-अमलेन्दु उपाध्याय-
उत्तर प्रदेश में `बलात्कार राजनीति´ एक नए मोड़ पर आ गई है। मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी की विवादित टिप्पणी के बाद प्रदेश में जो हुआ उसका समर्थन कोई बड़े से बड़ा दलित समर्थक भी नहीं कर सकता। सबसे बड़ा तमाशा यह है कि न तो रीता जोशी दलित हैं और न रीता जोशी का घर फूंकने वाले बसपा विधायक जितेन्द्र सिंह बबलू और इंतिजार आब्दी दलित हैं। ऐसा भी नहीं है कि मायावती के रीता जोशी के खिलाफ सख्त कदम उठा लेने से दलितों की अस्मिता की रक्षा हो गई है। न रीता के बयान के बाद प्रदेश में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार रुक जाएंगे। लिहाजा बलात्कार जारी रहने पर मायावती भी पीड़ित महिलाओं की नुमाइश कराकर उन्हें पच्चीस हजार रुपये देकर अपने वोट पक्के करने का काम जारी रखेंगी। कायदे की बात तो यह है कि दलितों के साथ बलात्कार जारी रहने में ही कांग्रेस और बसपा दोनों का फायदा है। इसलिए यह बलात्कार भी जारी रहेंगे और इन बलात्कार पर राजनीति भी।
अगर देखा जाए तो रीता जोशी का बयान बेहद भद्दा कहा जा सकता है, लेकिन सिर्फ उनके बयान की निन्दा करके और उनका घर फुंकवाकर मायावती क्या अपनी करतूतों का बचाव कर पाएंगी? विगत दो वर्षों में प्रदेश रसातल में पहुंच चुका है। सारे माफिया, बड़े अपराधी और चोर उचक्के बहन जी के कारवां की शोभा बढ़ा रहे हैं। बहन जी भी पूरी तल्लीनता से अपनी और अपने आराध्य कांशीराम की पत्थर की मूर्तियां लगवाने में ही प्रदेश का सारा धन और मशीनरी फूंक रही हैं। क्या तमाशा है कि जब एक दलित महिला से बलात्कार हो जाता है तब प्रदेश का पुलिस महानिदेशक हैलीकॉप्टर से पीड़ित के घर जाता है और लोगों को इकठ्ठा करके धमकी देता है कि किसी ने भी इस घर की तरफ ऑंख उठाकर देखा तो खैर नहीं। अब उस बहादुर पुलिस महानिदेशक, जिसकी बहादुर फौज को एक अकेला डकैत सिर्फ एक राइफल से 52 घंटों तक टक्कर देता है और चार जवानों की बलि ले लेता है, से सवाल पूछा जाए कि महोदय आपके बहादुरी भरे वक्तव्य का क्या मतलब है और क्या पच्चीस हजार रुपये से किसी दलित की इज्जत वापिस लौट आएगी? जाहिर है कि इस वक्तव्य से सिर्फ मायावती का वोट पक्का होगा और कुछ नहीं और इसके लिए मायावती पूरा प्रयास भी कर रही हैं।
पिछले दो वर्षों में मायावती ने प्रदेश में एक नई किस्म की संस्कृति विकसित की है। अपराधी किस्म के अधिकारी उनकी खास टीम का नेतृत्व कर रहे हैं। यह टीम सिर्फ मायावती के राजनीतिक विरोधियों को प्रताड़ित करने और अवैध धन वसूली करने का एकसूत्रीय काम कर रही है। मायावती अपने इन अपराधों को छिपाने के लिए ही दलित होने का नाटक करती हैं। रीता जोशी के प्रकरण में भी मायावती की अफसरों की इस फौज ने बहुत बहादुरी दिखाई है। चर्चा है कि जिस समय बसपा के गुण्डे रीता बहुगुणा का घर फूंक रहे थे उस समय लखनऊ के विवादास्पद आईजी सादा वर्दी में बाकायदा मौके पर गश्त कर रहे थे कि काम को सही तरीके से अंजाम दिया जा रहा है कि नहीं। इतना ही नहीं घर फूंकने से पहले पुलिस रीता के घर पर मौजूद सारे कर्मचारियों गिरफ्तार कर ले गई। अगर यह हिंसा राज्य प्रायोजित नहीं थी तो मुख्यमंत्री कार्यालय से बमुश्किल सौ मीटर दूर स्थित रीता के घर पर फायर ब्रिगेड तब क्यों पहुंचा जब सब कुछ जलकर राख हो चुका था। यह घटना साबित करती है कि उत्तर प्रदेश में पूर्णत: राज्य प्रायोजित गुण्डाराज है और उत्तर प्रदेश धारा 356 लगाने का सही केस है।
