गुपचुप ही सही..!! (गीत)
गुपचुप ही सही मुलाक़ात करो ।
यूँ चुप न रहो कोई बात करो ।
निगाहें - करम शफ़क़त कर दो ।
तेरे नूर की ये बरसात करो ।
( शफ़क़त = मेहरबानी)
अंतरा-१.
जीना नहीं है आसान इतना ।
ख़फ़ा भी तो है, ये जहाँ कितना..!!
तुम कहो तो, मैं सब कुछ झेलूँ ।
मेरे नाम कोई जज़बात करो ।
यूँ चुप न रहो कोई बात करो ।
अंतरा-२.
बदला है समाँ, हुई तेज़ धड़कन ।
अब कहाँ रहा, रस्मों का चलन ।
कुछ तुम कहो तो, कुछ मैं भी कहुँ ।
अपने दिल की कोई बात कहो ।
यूँ चुप न रहो कोई बात करो ।
अंतरा-३.
तेरी चाहत पर मैं लूट गया ।
लो, वफ़ा के नाम पर झूक गया ।
गर कहो तो, ज़ख़्मे-जिगर चूमूँ ?
ग़म भूलने के, लम्हात करो ।
यूँ चुप न रहो कोई बात करो ।
अंतरा-४.
बिक गया नसीब, ये फ़क़ीरी में..!!
बदनाम भी हुआ बदहाली में..!!
लो, फिर हारा तुम से, बाज़ी मैं ।
अब जीत की ख़ुशी ख़ैरात करो ।
यूँ चुप न रहो कोई बात करो ।
गुपचुप ही सही मुलाक़ात करो ।
यूँ चुप न रहो कोई बात करो ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०१-१२-२०११.
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,बधाई.
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