दलित राजनीति को चाहिए एक नयी रैडिकल दिशा
-एस. आर. दारापुरी आईपीएस(से.नि.)एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
अब तक दलित राजनीति/दलित आंदोलन केवल सरकारी नौकरियों में आरक्षण बचाने तक ही सीमित रहा है और दलित नेता सत्ता हासिल करने को ही दलित राजनीति की जीत समझते रहे हैं। उनका लक्ष्य यहीं तक सीमित रहा है। यह सर्विदित है कि अगर आज की पूंजीवादी व्यवस्था में कोई दलित प्रधानमंत्री बन भी जाये तो भी दलितों का उद्धार नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में उद्धार सिर्फ उन दलित नेताओं का होगा जिनको सत्ता मिलेगी और उनकी गिनती कुछ हजार सांसद, विधायक या कुछ बोर्ड चेयरमैन तक सीमित रहेगी। जो दलित प्रवासी मजदूर और भूमिहीन किसान/मजदूर गरीबी का दंश अभी झेल रहे हैं वे तब भी झेलते रहेंगे। उनकी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा. हाँ उनके प्रति होने वाली हिंसा में कुछ कमी जरूर आ सकती है। अत: जब तक व्यवस्था परिवर्तन नहीं होगा ये समस्या बनी रहेगी। उत्तर प्रदेश में मायावती का चार वार मुख्य मंत्री काल इसकी सबसे अच्छी मिसाल है.
संविधान सभा में डॉ आंबेडकर ने कहा था कि बिना राजकीय समाजवादी नीतियों के भविष्य की सरकारें राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक न्याय कैसे सुनिश्चित करेंगी। उनकी आशंका आज सही साबित हो रही है। उन्होंने कहा था कि दलितों के दो दुश्मन हैं: पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद. मगर आज के दलित नेताओं ने तो पूंजीवाद से दोस्ती कर ली है। ऐसे दलित नेताओं से सत्ता पर आसीन पूंजीपतियों और ब्राह्मणवादियों को कोई खतरा नहीं है क्योंकि देश की पूंजी पर उनका कब्जा बना रहेगा और वे पैसे के दम पर देश की नीतियों को निर्धारित करते रहेंगे।
अमरीका का उदाहरण हमारे सामने है जहाँ काले लोगों ने गोरों के हाथों बड़े अत्याचार सहे और इसके खिलाफ संघर्ष किये और जीत की तरफ बढ़े और अंत में उनके सिविल राइटस मूवमेंट के बाद 1964 में बराबरी का अधिकार पाया। मगर इसके बावजूद आज भी उनकी हालत में ज्यादा बदलाव नहीं आया है और अमरीका में आज भी ज्यादातर काले लोग गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इतना ही नहीं 2009 से 2017 तक काले बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने पर भी उनकी गरीबी दूर नहीं हुई और अभी कोरोना महामारी की सबसे अधिक मार उन्हीं पर पड़ रही है जिसके खिलाफ ओबामा ने आवाज़ भी उठाई थी।
डॉ अम्बेडकर ने 1947 में आल इंडिया शैडूल्ड कास्ट्स फेडरेशन की ओर से भावी संविधान में बहुजन समाज के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये संविधान सभा में स्टेट्स एंड माईनौरटीज शीर्षक से संविधान के ड्राफ्ट के रूप में अपना मेमोरेंडम भेजा था जिसकी धारा 4 में उन्होंने सुझाव दिया था कि देश के मुख्य और आधारभूत उद्योग सरकार के पास होने चाहिये और देश की खेती की जमीन का राष्ट्रीयकरण करके उस पर सामूहिक खेती की व्यवस्था होनी चाहिए. अगर ऐसा होता तो हजारों वर्षों से खेती की जमीन पर मालिकाना हक से वंचित भूमिहीन दलित किसानों को भी खेती की जमीन में बराबरी का हक़ मिलता और दलितों को राष्ट्रीय उद्योगों में बराबरी के अवसर मिलते। मगर ऐसा नहीं हुआ और दलितों का शोषण बदस्तूर जारी है. यह सर्विदित है कि जिनका जमीन और पूंजी पर पहले से कब्जा है वही इस पूंजीवादी व्यवस्था का लाभ उठाते आये हैं और उठाते रहेंगे।
अब तो सरकारी उद्योगों का निजीकरण हो जाने से दलितों के आरक्षण के अवसर भी निरंतर सिकुड़ रहे हैं. केरल और बंगाल को छोड़ कर किसी भी राज्य में भूमि सुधार लागू नहीं किए गए हैं जिसके फलस्वरूप आज भी खेती से जुड़े होने के बावजूद 70% दलित भूमिहीन हैं. गाँव में उनकी भूमिहीनता एवं केवल हाथ का श्रम दलितों की सबसे बड़ी कमजोरी है. अतः भूमि सुधार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि पहले थे.
यह भी सही है कि पिछले कुछ सालों में दलितों ने अस्मिता की राजनीति को अपना कर कुछ राजनीतिक सत्ता प्राप्त भी की थी परन्तु वह केवल सत्ता की राजनीति हो कर रह गयी और दलितों की किसी भी समस्या का हल नहीं निकला. उलटे इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि इससे हिंदुत्व की विचारधरा ही मजबूत हुयी और दलितों का बड़ा हिस्सा हिंदुत्व की चपेट में आ गया. आज स्थिति यह है कि लोकतंत्र में यदि दलित कुछ संवैधानिक अधिकार प्राप्त करने की उम्मीद भी कर सकते थे परन्तु अब भाजपा के अधिनायिक्वादी शासन में उनका निरंतर ह्रास हो रहा है. डा. आंबेडकर के राजकीय समाजवाद की जगह अब करोनी पूँजीवाद एवं वित्तीय पूँजी का दबदबा स्थापित हो गया है जिससे न केवल दलित बल्कि देश की बहुत बड़ी आबादी गरीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी एवं शोषण का शिकार होने जा रही है.
अतः इस बात की सखत ज़रुरत है कि वर्तमान दलित राजनीति अस्मिता की राजनीति से मुक्त हो कर एक रैडिकल एजंडा ले कर जनवादी एवं समाजवादी राजनीति को अपनाना होगा और इस दिशा में प्रयासरत राजनीतिक दलों से हाथ मिलाना होगा. हमारी पार्टी आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीऍफ़) इस दिशा में काफी समय से कार्यरत है और वह दलितों/आदिवासियों का भूमि प्रश्न, मजदूरों के अधिकारों एवं किसानों की खेती को लाभकारी बनाने की लडाई सफलता पूर्वक लड़ रही है. अतः आपसे अनुरोध है कि आप अधिक से अधिक संख्या में हमारी पार्टी से जुड़ें.
yogi raj वाह रे योगी के रामराज : रोटी चोरी से और शराब बिक रही है खुलेआम
भाजपा रामराज की बड़ी चर्चा करती है। अपने शासन को रामराज में तब्दील करने का दावा करती है। उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ और उनके समर्थक तो उत्तर प्रदेश में रामराज आने की बात कर रहे हैं। राम के बारे में जो कुछ अध्ययन मेरा रहा है या फिर रामायण में देखा गया कहीं पर भी शराब को बढ़ावा देने का प्रसंग न मैने रामायण में देखा और न ही कहीं पर पढ़ा। चाहे केवट को मित्र बनाना हो य फिर शबरी के झूठे बेरों को खाना हो। या फिर राक्षसों को मारकर ऋषि-मुनियों की मदद करना हो। हर जगह राम ने समर्पण की भावणा दिखाई। लोकतंत्र का उनके राज में इतना बोलबोला था कि लोगों के उनकी पत्नी पर उंगली उठाई तो उन्होंने उन्हें भी वनवास दे दिया। रावण से युद्ध में उन्होंने प्रकृति और मानव जाति का विशेष ध्यान रखा। राम राज में कहीं से भी जनता को परेशान करने की बात कहीं पर भी पढ़ने को नहीं मिलती है।
योगी के रामराज में कोरोना के नाम पर जनता को तो परेशान किया जाता रहा पर पूंजीपतियों के धंधे और शराब माफिया के साथ ही अपने राजस्व का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। लोगों के खाने के लिए रेस्टोरेंट और ढाबे नहीं खुल रहे हैं पर शराब की दुकानें खुलेआम खोल जा रही हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या शराब की दुकान पर इकट्ठा होने पर लोग कोरोना से संक्रमित नहीं होंगे ? खाने के ढाबे पर तो वैसे भी लोग अलग-अलग बैठते हैं। हां ढाबा चलाने वाला गरीब होता है और शराब बेचने वाला अमीर।
नोएडा में कुछ बेबस युवाओं के अनुरोध पर कुछ ढाबे वाले चोरी चुपके खाना बेक रहे हैं। यह मजबूरी उनके सामने योगी सरकार ने की है। हां शराब खुलेआम बिक रही है। प्रदेश में रोजगार राग तो बहुत अलापा जा रहा है पर हो कुछ नहीं रहा है। हां चीन से कंपनियां आने के नाम पर उत्तर प्रदेश के श्रम कानून में बदलाव जरूर कर दिया गया। ऐसा नहीं है कि बस उत्तर प्रदेश में ही ऐसा हो रहा है। लगभग हर प्रदेश का यही हाल है। केंद्र सरकार तो इन सबसे आगे है। दरअसल सरकारों को लोगों की जान से ज्यादा चिंता पूंजीपतियों के धंधे और अपने राजस्व की है।
चरण सिंह राजपूत
योगी के रामराज में कोरोना के नाम पर जनता को तो परेशान किया जाता रहा पर पूंजीपतियों के धंधे और शराब माफिया के साथ ही अपने राजस्व का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। लोगों के खाने के लिए रेस्टोरेंट और ढाबे नहीं खुल रहे हैं पर शराब की दुकानें खुलेआम खोल जा रही हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या शराब की दुकान पर इकट्ठा होने पर लोग कोरोना से संक्रमित नहीं होंगे ? खाने के ढाबे पर तो वैसे भी लोग अलग-अलग बैठते हैं। हां ढाबा चलाने वाला गरीब होता है और शराब बेचने वाला अमीर।
नोएडा में कुछ बेबस युवाओं के अनुरोध पर कुछ ढाबे वाले चोरी चुपके खाना बेक रहे हैं। यह मजबूरी उनके सामने योगी सरकार ने की है। हां शराब खुलेआम बिक रही है। प्रदेश में रोजगार राग तो बहुत अलापा जा रहा है पर हो कुछ नहीं रहा है। हां चीन से कंपनियां आने के नाम पर उत्तर प्रदेश के श्रम कानून में बदलाव जरूर कर दिया गया। ऐसा नहीं है कि बस उत्तर प्रदेश में ही ऐसा हो रहा है। लगभग हर प्रदेश का यही हाल है। केंद्र सरकार तो इन सबसे आगे है। दरअसल सरकारों को लोगों की जान से ज्यादा चिंता पूंजीपतियों के धंधे और अपने राजस्व की है।
चरण सिंह राजपूत
अपराधियों का आखिरी आश्रय स्थल पत्रकारिता
आकाश राय
Akash Rai
akashmj24@gmail.com
हरपालपुर। कालांतर में पञकारिता एक मिशन हुआ करती थी, आज शुद्ध रुप में व्यवसाय बन गई हैं। जहां अखबार की दाे लाइन की खबर से कलेक्टर एसपी का ट्रांसफर हाे जाता था ,आज खबर से पूरा अखबार भर दीजिए चपरासी का ट्रांसफर भी नही करा सकेंगे । वजह आज पञकारिता के नैतिक मूल्यों में जबरदस्त गिरावट आयी हैं, पहले घर - घर नेता हुआ करता था, आज घर -घर में ब्यूरो प्रमुख हैं, जहाँ पत्थर फेकाे किसी पञकार काे ही लगेगा। उसे भले ही पञकारिता की डेफिनेशन न आती हाे, पर पञकार है, कुछ नैासिखिए झाेलाछाप पञकारिता की चकाचौंध में पैसा खर्च कर झूठी शान और अपने काले कारनामाें काे छिपाने वेब चैनल ताे कुछ सैटेलाइट नयूज चैनल लेकर धन्य हुए जा रहे हैं।
शिक्षक, चिकित्सक, पुलिस कर्मी, जवान, रेलवे कर्मी,चपरासी व अन्य कभी कार्ड दिखाकर ये जाहिर नही करते कि मैं फला हूं, पर एक अयोग्य अदना सा पञकार सबसे पहले पञकार बनते ही वाइक में प्रेस लिखाएगा फिर गले में पट्टा डालकर घूमेगा, ग्रुप में कार्ड की फाेटाे सेंड करेगा, थानेदार सीएमओ चिकित्सक काे जन्म दिवस व विदाई पर उपहार भेट कर बधाई देगा। पञकारिता की एबी सीडी न आने वाले धन्य पञकार ग्रुप से खबरें उठाकर अपना नाम जाेड़कर काँपी पेस्ट करेगा, विभाग में सक्रिय दिखने दलाली और मुखिबरी तक की भूमिका निभाकर हेराफेरी से नही चूकेगा, किसी सभा या आयोजन पर माइक आइडी लेकर भीड़ में ऐसे एंट्री करना जैसे देश की सारी जिम्मेदारी इन्हीं महाशय ने संभाल रखी हैं,जब खबरिया चैनल खबर टेलीकास्ट नही कर रहा, ताे किसी की खबर उठाकर अपना नाम लिखकर पञकार बताने से क्या साबित हाेगा, किसे मूर्ख बना रहे, अपने आपको, आज के समय के लाेग बहुत जागरूक है, वह आपके फर्जीबाडे और मूर्खता पर हँसते हैं, अब उसकी योग्यता का आंकलन कर लीजिए।पञकार काे किसी सार्टिफिकेट की जरूरत नही हाेती जनता खुद उसका सार्टिफिकेट हाेती हैं, पञकार की लेखनी बाेलती हैं साहब, कार्ड नही यही उसका साक्षात्कार करा देती है।
