ये वंशवाद नहीं है क्या?
उत्तर प्रदेश में नयी सरकार का गठन जोरों पर है .सपा ने बहुमत हासिल किया और सबकी जुबान पर एक ही नाम चढ़ गया माननीय मुख्यमंत्री पद के लिए और वह नाम है ''अखिलेश यादव''.जबकि चुनाव के दौरान अखिलेश स्वयं लगातार माननीय नेताजी शब्द का उच्चारण इस पद के लिए करते रहे जिसमे साफ साफ यही दिखाई दे रहा था कि उनका इशारा कभी अपने पिताजी तो कभी अपनी ओर है क्योंकि माननीय नेताजी तो कोई भी हो सकते हैं पिता हो या पुत्र और फिर यहाँ तो कहीं भी वंशवाद की छायामात्र भी नहीं है दोनों ही राजनीतिज्ञ हैं और दोनों ही इस पद के योग्य भी .वे इस बारे में भले ही कोई बात कहें कहने के अधिकारी भी हैं और फिर उन्हें भारतीय माता की संतान होने के कारण भारतीय मीडिया ने बोलने का हक़ भी दिया है किन्तु कहाँ है वह मीडिया जो नेहरु-गाँधी परिवार के बच्चों के राजनीति में आने पर जोर जोर से ''वंशवाद ''के खिलाफ बोलने लगता है क्या यहाँ उन्हें वंशवाद की झलक नहीं दिखती. अखिलेश को चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया और चुनावों के बाद पिता के दम पर हासिल जीत को पुत्र को समर्पित कर राजनीति में ''अपनी ढपली अपना राग''शुरू कर दिया गया.पर यहाँ कोई नहीं कहेगा कि यहाँ कुछ भी ऐसा हुआ है जिसकी आलोचना स्वयं वे ही करते रहे हैं जो आज यही कर रहे हैं.सबको उनमे युवा वर्ग का भविष्य दिख रहा है सही है चढ़ते सूरज को सलाम करने से कोई भी क्यों चूकना चाहेगा.
शालिनी कौशिक
[KAUSHAL]
5 comments:
aapse sahmat hun .aabhar
MISSION LONDON-KAR DE GOAL
aapse sahmat hun .aabhar
MISSION LONDON-KAR DE GOAL
aapse sahmat hun .aabhar
MISSION LONDON-KAR DE GOAL
स्वीकृत मूल्य और नियम बन चुका है राजनीति में वंश वाद .अब रीस कुनबों में है .रहा सवाल मीडिया का उसे अपनी दूकान चलानी है विज्ञापन लेने हैं .निगमित हो चुका है मीडिया .
शालिनी जी चुनावों में मुलायम सिंह ने नहीं अखिलेश ने मेहनत की थी और उसका फल भी देश ने देख लिया, लिहाजा अखिलेश मुख्यमंत्री के दावेदार है
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