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5.5.08

झुक गये नैन नीरव नमन की तरह।

( डॉ.रूपेश श्रीवास्तव, वरुण राय, रजनीश के.झा, और भाई अबरार अहमद आप-जैसे अदीबों की तारीफ और हौसलाअफजाही के लिए तहेदिल से शुक्रगुजार हूं.. पेश है आप हुनरमंदों के हुजूर में एक और ग़ज़ल..)
जिंदगी जब लगी इक चुभन की तरह
खिल गईं प्राण में तुम सुमन की तरह
सीपिया मन में ऐसी उठी भांवरें
कामना हो गई तब हवन की तरह
यूं तो कहने को जीवन तुम्हारा सही
भावना से सजाया भजन की तरह
खूब गहरा अंधेरा हुआ जब कभी
मिल गईं राह में तुम किरण की तरह
रोज़ चलते रहे हम यही सोचकर
तुम महकती तो होगी चमन की तरह
गुनगुनी याद फिर से पिघलने लगी
कल्पना कांपती बहुवचन की तरह
आ गया जिक्र बातों में जब आपका
झुक गये नैन नीरव नमन की तरह।
पं. सुरेश नीरव
मो. ९८१०२४३९६६

5 comments:

Ajit Kumar Mishra said...

भाई इतना अच्छा कैसे लिख लिते हो कुछ गुरु मंत्र मुझे भी दे दो गुरु दक्षिणा जरुर मिलेगी।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

झुक गये नैन नीरव नमन की तरह।
उगल दी दिल की भड़ास वमन की तरह । ।
इसी तरह से एनर्जी जनरेट करते रहिये प्रभु......

VARUN ROY said...

लगता है पंडित जी की सोहबत में डॉक्टर साहेब
गज़लगो जरूर हो जायेंगे.
वैसे हम सब की खुशकिस्मती है कि
पंडित जी आप हमारे हैं.
बहुवचन वाला फंडा बेजोड़ था .
अनुशासन हीनता ही सही पर रोक
नहीं पाया लिखने से अपने को.
जय जय भड़ास
वरुण राय

Anonymous said...

पंडित जी दंडवत.

रोज़ चलते रहे हम यही सोचकर
तुम महकती तो होगी चमन की तरह

क्या भाव हैं, मुझे खुद को याद दिलाते से प्रतीत होते हैं. साधुवाद लिजीये.
जय जय भडास.

अबरार अहमद said...

जिंदगी जब लगी इक चुभन की तरह
खिल गईं प्राण में तुम सुमन की तरह
बडे भईया प्रणाम। बहुत सुंदर रचना। इसी तरह अपना प्रेम बरसाते रहें।