कहानी - कैरेक्टर ढीला है?
सशक्त अंत ।
इस कहानी का सटीक और सशक्त अंत दर्शाने के लिए अपने अमूल्य प्रतिभाव देकर मेरा मार्गदर्शन करनेवाले, shri Anvesh Chaudhary, Dr shri shyam gupt, shri Piyush Khare, shri Usman, sushri kavita verma , shri Dalsingar Yadav, shri shekhar, shri Rakesh kumar और अन्य सभी विद्वान पाठक मित्रों का तहे दिल से धन्यवाद करते हुए प्रस्तुत है ये कहानी ।
मृगतृष्णा की बैतरनी, मैं तो तैरने चली..!!
मार्ग, पहाड़ के मध्य, मैं कुरेदने चली..!!
======
जेब में सिर्फ सौ रुपये ले कर, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव से, आये हुए, एक उत्साही युवक ने जयपुर आकर, अपनी लगन और मेहनत से,एक्स्पोर्ट-इम्पोर्ट के बिज़नेस में, कुछ ऐसे पैर जमाये कि, पांच साल के भीतर-भीतर वह, तगड़ा बैंक बेलेन्स और जयपुर के पोश इलाके में, एक आलीशान बंगले का मालिक बन गया ।
अपनी मीठी ज़ुबान से सभी क्लायन्ट को वश में करके, अपने धंधे का, दिन दोगुना रात चौगुना, विस्तार बढ़ाने वाले इस युवक का नाम था प्रेम कुमार । उसके बिज़नेस के साथ जुड़े हुए लोग उसे प्यार से सिर्फ,`पी.के.` कहते थे ।
पी.के. की ऑफ़िस के प्यून से लेकर, उसके धंधे से जुड़े सारे सरकारी अफ़सर और राजनीतिज्ञों को, कई बार इस बात पर ताज्जुब होता था कि, बातचीत और बाहरी ज़िंदगी में पाश्चात आधुनिक दुनिया के रंग में, रंगा दिखने वाला कुशल व्यापारी प्रेम, अपनी वास्तविक ज़िंदगी में बिलकुल सीधा-सादा, सिद्धांतवादी, निर्व्यसनी और समय आने पर संबंध की क़दर करनेवाला इन्सान है ।
शायद, अत्यंत आध्यात्मिक सोच वाले, उच्च संस्कारी परिवार का आत्मनीन होने के कारण, पैसों का ढेर होने के बावजूद, प्रेम के तन मन को, व्यापारी आलम में प्रवर्तमान कोई भी बदी आजतक छू न पायी थी ।
प्रेम ने आजतक अपने धंधे से जुड़े सभी व्यावसायिक साथीओं को, अपने निवास स्थान से बहुत दूर रखा था, अपने साथ व्यवसाय में जुडे अमीरजादों की बहकी हुई बुरी आदतों से, प्रेम भलीभाँति वाक़िफ़ था, इसीलिए उसने कभी भी घर से अंतरंग संबंध बांध ने का, उनको मौका ही नहीं दिया था ।
आप पूछेंगे ऐसा क्यों?
ठीक है, अगर आप इसका कारण जानना चाहते हैं तो सुनिए..!!
सिर्फ एक साल पहले प्रेम ने, विवाह करके, उसके बंगले में एक ऐसी अप्सरा को आश्रय दिया था कि, जिसे देख कर खुद ऋषि मुनिओं का ईमान भी डोल जाए..!!
जी हाँ, प्रेम की, मोम की गुड़िया समान, अत्यंत स्वरूप वान, पत्नी का नाम मृगया था ।
ऐसा कदम उठाने के पिछे, प्रेम का एक ही मकसद था, व्यवसाय से जुड़ी सारी चिंता और तनाव को अपने निवास के आंगन के भीतर आने न देना..!! वैसे भी, ऑफ़िस से घर आने के बाद, अपनी सौंदर्य प्रतिमा अर्धांगिनी मृगया के साथ `काम` में मस्त और रत रखने वाली किसी एक क्षण को भी, व्यवसाय के तनाव से, वह आतंकित करना नहीं चाहता था..!!
वैसे तो,कई बार प्रेम को बिज़नेस के सिलसिले में, पूरे देश और विदेश में प्रवास करना पड़ता था और मृगया को इस महल-नुमा निवास में अकेले ही दिन काटने पड़ते थे, अतः मृगया के आग्रह के कारण, प्रेम ने अपने माता-पिता को भी जयपुर अपने साथ बुलवा लिया था । प्रेम के माता पिता का रुझान आध्यात्मिकता की ओर ज्यादा होने के कारण, वह अपने धर्म-ध्यान-सत्संग,सेवा पूजा में लिन रहते थे,पर मृगया को तो मानो अब अकेलेपन के दिनो में, सहारा मिल गया था ।
यहाँ से हम कहानी को अब, वर्तमान में ले जायेंगे..!!
प्रेम और मृगया का जीवन खुशी-खुशी बीत रहा है और आने वाला कल का दिन तो प्रेम और मृगया के लिए खास दिन है ।
जी हाँ, आने वाला कल प्रेम का जन्मदिन है । हालाँकि, प्रेम अपने बिज़नेस के सिलसिले से, बारह दिन पहले, चेन्नई गया हुआ है और अपने जन्म दिन के अवसर पर, कल सुबह, आठ बजे की फ्लाईट से वापस आने वाला है ।
आज सुबह से मृगया के पैर मानो धरती पर टिक नहीं पा रहे है..!! एक सुंदर सी तितली की भाँति, मृगया पूरे बंगले में यहाँ वहाँ उड़ती हुई, अपने प्रीतम प्रेम के जन्मदिन की खुशी में, बंगले की सजावट और उसके मनभावन व्यंजन बनाने की तैयारी में, घर के सारे नौकर-चाकर का मार्गदर्शन करने में लग गई है..!!