भले ही चैनल में एक भी न्यूज टेलीकास्ट न हाे, पर हर जगह हर प्रोग्राम में चैनल की माइक आईडी और गले में पट्टा जरूर देखने काे मिल जायेगा, चैनल वालाें से जब कहा जाता हैं कि खबर क्याें नही टेलीकास्ट कर रहे, ताे चैनल वालाें का जबाव हाेता भई आपकाे किसने कब नियुक्त किया जब आप फला भाई साहब का नाम लेते हैं ताे जबाब मिलता उन्होंने ताे कभी का काम छाेड़ दिया, 10 -20 हजार रुपए ताे गए पानी में अब आईडी और पट्टा ही बचा जिसे गले में लटकाये अपने आपको पञकार कहते फिराेे, चैनल है नही ताे खबर का सवाल ही नही खबर ब्राड कास्ट न हाेने पर अपनी फजीहत से बचने यूट्यूव, वाट्सएप ग्रुप ट्यूटर या फेसबुक मैसेंजर जिसका काेई रजिस्टेशन नही हाेता पर यहां वहां से खबरें उठाकर अपनी साख बचाने और गाैरखधंधे काले कारनामे छुपाने लाेकतंञ के शक्तिशाली चाैथे स्तंभ के पीछे एक अपराधी तबका आ खड़ा हुआ हैं, खतरे की घंटी बज चुकी हैं ।
Akash Rai
akashmj24@gmail.com
बिना लाइसेंस के अरबो रुपये के वारे-न्यारे
केंद्र व राज्य सरकार लुटा रही है जमकर पैसा
बिना लाइसेंस के अरबो रुपये के वारे-न्यारे
महेश झालानी
पूरे देश मे बिना लाइसेंस के टीवी चैनलों द्वारा हर साल अरबो रुपये का खेल खेला जा रहा है । इस षड्यंत्र में देश की नामी गिरामी कंपनियां लिप्त है । टीवी चैनलों को प्रसारण के लिए कानूनी रूप से अप लिंकिंग और डाउन लिंकिंग का वैध लाइसेंस रखना अनिवार्य होता है जिसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी किया जाता है ।
जानकारी में आया है कि अनेक टीवी चैनलों के पास स्वयं का कोई वैध लाइसेंस नही है । ये कतिपय फर्मो से किराए के आधार पर लाइसेंस प्राप्त कर गैर कानूनी कार्यो को बढ़ावा दे रहे है । इस तरह पूरे प्रदेश में फर्जी लाइसेंसों के जरिये अरबो रूपये के विज्ञापन हासिल कर राज्य सरकार की आंखों में धूल झोंकी जा रही है । वस्तुतः जिनके पास स्वयं का अप और डाउन लिंकिंग लाइसेंस नही है, उनको विज्ञापन दिया ही नही जा सकता है ।
उदाहरण के तौर पर कानूनी रूप से वही व्यक्ति वाहन चलाने के लिए सक्षम होता है जिसको परिवहन विभाग की ओर से लाइसेंस जारी किया जाता है । दूसरे के लाइसेंस के आधार पर वाहन चलाना ना केवल गैर कानूनी है बल्कि आपराधिक कृत्य भी है । इसी प्रकार सूचना और प्रसारण मंत्रालय से विधिवत लाइसेंस प्राप्त किये बिना कोई भी कम्पनी, फर्म, संस्था, संगठन आदि टीवी चैनल का प्रसारण नही कर सकता है । यह सब इसलिये अनिवार्य किया गया है ताकि कोई सुरक्षा दीवार को ध्वस्त नही कर सके । साथ ही देश की एकता व अखंडता पर किसी प्रकार की आंच नही आ पाए ।
मैंने सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि बिना वैध लाइसेंस के जिन टीवी चैनलों ने फर्जी तरीके से विज्ञापन हासिल किए है, उनके भुगतान पर अविलम्ब प्रातिबन्ध लगाया जाए । इसके अलावा जिन्होंने गलत तथ्य पेश कर विज्ञापन के नाम पर भुगतान उठाया है, उसकी वसूली की जाए अन्यथा यह प्रकरण न्यायालय में दायर किया जाएगा ।
JOURNALIST MAHESH JHALANI
अब किस दुनिया में जिएं प्रेमचंद के झूरी काछी और हीरा-मोती
जयराम शुक्ल
आज प्रेमचन्द जयंती है। आज के दिन प्रेमचंद बड़ी शिद्दत से याद किए जाते हैं। हमारे यहां एक रिवाज है जिसे न मानना हो उसको पूजना शुरु कर दो।
नेताओं ने ऐसे ही गाँधी को पूजना शुरू कर दिया। फोटो को चौखटे में मढ दिया ताकि वहीं कैद रहें निकले नहीं। साहित्यकारों ने ऐसे ही प्रेमचंद को बना दिया।
प्रेमचन्द का समाज अलगू चौधरी और जुम्मन शेख के पंच परमेश्वर का समाज था, मुँहदेखी और पक्षपात से सर्वथा अलग। आज साहित्यकारिता में चारण-भाँटों या वैचारिक विरोधियों के साथ शाब्दिक व्यभिचारियों का दौर है। बीच का वर्ग सुविधाश्रयी है।
प्रेमचन्द तुलसी की तरह सहज, सरल और तरल थे। हिन्दी जगत में सबसे ज्यादा पढे जानेवाले साहित्य सर्जक। जनजीवन के सबसे ज्यादा करीब और संवेदनशील।
तुलसी ने कागभुशुण्डि -गरुड़ (कौव्वा और बाज) से रामकथा गवा दी, तो प्रेमचंद ने अपनी कहानी दो बैलों की कथा में हीरा..मोती नाम के बैलों से जीवनमूल्यों की स्थापना और मुक्ति के संघर्ष का संदेश दिया।
इन दिनों प्रेमचंद की यह मर्मस्पर्शी कहानी रह रह कर टीसती सी है। यह कहानी पिछली सदी के तीस के दशक की थी। प्रेमचंद को पूंजीवाद के विस्तार और आक्टोपसी अर्थसंस्कृति के धमक की आहट तो थी लेकिन भारतमाता की ग्राम्यवासिनी अर्थव्यवस्था से हीरा मोती को झूरी काछी की थान से बूचडख़ाने तक का सफर करना पड़ेगा इसकी शायद कल्पना भी नहीं थी।
आज देश में गोरक्षा को लेकर उन्माद है। लेकिन ऐसी स्थित क्यों और कैसे बनी व विकल्प क्या है इसपर विचार करने कोई तैय्यार नहीं है। प्रेमचंद के अलगू चौधरी व जुम्मन शेख वाले समाज मे इस उन्माद ने मोब लीचिंग का रूप ले लिया है।
इस देश में भांग के नशे के तरंग की भाँति शब्दों का भी ज्वार भाटा आता है। आवारा लहरें गरीब, मासूम और मजलूम लोगों बहा ले जाती हैं। ऐसा दौर कुदरत के जलजले से भी खतरनाक होता है।
पुराणकथाओं में जब जनजीवन पर संकट आता था तब .भूमि विचारी गो तनुधारी.. ईश्वर से फरियाद करने जाती थी। आज गाय को हिन्सा का निमित्त बना दिया गया। गाय और गोवंश को इस दशा तक पहुंचाने वाले कसाई कौन हैं.?
गाय और गोवंश युगों से हमारी अर्थव्यवस्था और लोकजीवन की धुरी रहा है। भगवान् कृष्ण को इसीलिये गोपाल बनना पड़ा था। आज हमने घर में मंदिर बनाकर गोपालजी की प्राणप्रतिष्ठा तो कर ली और ज्यादा धार्मिक हो गए और गोमाता को सडक़ पर विष्ठा, पन्नी खाकर मरने के लिए और सरहंगों, गुन्डों को गाय के नामपर गुंडागर्दी करने के लिए छोड़ दिया।
गाय और गोवंश को हमारे नीति निर्धारकों ने योजनाबद्ध तरीके से बाहर किया और हमने इसका बढचढकर समर्थन किया। गांधी जी ने ग्रामस्वराज्य की अवधारणा दी। गांव के संसाधनों के वैग्यानिक कौशल के विकास के पक्षधर थे। उनको यह चिंता थी कि यूरोपीय अर्थव्यवस्था का माडल गावों को गुलाम बना देगा। यूरोपीय माडल मशीन की धुरी पर टिका था जिसमें संवेदनाओं के लिए कोई जगह नहीं थी।
हमने गांधी को सिर्फ पूजा उनकी सीख और नसीहतों को तिलांजलि देदी। नेहरू के फोकस में शहरी और मशीनीकृत अर्थव्यवस्था का माडल था। ग्राम-सुराज की अवधारणा को धीमाजहर देकर मारा गया। हरितक्रांति और फिर सन् नब्बे के नरसिंह राव-मनमोहन माडल ने ग्रामस्वराज्य की अर्थी उठाने की दिशा में कदम बढा दिया।
हमारे पारंपरिक कौशल और खेती के पुश्तैनी ग्यान को डंकल जैसे ग्यानियों ने खा लिया। खेतों का दोहन नहीं शोषण शुरू हो गया। गाय बैल खेती से खारिज कर वहां ट्रैक्टर तैनात कर दिए गए।
यह सही है कि हमारे खेतोँ में इतना अन्न नहीं उपजता था पहले पर इतना तो उपजता ही था कि किसानों का गुजारा चल जाता था। देश ने सतसठ अरसठ का अकाल भी देखा पर किसानों ने ऐसी आत्महत्याएं नहीं कीं।
आज खेती गुलाम होगयी है और उसके घटक अप्रसांगिक। इसकी सबसे ज्यादा मार उन मूक पशुओं पर पड़ी है जो किसानों के हमदम थे। गाय को लेकर हल्ला मचाने वाले विकल्प की बात नहीं करते।
निश्चित ही गाय हमारी पवित्र आस्थाओं के साथ जुड़ी है पर वह ससम्मान कैसे बचे इसकी कार्ययोजना बननी चाहिए और ये धर्मप्राण सरकार बना भी रही होगी। मुश्किल यह है कि बछडों और बैलों का क्या होगा। इनकी तो अब कोई उपयोगिता नहीं।
शंकरजी का नंदी होने के नाते यद्यपि बैल भी एक धार्मिक प्रतीक है पर आस्थाओं में इसका वो दर्जा नहीं जो गाय को प्राप्त है। गाय और गोवंश को बचाना है तो सरकार को ठोस कदम बनाना ही होगा।
एक सुझाव यह भी है कि जिस तरह भारतीय खाद्य निगम बना है वैसे ही..भारतीय गोवंश निगम बनाया जा सकता है। सरकार घाटा सहकर भी खाद्य निगम को संचालित करता है ताकि देशवासियों की खाद्यसुरक्षा के साथ ही समर्थन मूल्य के जरिए किसानों का भी हित संरक्षण कर सके। उसी तरह गोवंश निगम में भी गाय बछड़ों को संरक्षित करने की व्यवस्था हो।
किसान यहां गोवंश बेच सके। गौवंश के उत्पादों, दूध, गोमूत्र, गोबर की उपयोगिता का प्रचार प्रसार हो। रोज पढने को मिलता है कि गौमूत्र में इतने गुण हैं। इसमें सोना चांदी पाया जाता है। गाय का दूध अमृत है तो इसका बाजारीकरण क्यों नहीं हो सकता।
जिस देश में बीस रुपये के बोतलबंद पानी और पाँच रुपये के आलू को अंकल चिप्स में बदलकर अरबों. खरबों रुपये का व्यापार किया जा सकता है तो फिर गोवंश के उत्पाद क्यों नहीं.? आखिर यह धर्मप्राण देश है।
गाय के लिए हम मरने मारने पर उतारू हैं तो उसे बचाने के लिए इतना तो कर ही सकते हैं। आज गांधी होते तो अपने ग्राम स्वराज की दुर्दशा देखकर जार जार रोते और प्रेमचंद झूरी काछी के हीरा मोती को बचाने के लिए समूची रचनाधर्मिता दाँव पर लगा देते।
संपर्क.8225812813
मुंशी प्रेमचंद - जो आज भी मौजूं हैं
संजय सक्सेना, लखनऊ
आज (जन्म 31 जुलाई 1880- मृत्यु 08 अक्टूबर 1936) मुंशी प्रेमचंद की जयंती है। पूरा देश उन्हें याद करके हार्दिक नमन कर रहा है। यही वह ‘विरासत’ है जो मुंशी प्रेमचंद की जिंदगी भर की कमाई थी। वर्ना कितने ‘प्रेमचंद’ आए और चले गए किसी का पता ही नहीं चला। हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार, विचारक एवं पत्रकार मुंशी प्रेमचंद किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आप हिन्दी-उर्दू साहित्यकार के ‘हस्ताक्षर’ थ,े हैं और हमेशा रहेंगे। मुंशी का बचपन कठिनाइयों से जरूर बीता था,लेकिन यह कठिनाइयां मंुशी जी का हौसला तोड़ने की बजाए बढ़ाने को मजबूर हो गईं। ऐसा था प्रेमचंद जी का व्यक्तित्व। जब आप बालिग भी नहीं हुए थे तब ही 15 वर्ष की उम्र में आपका विवाह करा दिया गया,जो ज्यादा लम्बा नहीं चल सका। 1906 में आपका दूसरा विवाह शिवरानी देवी से हुआ जो बाल-विधवा थीं। शिवरानी सुशिक्षित महिला थीं, जिन्होंने कुछ कहानियाँ और ‘प्रेमचंद घर में’ शीर्षक पुस्तक भी लिखी। उनकी तीन संताने हुईं-श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। प्रेमचंद ने 1910 में अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर किया और 1919 में अंग्रेजी, फारसी और इतिहास लेकर बी. ए. किया।1919 में बी.ए पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।
बात प्रेमचंद के जन्म स्थान की कि जाए तो आपका जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। आपकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फारसी में हुई। आपने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं।