मायावती ने एक बार भी रीता के घर पर हुई घटना के लिए न तो माफी मॉंगी और न यह स्वीकार किया कि इस कांड के पीछे उनके लोग थे बल्कि लगातार वह कुतर्क कर रही हैं। जैसे उन्होंने कहा कि रीता ने अपनी एक किताब में गांधी परिवार के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया था। अब बहन जी की याद्दाश्त कितनी कमजोर है। बहन जी भूल गईं कि अरूण शंकर शुक्ल अन्ना नाम के आदमी पर आज भी लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस कांड का मुकदमा चल रहा है और वह अन्ना, आज मायावती के नवरत्नों में हैं। `लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस कांड´ वही घटना है जब मायावती पर मुलायम सिंह यादव की सरकार से समर्थन वापिस लेने पर हमला किया गया था। इसी तरह दीनानाथ भास्कर नाम के एक व्यक्ति ने नब्बे के दशक में मायावती पर भयानक किस्म के व्यक्तिगत आरोप लगाए थे, जो रीता जोशी की भाशा से ज्यादा भद्दे थे। लेकिन भास्कर आजकल मायावती की नाक के बाल हैं। ऐसे ही धनन्जय सिंह मायावती की कृपा से आज माननीय सांसद हैं। यह वही धनन्जय सिंह हैं, जिन्हें मायावती ने रघुराज प्रताप सिंह `राजा भैया´ के साथ जेल भिजवा दिया था क्योंकि धनन्जय उस समय मायावती की सरकार गिराना चाहते थे। धनीराम वर्मा का भी मामला कुछ ऐसा ही दिलचस्प है। धनीराम वर्मा 1995 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष थे। जब मायावती ने मुलायम सरकार से समर्थन वापिस लिया तो धनीराम वर्मा ने मुलायम सिंह की सरकार को विधानसभा में जबर्दस्ती बहुमत साबित करा दिया। लेकिन आज धनीराम वर्मा मायावती के चहेते हैं। मायावती यह जानती ही नहीं हैं कि उनकी सात पुश्तें भी मिलकर कभी हेमवती नन्दन बहुगणा के बराबर नहीं हो पाएंगी।
प्रदेश में इस गाली गलौच वाली राजनीति की शुरूआत भी मायावती ने ही की है, फिर मायावती को दर्द क्यों होता है? क्या कभी किसी व्यक्ति ने मायावती के मुंह से मुलायम सिंह यादव के लिए सम्मानजनक सम्बोधन सुना है? क्या मायावती ने मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते ठीक यही भाशा इलाहाबाद में एक कांड के बाद इस्तेमाल नहीं की थी? एक टीवी टॉक में ही मायावती ने मुलायम सिंह के लिए गुण्डा शब्द का प्रयोग किया था जिस पर तत्कालीन सपा के प्रदेश अध्यक्ष रामशरणदास से मायावती की गाली गलौच हो गई थी। इसी तरह सिपाहियों की बर्खास्तगी के बाद जब मायावती के चहेते पुलिस अफसर शैलजाकांत मिश्र ने भर्ती में यौन शोषण के आरोप लगाए थे तब मायावती ने मिश्र के कान क्यों नहीं अमेठे? जबाव में शिवपाल ने भी ऐसी ही शब्दावली प्रयोग की जैसी रीता ने की। लेकिन तब मायावती के बहादुर गुण्डे शिवपाल का घर फूंकने का दुस्साहस नहीं कर सके।
कुल मिलाकर कांग्रेसी भी कमाल के लोग हैं। जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी तो रोज दस जनपथ की दौड़ लगाते थे और चिल्लाते थे कि प्रदेश में जंगलराज है, सरकार को बर्खास्त करो। लेकिन अब जब सरकार बर्खास्तगी का सही केस आया है तो यह कांग्रेसी धुरंधर आपस में ही सिर फुटव्वल कर रहें हैं और इसी गम में आपस में लड़े जा रहे हैं कि इससे रीता बहुगुणा को फायदा हो गया।