सारा दिन व्यस्त रहने के बाद, दोपहर के चार बज ने को है और अभी-अभी मृगया को ख़्याल आया कि, अति उत्साहित होने कारण, अभी तक उसने अपने प्रीतम प्रेम के लिए, कोई बढ़िया सा उपहार तो ख़रीदा नहीं है?
इसीलिए, सासुमाँ से आज्ञा ले कर, शॉफर के साथ, मृगया फौरन सुपर मार्केट के लिए निकल पड़ी ।
हालाँकि, मृगया अभी सुपर मार्केट पहुँची ही होगी कि, उनके निवास स्थान के आंगन में एक टैक्सी आकर खड़ी हो गई और टैक्सी से, साक्षात कामदेव के अवतार समान अत्यंत मोहक युवक बाहर आया । बिलकुल ला-परवाह व्यक्तित्व, अमीरी की चुगली करते हुए महँगे गॉगल्स, गले में सोने की मोटी वजनदार चेईन, दोनों हाथ की सभी उंगलियों पर हीरे से मढ़ी हुई क़ीमती रिंग और उसके रूप के अनुसार उसका नाम भी है.. `देव`..!!
टैक्सी ड्राइवर ने डॅकी से दो भारी भरकम सूटकेस निकाली और बंगले के दरवाज़े के पास रख कर डोरबेल बजायी । प्रेम के, सरल-हृदय पिताजी ने, आगंतुक अतिथि युवक का परिचय पाकर, उसे योग्य आवभागत के साथ बंगले के दीवान खाने में बिठा कर नौकर से पानी लाने को कहा ।
थोडीदेर के बाद, प्रेम के लिए उपहार के रूप में, अनोखे प्यार के अद्भुत प्रतीक समान, मार्बल के ताजमहल की बड़ी सी प्रतिकृति के साथ, मृगया जब मार्केट से बंगले पर वापस पहुँची तब तक तो, `अतिथि देवो भवः।` सूत्र को सार्थक करते हुए, मृगया के सास-ससुर ने आग्रह कर के, देव के लिए, बंगले में ही ग्राउंड फ्लॉर पर स्थित गेस्ट रूम में ठहराने की सारी व्यवस्था कर ली थीं ।
हालाँकि, रात्रि के भोजन के दौरान, प्रेम के माता-पिता के साथ, देव ने रात किसी होटल में जाकर ठहर ने के बारे में बहुत बहस की, पर आखिर जब मृगया ने भी,`एक रात की ही तो बात है, आप ठहर जाएंगे तो प्रेम को भी अच्छा लगेगा..!!` कहा तब, देव आगे कुछ न कह पाया और डिनर के बाद सीधा अपने रूम में जाकर कोई मैगज़ीन पढ़ने में व्यस्त हो गया ।
रात्रि के करीब दस बजे प्रेम के पिताजी ने अतिथि देव के रूम में जा कर उसे, कुछ चाहिए तो, बिना किसी संकोच मांग ने का विवेक जता कर, उसी रूम के बगल वाले कमरे में आराम करने चले गए ।
यहाँ, नौकर को कह कर, देव के रूम में साबुन-तौलिया और पीने का ठंडा पानी वगैरह रखवा कर, देव को `गुड़नाईट` कहकर मृगया भी बंगले के फ़र्स्ट फ्लॉर पर स्थित अपने बेडरूम में सो ने के लिए चली गई ।
देव भी, पूरे दिन का थका-हारा, अपने सीने पर मैगज़ीन रख कर, उसके रूम और बाथरूम की सारी बत्तीयाँ बुझाये बगैर, रूम का दरवाज़ा खुला छोड़ कर, कब गहरी नींद सो गया, उसी को पता न चला..!!
इतने बड़े निवास में, अगर किसी की नींद बैरी हुई थीं तो वह थी..मृगया..!!
बाथरूम में नहाकर फ्रेश होकर, नाईटी पहनकर, मृगया जब बिस्तर पर लेटी तब, उसके मन में, इतने दिनों के प्रेम के विरह के पश्चात, प्रीतम के आगमन पर, अपने प्रेम को, उसका खरीदा हुआ उपहार कैसा लगेगा..!! कल क्या-क्या प्रोग्राम बनायेंगे? जैसे अनगिनत विचारों चल रहे थे..!! इन्हीं विचारों के साथ, मृगया सो ने के लिए व्यर्थ प्रयत्न करने लगी ।
करीब रात्रि के एक बजे अचानक मृगया को ख़्याल आया कि,पूरी शाम इतनी व्यस्तता के चलते, नौकर उसी के बेडरूम में पानी का जग रखना भूल गया है..!!
आधी-अधूरी नींद में, मृगया पानी का जग लेने के लिए, जब नीचे किचन में आयी, तो उसने देखा कि," मेहमान देव, अपने सीने पर मैगज़ीन रख कर, बाथरूम और बेडरूम की सारी बत्तीयाँ बिना बुझाये ही, सो गए हैं?"
मृगया को मन ही मन हँसी आ गई..!! प्रेम के दोस्त भी प्रेम की माफिक ही लापरवाह है..!!
मृगया धीरे से देव के बेडरूम में गई और देव की नींद में कोई ख़लल न हो, इसका ध्यान रखते हुए उसने बाथरूम की बत्ती बुझा कर, देव के सीने पर पड़ा मैगज़ीन उठा कर बाज़ू के टेबल पर रखा, फिर धीरे से दबे पाँव रूम के दरवाज़े के पास पहुँच कर, जैसे ही मृगया ने रूम की बत्ती बुझा कर, दरवाज़े की ओर अपने कदम बढ़ाये...!!