प्रेमचंद ने 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद आपने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया। मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में वे संपादक पद पर कार्यरत रहे। 1922 में आपने बेदखली की समस्या पर आधारित ‘प्रेमाश्रम’ उपन्यास प्रकाशित किया। 1925 में आपने रंगभूमि नामक वृहद उपन्यास लिखा। 1926-1927 के दौरान आपने महादेवी वर्मा द्वारा संपादित हिंदी मासिक पत्रिका ‘चाँद’ के लिए धारावाहिक उपन्यास के रूप में निर्मला की रचना की। इसके बाद कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि और गोदान जैसी समकालीन कहानियों की रचना की। 1930 में आपने में बनारस से अपना मासिक पत्रिका ‘हंस’ का प्रकाशन शुरू किया। 1932 में आपने हिंदी साप्ताहिक पत्र जागरण का प्रकाशन आरंभ किया।
आपने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। आपने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए प्रेकचंद ने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध, साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, कफन अंतिम कहानी, गोदान अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। 1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाज सुधार आंदोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखंड को ‘प्रेमचंद युग’ कहा जाता है।
कलम के जादूगर प्रेमचंद सिर्फ कहानियां ही नहीं लिखते थे बल्कि वे एक फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिख चुके हैं.साल 1934 में रिलीज हुई इस फिल्म का नाम मिल (मजदूर) था. इस फिल्म को मोहन भवनानी ने डायरेक्ट किया था और इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म को मुंबई की अंजता सिनेटोन ने प्रोड्यूस किया था. इस फिल्म की कहानी को प्रेमचंद ने लिखा था. खास बात ये है कि उन्होंने इस फिल्म में छोटी सी भूमिका भी निभाई थी. ये फिल्म दरअसल एक मील के मालिक के बारे में है. ये इंसान काफी उदार और दयालु होता है लेकिन उसका बेटा उसके उलट निकलता है. वो काफी पैसे उड़ाने वाला होता है और मील के कर्मचारियों के साथ गलत ढंग से पेश भी आता है।
आज (जन्म 31 जुलाई 1880- मृत्यु 08 अक्टूबर 1936) मुंशी प्रेमचंद की जयंती है। पूरा देश उन्हें याद करके हार्दिक नमन कर रहा है। यही वह ‘विरासत’ है जो मुंशी प्रेमचंद की जिंदगी भर की कमाई थी। वर्ना कितने ‘प्रेमचंद’ आए और चले गए किसी का पता ही नहीं चला। हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार, विचारक एवं पत्रकार मुंशी प्रेमचंद किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आप हिन्दी-उर्दू साहित्यकार के ‘हस्ताक्षर’ थ,े हैं और हमेशा रहेंगे। मुंशी का बचपन कठिनाइयों से जरूर बीता था,लेकिन यह कठिनाइयां मंुशी जी का हौसला तोड़ने की बजाए बढ़ाने को मजबूर हो गईं। ऐसा था प्रेमचंद जी का व्यक्तित्व। जब आप बालिग भी नहीं हुए थे तब ही 15 वर्ष की उम्र में आपका विवाह करा दिया गया,जो ज्यादा लम्बा नहीं चल सका। 1906 में आपका दूसरा विवाह शिवरानी देवी से हुआ जो बाल-विधवा थीं। शिवरानी सुशिक्षित महिला थीं, जिन्होंने कुछ कहानियाँ और ‘प्रेमचंद घर में’ शीर्षक पुस्तक भी लिखी। उनकी तीन संताने हुईं-श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। प्रेमचंद ने 1910 में अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर किया और 1919 में अंग्रेजी, फारसी और इतिहास लेकर बी. ए. किया।1919 में बी.ए पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।
बात प्रेमचंद के जन्म स्थान की कि जाए तो आपका जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। आपकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फारसी में हुई। आपने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं।
प्रेमचंद ने 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद आपने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया। मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में वे संपादक पद पर कार्यरत रहे। 1922 में आपने बेदखली की समस्या पर आधारित ‘प्रेमाश्रम’ उपन्यास प्रकाशित किया। 1925 में आपने रंगभूमि नामक वृहद उपन्यास लिखा। 1926-1927 के दौरान आपने महादेवी वर्मा द्वारा संपादित हिंदी मासिक पत्रिका ‘चाँद’ के लिए धारावाहिक उपन्यास के रूप में निर्मला की रचना की। इसके बाद कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि और गोदान जैसी समकालीन कहानियों की रचना की। 1930 में आपने में बनारस से अपना मासिक पत्रिका ‘हंस’ का प्रकाशन शुरू किया। 1932 में आपने हिंदी साप्ताहिक पत्र जागरण का प्रकाशन आरंभ किया।
आपने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। आपने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए प्रेकचंद ने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध, साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, कफन अंतिम कहानी, गोदान अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। 1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाज सुधार आंदोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखंड को ‘प्रेमचंद युग’ कहा जाता है।
कलम के जादूगर प्रेमचंद सिर्फ कहानियां ही नहीं लिखते थे बल्कि वे एक फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिख चुके हैं.साल 1934 में रिलीज हुई इस फिल्म का नाम मिल (मजदूर) था. इस फिल्म को मोहन भवनानी ने डायरेक्ट किया था और इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म को मुंबई की अंजता सिनेटोन ने प्रोड्यूस किया था. इस फिल्म की कहानी को प्रेमचंद ने लिखा था. खास बात ये है कि उन्होंने इस फिल्म में छोटी सी भूमिका भी निभाई थी. ये फिल्म दरअसल एक मील के मालिक के बारे में है. ये इंसान काफी उदार और दयालु होता है लेकिन उसका बेटा उसके उलट निकलता है. वो काफी पैसे उड़ाने वाला होता है और मील के कर्मचारियों के साथ गलत ढंग से पेश भी आता है।
शिक्षा अधिकार कानून 2009 के ठोस क्रियान्वयन और विस्तार पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की चुप्पी आश्चर्यजनक : अंबरीष राय
शिक्षा अधिकार कानून के विस्तार एवं सुनियोजित रोडमैप के बगैर स्कूली शिक्षा के लोकव्यापीकरण (यूनिवर्सलाइजेशन) की बात बेमानी
आरटीई फोरम, नई दिल्ली, 31 जुलाई 2020। राइट टू एजुकेशन फोरम ने विगत छह सालों की कवायद के बाद कल बुधवार को घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 द्वारा शिक्षा में सार्वजनिक निवेश को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6 फीसदी तक यथाशीघ्र बढ़ाने की सिफ़ारिश का स्वागत किया है लेकिन इसके लिए किसी स्पष्ट रूपरेखा के न होने पर चिंता जाहिर की है। न्यूनतम 6 फीसदी बजट की अनुशंसा मशहूर शिक्षाविद दौलत सिंह कोठारी के नेतृत्व में गठित देश के प्रथम शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने तकरीबन छह दशक पहले 1964-66 में ही अपनी रपट में की थी लेकिन हम उसे कभी हासिल नहीं कर पाये। अब जबकि, विगत सालों में शिक्षा के बजट में लगातार कटौती होती रही है और अभी भी यह जीडीपी के 3 फीसदी के ही करीब है तो यह समझना जरूरी है कि अपने इस नीतिगत फैसले को सरकार अमली जामा कैसे पहनाएगी।
एक और अहम बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 द्वारा 3-18 वर्ष के बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा के लोकव्यापीकरण की अनुशंसा है। इस महत्वपूर्ण सिफ़ारिश पर आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अंबरीष राय ने संतोष व्यक्त करने के बावजूद गहरी आशंका व्यक्त करते हुए कहा कि पूर्व-प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक शिक्षा अधिकार कानून का विस्तार किए बगैर यह कैसे संभव होगा? उन्होंने कहा कि मौजूदा शिक्षा नीति बच्चों को अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा के लिए हासिल मौलिक अधिकार के क्रियान्वयन के लिए जवाबदेह शिक्षा अधिकार कानून, 2009 और उसके दायरे में विस्तार को लेकर आश्चर्यजनक रूप से मौन है। यह चुप्पी स्कूली शिक्षा के लोकव्यापीकरण के अहम मसले पर शिक्षा नीति की मंशा को सवालों के घेरे में खड़ा कर देती है।
गौरतलब है कि कस्तूरीरंगन समिति द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्री को सौंपे गए और बाद में सार्वजनिक सुझावों के लिए जारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के मसौदे ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 का विस्तार करते हुए पूर्व-प्राथमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा को अधिनियम के दायरे में शामिल करने का वादा किया था। उस वक़्त नागरिक सामाजिक संगठनों समेत समाज के व्यापक हिस्से ने इसका स्वागत किया था क्योंकि यह स्कूली शिक्षा के लोकव्यापीकरण की दिशा में निश्चय ही एक बड़ा कदम साबित होता। लेकिन, ये बड़ी निराशा की बात है कि अंतिम तौर पर घोषित शिक्षा नीति में पूर्व-प्राथमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा को कानूनी अधिकार बनाने का कोई उल्लेख नहीं है। चूंकि यह शिक्षा नीति बिना कानूनी अधिकार के 3-18 वर्ष के बच्चों की शिक्षा को लोकव्यापी बनाने की बात करती है, इसलिए इस संदर्भ में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए किसी अनिवार्य दिशा-निर्देश या व्यवस्थागत ढांचे की बात भी नहीं है। शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर पर ड्रॉप–आउट की संख्या काफी ज्यादा है और उसके कारण लड़कियों, दलित-आदिवासी समेत सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों एवं शारीरिक-मानसिक अक्षमताओं से जूझ रहे बच्चों के व्यापक हिस्से पर शिक्षा के दायरे से बाहर होने का खतरा मँडराता रहता है। शिक्षा नीति को इस तथ्य पर गौर करने की जरूरत थी कि मौजूदा शिक्षा अधिकार कानून, 2009 सैकड़ों सालों के संघर्ष के बाद हासिल एक कानून है जो शिक्षा नीतियों द्वारा घोषित प्रतिबद्धताओं का उच्चतम स्तर था और अब आम जनता के हक में और शिक्षा के दायरे से बाहर करोड़ों बच्चों को स्कूलों से जोड़ने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाने की जरूरत थी।
अंबरीष राय ने एक और महत्वपूर्ण विसंगति की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहा कि शिक्षा नीति में कक्षा 6 से छात्रों का व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू करने की बात है जिसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। यह बच्चों को श्रम बाजार में धकेलने की तैयारी है। जो कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चे हैं वे कौशल उन्नयन के नाम पर कुछ अक्षर-ज्ञान सीख कर शिक्षा के व्यापक उद्देश्यों से दूर हो जाएंगे।
