास की लैमार्क और डार्विन जैसे साईंसदानों की बात सच है? क्यों हम आज भी जानवरों को मार काट कर उनका हड्डी मांस खा जाने को क़ुर्बानी देना कहते हैं? क्यों नहीं हम सब भी अगर उस पूरे प्रकरण को अगर याद करना चाहते हैं तो अपने-अपने बच्चों को ज़िबह करते अगर हमारा मन भी साफ होगा तो छुरी के नीचे दुम्बा आ जाएगा,लेकिन हम हैं बस गोश्तखोर तो हमें बस एक आधार मिल गया निरीह जानवरों को मार कर खा जाने का। मैंने एक कहानी पढी़ जिसका नाम था "मैमूद" और लेखिका का नाम था शायद मेहरुन्निसा परवेज़ जिसमें उन्होने लिखा था कि किस तरह परिवार के लोग एक बुढ़िया के द्वारा पाले गए मेमने को धर्म की दुहाई देकर मार कर खा जाते हैं लेकिन उस बुढि़या से न तो कीमा खाते बनता है न ही पाया। मैं भी जब उन मासूम जानवरों को देखती हूं तो लगता है कि वो मुझसे पूछ रहे हैं कि अगर कुर्बानी की कहानी में छुरी अगर कुत्ते या सुअर या गधे को लगी होती तो क्या तुम लोग उन्हें खा पाते?
जाने दीजिये आपा,मन में बहुत कुछ भरा है जिसमें से थोड़ा सा आज आपकी मेहरबानी से निकल गया और अगर आगे फिर कभी मजहबी जिक्र निकला तो बाकी भी निकल जाएगा। इन सारे लोगों के समर्थकों से बहुत सारे सवाल हैं लेकिन अब तो सोचती हूं कि मर कर अल्लाह से ही सीधे जानूंगी कि सच कौन बोल रहा है? इनके हिन्दी में नाम भी लिख पाना एक टेढ़ा काम है इसलिये अंग्रेजी में ही काम चला लिया है......
Jarudiyah,Sulaimaniah/Jaririyah,Butriyah/Hurariyah,Yaqubiyya,Hanafiyah,Karibiyah,Kamiliyah,Muhammadiyyah /Mughairiyah,Baqiriyah,Nadisiyah,Sha'iyah,Ammaliyah,Ismailiyah,Musawiyah/Mamturah,Mubarikiyah,Kathiyah/Ithn'Ashariyh(theTwelvers),Hashamiya/Taraqibiyah,Zarariyah,Younasiyah,Shaitaniyah / Shireekiyah,Azraqiah,Najadat,Sufriyah,Ajaridah,Khazimiyah,Shuaibiyah /Hujjatiyah,Khalafiyah,Ma'lumiyah / Majhuliyah,Saltiyah,Hamziyah,Tha'libiyah,Ma'badiyah,Akhnasiyah,Shaibaniyah/Mashbiyah,Rashidiyah,Mukarramiyah/Tehmiyah,Ibadiyah/Af'aliyah,Hafsiyah,Harithiya,Ashab Ta'ah,Shabibiyah / Salihiyah,Wasiliyah,'Amriyah,Hudhailiyah / Faniya,Nazzamiyah,Mu'ammariyah,Bashriyah,Hishamiyah,Murdariyah,Ja'friyah,Iskafiyah,Thamamiyah,Jahiziayh,Shahhamiyah/Sifatiyah,Khaiyatiyah/Makhluqiyah,Ka'biyah,Jubbaiyah,Bahshamiyah,Ibriyah,Muhkamiyah,Qabariyya,Hujjatiya,Fikriyya,'Aliviyah / Ajariyah,Tanasikhiya,Raji'yah,Ahadiyah,Radeediyah,Satbiriyah,Lafziyah,Ashariyah,Bada'iyah
इंसानी दुनिया में मजहब या धर्म सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही है इंसानियत और उस पर हमें अपने इस्लामिक,क्रिस्तान या हिंदू होने के नजरिये का चोला नहीं चढ़ाना चाहिये। मुझे पूरी उम्मीद है कि आपको यही बातें अगर किसी हिंदू या गैरमजहबी ने लिखीं होती तो शायद बुरा लग गया होता लेकिन मैं तो हममजहब हूं लेकिन अगर फिर भी बुरा लग रहा हो तो आइये भड़ास पर हम दोनो कुछ दिन तक सिर टकराते हैं।
भड़ास ज़िन्दाबाद

1 comment:

राकेश जैन-- said...

bhoot thik likha he mam aapne . jis tarha insaan ko jeene ka adhikaar he usi tarah jaanvaro ko bhi . us samy registaan me kami rahi hogi par aaj hajaroo cheeje he sirf jeebh ke swad ke liye kisi jaanvar ko maar dalna thik he to insaan ko marna ya khana bhi bhoot buraa kyo mana jata he