अचानक मृगया को अपनी नाज़ुक कमर पर, देव के मज़बूत हाथों की पकड़ महसूस हुई । मृगया भय के कारण कांप उठी और वह कुछ ज्यादा सोचे-समझे उससे पहले ही, रूम का दरवाज़ा बंद हो चुका था । किसी मुलायम पुष्प जैसी कोमल-हल्की मृगया को, देव ने अपने मज़बूत कंधे पर उठाया और वासना पूर्ति के बद-इरादे के साथ, मृगया को बेड पर पटक दिया..!!
अपने पति के मित्र पर, निर्दोष विश्वास करते हुए, देव को गहरी नींद में पा कर, स्त्री सहज भोलेपन में, रूम की बत्तीयाँ बुझाने के लिए, मृगया का इस रूम में आना, आज उसके लिए बहुत बड़ा जोख़िम साबित होने वाला था..!!
नाइट लेम्प के प्रकाश में, मृगया ने देखा कि, देव नामक मानव में, विकराल भय पैदा करने वाला, विक़ारी दानव प्रवेश कर चुका था । मृगया को रूम में आती देख कर, एक ऐयाश, वासना ग्रस्त युवक देव ने, अपनी बद-नियत को अंजाम देने के लिए, गहरी नींद में न होते हुए भी, खुद सो ये होने का ढोंग रचा कर, मौका पाते ही, अपने ही व्यावसायिक मित्र प्रेम की, मोम की गुड़िया समान, अत्यंत स्वरूप वान, नाज़ुक-निर्बल पत्नी मृगया को, अपनी काम-हवस तृप्त करने की बूरी मनसा से, दबोच लिया था..!!
अपने कंधे से, मृगया को नर्म बेड पर पटक कर, मृगया के बदन पर झुक कर देव ने, मृगया के होठ पर ज़बरदस्ती चुंबन करने का प्रयास किया, पर मृगया ने अपना मुँह फेर लिया और देव के होंठ मृगया के मख़मली गाल पर जा रुके..!! मृगया को लगा, मानो उसे किसी ज़हरीले बिच्छू ने काट लिया हो..!! देव के मुँह से आती शराब की बदबू से, मृगया को पता चल गया कि, देव ने अपने मित्र के घर में ही शराब पी कर, अतिथि धर्म का पहले ही उल्लंघन किया है..!!पवित्र विचार और उच्च चरित्रवान मृगया को, देव की सांसों से आती शराब की दुर्गंध की वजह से उबकाई सी होने लगी ।
हालाँकि, आघात और असीम भय के कारण अवाक् हो गई मृगया द्वारा, कोई ठोस प्रतिकार या अपने मुँह से अभी तक असहमति का एक भी शब्द न उच्चारने के कारण, मृगया की भी सहमति है, ऐसा मन ही मन मान कर, थोड़ा निश्चिंत होकर, देव ने मृगया के तन की पकड़ को शिथिल किया और मृगया से अलग हो कर, अपना टी-शर्ट उतारने के लिए, उठ खड़ा हुआ..!! कामवासना से अधिक उत्तेजित हो चले, देव के बदन में, मानो कामाग्नि का विस्फोट हुआ था और परपुरुष के स्पर्श मात्र से, मृगया के बदन में क्रोधाग्नि का विस्फोट हो रहा था..!!
देव की शैतानी पकड़ से मुक्त होते ही, बिस्तर पर ज़बरदस्ती लेटाई गई, मृगया के आक्रोशित और भयभीत मन में, एक ही क्षण में सैंकड़ो सवाल एक साथ उठने लगे..!! पर, इन सभी सवालों में एक सवाल बहुत अहम था कि, देव से बचने के लिए, अगर उसने कहीं ज़ोर से शोरशराबा मचाया तो, ऐसे में , बगल वाले कमरे से, उसके सास ससुर आकर उसकी अस्मत तो बचा ही लेंगे, पर उन्हों ने अगर मृगया को, कहीं ये सवाल पूछ लिया कि,
"रात्रि के करीब एक-डेढ बजे, गेस्टरूम के बंद दरवाज़े के पिछे, केवल छोटी सी तंग नाईटी पहने हुए, वह देव के साथ क्या कर ही है तब? प्रेमे की अनुपस्थिति में, वह अपने सास-ससुर को क्या जवाब देगी? देव तो यही कहेगा कि, मैं तो रात्रि निवास के लिए होटल में शीफ्ट होना चाहता था पर, मृगया ने ही, आग्रह करके, उसे होटल जाने से रोक लिया..!!"
मृगया को ज्ञात हो गया, आज एक क़ातिल, वहशी, दानव क़िस्म के शिकारी की जाल में, वह बूरी तरह फँस चुकी है और देव की चंगुल से छूटने के लिए, उसने अगर जल्द ही कुछ न किया तो उसका सतीत्व आज ख़तरे में है..!!
हालाँकि, कहते हैं ना..!! जिनका मन साफ होता है, उसे भगवान भी हमेशा मदद करता है, इस न्याय के अनुसार, मृगया के अत्यंत कोमल,नाज़ुक, निर्बल बदन के भीतर अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए मानो, साक्षात माँ दुर्गा ने प्रवेश किया हो, मृगया के तन में अचानक असीम ताक़त का आविर्भाव होने लगा..!!
मृगया को भोगने के लिए, चरम उत्तेजित हुआ देव, बेड पर लेटी हुई मृगया के सामने खड़ा रह कर, अपना टी-शर्ट उतार रहा था । मृगया ने देखा कि, टी-शर्ट उतारने के लिए, देव के दोनों हाथ उपर किये हुए थे और उसका सिर, टी-शर्ट के भीतर था जिसके कारण, इस वक़्त देव, मृगया को देख नहीं पा रहा था..!!