हालांकि, आरटीई फोरम ने लड़कियों की भागीदारी को बढ़ावा देने और स्कूली शिक्षा को पूरा करने के लिए “जेंडर इंक्लूजन फंड” के निर्माण की सराहना की है। नीति में उल्लिखित रट्टामार पढ़ाई की बजाय वैचारिक समझ पर जोर देने और रचनात्मकता एवं समालोचनात्मक चिंतन-प्रक्रिया (क्रिटिकल थिंकिंग) को प्रोत्साहन की बात भी ठीक लगती है लेकिन मुकम्मल तौर पर देखें तो इस बहुप्रतीक्षित शिक्षा नीति के भीतर इन आयामों को बढ़ावा देने के व्यापक संकेतों का अभाव भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है।
इस शिक्षा नीति ने डिजिटल शिक्षा पर खूब जोर दिया गया है। इस संदर्भ में आरटीई फोरम ने आशंका जताई कि ऐसा कोई भी कदम समाज में पहले से ही मौजूद विभेदीकृत और बहुपरती शिक्षा की कड़ी में इजाफा करते हुए असमानताओं को और बढ़ावा देगा। फिलहाल देश में डिजिटल शिक्षा से व्यापक आबादी समूहों को जोड़ने के लिए पर्याप्त बुनियादी संरचना नहीं है। कोविड-19 महामारी के इस भयावह दौर ने तो स्पष्ट दिखा दिया है कि हाशिए पर मौजूद 70% से अधिक बच्चे किस तरह से डिजिटल दुनिया की ऑनलाइन कक्षाओं और शिक्षा-बाजार से बाहर हैं।
यह शिक्षा नीति कल्याणकारी स्कूलों और सार्वजनिक-निजी साझेदारी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की वकालत करती है जो दरअसल, शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थानों व कॉर्पोरेट घरानों के प्रवेश की घोषित तौर पर मुनादी करता है। सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था के लिए ये संकेत चिंताजनक हैं जो समावेशी और हर बच्चे तक शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित करने के बरक्स शिक्षा और इस प्रकार समाज में मौजूद असमानताओं को और तेजी से आगे बढ़ाने के रास्ते खोलता है।
आरटीई फोरम ने याद दिलाया कि यह नीति समान स्कूल प्रणाली (कॉमन स्कूल सिस्टम) पर बिलकुल मौन है, जिसे पहली बार कोठारी आयोग (1964-66) द्वारा अनुशंसित किया गया था और जिसकी पुष्टि 1968 एवं 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों एवं 1992 की संशोधित नीति में की गई थी। इस संदर्भ में अंबरीष राय ने ज़ोर देकर कहा, "मौजूदा स्कूली व्यवस्था के भीतर रचे-बसे भेदभाव को दूर करने का एकमात्र तरीका यही है कि देश में एक कॉमन स्कूल सिस्टम (सीएसएस) की शुरूआत हो, जो देश के सभी बच्चों के लिए समान गुणवत्ता की शिक्षा सुनिश्चित करेगा। 34 साल के लंबे अरसे के बाद आए इस अहम शिक्षा दस्तावेज़ से इस शब्दावली तक का गायब हो जाना वाकई आश्चर्यजनक है।“
मित्ररंजन
मीडिया समन्वयक,
आरटीई फोरम
संपर्क : 9717965840
rajya sabha television ने make-up के सामान पर बहाया tax payers का लाखो रूपया
मै आपको बताना चाहूँगी कि rajya sabha television मे महंगे beauty parlour की तर्ज पर make-up के सामान पर आम जनता के tax का लाखो रूपया बहाया जा रहा है और उससे भी संगीन बात ये है कि कैमरे के सामने आने वालों को make-up पोत के रंगभेद का brand ambassador बनाया जाता है। या कहें कि आम जनता की कमाई का पैसा बहाया जा रहा है ताकि कुछ लोग अपने असली चेहरे छुपा सकें। अगर इस बाबत आप ज्यादा जानना चाहते हो तो आपको एक RTI दायर करनी होगी जिसमे नीचे दी गई दो बाते पूछनी होगी:
a- rajya sabha television मे किस तारीख से make-up का सामान मँगाया जा रहा है?
b- rajya sabha television मे make-up का सामान खरीदने पर हर महीने tax payers का कितना रूपया खर्च होता है और उस पर शुरुआत से अब तक हर साल कितना खर्चा हुआ है?
इन सवालो के जवाब मे जो आंंकणे मिलेंगे उससे आपको पता लग जाएगा कि किस तरह सिर्फ make-up के सामान पर आम जनता के tax के लाखो रूपयो को यू ही फिजूल बहाया जा रहा है। मेरी जानकारी में FY 2019-2020 में ही make-up का सामान खरीदने पर 2 लाख से ज्यादा रूपया खर्च किया गया था। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि rajya sabha television मे काम पर कम और रंगभेद को बढ़ावा देने पर ज्यादा जोर रहता है। देश मे आम लोगो के पास खाने को रोटी और सर पर छत नही है, इतने सारे लोगो की नौकरिया जा रही है और कुछ चुनिंदा लोग सालाना लाखो रूपयों का make-up पोत कर कैमरे के सामने अभिनय कर रहे है और ये जता रहे हैं कि समाज में केवल गोरे रंग वाले व्यक्ति का ही बोलबाला होता है और अगर चमड़ी का रंग गहरा हो तो उसका कोई भी मोल नहीं। मै rajya sabha television मे ही नौकरी करती हूँ इसलिए अपनी पहचान जाहिर नही कर सकती। आपसे request है कि अगर RTI का जवाब मिलने के बाद आपको ठीक लगे तो आप आम जनता को इस फिजूलखर्ची के बारे मे जरूर बताए।
Whistle Blower
whistle1857blower@gmail.com
IFWJ Protests Appointment of Sanjay Gupta to the Prasar Bharati Board
Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) has protested to the appointment of Sanjay Gupta, the owner-director of the Dainik Jagaran newspaper as one of the members of the Prasar Bharati (Broadcasting Corporation of India) Board for a period of more than five years. Gupta is known for denying wages, victimizing journalists, and no-journalist employees with gay abandon by browbeating and bribing the officials of the different departments. All labour laws are thrown to the winds in his establishment and workers, including journalists, are made to work under the constant fear and the pressure of the management.
IFWJ has pointed out that not long ago Dainik Jagran was indicted for indulging into unfair trade practices and publishing paid news. Further, this newspaper under the stewardship of Gupta has not only failed to pay the due wages to the employees according to Majithia Wage Board’s recommendation but has terminated, transferred, and changed the service conditions of hundreds of employees. Recently, it has closed many units at different publication centres without following the due process of law. Hundreds of journalist and non-journalist employees are running from pillar to post to get justice but the management remains unmoved.
In a statement, the IFWJ Secretary -General Parmanand Pandey has asked the Central Government to annul the appointment of Sanjay Gupta and replace him with any sensitive and respectable person, who can be helpful in framing and shaping the media policy of the Prasar Bharati. The credibility is the essence of media, which can be instilled only by those, who are known for their probity and integrity. Sanjary Gupta, certainly, does not in that category and therefore his induction in the Prasar Bharati will erode its image, said the IFWJ.
Bhagwan Bhardwaj,
Office -Secretary: IFWJ
IFWJ has pointed out that not long ago Dainik Jagran was indicted for indulging into unfair trade practices and publishing paid news. Further, this newspaper under the stewardship of Gupta has not only failed to pay the due wages to the employees according to Majithia Wage Board’s recommendation but has terminated, transferred, and changed the service conditions of hundreds of employees. Recently, it has closed many units at different publication centres without following the due process of law. Hundreds of journalist and non-journalist employees are running from pillar to post to get justice but the management remains unmoved.
In a statement, the IFWJ Secretary -General Parmanand Pandey has asked the Central Government to annul the appointment of Sanjay Gupta and replace him with any sensitive and respectable person, who can be helpful in framing and shaping the media policy of the Prasar Bharati. The credibility is the essence of media, which can be instilled only by those, who are known for their probity and integrity. Sanjary Gupta, certainly, does not in that category and therefore his induction in the Prasar Bharati will erode its image, said the IFWJ.
Bhagwan Bhardwaj,
Office -Secretary: IFWJ
आज समाज अखबार व इंडिया न्यूज चैनल में भी कोरोना लील रहा नौकरियां
कोरोना काल ने अखबार मालिकों के हाथ में एक ऐसा ब्रह्म अस्त्र दे दिया है जिसे अखबार मालिक अपने कर्मचारियों पर अंधाधुंध चला रहे हैं। देश भर के अखबार मालिक अपने कर्मचारियों की बलि लेने में अब कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। ताजा मामला पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के बेटे कार्तिक शर्मा के अखबार ‘आज समाज’ और टीवी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में कार्यरत कर्मचारियों के कत्लेआम का है। आज समाज की अंबाला युनिट के कर्मचारियों को जहां पिछले तीन चार महीने से सैलरी नहीं मिल रही है। वहीं मैनेजमेंट ने उनकी सैलरी में 50 प्रतिशत की कटौती भी कर दी है।
मैनेजमेंट के उच्चपदस्थ सूत्रों की माने तो यह कटौती मार्च महीने से ही लागू कर दी गई है। इसी के साथ पूरे हरियाणा में फैले आज समाज अखबार के रिपोर्टस और स्टिंगर को मुफ्त में काम करने के लिए मौखिक रूप से यह कह दिया है कि अब मैनेजमेंट सैलरी नहीं दे पाएगा, काम करना है तो मुफ्त में करो। साथ ही विज्ञापन की उगाही करो और अपना हिस्सा ले जाओ। यही नहीं अंबाला युनिट में डेस्क पर कार्य करने वाले कई कर्मचारियों और मार्केटिंग से जुडे लोगों को भी घर बैठा दिया गया है। इसी के साथ चंडीगढ़ ब्यूरो ऑफिस में भी पैकिंग शुरू हो गई है। सेक्टर-26 स्थित चैनल और अखबार के कार्यालय को बंद कर दिया गया है, यहां का फर्नीचर व आदि सामान अंबाला युनिट में भेजा जा रहा है। चंडीगढ़ में अब सिर्फ नाम का ही आफिस सेक्टर-17 में बनाया है। यहां भी रिपोर्टस और मार्केटिंग से जुडे लोगों को घर बैठा दिया गया है और यहां तैनात आईटीवी नेटवर्क के संपादक को दिल्ली आफिस अटैच कर दिया गया है।
गौरतलब है कि हरियाणा का नम्बर वन अखबार आज समाज की अंबाला, हिसार और दिल्ली युनिट के दर्जनों कर्मचारियों ने मजीठिया की मांग को लेकर अंबाला, हिसार और दिल्ली की अदालतों में मुकदमें कर रखे हैं। इसी के साथ ही सैलरी न मिलने पर कुछ और लोग भी मुकदमें की तैयारी कर रहे थे। ऐसे में मैनेंजमेंट ने कोरोना के नाम पर लोगों को नौकरी से ही हटाना शुरू कर दिया है। वहीं कार्तिक शर्मा के भाई जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा को अच्छे चाल चलन के कारण जेल से रिहा कर दिया गया है। ऐसे में मालिकों की ओर से यह अंदरूनी आदेश आ गया है कि जितने भी मुकदमें मजीठिया व अन्य के चल रहे है उन्हें तत्काल निपटाया जाए। मैनेजमेंट अब मुकदमेंबाजी के चक्कर से दूर होना चाह रहा है। इस संबंध में मजीठिया का केस दायर करने वाले कर्मचारियों से भी मैनेजमेंट की ओर से सम्पर्क शुरू हो गया है। कूल मिलाकर अखबार के कर्मचारियों के लिए यह समय ठीक नहीं चल रहा है। शेष अपडेट के लिए प्रतीक्षा करें।
