मित्रों,
हमारे भडास का कमाल हमारे दोस्तों का धमाल, भडासी बुजुर्गों का आशीर्वाद कि ससुरे हम भी तुकबंदी करने लगे हैं।
भैये लोग ई हमारा पहिला तुकबंदी है सो जड़ा पढ़ते चलिए। बहुत हो गया कलुआ-कलुआ ससुर के नाती ने बहुत टाइम खोटा किया सो वापस अपुन लोगों कि दुनिया में आ जाओ। जरा एक नजर इधर भी........
हमारी आदरणीय सलाहकार मनीषा दीदी को समर्पित......
मेरी भी कलम के दिल में लाखों
कविताएं और गज़लें भरी हैं
तुकबंदी के कुत्ते भौंक रहे हैं
तभी तो बाहर निकलने से डरी हैं
लटका, पटका, झटका, खटका की
तुकबंदियां तुम्हें खुश कर रही हैं
भावनाएं अपनी ही चमड़ी को
उधेड़ उसमें भुस भर रही हैं
कांपते हाथों से गिरी दवात की
बिखरी स्याही, समेटे लाखों गज़लें
बगुले तुक के तुक्कों से आगे हैं
हंस सहमें से झांकते फिरते बगलें हैं
कविताएं और गज़लें भरी हैं
तुकबंदी के कुत्ते भौंक रहे हैं
तभी तो बाहर निकलने से डरी हैं
लटका, पटका, झटका, खटका की
तुकबंदियां तुम्हें खुश कर रही हैं
भावनाएं अपनी ही चमड़ी को
उधेड़ उसमें भुस भर रही हैं
कांपते हाथों से गिरी दवात की
बिखरी स्याही, समेटे लाखों गज़लें
बगुले तुक के तुक्कों से आगे हैं
हंस सहमें से झांकते फिरते बगलें हैं
जय जय भडास
जय जय भडास
2 comments:
रजनीश भाई अच्छा प्रयास है। लगे रहो तुकबंदी में। कवि का तगमा लेकर ही उठना। अपन सब हैं ना पढने और दाद देने के लिए।
क्या भिड़ू जास्ती कवि-बिवि बनने का नईं अपने पास पैले से इच भौत भैंकर-भैंकर कवि भाई लोक मौजूद हैं स्टेशन में... क्या??? अगर मनीषा दीदी को कुछ समर्पित करने का हो तो बाप तो जरा खड़ी बोली में लिखने का कविता-सविता बोले तो भैन को लगेगा कि कोई चोखेरबाली है क्या जो रजनीश भाई अपुन को समर्पित कर रा है कलुए के मोहल्ले कमाठीपुरा से उठा कर लाएले...
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