यह देख कर, उसके पहले की, देव की दोनों जांघों के बीच, उत्तेजना से, अपना फण फैला कर बैठा हुआ किंग कोब्रा, उसे बूरी तरह डँस लें, मृगया ने माँ दुर्गा की प्रेरणा से, सही क्षण और मौके का लाभ उठाते हुए, अत्यंत चपलतापूर्वक, अपने तन में जितना था इससे भी कहीं अधिक ज़ोर एकत्रित करते हुए, देव के गुप्तांग पर, एक ऐसी शक्तिशाली लात मारी कि, टी-शर्ट निकालने के लिए उपर किये हुए हाथ और टी-शर्ट के भीतर ढंके हुए सिर के साथ देव, सामने की दीवार पर, बहुत बूरी तरह जा टकराया..!!
माँ दुर्गा की कृपा से, इतना अप्रतिम साहस दिखाने के पश्चात भी, भय के मारे अत्यंत कांपती हुई, कोमल हिरणी सी मृगया, अपने आप को संभालते हुए, देव उसे दुबारा दबोच लें, उससे पहले ही, भागते हुए कदमों से, मृगया रूम के बाहर निकल गई और सावधानी दिखाते हुए, गेस्ट रूम के दरवाज़े की चिटकिनी लगा कर, उसने गेस्ट रूम का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया..!!
हालाँकि, रूम का दरवाज़ा बाहर से बंद करते समय, मृगया ने इतना ज़रूर देखा कि, अप्रतिम शक्ति और उसके पवित्र चरित्र के कारण, एक पवित्र सती नारी द्वारा मारी गई, ज़ोरदार लात के प्रहार से घायल हो कर, देव नामक दानव, अपने दोनों हाथों से, अपनी जांघों के बीच, दर्द कर रहे अपने गुप्तांग को दबा कर, रूम की फर्श पर दाएँ-बाएँ लेटता हुआ, असह्य पीड़ा से कराह रहा था..!!
माँ दुर्गा ने एक पवित्र नारी के मन का आर्तनाद सुन कर, उस नारी की अस्मत बचाई थी पर, उसके पहले की, यह घृणित और निंदनीय घटना की भनक सास-ससुर को लगे, डर के मारे मृगया भाग कर किचन में पहुँची और पानी पी कर अपने आप को स्वस्थ करने की व्यर्थ कोशिश करती हुई, फ़र्स्ट फ्लॉर पर स्थित अपने बेडरूम की ओर भागी । बेडरूम में पहुँचते ही, अपने बिस्तर पर गिर कर, सहसा घटी हुई, इस भयानक घटना के आघात से, बूरी तरह आहत हुई मृगया फूट-फूट कर रोने लगी..!!
आखिर, सुबह के साढे पांच बजे, रो-रो कर, बहते हुए आंसुओं से आर्द्र चेहरे के साथ, पूरे दिन-रात की थकी हारी, मृगया की जब आँख लग गई, तब भी वह, नींद में भी सिर से पाँव तक, भय से बार बार सिहर रही थी ।
सुबह के करीब साढ़े सात बजे होंगे और बंगले में कुछ ज़ोर-ज़ोर की आवाज़ सुनाई देने से, मृगया सहसा जाग गई और फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गई । बाथरूम से बाहर आई तो मृगया के सामने नौकर, गर्म कॉफी ले कर खड़ा था और उसने जो बताया, शायद वही बात मृगया को भी अपेक्षित थी..!!
मृगया के सवाल करने से पहले ही, नौकर ने बताया कि,
" रात को मेहमान, देव साहब की तबियत अचानक ख़राब होने की वजह से, सुबह छ बजे ही, टैक्सी बुलवा कर, मेहमान दिल्ली के लिए रवाना हो गये..!! हालाँकि, मम्मीजी ने (मृगया की सास ने), मेहमान को चाय-नाश्ता करने के पश्चात, जाने के लिए बहुत आग्रह किया पर, मेहमान तो स्नान करने के लिये भी न रुके और जल्दी में एयरपोर्ट चले गए..!!"
नौकर से इतनी बात सुनते ही, मृगया के मन को शांति मिली और झट से कॉफी पीकर, स्नानादि निपटा कर, जब वह नीचे दीवानखाने में पहुँची तब, सुबह के आठ बज चुके थे और मृगया का हृदय सम्राट, उसका साजन प्रेम, मुख्य प्रवेश द्वार से, अंदर प्रवेश कर रहा था..!!
प्रेम के जन्म दिन की उस रात्रि के पूर्ण एकान्त में,आँख में आंसू के साथ, शुद्ध मन से, मृगया ने, पिछली रात को, देव ने उसके साथ बद-नियत से कि हुई, अभद्रता की भयंकर घटना का बयान, जब प्रेम के सम्मुख किया, तब प्रेम ने मृगया को, आश्वासन देते हुए, प्यार के उपहार समान ढ़ेर सारे चुंबन से नहलाते हुए, सिर्फ इतना ही कहा कि,
" दुनिया में, आजतक किसी भी पत्नी ने, पति के जन्मदिन के शुभ अवसर पर, इतनी भयानक आपत्ति से बच कर, शायद ही अपने अखंड सतीत्व और पवित्र चरित्र का उपहार प्रदान किया हो..!! भला, इससे अधिक अनूठा तोहफ़ा, मेरे लिए और क्या हो सकता है..!! तेरे जैसी पत्नी मुझे मिली है, इस बात का मुझे बहुत गर्व है ।"
प्यारे दोस्तों, किसी भी पति के जन्मदिन के अवसर पर, किसी पत्नी द्वारा, किसी वहशी शैतान देव से अपनी अस्मत बचा कर, अपने शुद्ध चरित्र जैसा महान उपहार प्रदान करते हुए, आपने कहीं पर देखा-सुना हो तो मुझे अवश्य बताईएगा प्लीझ..!!