(चंडीगढ़ से एक पत्रकार की रिपोर्ट)
RIP TARUN BHAI
तरुण हो या वरुण किसी के जाने से कुछ नहीं बदलेगा क्योंकि हमें बदलना होगा
तरुण सिसोदिया ने सुसाइड किया या उनकी हत्या हुई इस बात का जवाब जानने के लिए हमें और आप दोनों को ही इंतजार है। लेकिन, क्या इस केस को भी सुशातं सिंह केस की तरह हम याद रखेंगे और nepotism वर्ड की तरह मीडिया इंडस्ट्री के अंदर मौजूद मोजूद चाटुकारिता वर्ड का विरोध करेंगे।
जी हां मैं ऐसा इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि मैं इस गंदगी में नौकरी कर चुका हूं। हालांकि, मेरी किस्मत अच्छी रही इसलिए मुझे मौका मिला और यहां से निकल गया आज इस गंदगी से दूर हूं और सच कहूं तो खुश हूं। तरुण के साथ मैंने काम किया है नेटवर्क 18 जैसे बड़े संस्थान में जहां उस समय मौजूद थे श्री श्री अलोक कुमार जी। श्री श्री इसलिए लगया क्योंकि यह बहुत बड़े वाले थे उन्होंने शायद ही किसी को छोड़ा हो, जिनसे पैसे न लिए हों और वापिस का तो खैर छोड़ ही दें उनमें से एक तरुण भाई भी थे।
यह बात इस समय बताना इसलिए जरुरी है क्योंकि मीडिया में उन्हीं की नौकरी सलामत रहती है जो चाटते हैं। लेकिन, तरुण उनमें से नहीं था काफी अच्छा लिखता था। लेकिन, इस गंदगी में तो अच्छे-अच्छे नहीं छोड़े तो तरुण भाई क्या थे। भगवान आपकी आत्मा को शांती दे तरुण भाई आप आज एक अच्छी जगह हो और मीडिया हाउस में चैनल या वेब में मौजूद उन दरिंदे एडिटर पर हंस रहे होंगे।
शायद यहां यह कभी नहीं बदलेगा। क्योंकि कुछ लोगों को इसकी अदत हो गई है और कुछ लोग ऐसे ही अपने मालिक को खुश रखना चाहते हैं, जिससे प्रतिभा के धनि लोग आज मीडिया से निकल कर गूगल जैसी कंपनियों में थर्ड पार्टि जॉब कर रहे हैं। खैर यहां कुछ नहीं बदलेगा क्योंकि हम नहीं बदलेंगे। काम से काम रखना हमें नहीं आता इसलिए यह नहीं बदलेगा। 8 घंटे की ड्यूटि के बाद भी हम घर नहीं जाएंगे क्योंकि हमें अपने बिहारी बॉस को दिखाना है कि हम आपके सबसे अच्छे से चाटते हैं। इसलिए कुछ नहीं बदलेगा। बदलना है तो सबसे पहले हमें अपने आप को बदलना होगा।
Ravi Singh
ravsin67@gmail.com
हाई कोर्ट ने तहसीलदार के वसूली नोटिस को ठहराया अवैधानिक
लखनऊ : “हाई कोर्ट ने तहसीलदार के वसूली नोटिस को ठहराया अवैधानिक” यह बात आज एस.आर. दारापुरी पूर्व आईजी एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस को जारी ब्यान में कही है. उन्होंने बताया है कि उन्हें लखनऊ में 19/12/2019 सीएए विरोधी प्रदर्शन के मामले में दिनांक 18/6/2020 को तहसीलदार सदर का राजस्व संहिता, 2006 की धारा 143(3) के अंतर्गत रुo 64,37,637 का दूसरे कई लोगों के साथ वसूली का नोटिस मिला था जिसमें कहा गया था कि यदि मैंने 7 दिन के अन्दर उक्त धनराशी जमा नहीं की तो मेरे विरुद्ध गिरफ्तारी, संपत्ति कुर्की एवं नीलामी की कार्रवाही की जाएगी. इस पर मैंने तहसीलदार को उत्तर दिया था कि वर्तमान में मेरी वसूली पर रोक सम्बन्धी याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट में विचाराधीन है और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोरोना संकट के दौरान सभी प्रकार की वसूली/कुर्की पर 10 जुलाई तक रोक लगा रखी है जो अब 31 जुलाई तक बढ़ गयी है. परन्तु इसके बाद भी 7 दिन के बाद तहसीलदार तथा एसडीएम सदर मेरे घर पर आ कर मेरे परिवार वालों को मुझे गिरफतार करने तथा मेरे घर को सील/कुर्क करने की धमकी देते रहे. यह सर्वविदित है कि मेरी पत्नी काफी लम्बे समय से लीवर, हृदयघात तथा शुगर की मरीज़ है जिसकी हालत अति नाज़ुक है तथा डाक्टरों ने उनको पूरी तरह से बेड रेस्ट दे रखा है परन्तु यह सब बताने के बावजूद भी तहसील के अधिकारी घर आ कर बराबर घुड़की धमकी देते रहे जिससे उनकी हालत में और भी गिरावट आई है.
तहसील के अधिकारियों की उपरोक्त उत्पीडन की कारवाही को देखते हुए मैंने तहसीलदार के उपरोक्त नोटिस को दिनांक 5/7 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी थी क्योंकि उक्त नोटिस ही अवैधानिक है क्योंकि राजस्व संहिता की जिस धारा 143(3) के अंतर्गत उक्त वसूली नोटिस दिया गया है, राजस्व संहिता में उक्त धारा ही नहीं है. यह नोटिस जिस प्रपत्र 36 में दी गयी है उसमें 15 दिन का समय है जिसे मनमाने ढंग से 7 दिन कर दिया गया. मेरी इस याचिका की प्रथम सुनवाई 10/7/2020 को हुयी थी जिसमे कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि वह बताये कि घटना के समय कोई ऐसा कानून था जिसके अंतर्गत ऐसी वसूली की कार्रवाही की जा सकती है. निस्संदेह उक्त तिथि में ऐसा कोई कानून अस्तित्व में नहीं था, केवल मायावती के शासनकाल का एक अवैधानिक शासनादेश है जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है. इस मामले की अगली सुनवाई 14/7 पर कोर्ट ने वसूली नोटिस को अवैधानिक बताते हुए यह आदेश दिया कि क्योंकि उक्त वसूली नोटिस एडीएम नगर, लखनऊ के मुख्य आदेश दिनांकित 17/2/2020 के अनुक्रम में है, जिसे प्रार्थी द्वारा याचिका संख्या 7899/2020 द्वारा डिवीज़न बेंच में चुनौती दी गयी है, अतः इस मामले को भी वहीँ पर उठाया जाये. अब इस मामले की सुनवाई 17/7 को निश्चित है.
इस सम्बन्ध में यह भी उल्लेखनीय है कि राजस्व संहिता की धारा 171(ए) में स्पष्ट कहा गया है कि 65 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है परन्तु मुझे आज भी इसकी धमकी दी जा रहा है. इसके साथ राजस्व संहिता की धारा 177 में स्पष्ट प्रावधान है वसूली हेतु किसी बकायेदार का रिहायशी घर कुर्क नहीं किया जा सकता. परन्तु इसके बावजूद मेरा घर कुर्क करने की बराबर धमकी दी जा रही है. यह भी उल्लेखनीय है कि मेरे विरुद्ध लगाये गए फर्जी मुकदमें में अभी तक किसी भी अदालत में दोष सिद्ध नहीं हुआ है बल्कि अभी तो मुकदमे की सुनवाई भी शुरू नहीं हुयी है परन्तु फिर भी मेरे विरुद्ध उत्पीड़न की उक्त कार्रवाही की जा रही है. इसी तरह की अवैधानिक कार्रवाही अन्य कई व्यक्तियों के खिलाफ भी की गयी है और एक रिक्शा चालक को जेल में निरुद्ध किया गया है.
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मेरे विरुद्ध वसूली की उपरोक्त कार्रवाही पूर्णतया अवैधानिक है तथा यह मेरा राजनीतिक उत्पीडन करने के इरादे से की जा रही है. मैं सरकार को अवगत कराना चाहता हूँ कि मैं पुलिस विभाग में एक ज़िम्मेदार पद पर रहा हूँ और जिस प्रकार से मुझे अपमानित/प्रताड़ित किया जा रहा है वह अति निंदनीय एवं शर्मनाक है. यह उम्मीद की जाती है कि मेरे विरुद्ध जो भी कार्रवाही करनी है वह कानून के अनुसार की जाये और वर्तमान में चल रही अवैधानिक कार्रवाही पर रोक लगे.
एस.आर. दारापुरी आइपीएस (से,नि.)
राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
मोब: 9415164845
नेपालियों को देश से खदेड़ने की धमकी देने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री कंप्यूटर बाबा के खिलाफ एमपी पुलिस नहीं दर्ज कर रही शिकायत
नेपाल सरकार और वहां के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के हाल के कदमों और बयानों के बाद भारत में रह रहे नेपालियों को अलग-अलग तरीकों से निशाना बनाए जाने के समाचार मिल रहे हैं जिससे इस समुदाय में डर का माहौल है. अलग-अलग राज्यों के नेपाली उन पर मनोविज्ञानिक हिंसा (धमकी देने, तंज कसने, चिढ़ाने, उनकी देशभक्ति पर सवाल उठाने) की बात बता ही रहे हैं कि इस बीच 16 जुलाई को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से खबर आई थी कि कुछ गुंडों ने एक नेपाली का सिर मुंडन कर उससे जबरन नेपाल और ओली विरोधी नारे लगवाए. इन गुंडों का मुखिया तरुण पाठक है जो खुद को विश्व हिंदू सेना का प्रमुख बताता है. नेपाली का मुंडन करने के बाद पाठक ने बयान जारी कर अपने कार्यकर्ताओं के कदम का बचाव किया था और धमकी दी कि अगर ओली ने ऐसा बयान दिए तो बनारस में रह रहे नेपालियों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. हालांकि पुलिस ने उनमें से कुछ बदमाशों को पकड़ लिया है लेकिन उनका सरगना पाठक अब तक फरार है.
पाठक के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस के नेता नामदेव त्यागी उर्फ कंप्यूटर बाबा ने भी खुलेआम नेपालियों को भारत से खदेड़ देने की धमकी दी है.
16 जुलाई को मध्य प्रदेश के इंदौर में कंप्यूटर बाबा ने नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए उनका पुतला फूंका और मीडिया को संबोधित करते हुए धमकी दी कि यदि ओली बयान वापस नहीं लेंगे तो भारत में रह रहे नेपालियों को देश से खदेड़ दिया जाएगा. उन्होंने कहा था, “प्रधानमंत्री ओली ने जो वक्तव्य दिया था कि अयोध्या में राम नहीं, नेपाल में राम हैं. जिस ढंग से ओछी हरकत की है. इसलिए मध्य प्रदेश के संतों ने इंदौर में एक पुतला बनाया प्रधानमंत्री ओली का और हम लोगों ने उन पर जूते बरसाए और उनका पुतला दहन किया और संदेश दिया है कि नेपाल के प्रधानमंत्री आप अपने वक्तव्य को वापस लें अन्यथा पूरा संत समाज सड़कों पर उतरेगा और यदि आपने नहीं कहा अयोध्या में ही राम हैं, तो जितने नेपाली हैं भारत में सारे नेपालियों को खदेड़ दिया जाएगा, नेपाल भेज दिया जाएगा. यहां रोटी खा रहे हैं, कमा रहे हैं और बात नेपाल की कर रहे हैं.”
कंप्यूटर बाबा के इस बयान से भारत में रह रहे नेपालियों का डर बढ़ गया है क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है कि बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के मंत्री रहे नेता ने खुले आम “नेपालियों को खदेड़ने” की बात की है. कंप्यूटर बाबा को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों और कांग्रेस पार्टी ने प्रभावशाली नेताओं, दिगविजय सिंह और कमलनाथ, का खासमखास माना जाता है. जब तक एमपी में कमलनाथ की सरकार थी त्यागी बहुत शक्तिशाली माने जाते थे.
अप्रैल 2018 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कंप्यूटर बाबा को कैबिनेट बनाया था लेकिन छह महीने बाद ही कंप्यूटर बाबा चौहान से नाराज होकर कांग्रेस खेमे में चले गए. उन्होंने आरोप लगाया था कि चौहान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े साधुओं को संरक्षण देते हैं.” बाद में कंप्यूटर बाबा ने प्रदेश भर में घूम-घूम कर साधुओं को कांग्रेस के पक्ष में करने में बड़ी भूमिका निभाई थी. जब प्रदेश में कमलनाथ की सरकार बनी तो बतौर ईनाम उन्हें नर्मदा नदी न्यास बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया. फिलहाल वह मध्य प्रदेश की 24 विधानसभा सीटों में होने जा रहे उपचुनावों में लोकतंत्र बचाओ यात्रा निकालने की तैयारी में लगे हैं. ये सीटें वे हैं जिनसे ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने पर इस्तीफा दिया था.
