आख़री रस्म । (गीत)
आख़री रस्म है बाक़ी, साथ तो निभा दीजिए ।
अंतरा-१.
अंदाज़ निराले हैं आप के, रोने के आज भी..!!
शक्ल छुपाकर ताल में, न आज तो हँसा कीजिए..!!
आख़री रस्म है बाक़ी, साथ तो निभा दीजिए ।
( ताल = हथेली )
अंतरा-२.
दिल से निकाला आप ने , रहा न कोई घर मेरा ।
अब नया घर, किसी और का, आप तो बसा लीजिए ।
आख़री रस्म है बाक़ी, साथ तो निभा दीजिए ।
अंतरा-३.
लेते रहे थे इंतहा, तुम अवम दम तक, रिश्तों का ।
बेक़रारी चरम पर है, लाश को बिदा कीजिए ।
आख़री रस्म है बाक़ी, साथ तो निभा दीजिए ।
( अवम = अंतिम; चरम = पराकाष्ठा)
अंतरा-४.
बेसुध नहीं हूँ इतना भी कि, ये न जान पाऊं मैं..!!
रोना-धोना क्या,कहीं भी, मुझ को दबा दीजिए..!!
आख़री रस्म है बाक़ी, साथ तो निभा दीजिए ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०३-१२-२०११.
1 comment:
bahut khoob .badhai
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