मेरा ब्लॉग-
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html
मार्कण्ड दवे । दिनांक- ०५-०६-२०११.
अपनी मीठी ज़ुबान से सभी क्लायन्ट को वश में करके, अपने धंधे का, दिन दोगुना रात चौगुना, विस्तार बढ़ाने वाले इस युवक का नाम था प्रेम कुमार । उसके बिज़नेस के साथ जुड़े हुए लोग उसे प्यार से सिर्फ,`पी.के.` कहते थे ।
पी.के. की ऑफ़िस के प्यून से लेकर, उसके धंधे से जुड़े सारे सरकारी अफ़सर और राजनीतिज्ञों को, कई बार इस बात पर ताज्जुब होता था कि, बातचीत और बाहरी ज़िंदगी में पाश्चात आधुनिक दुनिया के रंग में, रंगा दिखने वाला कुशल व्यापारी प्रेम, अपनी वास्तविक ज़िंदगी में बिलकुल सीधा-सादा, सिद्धांतवादी, निर्व्यसनी और समय आने पर संबंध की क़दर करनेवाला इन्सान है ।
शायद, अत्यंत आध्यात्मिक सोच वाले, उच्च संस्कारी परिवार का आत्मनीन होने के कारण, पैसों का ढेर होने के बावजूद, प्रेम के तन मन को, व्यापारी आलम में प्रवर्तमान कोई भी बदी आजतक छू न पायी थी ।
प्रेम ने आजतक अपने धंधे से जुड़े सभी व्यावसायिक साथीओं को, अपने निवास स्थान से बहुत दूर रखा था, अपने साथ व्यवसाय में जुडे अमीरजादों की बहकी हुई बुरी आदतों से, प्रेम भलीभाँति वाक़िफ़ था, इसीलिए उसने कभी भी घर से अंतरंग संबंध बांध ने का, उनको मौका ही नहीं दिया था ।
आप पूछेंगे ऐसा क्यों?
ठीक है, अगर आप इसका कारण जानना चाहते हैं तो सुनिए..!!
सिर्फ एक साल पहले प्रेम ने, विवाह करके, उसके बंगले में एक ऐसी अप्सरा को आश्रय दिया था कि, जिसे देख कर खुद ऋषि मुनिओं का ईमान भी डोल जाए..!!
जी हाँ, प्रेम की, मोम की गुड़िया समान, अत्यंत स्वरूप वान, पत्नी का नाम मृगया था ।
ऐसा कदम उठाने के पिछे, प्रेम का एक ही मकसद था, व्यवसाय से जुड़ी सारी चिंता और तनाव को अपने निवास के आंगन के भीतर आने न देना..!! वैसे भी, ऑफ़िस से घर आने के बाद, अपनी सौंदर्य प्रतिमा अर्धांगिनी मृगया के साथ `काम` में मस्त और रत रखने वाली किसी एक क्षण को भी, व्यवसाय के तनाव से, वह आतंकित करना नहीं चाहता था..!!
वैसे तो,कई बार प्रेम को बिज़नेस के सिलसिले में, पूरे देश और विदेश में प्रवास करना पड़ता था और मृगया को इस महल-नुमा निवास में अकेले ही दिन काटने पड़ते थे, अतः मृगया के आग्रह के कारण, प्रेम ने अपने माता-पिता को भी जयपुर अपने साथ बुलवा लिया था । प्रेम के माता पिता का रुझान आध्यात्मिकता की ओर ज्यादा होने के कारण, वह अपने धर्म-ध्यान-सत्संग,सेवा पूजा में लिन रहते थे,पर मृगया को तो मानो अब अकेलेपन के दिनो में, सहारा मिल गया था ।
यहाँ से हम कहानी को अब, वर्तमान में ले जायेंगे..!!
प्रेम और मृगया का जीवन खुशी-खुशी बीत रहा है और आने वाला कल का दिन तो प्रेम और मृगया के लिए खास दिन है ।
जी हाँ, आने वाला कल प्रेम का जन्मदिन है । हालाँकि, प्रेम अपने बिज़नेस के सिलसिले से, बारह दिन पहले, चेन्नई गया हुआ है और अपने जन्म दिन के अवसर पर, कल सुबह, आठ बजे की फ्लाईट से वापस आने वाला है ।
आज सुबह से मृगया के पैर मानो धरती पर टिक नहीं पा रहे है..!! एक सुंदर सी तितली की भाँति, मृगया पूरे बंगले में यहाँ वहाँ उड़ती हुई, अपने प्रीतम प्रेम के जन्मदिन की खुशी में, बंगले की सजावट और उसके मनभावन व्यंजन बनाने की तैयारी में, घर के सारे नौकर-चाकर का मार्गदर्शन करने में लग गई है..!!
सारा दिन व्यस्त रहने के बाद, दोपहर के चार बज ने को है और अभी-अभी मृगया को ख़्याल आया कि, अति उत्साहित होने कारण, अभी तक उसने अपने प्रीतम प्रेम के लिए, कोई बढ़िया सा उपहार तो ख़रीदा नहीं है?