लेकिन कंप्यूटर बाबा के नेपालियों के खिलाफ संगीन बयान के बावजूद मध्य प्रदेश में पुलिस उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर रही है.
जबलपुर हाई कोर्ट के वकील ऋषि राज पांडे ने बाबा के खिलाफ एफआईआर लिखवाने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज नहीं की. ऋषि ने मुझे फोन पर बताया कि उन्होंने 22 जुलाई को शिकायत दर्ज कराने की कई बार कोशिशें कीं लेकिन अंतः “पुलिस ने एफआईआर दर्ज ना कर सिर्फ आवेदन ही लिया है.” ऋषि ने अपनी शिकायत में, जिसकी कॉपी रिपोर्ट के साथ है, लिखा है, “(कंप्यूटर बाबा ने) बयान दिया है कि श्री राम जन्म स्थान के संबंध में जो बयान नेपाली पीएम ने दिया है यदि उसे वह वापस नहीं लेते हैं एवं क्षमा प्रार्थना नहीं करते हंं तो वह भारत में रह रहे संपूर्ण नेपाली समाज के व्यक्तियों को यहां से खदेड़ देंगे एवं उन्हें यहां रहने नहीं देंगे. एक भी नेपाली समुदाय को भारत में रहने नहीं दिया जाएगा एवं उन्हें यहां से खदेड़ दिया जाएगा.”
शिकायत में आगे लिखा है, “कंप्यूटर बाबा का यह वक्तव्य अत्यंत घृणास्पद है एवं भारत में रह रहे नेपाली मूल वंश के भारतीय नागरिकों एवं नेपाली प्रवासियों को भयकारित करने वाला है एवं उन्हें आतंकित करता है. कंप्यूटर बाबा का यह बयान सोशल मीडिया में प्रसारित हो रहा है जिससे नेपाली मूल वंशीय भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को गंभीर आसन्न संकट उत्पन्न हो गया है.” शिकायत में आगे लिखा है, “कंप्यूटर बाबा के प्रदेश में तथा इस जिले में कई फॉलोअर्स हैं जो उनका अनुसरण करते हैं, जो इस प्रकार उनके बहकावे में आकर किसी अप्रिय घटना को अंजाम दे सकते हैं.” उन्होंने उल्लेख किया है कि इस प्रकार का वक्तव्य भारत नेपाल मैत्रीपूर्ण संबंधों को खराब करने वाला है और भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है. ऋषि ने शिकायत में निवेदन किया है कि कंप्यूटर बाबा के खिलाफ “आईपीसी की सुसंगत धाराओं जैसे, धारा 124ए, 153, 153बी (1) सी, 505, 506 एवं अन्य सुसंगत धाराओं में कंप्यूटर बाबा उर्फ स्वामी रामदेव के विरुद्ध मामला पंजीबद्ध कर उसे गिरफ्तार करने का कष्ट करें.”
ऋषि ने मुझे बताया कि वह खुद प्रैक्टिसिंग लॉयर हैं लेकिन उनकी शिकायत नहीं ली गई. उन्होंने बताया कि पुलिस ने उनसे कहा, “आप इन मामलों में क्यों पड़ते है वे बड़े लोग है.” पुलिस ने उनसे यह भी कहा, “पहले हम जांच करेंगे फिर आगे देखते है क्या होता है?” जब मैंने पूछा कि उनको क्या लगता है कि शिकायत क्यों नहीं दर्ज की जा रही है तो उन्होंने कहा, “अभी तक तो मैं यही समझ पाया हूं कि बाबा काफी रसूखदार हैं जो प्रत्क्ष्य सबूत होते हुए भी उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई.”
ऋषि ने बताया कि नामदेव का बयान भारत में रह रहे नेपालियों के बारे में उनकी कमजोर समझ को भी दर्शाता है. उन्होंने कहा, “नेपाली कई पढ़ियों से यहां रह रहे हैं. कई तो भारत की आजादी के पहले से रह रहे हैं.” उन्होंने बताया मध्य प्रदेश में रह रहे नेपाली भाषी समुदाय की सामाजिक दशा, खासतौर पर कानून के विषय में, बाकी समुदायों के वनिस्पद बहुत अच्छी नहीं है और भारतीय राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व बिल्कुल नहीं हैं.” ऋषि ने बताया कि वह स्वयं नेपाली मूल के हैं और उनके परिवार के लोग अलग-अलग क्षेत्रों में भारत की सेवा कर रहे हैं. उनके परिवार के कई लोग भारतीय सेना में भी रहे हैं.
बिष्णु शर्मा
simplyvishnu2004@yahoo.co.in
सरकार द्वारा घर वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को राशन सुविधाएँ उपलब्ध कराये जाने का कटु सत्य
सेवा में,
प्रिय यशवंत सिंह भाई ,
एडिटर भड़ास4मीडिया |
विषय : सरकार द्वारा घर वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को राशन सुविधाएँ उपलब्ध कराये जाने का कटु सत्य
यशवंत सिंह भाई ,
उपरोक्त लिखित विषय पर मैं इस शिकायत पत्र और उसके निस्तारण के माध्यम से ये बताना चाहता हूँ कि सरकार की करनी व कथनी में कितना अंतर् है | हमारे गाँव में एक परिवार जो कि गोवा रहता था इस कोरोना महामारी में अपने गाँव लौट आया | घर में रहने की व्यवस्था न होने की वजह से गाँव से 1 KM. बाहर उन्होंने किसी दूसरे के मकान में रहने की व्ववस्था की | बेहद गरीब परिवार है , खीती बाड़ी है नहीं | किसी ने इनकी समस्या के बारे में बताया की सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं मिला और बिचारे गरीब आदमी हैं |
मैं जाकर इन लोगों से मिला इनकी फोटो ली और इनकी समस्या को PGPORTAL पर माननीय मुख्यमंत्री व माननीय प्रधानमंत्री को डाली | जिसकी कॉपी मैंने ट्विटर पर @CMOFFICE , @UPGOVT एवं @DMBALIA को भी ट्वीट की मगर कोई रिस्पांस नहीं मिला | कल जब मुझे मोबाइल पर मेसेज मिला की आपकी शिकायत का निस्तारण कर दिया गया है। मैंने स्टेटस चेक किया। PGPORTAL पर की हुई शिकायत का शिकायत संख्या दूसरी होती है। राज्य सरकार को ट्रांसफर किया जाता है तो शिकायत संख्या बदल जाती है और जनसुनवाई पोर्टल जाती है |
भवदीय,
सिंहासन चौहान,
मोबाइल 9839932064 / 7905831166
प्रिय यशवंत सिंह भाई ,
एडिटर भड़ास4मीडिया |
विषय : सरकार द्वारा घर वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को राशन सुविधाएँ उपलब्ध कराये जाने का कटु सत्य
यशवंत सिंह भाई ,
उपरोक्त लिखित विषय पर मैं इस शिकायत पत्र और उसके निस्तारण के माध्यम से ये बताना चाहता हूँ कि सरकार की करनी व कथनी में कितना अंतर् है | हमारे गाँव में एक परिवार जो कि गोवा रहता था इस कोरोना महामारी में अपने गाँव लौट आया | घर में रहने की व्यवस्था न होने की वजह से गाँव से 1 KM. बाहर उन्होंने किसी दूसरे के मकान में रहने की व्ववस्था की | बेहद गरीब परिवार है , खीती बाड़ी है नहीं | किसी ने इनकी समस्या के बारे में बताया की सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं मिला और बिचारे गरीब आदमी हैं |
मैं जाकर इन लोगों से मिला इनकी फोटो ली और इनकी समस्या को PGPORTAL पर माननीय मुख्यमंत्री व माननीय प्रधानमंत्री को डाली | जिसकी कॉपी मैंने ट्विटर पर @CMOFFICE , @UPGOVT एवं @DMBALIA को भी ट्वीट की मगर कोई रिस्पांस नहीं मिला | कल जब मुझे मोबाइल पर मेसेज मिला की आपकी शिकायत का निस्तारण कर दिया गया है। मैंने स्टेटस चेक किया। PGPORTAL पर की हुई शिकायत का शिकायत संख्या दूसरी होती है। राज्य सरकार को ट्रांसफर किया जाता है तो शिकायत संख्या बदल जाती है और जनसुनवाई पोर्टल जाती है |
भवदीय,
सिंहासन चौहान,
मोबाइल 9839932064 / 7905831166
एसपी ने कहा : पीड़ित पत्रकारों को मिलेगा न्याय
गोपालगंज। जिला के भोरे प्रखंड के भोरे थाना परिसर में 26 जुलाई समाचार संकलन के दौरान भोरे थानाध्यक्ष सुभाष सिंह ने दो पत्रकारों के साथ थाना परिसर में ही गाली गलौज कर दुर्व्यवहार किया था। नेशनल प्रेस यूनियन के प्रदेश मीडिया प्रभारी चंद्रहाश कुमार शर्मा ने बताया कि उक्त मामले को संज्ञान में लेते हुए यूनियन ने एसपी मनोज तिवारी को ज्ञापन देकर दोषी थानेदार के खिलाफ कानूनी करवाई की मांग की।
एसपी मनोज कुमार तिवारी ने बताया कि इस मामले की जांच की जिम्मेवारी हथुआ एसडीपीओ अशोक कुमार चौधरी को दी गई है । मामले की जांच पड़ताल की जा रही है। अगर थानेदार दोषी पाये तो कानूनी कार्रवाई जरूर की जाएगी। हर हाल में देश के चौथे स्तंभ के पत्रकारों को न्याय मिलेगा।
वहीं, प्रदेश मीडिया प्रभारी श्री शर्मा ने इस मामले में नेशनल प्रेस यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष शैलेश कुमार पांडेय ने बताया कि एसपी साहब ने न्याय का भरोसा दिया है। यूनियन को पूरा विश्वास है कि पत्रकारों के साथ न्याय होगा। अगर, शुक्रवार तक दोषी थानेदार के खिलाफ करवाई नहीं होती है तो शनिवार को सभी पत्रकार एसपी आवास के सामने अनशन पर बैठने के लिए मजबूर होंगे। इस अवसर पर यूनियन के जिलाध्यक्ष अरविंद सिंह , जिला उपाध्यक्ष आशुतोष तिवारी, हथुआ अनुमंडल अध्यक्ष शक्ति सिंह, अजीत जयतिलक, ठाकुर पवन सिंह, भोजपुरिया बयार के एंकर विशाल शाही, फोटोग्राफर डीके यादव सहित संगठन के ढाई दर्जन सदस्य मौजूद थे।
आपका
चंद्रहाश कुमार शर्मा
प्रदेश मीडिया प्रभारी,
नेशनल प्रेस यूनियन, बिहार
एसपी मनोज कुमार तिवारी ने बताया कि इस मामले की जांच की जिम्मेवारी हथुआ एसडीपीओ अशोक कुमार चौधरी को दी गई है । मामले की जांच पड़ताल की जा रही है। अगर थानेदार दोषी पाये तो कानूनी कार्रवाई जरूर की जाएगी। हर हाल में देश के चौथे स्तंभ के पत्रकारों को न्याय मिलेगा।
वहीं, प्रदेश मीडिया प्रभारी श्री शर्मा ने इस मामले में नेशनल प्रेस यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष शैलेश कुमार पांडेय ने बताया कि एसपी साहब ने न्याय का भरोसा दिया है। यूनियन को पूरा विश्वास है कि पत्रकारों के साथ न्याय होगा। अगर, शुक्रवार तक दोषी थानेदार के खिलाफ करवाई नहीं होती है तो शनिवार को सभी पत्रकार एसपी आवास के सामने अनशन पर बैठने के लिए मजबूर होंगे। इस अवसर पर यूनियन के जिलाध्यक्ष अरविंद सिंह , जिला उपाध्यक्ष आशुतोष तिवारी, हथुआ अनुमंडल अध्यक्ष शक्ति सिंह, अजीत जयतिलक, ठाकुर पवन सिंह, भोजपुरिया बयार के एंकर विशाल शाही, फोटोग्राफर डीके यादव सहित संगठन के ढाई दर्जन सदस्य मौजूद थे।
आपका
चंद्रहाश कुमार शर्मा
प्रदेश मीडिया प्रभारी,
नेशनल प्रेस यूनियन, बिहार
cksharmamedia@gmail.com
प्रेस रिलीज
29.7.20
धनगर के नाम पर धांगर जाति के अधिकार का हनन बंद करे सरकार
सचिव भारत सरकार तथा मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश को भेजा गया शिकायती पत्र - आईपीऍफ़
इलाहबाद उच्च न्यायाल में याचिका दाखिल करेगी आईपीऍफ़
इससे न केवल धांगर बल्कि उत्तर प्रदेश के पूरे दलित वर्ग के अधिकारों का हनन हो रहा है. यह ज्ञातव्य है कि धांगर जाति केवल सोनभद्र जिले में ही रहती है परन्तु उसके नाम पर पच्छिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा से जुड़े पाल गडरिया जाति के धनगर गोत्र वाले लोग अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र ले कर दलित वर्ग के अधिकारों का हनन कर रहे हैं. आईपीऍफ़ पिछले 3 साल से इसका विरोध कर रहा है तथा इसके विरुद्ध मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश तथा भारत सरकार को कई शिकायती पत्र भेज चुका है परन्तु यह अवैधानिक कार्रवाही नहीं रुक रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री इसको रोकना नहीं चाहते हैं. हद तो यह है इस सम्बन्ध में शासनादेश सम्बंधित विभाग से जारी न हो कर मुख्य मंत्री कार्यालय से सीधे जारी किये जा रहे हैं.
