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24.6.08

सुरां न पीबति सः असुरः।

ध्यानार्थः श्री यशवंतजी और उनके देवतुल्य भड़ासियों के लिए
सुरा की महत्ता को लेकर जगदीश त्रिपाठी का रोचक लेख पढ़ा, मन हुआ कि सुरा के समर्थन में कुछ तथ्य मैं भी प्रस्तुत कर दूं। यथा- महर्षि कश्यप की दो पत्नियां थीं- दीति और अदीति। दीति के पुत्र दैत्य तथा अदीति के पुत्र देवता कहलाए। असुरों ने सुरा न पीने का संकल्प लिया मगर सुरों ने उस प्रतिबंध को नहीं माना क्योंकि उनके पिता महर्षि कश्यप को इससे परहेज नहीं था। संस्कृत में कश्य का अर्थ ही शराब होता है। (कश्यःशराब,अपःपीनेवाला।) जिस जगह बैठकर देवता शराब का उत्कर्षण करते थे यानी आसव का उत्कर्षण (उत-सव) करते थे, वह क्रिया ही उत्सव कहलाई। मंड की बनी शराब, जिस स्थान पर देवता पीते थे, वह जगह ही मंडप कहलाई। और पीनेवालों का समूह मंडली कहलाया। शराब को सुरा भी कहा जाता है और ठीक वैसे ही जैसे मद्य को पीनेवाला मद्यप कहलाता है वैसे ही सुरा को पीनेवेले को सुर और न पीनेवाले को असुर कहा गया। सामवेद में तो यह तक कह दिया गया कि- सुरां न पीबति सः असुरः। हिंदू धर्म में गाय का मांस वर्जित है, शराब नहीं। इस्लाम में शराब पर प्रतिबंध है मांसाहार पर नहीं और ईसाइयत में न शराब पर प्रतिबंध है और न ही मांसाहार पर। फारसी में स का उच्चारण ह होता है जैसे सप्ताह को हफ्ता कहा जाता है। वैसे ही असुर को अहुर कहा जाता है। अहुर राज्य असीरिया से अफगान और ईरान तक फैला था और नासिरयाल यहां का बादशाद था जो अपने को अहुर कहता था। अहुरमत्जा के महत्व को सभी जानते हैं। सुरा,सीता,प्रसन्ना,मधु, कादंबरी, आसव वारुणी, सौ से अधिक शब्द शराब के लिए संस्कृत साहित्य में उपलब्ध हैं जो इस बात को प्रतीक हैं कि सुरों के समुदाय में सुरा का प्रचलन कितना था ? सुरा का ईश ही सुरेश कहलाता है जो तीस से अधिक सरक (पैग ) लगाकर ही सुर में आता है। सोमपान ही सामवेद में साम है और बिना साम के सामंजस्य कहां ? इसलिए है देवपुत्रो समस्त देवी-देवताओं के पावन स्मरण के साथ आप पतितपावनी वारुणी का प्रतिदिन पवित्र भाव से आचमण करें और अपने देवत्व में श्रीवृद्धि करें। ओम वारुणाय नमः।
पं. सुरेश नीरव

6 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी,अब आप भी शामिल हो गये उन लोगो में जो प्रेरणा हैं सड़क पर उल्टे पड़े रह कर कुत्तों से मुंह चटवाने की,जिसके द्वारा उनका पशु प्रेम दिखता है,जरा दिल खोल कर बताइये कि मद्य या शराब से जिस सुरा को जोड़ा जा रहा था वह सेवन करने के बाद क्या प्रभाव दर्शाती थी ये भी कहीं लिखा है कि कोई पीने वाला तर्राट हो कुछ भला काम करने लगा हो... मुझे पियक्कड़ बड़े प्यारे लगते हैं... ये तो मैं पहले ही लिख चुका हूं.... :)

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ said...

आप लोग माने या न माने डाक्साब असुर ही हैं शराब न पीना, मुर्गा-मुर्गी न खाना तो इनका पाप है ही साथ में इन्होंने शुद्ध भारतीय देशज शराब नष्ट करने का भी बड़ा पाप काफ़ी समय तक किया है जिसका इन्हें भरपूर प्रसाद मिला था- हस्तपादभंजन संस्कार के द्वारा.......

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

जब तक है जी, जी भर के पी, जब निकल जाएगा जी, तब कौन कहेगा पी :)

ताऊ रामपुरिया said...

कवि शिरोमणी पं. सुरेश नीरव जी
आपके श्री चरणों मे भी सादर प्रणाम ! आज आपने , अपना सम्मान करवा कर लोगो को सम्मानित करने का मोका दिया , इसके लिये भी
आपके श्री चरणों में पुन: प्रणाम ! और बधाई !!
ताऊ को लगता है कि आप लोगों का साथ अब इस मध्य अवस्था की बजाय पहले मिला होता तो मजा आ जाता !
पहले ही दिन विप्रश्रेश्ठ द्वारा मुर्ग का स्वाद, जिसे चखते ही ताऊ भडासी बन गया ! फिर उन्ही पन्डित शिरोमणी त्रिपाठी जी द्वारा (आ) गत योवनाएं का मक्खन प्रलाप.. ! आय हाय पन्डित भाईयों ...इब तक अकेले 2 ही मजे लेण लाग रे थे ! इब ताऊ यहां के बोलै ? ....... थम खुद ही समझ ल्यो !
और अब आप प्रात: स्मरणीय द्वारा सुरा पान का महत्व ! बस न्युं समझ ल्यो के ताऊ तो बिना पिये ही मस्त हो गया । पी के तो कितना मजा आवैगा ! हाय पन्डित जी आपने ये सलाह पहले क्युं नही दी ! हमारी इतनी आयु आपने
व्यर्थ करवा दी । हमनै पिछले या उससे पिछले जनम मे पढ्या था कि बादशाह शाहजहां ने कशमीर के बारें मैं कहा था --
"अगर फ़िरदोश बर रुए जमीनस्त..।
हमीनस्त.. हमीनस्त.. हमीनस्त !
(इसमे गल्ती हो तो अपनी २ सुधार लियो).... मतलब -- इस धरा पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है..यहीं है...यहीं है...!
और भाई ताऊ तो न्युं कहन्दा है कि--
"अगर फ़िरदोश बर रुए जमीनस्त, भडासस्त ...भडासस्त.. भडासस्त ।
हे जन कल्याणक पं. शिरोमणी आपके चरणारविंदों मे पुन: कमर झुका कर प्रणाम !

यशवंत सिंह yashwant singh said...

वाह.......
कई वर्षों बाद इतिहासकार लिखेंगे कि घोर कलयुग का एक ऐसा वक्त था जब सारे शराबी बुद्धिजीवी मिलकर एक मंच पर इकट्ठा हो गए था और वहां शराब को उसका उचित सम्मान दिलाकर उसे फिर से आदिकाल का रुतवा हासिल करा दिया। इसलिए इस काल को भड़ास काल कहा जाएगा और साथ में ही भड़ास को शराब का पर्यायवाची समझा जाएगा :) जय हो जय हो पंडित जी की ......आपके वचन श्रेष्ठ हैं, आपके विचार उत्तम हैं, आपकी वाणी मधुर है.....
आप इस धरती लोक के देव हैं......

shashi said...

panditji ke vichar shresth hain aour itihas aour vigyan sammat bhi. is desh ka muraraji desai jaise na pine valon ne jitana nukasan kiya utana pine vaon ne nahi. pandit sura_esh neerav ki jai.
shashibhuddhin thanedar