अब लाख टके का सवाल यह है कि इस समूचे घटनाक्रम से किसे क्या फायदा हुआ और क्या नुकसान हुआ? इस घटना से सर्वाधिक नुकसान मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का हुआ। अभी तक मायावती विरोध का लाभ मुलायम सिंह ही उठाते रहे हैं, लेकिन मायावती के एक नादान कदम ने कांग्रेस को अप्रत्याशित लाभ दिला दिया और रीता बहुगुणा रात ही रात में मायावती विरोधी मुहिम की हीरो बन गईं। अब अगर नाकारा कांग्रेसी, पार्टी के अन्दर रीता की घेराबंदी न करें, तो मायावती के खिलाफ प्रदेश की जनता में जो गुस्सा है उसे कांग्रेस भुना सकती है। लेकिन कांग्रेस से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह मायावती के खिलाफ आगे बढ़कर सरकार बर्खास्त करने जैसा कोई कदम उठा पाएगी। क्योंकि कांग्रेस एक भयंकर दुविधा का शिकार है कि उसे उत्तर प्रदेश में दलित वोट भी चाहिए। जो किसी भी सूरते हाल में संभव नहीं है। अगर कांग्रेस इस दुविधा में रहेगी कि उसे दलित वोट भी मिल जाएंगे तो वह अपना नुकसान कर बैठेगी। प्रदेश में दलितों का एक बड़ा वर्ग मायावती की लाख कमियों के बावजूद बसपा से ही जुड़ा रहेगा फिर चाहे राहुल गांधी सिर पर पला रखकर मैला ढोने का ही नाटक क्यों न कर लें। इसलिए कांग्रेस अगर उत्तर प्रदेश में वापसी करना चाहती है तो उसे मायावती विरोध की लाइन को और क्लियर करना पड़ेगा।
अगर देखा जाए तो रीता जोशी का बयान बेहद भद्दा कहा जा सकता है, लेकिन सिर्फ उनके बयान की निन्दा करके और उनका घर फुंकवाकर मायावती क्या अपनी करतूतों का बचाव कर पाएंगी? विगत दो वर्षों में प्रदेश रसातल में पहुंच चुका है। सारे माफिया, बड़े अपराधी और चोर उचक्के बहन जी के कारवां की शोभा बढ़ा रहे हैं। बहन जी भी पूरी तल्लीनता से अपनी और अपने आराध्य कांशीराम की पत्थर की मूर्तियां लगवाने में ही प्रदेश का सारा धन और मशीनरी फूंक रही हैं। क्या तमाशा है कि जब एक दलित महिला से बलात्कार हो जाता है तब प्रदेश का पुलिस महानिदेशक हैलीकॉप्टर से पीड़ित के घर जाता है और लोगों को इकठ्ठा करके धमकी देता है कि किसी ने भी इस घर की तरफ ऑंख उठाकर देखा तो खैर नहीं। अब उस बहादुर पुलिस महानिदेशक, जिसकी बहादुर फौज को एक अकेला डकैत सिर्फ एक राइफल से 52 घंटों तक टक्कर देता है और चार जवानों की बलि ले लेता है, से सवाल पूछा जाए कि महोदय आपके बहादुरी भरे वक्तव्य का क्या मतलब है और क्या पच्चीस हजार रुपये से किसी दलित की इज्जत वापिस लौट आएगी? जाहिर है कि इस वक्तव्य से सिर्फ मायावती का वोट पक्का होगा और कुछ नहीं और इसके लिए मायावती पूरा प्रयास भी कर रही हैं।
पिछले दो वर्षों में मायावती ने प्रदेश में एक नई किस्म की संस्कृति विकसित की है। अपराधी किस्म के अधिकारी उनकी खास टीम का नेतृत्व कर रहे हैं। यह टीम सिर्फ मायावती के राजनीतिक विरोधियों को प्रताड़ित करने और अवैध धन वसूली करने का एकसूत्रीय काम कर रही है। मायावती अपने इन अपराधों को छिपाने के लिए ही दलित होने का नाटक करती हैं। रीता जोशी के प्रकरण में भी मायावती की अफसरों की इस फौज ने बहुत बहादुरी दिखाई है। चर्चा है कि जिस समय बसपा के गुण्डे रीता बहुगुणा का घर फूंक रहे थे उस समय लखनऊ के विवादास्पद आईजी सादा वर्दी में बाकायदा मौके पर गश्त कर रहे थे कि काम को सही तरीके से अंजाम दिया जा रहा है कि नहीं। इतना ही नहीं घर फूंकने से पहले पुलिस रीता के घर पर मौजूद सारे कर्मचारियों गिरफ्तार कर ले गई। अगर यह हिंसा राज्य प्रायोजित नहीं थी तो मुख्यमंत्री कार्यालय से बमुश्किल सौ मीटर दूर स्थित रीता के घर पर फायर ब्रिगेड तब क्यों पहुंचा जब सब कुछ जलकर राख हो चुका था। यह घटना साबित करती है कि उत्तर प्रदेश में पूर्णत: राज्य प्रायोजित गुण्डाराज है और उत्तर प्रदेश धारा 356 लगाने का सही केस है।