इसीलिए, सासुमाँ से आज्ञा ले कर, शॉफर के साथ, मृगया फौरन सुपर मार्केट के लिए निकल पड़ी ।
हालाँकि, मृगया अभी सुपर मार्केट पहुँची ही होगी कि, उनके निवास स्थान के आंगन में एक टैक्सी आकर खड़ी हो गई और टैक्सी से, साक्षात कामदेव के अवतार समान अत्यंत मोहक युवक बाहर आया । बिलकुल ला-परवाह व्यक्तित्व, अमीरी की चुगली करते हुए महँगे गॉगल्स, गले में सोने की मोटी वजनदार चेईन, दोनों हाथ की सभी उंगलियों पर हीरे से मढ़ी हुई क़ीमती रिंग और उसके रूप के अनुसार उसका नाम भी है.. `देव`..!!
टैक्सी ड्राइवर ने डॅकी से दो भारी भरकम सूटकेस निकाली और बंगले के दरवाज़े के पास रख कर डोरबेल बजायी । प्रेम के, सरल-हृदय पिताजी ने, आगंतुक अतिथि युवक का परिचय पाकर, उसे योग्य आवभागत के साथ बंगले के दीवान खाने में बिठा कर नौकर से पानी लाने को कहा ।
थोडीदेर के बाद, प्रेम के लिए उपहार के रूप में, अनोखे प्यार के अद्भुत प्रतीक समान, मार्बल के ताजमहल की बड़ी सी प्रतिकृति के साथ, मृगया जब मार्केट से बंगले पर वापस पहुँची तब तक तो, `अतिथि देवो भवः।` सूत्र को सार्थक करते हुए, मृगया के सास-ससुर ने आग्रह कर के, देव के लिए, बंगले में ही ग्राउंड फ्लॉर पर स्थित गेस्ट रूम में ठहराने की सारी व्यवस्था कर ली थीं ।
हालाँकि, रात्रि के भोजन के दौरान, प्रेम के माता-पिता के साथ, देव ने रात किसी होटल में जाकर ठहर ने के बारे में बहुत बहस की, पर आखिर जब मृगया ने भी,`एक रात की ही तो बात है, आप ठहर जाएंगे तो प्रेम को भी अच्छा लगेगा..!!` कहा तब, देव आगे कुछ न कह पाया और डिनर के बाद सीधा अपने रूम में जाकर कोई मैगज़ीन पढ़ने में व्यस्त हो गया ।
रात्रि के करीब दस बजे प्रेम के पिताजी ने अतिथि देव के रूम में जा कर उसे, कुछ चाहिए तो, बिना किसी संकोच मांग ने का विवेक जता कर, उसी रूम के बगल वाले कमरे में आराम करने चले गए ।
यहाँ, नौकर को कह कर, देव के रूम में साबुन-तौलिया और पीने का ठंडा पानी वगैरह रखवा कर, देव को `गुड़नाईट` कहकर मृगया भी बंगले के फ़र्स्ट फ्लॉर पर स्थित अपने बेडरूम में सो ने के लिए चली गई ।
देव भी, पूरे दिन का थका-हारा, अपने सीने पर मैगज़ीन रख कर, उसके रूम और बाथरूम की सारी बत्तीयाँ बुझाये बगैर, रूम का दरवाज़ा खुला छोड़ कर, कब गहरी नींद सो गया, उसी को पता न चला..!!
इतने बड़े निवास में, अगर किसी की नींद बैरी हुई थीं तो वह थी..मृगया..!!
बाथरूम में नहाकर फ्रेश होकर, नाईटी पहनकर, मृगया जब बिस्तर पर लेटी तब, उसके मन में, इतने दिनों के प्रेम के विरह के पश्चात, प्रीतम के आगमन पर, अपने प्रेम को, उसका खरीदा हुआ उपहार कैसा लगेगा..!! कल क्या-क्या प्रोग्राम बनायेंगे? जैसे अनगिनत विचारों चल रहे थे..!! इन्हीं विचारों के साथ, मृगया सो ने के लिए व्यर्थ प्रयत्न करने लगी ।
करीब रात्रि के एक बजे अचानक मृगया को ख़्याल आया कि,पूरी शाम इतनी व्यस्तता के चलते, नौकर उसी के बेडरूम में पानी का जग रखना भूल गया है..!!
आधी-अधूरी नींद में, मृगया पानी का जग लेने के लिए, जब नीचे किचन में आयी, तो उसने देखा कि," मेहमान देव, अपने सीने पर मैगज़ीन रख कर, बाथरूम और बेडरूम की सारी बत्तीयाँ बिना बुझाये ही, सो गए हैं?"
मृगया को मन ही मन हँसी आ गई..!! प्रेम के दोस्त भी प्रेम की माफिक ही लापरवाह है..!!
मृगया धीरे से देव के बेडरूम में गई और देव की नींद में कोई ख़लल न हो, इसका ध्यान रखते हुए उसने बाथरूम की बत्ती बुझा कर, देव के सीने पर पड़ा मैगज़ीन उठा कर बाज़ू के टेबल पर रखा, फिर धीरे से दबे पाँव रूम के दरवाज़े के पास पहुँच कर, जैसे ही मृगया ने रूम की बत्ती बुझा कर, दरवाज़े की ओर अपने कदम बढ़ाये...!!
अचानक मृगया को अपनी नाज़ुक कमर पर, देव के मज़बूत हाथों की पकड़ महसूस हुई । मृगया भय के कारण कांप उठी और वह कुछ ज्यादा सोचे-समझे उससे पहले ही, रूम का दरवाज़ा बंद हो चुका था । किसी मुलायम पुष्प जैसी कोमल-हल्की मृगया को, देव ने अपने मज़बूत कंधे पर उठाया और वासना पूर्ति के बद-इरादे के साथ, मृगया को बेड पर पटक दिया..!!
