हमारे भारत में राजे-महाराजे अपने क्लासिकल अंदाज के लिये प्रसिद्ध रहे हैं।नबाब वाजिद अली साहब के बारे में एक कहावत बडी चर्चित है कि वे अग्रेजों के हमले के समय इस कारण नहीं भाग सके क्योंकि उनको पैरों में जूते पहनाने के लिये कोई नौकर नहीं था।इसी कारण अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बना लिया।उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री ने भी विकास की दशा देखने के लिये जो अंदाज अपनाया है,वह भी कुछ-कुछ क्लासिकल ही ज्यादा है।विकास कितना हो रहा है,इसका जबाब उनके इर्द-गिर्द वर्दी वाले व टाई-सूट वाले उनके मातहतों के पास है,न कि आम जनता के पास। उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती इन दिनों जिलों के दौरे कर रही हैं।निश्चित रूप से कागजों तक विकास सीमित न रहे,इस लिये ऐसे दौरे महत्वपूर्ण हैं।बजट सत्र के शुरू होने के पहले जिलों के औचक निरीक्षण का खास मायने भी है।जनता का विश्वास कायम रखने व आने वाले चुनाव में अपनी जबाबदेही सुनिश्चित करने के लिये मुख्यमंत्री के तेवर जो होने चाहिये थे,वो नहीं दिखायी दे रहें हैं।विकास के प्रति अंसतोष रखने वाला आम आदमी मायावती के उसी तेज तरार्र स्टाइल की अपेक्षा कर रहा था,जो उन्होंने विगत समय में स्वंय स्थापित किया था।
मेरी नजर में उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री का इस बार का प्रदेशव्यापी दौरा क्लासीकल ज्यादा दिखायी दे रहा है।जिलों के अधिकारियों द्धारा दी जाने वाली सूचना की जॉंच करनी है,तो सही तरीका तो यह होता कि आम आदमी से बात की जाती,लेकिन हो रहा है ठीक इसके उल्टा।मुख्यमंत्री का उडनखटोला जैसे ही उतरता है,जल्दी से उतरने के लिये पायदान लाना,गार्ड आफ ऑनर देना व आम जनता को धक्के मारकर एक तरफ कर देना राजसी अंदाज का क्लासिकल तरीका है,जो इग्लैंड की महारानी के स्वागत की तरह है या नबाबी अदब की तरह है।सुरक्षा के तीन चक्र इतने सख्त हैं कि कोई परिंदा भी पर न मार सके।कंमाडो की सुरक्षा में कई जगह तो डी,एम, व अन्य बडे अधिकारियों को भी अपमानित होना पडा।नबंर वन की होड में शमिल कुछ पेपर व इलेक्ट्रानिक खबरों के कुछ पत्रकारों को ही मिलने के पास दिये जाते हैं ताकि ज्यादा सवाल जबाब से बहन जी का माथा न ठनक जाय नहीं तो जिला सूचना अधिकारी व प्रशासन की खैर नहीं।
इसे क्लासिकल कहना इसलिये भी जायज लगता है कि उनके दौरे केवल अंबेडकर गॉव में ही हो रहे हैं।हर जिले में अंबेडकर गॉव लगभग तीस या पैंतीस हैं,जो सन् 1995-1996 में भी विकास के लिये चुने गये थे।अंबेडकर गॉंव से बाहर के गॉंवों का हश्र देखकर आप कह सकते हैं कि ये गॉंव इस प्रदेश के हिस्से नहीं हैं क्या।सडक व सम्पर्क मार्गो का हाल इतना बुरा कि आप पैदल भी न निकल पायें।जैसे-जैसे जिले के दौरे की तारीख पास आती है,पूरे जिले का विकास एक गॉंव तक सीमित हो जाता है,जहॉं मुख्यमंत्री को जाना रहता है।सामान्यतया एक दो दिन पहले उस गॉंव का नाम बता दिया जाता है,जहॉं मुख्यमंत्री के चरण रज पडनी रहती है।फिर पूरी सरकारी फौज गॉंव को चमकाने में लग जाती हैं।क्या पहले से तयशुदा किसी गॉंव में जाकर विकास कामों का हाल जानना शास्त्रीय या क्लासिकल कदम नहीं है।हाल जानना है तो अचानक किसी गॉव में पहुंचिये,वो चाहे अंबेडकर गॉव हो सामान्य गॉव।कुछ समय गॉव वालों के साथ बिताकर उनका दुख दर्द जानने की कोशिश करना तो लोकतात्रिक सरकार की मुखिया को शोभा देता व लोंगों को भी लगता कि उनका अपना मुख्यमंत्री उनका हाल जानने उनके बीच आया।लेकिन अब तरह तरह के माफियागिरी से त्रस्त उत्तर प्रदेश इस लायक नहीं रह गया है कि कोई मुख्यमंत्री बेखौफ होकर जनता के दुखदर्द सुन पायेगा।मायावती तो आम जनता के बीच अपने शास्त्रीय रूतबे को लेकर जा भी रहीं हैं,मुलायम सिंह,राजनाथ सिंह आदि कोई अन्य नेता तो इतनी भी हिम्मत नहीं कर पाते।अन्य दलों के मुख्यमंत्री तो फील्ड में जाकर एक कदम आगे यूनानी क्लासिकल तरीके अपनाते हैं।फूल मालायें पहनना,दरबारियों के कार्यक्रमों में सिरकत करना,डिनर पार्टी में शामिल होना उनका खास अंदाज रहा है।नौकरशाहों से पंगा लेने की हिम्मत अन्य दल के नेताओं में कभी नहीं रही।यह हिम्मत दिखाने की कोशिश मायावती ने ही थी।।मायावती के इस बार के बुझे हुये तेवर इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि चुनाव के लिये अधिकारियों को भी विश्वास में रखना जरूरी है।विकास हो या न हो अपने लोगों को रूष्ट करना समझदारी नहीं है।विरोधियों के हमले के समय छतरी व पायदान लेने वाले तो साथ बने रहें।
6.2.11
उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री का क्लासिकल दौरा
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1 comment:
isi bahane, ek gaon ka sudhar to ho jata hai.
if one village is getting correct, in one district, what is wrong.
what the previous cm's did.
every bad thing has a silver lining in this.
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