यह उल्लेखनीय है कि यह मामला 2018 में इलाहबाद हाई कोर्ट पहुंचा था जिस पर कोर्ट ने आदेश दिया था कि जाति प्रमाण पत्र संविधान की सूची में अंकित अनुसूचित जातियों को ही दिया जाये. इस पर भारत सरकार ने भी उत्तर प्रदेश सरकार को संविधान की सूचि में अंकित अनुसूचित जातियों को ही अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया था परन्तु उत्तर प्रदेश की सरकार जो कानून के राज में विश्वास नहीं रखती है, अभी भी धांगर जाति के नाम के अंग्रेजी हिज्जों की आड़ लेकर अपात्र लोगों को जाति प्रमाण पत्र जारी करवा रही है. इस सम्बन्ध में कल आईपीऍफ़ की तरफ से फिर एक शिकायती पत्र सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार , नई दिल्ली तथा मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश को भेज कर उत्तर प्रदेश सरकार के उपरोक्त अवैधानिक कार्य पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है
इसके साथ ही आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट उत्तर प्रदेश सरकार के इस अवैधानिक कार्य के विरुद्ध इलाहबाद हाई कोर्ट में याचिका भी दाखिल करने जा रहा है.
एस.आर.दारापुरी,
पूर्व आई जी एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता,
आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
इलाहबाद उच्च न्यायाल में याचिका दाखिल करेगी आईपीऍफ़
लखनऊ :“धनगर के नाम पर धांगर जाति के अधिकार का हनन बंद करे सरकार” यह बात आज एस.आर.दारापुरी, पूर्व आई जी एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस को जारी ब्यान में कही है. उन्होंने कहा है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार की साजिश से उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की धांगर जाति के अंग्रेजी में DHANGAR हिज्जे का लाभ उठाकर पच्छिमी उत्तर प्रदेश की पाल गडरिया पिछड़ी जाति की धनगर गोत्र वाली उपजाति को अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र जारी किया जा रहा है. इसका लाभ उठा कर भाजपा से जुड़े एस पी सिंह बघेल अनुसूचित जाति का गलत जाति प्रमाण पत्र जारी करा कर पहले अनुसूचित जाति की आरक्षित सीट से विधायक/ मंत्री बने तथा अब आरक्षित सीट से ही सांसद बने हुए हैं.
इससे न केवल धांगर बल्कि उत्तर प्रदेश के पूरे दलित वर्ग के अधिकारों का हनन हो रहा है. यह ज्ञातव्य है कि धांगर जाति केवल सोनभद्र जिले में ही रहती है परन्तु उसके नाम पर पच्छिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा से जुड़े पाल गडरिया जाति के धनगर गोत्र वाले लोग अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र ले कर दलित वर्ग के अधिकारों का हनन कर रहे हैं. आईपीऍफ़ पिछले 3 साल से इसका विरोध कर रहा है तथा इसके विरुद्ध मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश तथा भारत सरकार को कई शिकायती पत्र भेज चुका है परन्तु यह अवैधानिक कार्रवाही नहीं रुक रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री इसको रोकना नहीं चाहते हैं. हद तो यह है इस सम्बन्ध में शासनादेश सम्बंधित विभाग से जारी न हो कर मुख्य मंत्री कार्यालय से सीधे जारी किये जा रहे हैं.
यह उल्लेखनीय है कि यह मामला 2018 में इलाहबाद हाई कोर्ट पहुंचा था जिस पर कोर्ट ने आदेश दिया था कि जाति प्रमाण पत्र संविधान की सूची में अंकित अनुसूचित जातियों को ही दिया जाये. इस पर भारत सरकार ने भी उत्तर प्रदेश सरकार को संविधान की सूचि में अंकित अनुसूचित जातियों को ही अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया था परन्तु उत्तर प्रदेश की सरकार जो कानून के राज में विश्वास नहीं रखती है, अभी भी धांगर जाति के नाम के अंग्रेजी हिज्जों की आड़ लेकर अपात्र लोगों को जाति प्रमाण पत्र जारी करवा रही है. इस सम्बन्ध में कल आईपीऍफ़ की तरफ से फिर एक शिकायती पत्र सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार , नई दिल्ली तथा मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश को भेज कर उत्तर प्रदेश सरकार के उपरोक्त अवैधानिक कार्य पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है
इसके साथ ही आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट उत्तर प्रदेश सरकार के इस अवैधानिक कार्य के विरुद्ध इलाहबाद हाई कोर्ट में याचिका भी दाखिल करने जा रहा है.
एस.आर.दारापुरी,
पूर्व आई जी एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता,
आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिन्दुस्तान के सम्पादकों को लिखा पत्र- आपकी मज़बूरी समझता हूँ!
आदरणीय संपादक जी
दैनिक जागरण/ अमर उजाला/ हिंदुस्तान
अलीगढ
विषय : डॉ वक़ार हार्ट सेंटर के पूर्ण रूप से अवैध होने और ग्रीन बेल्ट में बने होने के बावजूद खबर न लगाने और प्रार्थी के खिलाफ खबर को प्राथमिकता से प्रकाशित करने के सन्दर्भ में
आदरणीय,
गत एक वर्ष से मैं अलीगढ के धोर्रा-क्वार्सी बाईपास स्थित ग्रीन बेल्ट में बने अवैध निर्माण को लेकर मैं संघर्ष कर रहा हूँ | तमाम प्रामाणिक साक्ष्यों के साथ डॉ वक़ार हार्ट सेंटर और इंस्टिट्यूट को यह साबित कर चूका हूँ कि वह ग्रीन बेल्ट में अफसरों की मिलीभगत से बना हुआ है | तमाम शिकायतों के बाद भी उसपर अफसरों ने कोई कार्यवाही नहीं की है | प्रशासन ने आप सबकी जानकारी में होते हुए ही मेरे खिलाफ दवाब बनाने के लिए ग्रीन बेल्ट में अवैध निर्माण करने वाली रसूखदार डॉ अलवीरा के से थाना क्वार्सी में एफआईआर दर्ज कराई है जो कि पूरी तरह से फर्जी है | ब्लेकमेल करने के सबूत या साक्ष्य आजतक अलवीरा पेश नहीं कर पाई है |
मान्यवर, मैं यह देख रहा हूँ कि मेरे खिलाफ आने वाली डॉ अलवीरा की ख़बरों को प्राथमिकता से प्रकाशित किया जाता है | राष्ट्रीय लोकदल का नेता दिखाया जाता है जबकि कहीं भी इस प्रकरण में मैंने रालोद के नाम का प्रयोग नहीं किया है | वहीँ मेरे द्वारा ग्रीन बेल्ट में नियमो-कानूनों को ठेंगा दिखाकर अफसरों की मिलीभगत से बने डॉ अलवीरा के अवैध निर्माण की ख़बरों को दबा दिया जाता है | दिनांक 25 जुलाई 2020 को मेरे द्वारा भेजा गया प्रेस नोट भी प्रकाशित नहीं किया गया |
मान्यवर, मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि अख़बारों में विज्ञापन पार्टी के दवाब होते हैं, उनकी शर्ते होतीं हैं और तमाम मजबूरियां होती हैं | लेकिन यह भी हमें समझना चाहिए कि सच्चाई और समाज से जुड़े मुद्दे के लिए लड़ रहे व्यक्ति का साथ देना भी हमारा नैतिक दायित्व है | विज्ञापन पार्टी का नाम न लिखें लेकिन खबर को स्थान मिलना चाहिए हालाँकि यह विशेषाधिकार आपका अपना है | लेकिन मैं यही कहूंगा कि मेरा गुनाह सिर्फ इतना है कि मैं एक पूर्व मंत्री की बेटी और पूर्व मंत्री की बहन के खिलाफ आवाज उठा रहा हूँ | हो सकता है कि यह लोग कल प्रशासनिक तंत्र से मिलकर मेरी हत्या करा दें या मुझे झूठे मुकदद्मों में जेल भिजवा दें लेकिन मैं यह लड़ाई जारी रखूँगा |
आपसे यही अपेक्षा करता हूँ कि आप मेरा साथ दें, मेरी आवाज बने और आवाज किसी कारणवश न भी बन सके तो मेरे खिलाफ झूठे आरोपों पर मेरा पक्ष अवश्य लें |
आपसे सहयोग की अपेक्षा के साथ ...
आपका
जियाउर्रहमान
संपादक- व्यवस्था दर्पण
सामाजिक कार्यकर्ता
94543917147
मोदी-योगी की भूमि पूजन में भागीदारी संविधान की शपथ का उल्लंघन : दारापुरी
संविधान की रक्षा सुनिश्चित करें राष्ट्रपति एवं राज्यपाल महोदय
सरकारी धन के दुरुपयोग पर लगे रोक - आइपीएफ
लखनऊ, 29 जुलाई 2020:
“मोदी-योगी की भूमि पूजन में भागीदारी संविधान की शपथ का उल्लंघन”, “संविधान की रक्षा सुनिश्चित करें राष्ट्रपति एवं राज्यपाल महोदय” तथा “सरकारी धन के दुरूपयोग पर लगे रोक”- यह बात आज एस.आर.दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस को जारी ब्यान में कही है. उन्होंने कहा है कि धर्मनिरपेक्षता संविधान का मूल आधार है. ऐसे में अगर मोदी और योगी बतौर प्रधान मंत्री एवं मुख्य मंत्री मंदिर के भूमि पूजन में शामिल होते हैं तो यह उनके द्वारा पद सँभालते वक्त ली गयी संवैधानिक शपथ का उल्लंघन होगा. यह उल्लेखनीय है कि आज़ादी के बाद जब डा. राजेन्द्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर में शिवलिंग की स्थापना करने के लिए चले गए थे तो नेहरु बहुत नाराज़ हुए थे. अतः महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल महोदय से जनता की तरफ से अनुरोध है कि वे संविधान की रक्षा सुनिश्चित करें.
इतना ही नहीं जब पटेल ने सरकारी पैसे से सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार की घोषणा की थी तो नेहरू बहुत नाराज हुए थे और उन्होंने कोई भी सरकारी पैसा देने से मना कर दिया था. इस पर पटेल ने कृषि मंत्री के.एम.मुंशी से मिल कर चीनी गन्ना मिल मालिकों को चीनी का दाम बढ़ाने की अनुमति दे कर उसमें से आधा पैसा लेकर सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. इसका पता चलने पर नेहरु बहुत नाराज़ हुए थे. इसके विपरीत जब आज हम देखते हैं तो मोदी सरकार मंदिर के नाम पर 500 करोड़ रुo और योगी सरकार 450 करोड़ रुo दे रही है खास करके जब देश में हर रोज़ कोरोना के सैंकड़ों मरीज़ उचित स्वास्थ्य सुविधा एवं इलाज के बिना मर रहे हैं.
क्या एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की सरकार द्वारा एक मंदिर के लिए सरकारी धन दिया जाना जनता के पैसे का दुरूपयोग नहीं है. क्या यह उचित नहीं है कि मंदिर का निर्माण श्रधालुयों के दान से ही किया जाना चाहिए?
दारापुरी ने आगे कहा है कि माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के मुख्य न्यायाधीश ने 5 अगस्त को सरकार द्वारा राम मंदिर शिलान्यास कार्यक्रम के संबंध में कहा है कि वहां कोरोना महामारी के भारत सरकार के दिशा निर्देशों के अनुरूप ही कार्यक्रम किया जाए. लेकिन इसकी खुलेआम अवहेलना करते हुए आरएसएस के नेताओं और भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा भव्य कार्यक्रम करने की घोषणाएं लगातार की जा रही हैं. यही नहीं इस कार्यक्रम में पूरे प्रदेश के पुलिस व प्रशासन के आला अधिकारियों को अभी से ही लगा दिया गया है. वहां मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री द्वारा दौरा किया जा रहा है और सरकारी मशीनरी एवं जनता के धन का दुरुपयोग किया जा रहा है.
