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9.7.07

दीवाने हजारों हैं


हास्य-गजल-
इक पिद्दी-सी लड़की के दीवाने हजारों हैं
है उम्र फक़त सोलह अफसाने हजारों हैं
रिश्वत पे यहां कोई सरचार्ज नहीं लगता
हम जैसों की इनकम पर जुर्माने हजारों हैं
ढूंढे से नहीं मिलता नमकीन यहां अच्छा
बस्ती में मगर अपनी मयखाने हजारों हैं
आंसू की नुमाइश तो आंखों में लगी देखी
हंसने की खताओं पर हर्जाने हजारों हैं
बीवी को सजावट का सामान नहीं मिलता
मेकअप के खुले घर-घर बुतखाने हजारों हैं
कल ही तो शपथ लेकर सालेजी बने मंत्री
अब केस दरोगा पर चलवाने हजारों हैं
इंपोर्ट विदेशों से करना है हमें गोबर
गोबर की जगह नेता तुलवाने हजारों हैं
मुद्दत से खड़े नीरव बस्ती में यहां तन्हा
अपना ना मिला कोई बेगाने हजारों हैं।
पं. सुरेश नीरव

5 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

प्रणाम
लेबल तो हास्य का है ! पर है जीवन की सच्चाई !
करारा व्यंग है व्यवस्था पर ! बधाई पंडीतजी !
"अपना ना मिला कोई बेगाने हजारों हैं।"

पंडीतजी ऐसी भी क्या नाराजी ?
आखिर ये भडासी सारे आपके ही तो हैं !

शुभकामनाएँ

अमित द्विवेदी said...

नीरव जी मुझे आपकी ये कविता बहुत अच्छी लगी मैंने पूरे ऑफिस में इसे पढ़कर सुनायी. क्या लिखा है इस पिद्दी सी लडकी के दीवाने हजारों है. मज़ा आ गया. और लिकते रहिये आप यों ही.
amit dwivedi

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

पंडित जी,हमारा भाई अमित लगता है कि "इक पिद्दी-सी लड़की के दीवाने हजारों हैं
है उम्र फक़त सोलह अफसाने हजारों हैं" पढ़ कर गुलगुला गया है मैंने देखा है प्यारे भाई अमित आपकी "बिल्लोरानी" को दादा ने मेरे सामने ही हटाया है उसे... :)

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

पंडित जी प्रणाम,
बहुत दिनों बाद आपके हास्य से मुखातिब हुआ, वो ही जोश और वो ही जज्बा, एक और बेहतरीन रचना की देखिये अमित के साथ साथ मनीषा दीदी भी आपकी प्रशंशक हुई जा रही हैं. डॉक्टर साहब ने कहा था कि कवि सम्मलेन में जाओउं तो आपको गोद में उठा लूँ, मगर मेरे से आप न उठने वाले थे सो मैने इरादा छोर दिया ;-) :-P
चरण वंदन से ही काम चला लिया ;-)
जय जय भड़ास.