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25.1.11

तेरा जाना बहारों का जाना

तेरा जाना बहारों का जाना ,
दर को वीरान करने लगा है ।
गीत गाऊँ विदाई का कैसे ?
दर्द दिल में उभरने लगा है ।

इस चमन से लिए अपना गुंजन
मत कहीं और तू ऐ भ्रमर जा ;
इस गुलिस्ताँ पे रहमो करम कर
वक्त या तू ही थम जा , ठहर जा ।
बुझ रहे से हैं फूलों के चेहरे
स्याह सा कुछ पसरने लगा है ।

गीत गाऊँ विदाई का कैसे ?
दर्द दिल में उभरने लगा है ।
तेरा जाना बहारों का जाना
दर को वीरान करने लगा है।

7 comments:

vandana gupta said...

गीत गाऊँ विदाई का कैसे ?
दर्द दिल में उभरने लगा है ।
तेरा जाना बहारों का जाना
दर को वीरान करने लगा है।

वाह! क्या गीत लिखा है दिल मे उतर गया।

डॉ० डंडा लखनवी said...

अति सुन्दर विदाई-गीत बधाई स्वीकार कीजिए और गणतंत्र-दिवस की मंगल कामनाएं भी। २३ दिसम्बर को नेताजी सुभाषचंद बोस की जयन्ती थी उन्हें याद कर युवा-शक्ति को प्रणाम करता हूँ। आज हम चरित्र संकट के दौर से गुजर रहे हैं। कोई ऐसा जीवन्त नायक युवा-पीढ़ी के सामने नहीं है जिसके चरित्र का वे अनुकरण कर सकें?
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मुन्नियाँ देश की लक्ष्मीबाई बने,
डांस करके नशीला न बदनाम हों।
मुन्ना भाई करें ’बोस’ का अनुगमन-
देश-हित में प्रभावी ये पैगाम हों॥
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सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर गीत ....

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!

Dr Om Prakash Pandey said...

vandanaji , lakhnawiji aur monikaji aap sabko bahut -bahut dhanywaad !

mridula pradhan said...

dard ko khoobsurti ka jama pahna diya hai.

Dr Om Prakash Pandey said...

dhanywaad! mridulaji , dard ka had se gujarna hai dawa jaana .