मायावती ने एक बार भी रीता के घर पर हुई घटना के लिए न तो माफी मॉंगी और न यह स्वीकार किया कि इस कांड के पीछे उनके लोग थे बल्कि लगातार वह कुतर्क कर रही हैं। जैसे उन्होंने कहा कि रीता ने अपनी एक किताब में गांधी परिवार के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया था। अब बहन जी की याद्दाश्त कितनी कमजोर है। बहन जी भूल गईं कि अरूण शंकर शुक्ल अन्ना नाम के आदमी पर आज भी लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस कांड का मुकदमा चल रहा है और वह अन्ना, आज मायावती के नवरत्नों में हैं। `लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस कांड´ वही घटना है जब मायावती पर मुलायम सिंह यादव की सरकार से समर्थन वापिस लेने पर हमला किया गया था। इसी तरह दीनानाथ भास्कर नाम के एक व्यक्ति ने नब्बे के दशक में मायावती पर भयानक किस्म के व्यक्तिगत आरोप लगाए थे, जो रीता जोशी की भाशा से ज्यादा भद्दे थे। लेकिन भास्कर आजकल मायावती की नाक के बाल हैं। ऐसे ही धनन्जय सिंह मायावती की कृपा से आज माननीय सांसद हैं। यह वही धनन्जय सिंह हैं, जिन्हें मायावती ने रघुराज प्रताप सिंह `राजा भैया´ के साथ जेल भिजवा दिया था क्योंकि धनन्जय उस समय मायावती की सरकार गिराना चाहते थे। धनीराम वर्मा का भी मामला कुछ ऐसा ही दिलचस्प है। धनीराम वर्मा 1995 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष थे। जब मायावती ने मुलायम सरकार से समर्थन वापिस लिया तो धनीराम वर्मा ने मुलायम सिंह की सरकार को विधानसभा में जबर्दस्ती बहुमत साबित करा दिया। लेकिन आज धनीराम वर्मा मायावती के चहेते हैं। मायावती यह जानती ही नहीं हैं कि उनकी सात पुश्तें भी मिलकर कभी हेमवती नन्दन बहुगणा के बराबर नहीं हो पाएंगी।
प्रदेश में इस गाली गलौच वाली राजनीति की शुरूआत भी मायावती ने ही की है, फिर मायावती को दर्द क्यों होता है? क्या कभी किसी व्यक्ति ने मायावती के मुंह से मुलायम सिंह यादव के लिए सम्मानजनक सम्बोधन सुना है? क्या मायावती ने मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते ठीक यही भाशा इलाहाबाद में एक कांड के बाद इस्तेमाल नहीं की थी? एक टीवी टॉक में ही मायावती ने मुलायम सिंह के लिए गुण्डा शब्द का प्रयोग किया था जिस पर तत्कालीन सपा के प्रदेश अध्यक्ष रामशरणदास से मायावती की गाली गलौच हो गई थी। इसी तरह सिपाहियों की बर्खास्तगी के बाद जब मायावती के चहेते पुलिस अफसर शैलजाकांत मिश्र ने भर्ती में यौन शोषण के आरोप लगाए थे तब मायावती ने मिश्र के कान क्यों नहीं अमेठे? जबाव में शिवपाल ने भी ऐसी ही शब्दावली प्रयोग की जैसी रीता ने की। लेकिन तब मायावती के बहादुर गुण्डे शिवपाल का घर फूंकने का दुस्साहस नहीं कर सके।
कुल मिलाकर कांग्रेसी भी कमाल के लोग हैं। जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी तो रोज दस जनपथ की दौड़ लगाते थे और चिल्लाते थे कि प्रदेश में जंगलराज है, सरकार को बर्खास्त करो। लेकिन अब जब सरकार बर्खास्तगी का सही केस आया है तो यह कांग्रेसी धुरंधर आपस में ही सिर फुटव्वल कर रहें हैं और इसी गम में आपस में लड़े जा रहे हैं कि इससे रीता बहुगुणा को फायदा हो गया।
