मेरा पसंदीदा काम है मात्र दस रुपए और थोड़ा सा वक्त खर्च करके ब्यूरोक्रेट्स के साथ RTI-RTI खेलना यानि कि जब मन किया पूछ लिया सरकारी अधिकारियों से कि सालों बताओ सड़क की चौड़ाई कागजों पर कितनी है और सचमुच में कितनी है या कागजों में झोपड़पट्टी के लिये कितनी सीट्स का टायलेट पास हुआ और सच में बनाए कितने हैं वगैरह-वगैरह। आप लोगों को पता होगा कि मैने पहले एक पोस्ट में लिखा था कि मुझे नगर परिषद के अधिकारियों ने अपना मुंहलगा साला समझ कर मजाक किया और RTI के अंतर्गत सादा कागज मुहर लगा कर उपलब्ध करा दिया। बस फिर क्या था हम इस रिश्ते से नाराज हो गये कि साले तुम बनो हम तो जीजा बनेंगे और प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपील कर दी जो कि खुद को बड़े जीजा से कम नहीं मानते हैं और काफ़ी मजाकिया किस्म के हैं वो भी ऐसे ही मजाक करते हैं और पद सम्हाले हैं सहा.आयुक्त का। इसी मजाक की परंपरा के चलते मेरे पास दिनांक ८/४/२००८ को शाम के ०४:४५ पर एक भला सा मानव प्रतीत होने वाला प्राणी हाथोंहाथ एक पत्रनुमा वस्तु लाया कि साहब इसे ले लीजिये । मैंने उसे पानी पीने को दिया और पूछा कि चाचा ये क्या है तो उसने बताया कि हे नादान बालक,कुटिल कालवश निज कुल घालक ये तेरा बुलावा है, पल भर को लगा कि कहीं यमदूत वेष बदल कर तो नहीं आ गया । डरते डरते पत्र खोल कर पढ़ा तो प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास से बुलावा आया था कि आओ साले सुनवाई नामक नाटक है उसका ये मुफ़्त पास है। पत्र मोड़ कर रखने ही जा रहा था तो इतने में मुनव्वर आपा के अब्बा हुज़ूर जनाब मोहम्मद उमर रफ़ाई दरवाजे पर प्रकट हो गये और बोले क्या है ये हाथ में जिसे इतने जतन से थामे हो तो मैने बता दिया,उन्होंने देखने की इच्छा जाहिर करी तो मैंने पत्र उनके हाथ पर रख दिया तो कुछ देर तक तो पता नहीं क्या देखते रहे फिर बोले कि डाक्टर साहब क्या आपने टाईम मशीन की भी ईजाद कर ली है।.मेरी कुछ समझ में ही नहीं आया कि अब्बा दि ग्रेट क्या फ़रमा रहे हैं ,उन्होंने मुझे दिखाया कि उस पत्र पर जिस तारीख का बुलावा था वो तो ९/४/२००७ है यानि कि एक साल पहले की तारीख और वो भी एक जगह नहीं तीन चार जगह यही गलती थी। आज जब मैंने अपीलीय अधिकारी महोदय को बताया तो उन्होंने कहा कि आपको तो मीनमेख निकालने की आदत हो गयी है ये तो नहीं बनता कि चुपचाप बाकी लोगों की तरह शान्ति से रहें और हमें भी रहने दें, लगे रहते हो फ़ालतू में सबको सताने में। ऐसी बाते सुन कर हमारा तो पिछवाड़ा सुलग कर कोयला हो गया मन किया कि उसे खूब गरिया दूं और दुकान पर चार छह लातें कस-कस कर जमा दूं लेकिन ये सोच कर चुप रहा कि अगर इस सुअर को गालियां दे ली तो मन हलका हो जाएगा फिर पता नहीं भड़ास पर पोस्ट डालने का मन ही न करे इसलिये सिर्फ घूर-घूर कर ही काम चला लिया। अब उसे जितना गाली देना है संध्या पूजा के बाद आराम से लेट कर इस पोस्ट को डालने के बाद दूंगा और हां दूसरी बात कि जिस संदर्भ में यह अपील थी उसके लिये शनिवार को फिर से पनवेल नरकपालिका के चीफ़ आफ़िसर का सर खाने और बैंड बजाने जाना है और साथ में होंगी हमारी महाभयंकर भड़ासी बहन मनीषा दीदी और ग्यारह और दीदियां। मर गया साला समझिये............
9.4.08
RTI-RTI खेलना और टाईम मशीन की ईजाद........
Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
Labels: RTI, ब्यूरोक्रेट्स, भड़ासी, मनीषा दीदी, मुनव्वर आपा
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7 comments:
डाक्टर साहब, आजकल कौन किसी के लिए चिंतित रहता है और किसी दूसरे के लिए मरता है। आप इतना सब कर ले रहे हैं, मुंबई जैसी जगह में रहते हुए, यह बड़ी बात है और हम सब भड़ासियों के लिए प्रेरणादायी है। मेरी शुभकामनाएँ आप के साथ हैं। कभी जरूरत पड़े तो बताइएगा, हम दिल्ली से कई भड़ासी पहुंच कर मुंबई में गरियायेंगे। खुदा आपको ताकत दे।
यशवंत
dr. sab lge rhehiye....ek din aap lga dijiega...
bhai ki jai ho.
jai jai bhadas
DOCTOR JI...SACHMUCH EK DIN AAP LAGA DOGE,ISI TARAH LAGE RAHIYE AUR UN SAALON KO GARIYAANE MEIN WORD STOCK KAM PAR JAAE TO JARUR YAAD KIJIEGAA.
रुपेश भाई,
आप वाला खेल वैसे तो मुझे भी बहुत पसंद है पर आलस्यवश खेल नहीं पाता हूँ और आप जैसे कुशल खिलाड़ियों का खेल देख कर ही खुश हो लेता हूँ. और हाँ, अगर कहीं सामुहिक रूप से गाली देने का मन हो जाए या जरूरत ही पड़ जाए तो मेरा विश्वास है कि सारे भड़ासी आपके साथ हो लेंगे. बस एक भड़ासी आह्वान की जरूरत है.
वरुण राय
ekdam mast bola varun bhai.
मां कसम मुंबई आए डेढ़ साल हो गया पर पहली बार एहसास हुआ कि यह हिंदुस्तान में है। यहां लड़ा जा सकता है अपनी समस्याओं को लेकर। वर्ना अब तक तो मैं स्वयं से उस निर्णय को लेकर खासा नाराज था कि आखिरी झीलों के शहर भोपाल को छोड़कर यहां आने का निर्णय लिया ही क्यों।
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