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15.1.11

तो हुजूर…मेहरबान…कद्रदान…पहलवान…मेहमान…भाई-जान....!!!


ए बन्दर…
बोलो सरकार…
सबसे बडे चोर को कहते हैं क्या…
महाचोर सरकार…!
और चोरों के प्रमुख को…?
चोरों का सरदार…!
अगर तू कोई चीज़ चुरा लाये
तो दुनिया चोर तुझे कहेगी या मुझे…
हमदोनों को सरकार…!

लेकिन चोरी तो तूने ना की होगी बे…
लेकिन मेरे सरदार तो आप ही हो ना सरकार…!
ये नियम तो सभी जगह चलता होगा ना बन्दर…
हां हुजूर और जो इसे नहीं मानते हैं…
वो सारे चले जाते है अन्दर…!
अरे वाह,तू तो हो गया है बडा ज्ञानी बे…
सब आपकी संगत का असर है सरकार…!
तो क्या संगत का इतना ज्यादा असर हो जाता है…?
हां हुजूर,एक सडी हुई चीज़ से सब कुछ सड जाता है…!
ये बात तो आदमियों में लागू होती होगी ना बे…?
आदमी पर सबसे ज्यादा असर होता है इन सबका सरकार…!
मतलब किसी के किसी भी सामुहिक कार्य की जवाबदेही…
सिर्फ़ व सिर्फ़ उसके मुखिया की होती है सरकार…!!
मगर आदमी ये बात क्यों नहीं समझता बे बन्दर…?
सरकार,आदमी असल में सबसे बडा है लम्पट…
आदमी है सबसे बडा बेइमान और मक्कार…सरकार…!
और सब तरह के भ्रष्ट लोगों का मुखिया भी…
उसपर अंगुली उठाने पर कहता है खबरदार…!!
तो हुजूर…मेहरबान…कद्रदान…पहलवान…मेहमान…भाई-जान 
ऐसा है हमारा यह बन्दर…
जो कभी-कभी घुस जाता मेरे भी अन्दर....!!
मगर हां हुजूर,जाते-जाते एक बात अवश्य सुनते जाईए…
यह बन्दर…हम सबके है अन्दर…
जो बुराईयों को पहचानता है,सच्चाई को जानता है…!
मगर ना जाने क्यों इन सबसे वो आंखे मूंदे रहता है…!
अपनी आत्मा को बाहर फ़ेंककर किस तरह वो रहता है…?
और अपनी पूरी निर्लज्जता के साथ हंसता-खिखियाता हुआ…
कहीं अपने घर का मुखिया…कहीं किसी शहर का मेयर…
कहीं किसी राज्य का मुखिया…कहीं किसी देश का राजा…
इन बन्दर-विहीन लोगों ने देश का बजा दिया है बाजा…!!!! 

2 comments:

anoop joshi said...

wah ustaad

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

दोस्तों....जब से होश सम्भाला है.....तब से बहुत सी बातों से पीड़ित रहता आया हूँ....उसके बावजूद भी....शायद इसे अपनी कायरता कहूँ या....परिस्थिति.... सामाजिक कार्यों....सुधार...आदि के कार्यक्रमों में ना लग कर....कला के क्षेत्र से होता हुआ....व्यापार के क्षेत्र में घुस गया हूँ....अपनी तड़प को व्यक्त तो कर देता हूँ... आग भी उगल लेता हूँ....मगर मेरे जानते इन सबका क्या अर्थ है....जब मैं खुद घर-घुस्सू आत्मकेंद्रित व्यक्ति के रूप में...देश पर बोझ हूँ....सच तो यह है...की जल्द-से-जल्द मैं यहाँ से बाहर निकल....सार्वजनिक जीवन में शुचिता का एक केंद्र बन सकूँ...एक प्रेरणा बन सकूँ....चेष्टा तो यही है मेरी....देखो कि कब ऐसा कर पाता हूँ...आप सबको ह्रदय से आभार....लेकिन सच्चा आभार भी तब ही होगा....जब मैं ऐसा कर पाने में सफल हो सकूँ...सिर्फ शब्दों की गाल-बजाई....से ताली बटोर लेना मेरी समझ से बहुत गर्वपूर्ण नहीं....सच अपपनी पूरी आत्मा से कहता हूँ....!!!