अपने पति के मित्र पर, निर्दोष विश्वास करते हुए, देव को गहरी नींद में पा कर, स्त्री सहज भोलेपन में, रूम की बत्तीयाँ बुझाने के लिए, मृगया का इस रूम में आना, आज उसके लिए बहुत बड़ा जोख़िम साबित होने वाला था..!!
नाइट लेम्प के प्रकाश में, मृगया ने देखा कि, देव नामक मानव में, विकराल भय पैदा करने वाला, विक़ारी दानव प्रवेश कर चुका था । मृगया को रूम में आती देख कर, एक ऐयाश, वासना ग्रस्त युवक देव ने, अपनी बद-नियत को अंजाम देने के लिए, गहरी नींद में न होते हुए भी, खुद सो ये होने का ढोंग रचा कर, मौका पाते ही, अपने ही व्यावसायिक मित्र प्रेम की, मोम की गुड़िया समान, अत्यंत स्वरूप वान, नाज़ुक-निर्बल पत्नी मृगया को, अपनी काम-हवस तृप्त करने की बूरी मनसा से, दबोच लिया था..!!
अपने कंधे से, मृगया को नर्म बेड पर पटक कर, मृगया के बदन पर झुक कर देव ने, मृगया के होठ पर ज़बरदस्ती चुंबन करने का प्रयास किया, पर मृगया ने अपना मुँह फेर लिया और देव के होंठ मृगया के मख़मली गाल पर जा रुके..!! मृगया को लगा, मानो उसे किसी ज़हरीले बिच्छू ने काट लिया हो..!! देव के मुँह से आती शराब की बदबू से, मृगया को पता चल गया कि, देव ने अपने मित्र के घर में ही शराब पी कर, अतिथि धर्म का पहले ही उल्लंघन किया है..!!पवित्र विचार और उच्च चरित्रवान मृगया को, देव की सांसों से आती शराब की दुर्गंध की वजह से उबकाई सी होने लगी ।
हालाँकि, आघात और असीम भय के कारण अवाक् हो गई मृगया द्वारा, कोई ठोस प्रतिकार या अपने मुँह से अभी तक असहमति का एक भी शब्द न उच्चारने के कारण, मृगया की भी सहमति है, ऐसा मन ही मन मान कर, थोड़ा निश्चिंत होकर, देव ने मृगया के तन की पकड़ को शिथिल किया और मृगया से अलग हो कर, अपना टी-शर्ट उतारने के लिए, उठ खड़ा हुआ..!! कामवासना से अधिक उत्तेजित हो चले, देव के बदन में, मानो कामाग्नि का विस्फोट हुआ था और परपुरुष के स्पर्श मात्र से, मृगया के बदन में क्रोधाग्नि का विस्फोट हो रहा था..!!
देव की शैतानी पकड़ से मुक्त होते ही, बिस्तर पर ज़बरदस्ती लेटाई गई, मृगया के आक्रोशित और भयभीत मन में, एक ही क्षण में सैंकड़ो सवाल एक साथ उठने लगे..!! पर, इन सभी सवालों में एक सवाल बहुत अहम था कि, देव से बचने के लिए, अगर उसने कहीं ज़ोर से शोरशराबा मचाया तो, ऐसे में , बगल वाले कमरे से, उसके सास ससुर आकर उसकी अस्मत तो बचा ही लेंगे, पर उन्हों ने अगर मृगया को, कहीं ये सवाल पूछ लिया कि,
"रात्रि के करीब एक-डेढ बजे, गेस्टरूम के बंद दरवाज़े के पिछे, केवल छोटी सी तंग नाईटी पहने हुए, वह देव के साथ क्या कर ही है तब? प्रेमे की अनुपस्थिति में, वह अपने सास-ससुर को क्या जवाब देगी? देव तो यही कहेगा कि, मैं तो रात्रि निवास के लिए होटल में शीफ्ट होना चाहता था पर, मृगया ने ही, आग्रह करके, उसे होटल जाने से रोक लिया..!!"
मृगया को ज्ञात हो गया, आज एक क़ातिल, वहशी, दानव क़िस्म के शिकारी की जाल में, वह बूरी तरह फँस चुकी है और देव की चंगुल से छूटने के लिए, उसने अगर जल्द ही कुछ न किया तो उसका सतीत्व आज ख़तरे में है..!!
हालाँकि, कहते हैं ना..!! जिनका मन साफ होता है, उसे भगवान भी हमेशा मदद करता है, इस न्याय के अनुसार, मृगया के अत्यंत कोमल,नाज़ुक, निर्बल बदन के भीतर अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए मानो, साक्षात माँ दुर्गा ने प्रवेश किया हो, मृगया के तन में अचानक असीम ताक़त का आविर्भाव होने लगा..!!
मृगया को भोगने के लिए, चरम उत्तेजित हुआ देव, बेड पर लेटी हुई मृगया के सामने खड़ा रह कर, अपना टी-शर्ट उतार रहा था । मृगया ने देखा कि, टी-शर्ट उतारने के लिए, देव के दोनों हाथ उपर किये हुए थे और उसका सिर, टी-शर्ट के भीतर था जिसके कारण, इस वक़्त देव, मृगया को देख नहीं पा रहा था..!!
यह देख कर, उसके पहले की, देव की दोनों जांघों के बीच, उत्तेजना से, अपना फण फैला कर बैठा हुआ किंग कोब्रा, उसे बूरी तरह डँस लें, मृगया ने माँ दुर्गा की प्रेरणा से, सही क्षण और मौके का लाभ उठाते हुए, अत्यंत चपलतापूर्वक, अपने तन में जितना था इससे भी कहीं अधिक ज़ोर एकत्रित करते हुए, देव के गुप्तांग पर, एक ऐसी शक्तिशाली लात मारी कि, टी-शर्ट निकालने के लिए उपर किये हुए हाथ और टी-शर्ट के भीतर ढंके हुए सिर के साथ देव, सामने की दीवार पर, बहुत बूरी तरह जा टकराया..!!
