अति महत्वाकांक्षी और बड़बोलेपन का प्रमाण देने वाले योग गुरू रामदेव विवादित हो जाते हैं। उनको जन्म भी वह खुद ही देते हैं। रामलीला मैदान में चल रहे इस बार के आंदोलन में सरकार के प्रति उनका प्रेम भी दिख रहा है। यह वही बाबा हैं जो सरकार के विनाश का सपना देखते आये हैं और जी भरकर कोसते हैं। अब सोनिया गांधी को सोनिया माता कहकर कहते हैं कि बातचीत के लिये उनके दरवाजे खुले हैं। कोई इसे नमस्कार योग, तो कोई पलटयोग बता रहा है। मंच पर लगाये गए पोस्टर से भी वह विवादों में आ गए। मीडिया से तूल न देने का आग्रह किया। दरअसल पोस्टर में बालकृष्ण को महापुरूष बताते हुए पोस्टर के दोनों तरफ भगवान श्री कृष्ण के अलावा क्रमबद्व ढंग से राष्ट्रपिता, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार बल्लभ भाई पटेल, चंद्रशेखर आजाद के बाद बालकृष्ण व उनके बाद शहीद भगत सिंह व वीर शिवाजी आदि के फोटों हैं। पोस्टर पर लिखा गया कि ’जेल आंदोलनकारियों का तीर्थ है। आचार्यजी महान हैं, रोगियों के भगवान हैं, भगवान के वरदान हैं, भ्रष्टाचारी परेशान हैं।’ बाबा ने महापुरूषों का अपमान करते हुए पता नहीं बालकृष्ण की ऐसी तुलना शायद इसलिए कर डाली क्योंकि बालकृष्ण उनकी अरबों का कारोबार करने वाली 34 कंपनियों के डायरेक्टर हैं। फर्जी पासपोर्ट मामले में जेल में बंद बालकृष्ण को जबरन महापुरूष बनाने पर बाबा तुले हैं। अपने कृत्यों से व्यक्ति स्वतः ही महान हो जाता है, लोगों के दिलों में जगह बना लेता है उसके लिये कोई प्रयास करने की जरूरत नहीं है।
पिछली बार अफसोसजनक बात यह रही कि लाखों दिलों में आदर के साथ बसने वाले स्वामी रामदेव ने अपने अनशन की बुनियाद झूठ के मंच पर रखी और नाम दे दिया ‘सत्याग्रह’। शीर्षासन पर बैठे लोगों से यूं तो ऐसी आशा नहीं की जाती। जब बाबा अनसन से पहले ही सरकार से लिखित समझौता कर चुके थे, तो उन्हें अनशन की क्या जरूरत थी। लोगों को गुमराह करने के बजाये उन्हें बता देना चाहिए था। बाबा के निर्णय पर कोई असहमति प्रकट भी नहीं करता। चूंकि सभी तैयारियां हो चुकी थीं। बाबा एक तीर से दो निशाना साधना चाहते थे। एक तो वह भक्तों की नजर में साफ रहना चाहते थे दूसरे सरकार को जनसमर्थन की ताकत दिखाना चाहते थे।
जनता की भावनाओं को छले जाने का सिलसिला पुराना है। नेता यह काम अर्से से करते आ रहे हैं। बाबा ने कुछ नया भी नहीं किया। बेचारी जनता की नियति यही है। संभवतः बाबा खुद को भविष्य में प्रधानमंत्री के रूप में देख रहे थे। उन्होंने मांग शुरू कर दी कि जनता को प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार मिलना चाहिए। सवाल यह कि इससे लाभ किसको? जाहिर है बाबा के भक्त उन्हें ही कहते और बाबा कहते कि अब जनता कह रही है, तो मैं क्या करूं। बाबा की महत्वाकांक्षाओं से संत समाज भी उनसे नाराज रहा है। ऐसे संकेत बाबा फिर दे रहे हैं। भ्रष्टाचार मिटाने का सपना भला किसना नहीं होता, लेकिन बाबा की बातें डंके की चोट पर साफ नहीं होती। अह्म सवालों पर चतुराई से कन्नी काट जाते हैं। या वक्त आने पर बतायेंगे कहकर टाल जाते हैं। आरोप यह कि वह देखते हैं कि बात बन गई, तो ठीक वरना बाद में साफ कर देंगे। बाबा हों या नेता जनता बहुत कुछ जानकार व समझदार हो गई है। जय हो बाबा!
2 comments:
ghatiya writer ki ghatiya post.
ghatiya mansikta ka parichayak yeh lekh aapki ghatiya soch ko v darsata hai.
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