आप भले ही सुबह पांच बजे से उठकर पार्क के कई चक्कर लगते हों या फिर बाबा रामदेव के कहने पर सुबह से शाम तक कपालभाती और अनुलोम-विलोम करते हुए बिताते हों या फिर किसी जिम में जाकर घंटों पसीना बहाते हों लेकिन इन तमाम कोशिशों का आपको उतना फायदा नहीं मिल पायेगा जितना कि आप मानकर चल रहे हैं. मेरे कहने का कतई यह मतलब मत निकालिए कि बाबा रामदेव के योग में या आपके जिम में कोई कमी है और न ही आपका यह मेहनत करना बुरा है बल्कि यह कह सकते हैं कि योग,कसरत,सैर और ऐसे सभी प्रयासों से आप अपने आप को कुछ समय तक स्वस्थ और जिंदा रख सकते हैं क्योंकि बाज़ार में इन दिनों चल रहे कारनामों से तो यही लगता है कि हमारी जान लेने के नए-नए तरीके तलाशे जा रहे हैं. अभी आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा होगा परन्तु जैसे-जैसे आप आगे पढ़ते जायेंगे आपका इस बात पर विश्वास बढ़ता जायेगा कि हमारी जान कितनी फालतू हो गई है और मुनाफ़ा कमाना कितना ज़रुरी..?
हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि टमाटर सूप के नाम पर लोगों को ज़हर दिया जा रहा है। क़न्ज्यूमर एजूकेशन एंड रिसर्च सोसायटी ने हाल ही में छह नामी ब्रांड वाले टोमेटो सूप के 11 नमूनों की जाँच की और पाया कि एक भी ब्रांड में टमाटर जैसी कोई प्राकृतिक चीज नहीं है। जिस नमूने में सबसे अधिक टमाटर की मात्रा पाई गई, उसमें भी महज 10 फीसद टमाटर था। शेष रासायनिक मिलावट थी। अध्ययन में पाया गया कि कंपनियों ने टमाटर के स्थान पर सोडियम और शहद का इस्तेमाल किया है। इसके अलावा सूप को टमाटर की तरह लाल रंग देने के लिए लिकोपेन मिलाया जा रहा है। आप में से अधिकतर लोग जानते होंगे कि लिकोपेन एक एंटीऑक्सिडेंट है। इस अध्ययन से जुड़े लोगों के मुताबिक दिन भर में सात से आठ मिलीग्राम लिकोपेन का सेवन तक घातक हो सकता है।वहीँ ब्रिटेन की यूके फ़ूड स्टेंडर्ड एजेंसी के अनुसार किसी भी पेय पदार्थ में प्रति 100 ग्राम सोडियम की मात्रा 300 से 600 मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन भारत में धड़ल्ले से बेचे जा रहे इन टमाटर सूप में प्रति 100 ग्राम में निर्धारित मात्र से कई गुना ज्यादा तक सोडियम पाया गया है। सोचिये जिस सूप को आप अपनी और अपने बच्चों की सेहत के लिए फायदेमंद मानकर पीते-पिलाते हैं वह कितना खतरनाक हो सकता है।
बात सूप की नहीं, बल्कि विश्वास की है क्योंकि किसी भी कंपनी ने यह बताने कि जहमत नहीं उठाई कि वह टमाटर के नाम पर उसका रंग भर दे रही है और उसका सेहत से कई लेना-देना नहीं है? क्या भारत के अलावा किसी यूरोपियन देश में कोई कंपनी खुलेआम इसतरह लोगों की सेहत के साथ खेल सकती है?हमारे तो आम और यहाँ तक की कपड़ों तक को वहाँ बेचने से रोक दिया जाता है किसी अद्रश्य कीटाणु के नाम पर. खैर दूसरों को कोसने से क्या फायदा! हमारी तो रग-रग में मिलावट घुस गई है इसलिए ये सूप हमारा क्या बिगाड़ लेगा?...और सूप ही क्या अपने देश में तो घी चर्बी से,दूध यूरिया जैसे रसायनों से,पनीर सिंथेटिक सामग्री से,घर-घर में लोकप्रिय चाय लाल रंग से बन रही है और धड़ल्ले से बिक रही है. यही नहीं जानवरों का दूध बढ़ाने के काम आने वाला ओक्सिटोसिन से लौकी जैसी सेहतमंद सब्ज़ी का आकर बढाया जा रहा है. स्वास्थ्य के लिए जरुरी फल पकाने के लिए खतरनाक रसायन इस्तेमाल हो रहे हैं.अदरक और सेब को चमकाने के लिए एसिड तक का खुलेआम उपयोग आम बात है. मसालों में घोड़े की लीद,गेरू,मिट्टी और सस्ते रंग मिल रहे हैं.जब हम इन सब को सालों से खाते हुए भी सेहतमंद हैं तो फिर इस सूप की क्या औकात...?
2.7.10
हमारी जान लेने के नए-नए तरीके...
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3 comments:
सही बात कही है आपने आज कल तो हर चीज़ खाते हुये डर लगता है। अच्छी जानकारी है धन्यवाद।
वाह........वाह.......सुन्दर
पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
बड़ी खतरनाक जानकारी दी है आपने संजीव जी | इसीलिए अब जरुरत है कि देश के बाजारों में बिकने वाले किसी भी सामान की गुणवत्ता पर केवल कम्पनियों के नाम विश्वास न किया जाये | दूसरा इस देश के नेता, अधिकारी- कर्मचारी और उद्योगपति
लगभग सभी, बेईमानी में इतना नीचे गिर गए हैं कि उनका उठना अब मुश्किल है , अब तो जो आन्दोलन बाबा रामदेव जी ने
चला रखा है उस पर विश्वास करके केवल कपालभाती - अनुलोम विलोम ही न करके नयी आजादी नयी व्यवस्था के लिए आम जन को जागरूक भी किया जाये |
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