माँ दुर्गा की कृपा से, इतना अप्रतिम साहस दिखाने के पश्चात भी, भय के मारे अत्यंत कांपती हुई, कोमल हिरणी सी मृगया, अपने आप को संभालते हुए, देव उसे दुबारा दबोच लें, उससे पहले ही, भागते हुए कदमों से, मृगया रूम के बाहर निकल गई और सावधानी दिखाते हुए, गेस्ट रूम के दरवाज़े की चिटकिनी लगा कर, उसने गेस्ट रूम का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया..!!
हालाँकि, रूम का दरवाज़ा बाहर से बंद करते समय, मृगया ने इतना ज़रूर देखा कि, अप्रतिम शक्ति और उसके पवित्र चरित्र के कारण, एक पवित्र सती नारी द्वारा मारी गई, ज़ोरदार लात के प्रहार से घायल हो कर, देव नामक दानव, अपने दोनों हाथों से, अपनी जांघों के बीच, दर्द कर रहे अपने गुप्तांग को दबा कर, रूम की फर्श पर दाएँ-बाएँ लेटता हुआ, असह्य पीड़ा से कराह रहा था..!!
माँ दुर्गा ने एक पवित्र नारी के मन का आर्तनाद सुन कर, उस नारी की अस्मत बचाई थी पर, उसके पहले की, यह घृणित और निंदनीय घटना की भनक सास-ससुर को लगे, डर के मारे मृगया भाग कर किचन में पहुँची और पानी पी कर अपने आप को स्वस्थ करने की व्यर्थ कोशिश करती हुई, फ़र्स्ट फ्लॉर पर स्थित अपने बेडरूम की ओर भागी । बेडरूम में पहुँचते ही, अपने बिस्तर पर गिर कर, सहसा घटी हुई, इस भयानक घटना के आघात से, बूरी तरह आहत हुई मृगया फूट-फूट कर रोने लगी..!!
आखिर, सुबह के साढे पांच बजे, रो-रो कर, बहते हुए आंसुओं से आर्द्र चेहरे के साथ, पूरे दिन-रात की थकी हारी, मृगया की जब आँख लग गई, तब भी वह, नींद में भी सिर से पाँव तक, भय से बार बार सिहर रही थी ।
सुबह के करीब साढ़े सात बजे होंगे और बंगले में कुछ ज़ोर-ज़ोर की आवाज़ सुनाई देने से, मृगया सहसा जाग गई और फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गई । बाथरूम से बाहर आई तो मृगया के सामने नौकर, गर्म कॉफी ले कर खड़ा था और उसने जो बताया, शायद वही बात मृगया को भी अपेक्षित थी..!!
मृगया के सवाल करने से पहले ही, नौकर ने बताया कि,
" रात को मेहमान, देव साहब की तबियत अचानक ख़राब होने की वजह से, सुबह छ बजे ही, टैक्सी बुलवा कर, मेहमान दिल्ली के लिए रवाना हो गये..!! हालाँकि, मम्मीजी ने (मृगया की सास ने), मेहमान को चाय-नाश्ता करने के पश्चात, जाने के लिए बहुत आग्रह किया पर, मेहमान तो स्नान करने के लिये भी न रुके और जल्दी में एयरपोर्ट चले गए..!!"
नौकर से इतनी बात सुनते ही, मृगया के मन को शांति मिली और झट से कॉफी पीकर, स्नानादि निपटा कर, जब वह नीचे दीवानखाने में पहुँची तब, सुबह के आठ बज चुके थे और मृगया का हृदय सम्राट, उसका साजन प्रेम, मुख्य प्रवेश द्वार से, अंदर प्रवेश कर रहा था..!!
प्रेम के जन्म दिन की उस रात्रि के पूर्ण एकान्त में,आँख में आंसू के साथ, शुद्ध मन से, मृगया ने, पिछली रात को, देव ने उसके साथ बद-नियत से कि हुई, अभद्रता की भयंकर घटना का बयान, जब प्रेम के सम्मुख किया, तब प्रेम ने मृगया को, आश्वासन देते हुए, प्यार के उपहार समान ढ़ेर सारे चुंबन से नहलाते हुए, सिर्फ इतना ही कहा कि,
" दुनिया में, आजतक किसी भी पत्नी ने, पति के जन्मदिन के शुभ अवसर पर, इतनी भयानक आपत्ति से बच कर, शायद ही अपने अखंड सतीत्व और पवित्र चरित्र का उपहार प्रदान किया हो..!! भला, इससे अधिक अनूठा तोहफ़ा, मेरे लिए और क्या हो सकता है..!! तेरे जैसी पत्नी मुझे मिली है, इस बात का मुझे बहुत गर्व है ।"
प्यारे दोस्तों, किसी भी पति के जन्मदिन के अवसर पर, किसी पत्नी द्वारा, किसी वहशी शैतान देव से अपनी अस्मत बचा कर, अपने शुद्ध चरित्र जैसा महान उपहार प्रदान करते हुए, आपने कहीं पर देखा-सुना हो तो मुझे अवश्य बताईएगा प्लीझ..!!
मेरा ब्लॉग-
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html
मार्कण्ड दवे । दिनांक- ०५-०६-२०११.
1 comment:
kahani achhi hai, lekin kahi kahi bhasha seema ko langhti hui mehsoos hui!us bat ka chitran kiye bina bhi kahani khoobsurat ban padi hai!
Post a Comment