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11.8.08

जिम्मेदार कौन !

जय भड़ास !

मित्रों वैसे तो आप, मैं और हम सभी भारत वासी रोज़ अपने दिन की शुरूआत चाय के साथ किसी न किसी अखबार के पन्ने पलटते हुए करते हें और रोज़ ये अखबार लगभग एक जैसी भाषा और शब्दों का प्रयोग करते हुए हमे इस बदलती दुनिया, बदलते समाज की रंग बिरंगी तस्वीर दिखा जाता हे ।

सुबह जब में अखबार पड़ रहा था तो संपादकीय वाले पेज पर मेरी नजर अमरनाथ यात्रा और आतंकवाद से जुड़े लेख पड़ने के बाद मेरी नजर एक लंबे आरसे के बाद स्थानीय समस्याओं के कालमपर चली गई । दुनिया कहाँ से कहाँ चली गई, देश बदल गया गाँव और शहर भी बदल गये । मगर कुछ चीजे आज भी नही बदली । इस कालम में आज भी लगभग वही समस्याएं थी जो आज से १० -२० या कहो ५० बरस पहले थी बस थोड़ा सा स्तरबदला हे जैसे पहले समस्या पानी न होने की थी अब गंदे पानी की हे, पहले शोचालय न होने की थी अब बंद या रुके हुए सीवर लाइन की हे, पहले बिजली न होने की थी अब बिजली न आने की हे या कम आने की हे । पहले समस्या सड़क न होने या साधन न होने की थी अब टूटी फूटी सड़क या मंहगे पेट्रोल की हे । पहले अस्पताल न होने की थी अब डॉक्टर के न रहने या अस्पताल में सुविधाओं के स्तर की हे, पहले स्कूल न होने या पदाई न होने की थी वहां अब मिड-दे मील , पदाईके स्तर , लड़कियों की शिक्षा, खेल सुविधाओं और अध्यापकों के स्तर के साथ साथ खेल सुविधाओं से सम्बंधित थी ।

आप कह सकते हें विकास हो रहा हे तभी तो समस्याओं का स्तर बदल रहा हे ! सही भी हे ? लेकिन यदि हम गौर करें तो चीज जो इसमे नही बदली हे वो हे हे लोगों का नजरिया ??

लोग आजादी के ६२ साल बाद अर्थात आज भी अपनी समस्याओं के लिए दूसरो को जिम्मेदार बताते हे । कोई सरकारी कर्मचारी को, कोई प्रशासन को, कोई नेता को, कोई नगर पालिका को कोई पंचायत को, कोई राज्य तो कोई केन्द्र सरकार को !

आप पूछ सकते हे कीइसमे ग़लत क्या हे ? सब सही तो हे, इन सभी समस्याओं को ख़तम करने की जिम्मेदारी सरकार और प्रशाशन की ही तो हे ।

लेकिन नही शायद विकास की इस यात्रा में हम यहीं पर मात खा गये । हमने अपने गाँव बदले, शहर बदले, जीवन स्तर भी बदला, तकनीकें भी बदल डाली लेकिन अपनी सोच बदलना भूल गये, अपनी करनी दूसरो के सर डालने की पुरानी आदत नहीं छोड़ी हे हमने अभी तक, तभी तो इतने सारे क़ानून, नियम कायदे बनने, अधिकार मिलने के बाद भी हमारी समस्याएं आज भी वहीँ की वहीँ खड़ी हें ।

सरकार, प्रशाशन तो एक मध्यम हे जो हमारी समस्याओं को दूर करने के लिए हे ही मगर क्या हमने अपनी समस्याओं का कारण जानने की भी कभी कोशश की हे ? जी हाँ , अगर हम यह कोशिश करे तो पायेंगे की हर समस्या की जड़ हम ख़ुद हें, सिर्फ़ हम न की कोई प्रसाशन या सरकार । मगर कैसे ????????????

जरा सोच कर देखो ...................................
क्या मैंने कभी .........................................
किसी सरकारी कर्मचारी से ये पुचा हे की फलां काम क्यों नही हुआ ? उस काम के लिए कितने पैसे आए थे ? वो काम किसे दिया गया था ? वो काम कितने समय में पुरा होना था ? यदि काम समय पर नही हुआ तो उसकी जिम्मेदारी किसकी हे ? बाकी पैसे का क्या होगा ? यदि काम अधुरा हे तो उस पर हुए निरर्थक खर्च की भरपाई कैसे होगी ?

उदहारण .........................................................

१- आपके यहाँ गली में सड़क टूटी फूटी हे या कच्ची हे तो आप समस्या अखबार में भिजवाने के स्थान पर मोहल्ले में बात कर स्थानीय पार्षद के साथ या उसके बिना नगर पालिका /नगर परिषद्/ पी डब्लू दी /पंचायत जाकर वहां पता करें की उस गली की सड़क कब बनी थी ? दोबारा कब बनेगी ? कितने में बनी थी ? मरम्मत की जिम्मेदारी किसकी हे ? सुचना के कितने दिन में मरम्मत का प्रावधान हे ? इसके लिए कौन जिम्मेदार हे ?

इस सब में आप की सहायता " सुचना का अधिकार " भी करेगा । और आप सब कुछ पुराणी समस्याओं को छोड़ कर विकास की इस राह में नै समस्याओं का सामना करने के लिए तेयार हो पाएंगे ।

जय हिंद ।

आप सभी को मेरी और से हमारी स्वतंत्रता की ६२वि वर्षगांठ पर हार्दिक सुभ कामनाएं ।
नूतन वर्ष में आप सभी अबनी अपनी भड़ास निकलने के लिए भड़ास पर सादर आमंत्रित हे ।

2 comments:

Anonymous said...

अरुण भाई,
सुचना का अधिकार इस पर बहस और लम्बी बहस हो चुकी है, वस्तुस्थिति यही है की जहाँ से चले थे वहीँ हैं, आर.टी.आई. नमक झुनझुना देकर सरकार जनता रूपी बच्चों को खुश कर दे रही है और हमारे जैसे चूतिये खुश भी हो रहे हैं, मगर क्या सच में यह झुनझुना इतना खुश कर देने वाला है, इसी सुचना के अधिकार नामक प्रस्ताव में न्यायपालिका और कार्यपालिका जूतम पैजार कर चुकी है और अभी तक कर रही है, की तुने मेरी उतारने की बात की तो तेरी भी उतारूंगा. इस जूतम पैजार का नतीजा की जनता सिर्फ़ झुनझुना बजा रही है, याद ना हो तो एक बार फ़िर से जस्टिस आनंद सिंह का किस्सा पढ़ लें.
हद तो यहाँ है की इन जूतम पैजार को मीडिया नामक एलियन कैश करने में लगा हुआ है.
अगर आप इमानदारी से पुन: देखें तो न्यायपालिका कार्यपालिका और मीडिया के हाथों की रखैल बनी हुई है यह "सुचना का अधिकार" और हम इस रखैल को अपना हथियार समझ रहें हैं अब आप ही कहिये की हम लोग क्या हैं ????
जय जय भड़ास

mrit said...

महान..........??????????!!!!!!!!!!!!!