अब लाख टके का सवाल यह है कि इस समूचे घटनाक्रम से किसे क्या फायदा हुआ और क्या नुकसान हुआ? इस घटना से सर्वाधिक नुकसान मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का हुआ। अभी तक मायावती विरोध का लाभ मुलायम सिंह ही उठाते रहे हैं, लेकिन मायावती के एक नादान कदम ने कांग्रेस को अप्रत्याशित लाभ दिला दिया और रीता बहुगुणा रात ही रात में मायावती विरोधी मुहिम की हीरो बन गईं। अब अगर नाकारा कांग्रेसी, पार्टी के अन्दर रीता की घेराबंदी न करें, तो मायावती के खिलाफ प्रदेश की जनता में जो गुस्सा है उसे कांग्रेस भुना सकती है। लेकिन कांग्रेस से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह मायावती के खिलाफ आगे बढ़कर सरकार बर्खास्त करने जैसा कोई कदम उठा पाएगी। क्योंकि कांग्रेस एक भयंकर दुविधा का शिकार है कि उसे उत्तर प्रदेश में दलित वोट भी चाहिए। जो किसी भी सूरते हाल में संभव नहीं है। अगर कांग्रेस इस दुविधा में रहेगी कि उसे दलित वोट भी मिल जाएंगे तो वह अपना नुकसान कर बैठेगी। प्रदेश में दलितों का एक बड़ा वर्ग मायावती की लाख कमियों के बावजूद बसपा से ही जुड़ा रहेगा फिर चाहे राहुल गांधी सिर पर पला रखकर मैला ढोने का ही नाटक क्यों न कर लें। इसलिए कांग्रेस अगर उत्तर प्रदेश में वापसी करना चाहती है तो उसे मायावती विरोध की लाइन को और क्लियर करना पड़ेगा।
(लेखक अमलेन्दु उपाध्याय राजनीतिक समीक्षक हैं और `दि संडे पोस्ट´ में सह संपादक हैं।)
3 comments:
इसे राजनीति का दुर्भाग्य ही कहेंगे की वैचारिक विरोध अब इस स्तर पर आ गया है की वह आग के रूप में व्यक्त हो रहा है .किसी की कोई मर्यादा नही बची .जो विरोध कभी पक्ष और विपक्ष में बहस के रूप में हुआ करते थे .आज वो अपराधिक कृत्य का रूप ले चुके हैं.
दलित लड़की की हत्या पर बवाल
मथुरा के गोवर्धन विधानसभा क्षेत्र में एक गांव है अड़ीग जिसमें हाल में एक दलित लड़की की लाश मिली थी जिसे लेकर काफी हंगामा भी हुआ। ठाकुर जाति के लोगों पर आफत आ गई दलितों का आरोप था कि उनकी लड़की की हत्या इनके लड़को ने की है। दलितों ने ठाकुरों के धरों को अपने बिरोध का निशाना बना लिया अव ठाकुरों के घरों की लड़कियों को जबरन उठाया जाने लगा। मामला किसी तरह सुलझा लेकिन पुलिस ने इस आरोप में ठाकुरों के दो लड़को ं को उठा लिया। पंचायतें हुई सर्व जातीय पंचायतों में इस प्रकार की घटना की निन्दा भी की गई लेकिन सूवे के एक वरिष्ठ तम अधिकारी ने आकर जिस अन्दाज में दलितों का पक्ष लिया वह जरूर चिन्ताजनक है उन्होने खुलेआम चेतावनी दी कि कोई दलितों के साथ उत्पीड़न करके तो देखे और बिरोध में अब पंचायत करके तो देखे। एक जिम्मेदार अधिकारी को समझना चाहियें कि इस प्रकार की घटनाएं आखिर हो क्यों रही हैं तथा इसके पीछे की हकीकत क्या है। समाज यदि इस प्रकार छोटे छोटे टुकड़ों बट जायेगा तो लोग किस प्रकार से एक साथ रह सकेगें। वर्षों से रहते चले आ रहे समाज में आखिर यह हो क्या रहा है। इस प्रकार समाज को वटने से रोका जाना चाहिये।
bahan ji apni marji hai. amlendu bhai. ve to apni man ki malkin hai. jo man mein vahi karte hain. tabhi to garibon ki utthan mein rashi kharch karne ke bajay, khud ki murti lagane mein ruchi le rahi hain.
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