अतः आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट राष्ट्रपति एवं राज्यपाल महोदय से अनुरोध करता है कि वे संविधान की रक्षा करें तथा मंदिर के नाम पर सरकारी धन का दुरूपयोग रोकें ताकि देश में संवैधानिक व्यवस्था कायम रह सके. .
एस. आर. दारापुरी
पूर्व आईजी
राष्ट्रीय प्रवक्ता
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
भय, आशा और आत्मविश्वास
पी. के. खुराना
आशा के साथ थोड़ा डर मिला होने पर हम चौकन्ने रहते हैं और अति-विश्वास के कारण की जाने वाली गलतियों से बचे रहते हैं। आशा में भय का मिश्रण वस्तुत: हमारे लाभ में जा सकता है। भय और आशा का यह मिश्रण बड़ा कारगर साबित हो सकता है बशर्ते कि हम भयाक्रांत ही न हो जाएं। भय हमें सावधान करता है, भय हमें अनावश्यक जल्दी में गलत निर्णय लेने से बचाता है, भय हमें अपनी खूबियों और खामियों तथा अपने साधनों और स्रोतों का सांगोपांग विश्लेषण करने को बाध्य करता है। आम स्थितियों में हम जिन बातों को नजरअंदाज कर जाते, भय हमें उनसे खबरदार रहने की अक्ल देता है। भय एक नकारात्मक घटक है परंतु बुद्धिमान और विवेकी लोगों के जीवन में भय बड़े काम की चीज है। भय और आशा के मिश्रण में भय की इस भूमिका को समझने की आवश्यकता है। यदि हम भय की इन खूबियों को समझ लें तो हम भय से पार पाकर भय का लाभ ले सकेंगे। तब हमारा मन आत्मविश्वास से भर जाएगा और जी-जान से अपनी सफलता के लिए कार्य करेंगे।
जीवन में कभी भी किसी भी स्थिति में भय का भान होने पर हमें यह सोचना चाहिए कि हम क्यों भयभीत हैं। भय के कारणों का विश्लेषण करने से हमें मालूम पड़ जाता है कि क्या करना हमारे लिए गलत साबित हो सकता है और क्या उपाय करके हम भय के कारकों से दूर रह सकते हैं। इस प्रकार भय का विश्लेषण करने से समस्या खुद-ब-खुद हल हो जाती है और भय का हल्का-सा भान हमारे लिए लाभदायक सिद्घ होता है।
भय का भान होने पर यदि हम यह विश्लेषण करें कि हमारे भय का कारण क्या है तो हम समस्या की जड़ तक पहुंचने का प्रयत्न करते हैं। किसी भी समस्या को समझने का और उसका तोड़ निकालने का सबसे बढिय़ा तरीका यह होता है कि हम समस्या को चरणों में या टुकड़ों में बांट लें। इससे समस्या को समझना आसान हो जाएगा। इसके बाद हर टुकड़े का समाधान इस प्रकार से किया जाए कि वह पूरी समस्या के समाधान में आसानी से फिट हो जाता हो और समस्या के किसी अन्य हिस्से को इतना न बढ़ाता हो कि समाधान में ही एक नई समस्या जन्म ले ले। इस प्रक्रिया का लाभ यह है कि इस प्रकार हम न केवल केवल को समझ पाते हैं बल्कि उसका प्राभावी समाधान भी खोज लेते हैं। इस प्रक्रिया का दूसरा लाभ यह है कि इससे समस्याओं का समाधान ढूंढऩे के मामले में न केवल हमारा ज्ञान बढ़ता है बल्कि हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ता है और हमारी सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं।
समस्या का इस प्रकार से विश्लेषण करने की प्रक्रिया में हमारी जिज्ञासा जागृत होती है और हम मामले की गहराई में उतरते हैं। किसी समस्या के समाधान के लिए हम जितना गहराई में जाते हैं उतना ही उस समस्या को समझ पाने की समझ विकसित होती है और हमारा समाधान भी उतना ही प्रभावी होता है। तो समझने की बात यह है कि समस्या कोई समस्या नहीं है, बल्कि समस्या को लेकर हमारा दृष्टिकोण असली समस्या है। यानी, यदि हम समस्या को चुनौती के रूप में देखें और इसका विश्लेषण करके उसके समाधान का प्रयत्न करें तो समस्या दूर हो सकती है, लेकिन यदि समस्या से दो-चार होने पर हम चिंतित हो जाएं और समस्या को समझने के बजाए उदासी या चिंता को खुद पर हावी होने दें तो समस्या के समाधान में तो कोई सहायता नहीं मिली, हम हमने समय और सेहत का नुकसान अलग से कर लेते हैं। सफल और असफल व्यक्तियों में दृष्टिकोण का यही अंतर प्रमुख होता है।
जीवन कोई फूलों की सेज नहीं है। जीवन के रास्ते बड़े ऊबड़-खाबड़ हैं। हर रोज आप नये व्यक्तियों और नयी स्थितियों से दो-चार होते हैं। कभी आप को मनचाही सफलता मिल जाती है तो कभी परेशान कर देने वाली असफलता का मुख देखना पड़ जाता है। कभी आप पर सम्मान थोप दिया जाता है और कई बार बिना किसी दोष के भी आपको अपमान का घूंट पीकर चुप रह जाना पड़ता है। ऐसे में आप कितने संतुलित रहते हैं, आप कितनी कुशलता से स्थिति को संभालते हैं, अक्सर आपके भावी जीवन का दारोमदार इस पर ही निर्भर करता है। दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे कभी भी असफलता का मुख न देखना पड़ा हो। यानी, असफलता हमारे जीवन का एक अविभाज्य अंग है। जीवन भर हम कई निर्णय लेते हैं और कई काम करते हैं। कभी हम सफल होते हैं और कभी-कभार असफल भी हो जाते हैं। हर असफलता हमें कुछ हद तक निराश कर सकती है, लेकिन यदि असफलता को लेकर कुढऩ, चिंता और निराशा बढ़ जाए तो यह हताशा में बदल जाती है। हताश व्यक्ति का किसी काम में मन नहीं लगता, इसलिए वह कोई नया काम नहीं कर पाता और वह अपनी असफलता को स्थाई बनाकर हमेशा के लिए असफल हो जाता है। वहीं यदि हम असफलताओं से घबराये बिना असफलता के कारणों का विश्लेषण करें तो हम न केवल उन गलतियों का तोड़ निकालने की जुगत करते हैं बल्कि वे गलतियां हमें कोई नया सबक सिखा देती हैं। यदि हमारी मानसिकता धनात्मक हो, पाजि़टिव हो तो हमारी असफलताएं हमें नई सीख दे जाती हैं और यदि हमारा दृष्टिकोण ऋणात्मक हो, नेगेटिव हो तो हमारी असफलता पर पक्की मुहर लग जाती है।
दुर्भाग्यवश, हमारा माहौल ऐसा है कि असफल होने पर हमें लज्जित होना सिखाया जाता है और सफल होने पर खुश होना। सफलता के प्रति प्रेम जगाते समय हम यह भूल जाते हैं कि ऐसा असफलता के प्रति भय जगाए बिना भी किया जा सकता है। सफलता और असफलता के प्रति दृष्टिकोण का यही अंतर हमारे जीवन को परिभाषित करता है। स्थितियों से असंतुष्ट रहकर कुढ़ते रहना अथवा स्थितियों से असंतुष्ट होने पर उन्हें बदलने की जुगत में जुट जाना, यह हमारे नजरिये पर निर्भर करता है, इसलिए खुश रहना और उदास रहना भी हमारे अपने हाथ में है। आकाश में अथवा कहीं और कोई स्वर्ग या नरक नहीं हैं। स्वर्ग या नरक अगर कहीं हैं तो इसी धरती पर हैं और हमारे अपने बनाए हुए हैं। इस तथ्य को समझ लेंगे तो असफलता हमें डराएगी नहीं, बल्कि सफलता की सीढ़ी बन जाएगी।
लेखक एक हैपीनेस गुरू और मोटिवेशनल स्पीकर हैं।
बच्चों को क्या पढ़ाएं ?
पी. के. खुराना
आप शायद यह जानकर हैरान होंगे कि कैरिअर की भागम-भाग में उलझे होने के कारण पिता बनने पर मैं जिस ओर ध्यान नहीं दे सका था, आठ वर्ष पूर्व जब मैं पहली बार दादा बना तो मैंने उस विषय की ओर ध्यान देना शुरू किया और मुझे यह समझने में देर नहीं लगी कि मैं कितना अनाड़ी था। ज्यादातर भारतीयों की तरह पेरेंटिंग के मामले में मेरी अज्ञानता भी बहुत गहरी थी। विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि अगर आपका बच्चा आपसे बार-बार झूठ बोलता है तो इसका मतलब है कि आप बच्चे की शरारतों पर उसे जरूरत से ज्यादा डांटते-फटकारते हैं। बच्चे में अगर आत्म विश्वास की कमी है तो इसका कारण यह है कि आप बच्चे का हौसला बढ़ाने के बजाए उसकी कमियों के कारण उसकी आलोचना करते रहते हैं या उपदेश देते रहते हैं।
अगर आपका बच्चा हौसलेमंद नहीं है तो इसका कारण यह है कि आप हर काम में बिना जरूरत उसकी मदद करने लगते हैं और उसे खुद काम करने का मौका नहीं देते। इसी प्रकार, यदि आपका बच्चा बहुत जल्दी गुस्से में आ जाता है तो इसका कारण है कि आप उसके बुरे व्यवहार के बारे में तो उसे तुरंत जता देते हैं, या बिगड़ पड़ते हैं लेकिन वो जो अच्छे काम करता है, उसकी प्रशंसा नहीं करते, और यह मान लेते हैं कि ये करना तो उसका फर्ज ही था। अगर आपके बच्चे में ईर्ष्या का भाव बहुत अधिक है तो इसका कारण यह है कि आप उसे तभी शाबासी देते हैं जब वह कोई काम सफलतापूर्वक संपन्न कर दे, लेकिन यदि वह काम में सफल न हो पाये पर पहले से बेहतर हो जाए तो आप उसका हौसला बढ़ाना भूल जाते हैं।
मान लीजिए कि बच्चा इम्तिहान में पास हो गया तो आप उसे मिठाई खिलाते हैं, पर अगर उसके नंबर सिर्फ 15 प्रतिशत आये और वह फेल हो गया तो डांट पड़ती है। यहां तक तो फिर भी कुछ ठीक है, पर अगर अगले साल भी वह फेल हो गया लेकिन इस बार उसने कुछ ज्यादा मेहनत की थी और उसके नंबर 25 प्रतिशत हो गये, तो आपको क्या करना चाहिए ? ऐसी स्थिति में आपको बच्चे से ये कहना चाहिए कि नालायक तू दूसरी बार भी फेल हो गया, या ये कहना चाहिए कि शाबास तूने 10 प्रतिशत नंबर बढ़ा लिए, अगले साल पूरी मेहनत कर और पास हो के दिखा। मेरी इस बात पर जरा गहराई से विचार कीजिएगा।
आत्म विश्वास का इतना फर्क पड़ता है कि जीवन ही बदल जाता है। बच्चे के साथ जो व्यवहार हो रहा है वो मां की ओर से है, पिता की ओर से है, परिवार के किसी अन्य सदस्य की ओर से है या बच्चे के अध्यापक कर रहे हैं, इसका सीधा-सीधा असर बच्चे के भविष्य पर पड़ेगा, इसलिए इस मामले में बहुत सावधानी की आवश्यकता है। स्कूल-कालेज जो सिखा रहे हैं, वो रोज़गार की शिक्षा है, नौकरी मिल जाए, उद्यमी बन जाएं, अच्छी आय हो जाए। उसका संबंध ऐसे जीवन से नहीं है जिसमें स्वास्थ्य है, सम्मान है, सफलता है और खुशियां हैं, इसलिए अभिभावक के रूप में हमें उन बातों का ज्ञान भी होना चाहिए जिनसे हमारी पीढ़ियां सुधर जाती हैं या बिगड़ जाती हैं।
जब मैं छोटा था तो मेरी मां मुझे रोज़ रसोई में अपने साथ बैठा लेती थीं, और मुझे दिखाती थीं कि खाना बनाने से पहले उन्होंने रात को राजमांह भिगो कर रखे, सब्जी बनाने के लिए अदरक, प्याज, लहसुन वगैरह छीले-काटे, मसाला पीसा। मेरी मां मुझे वह सब करते हुए दिखाती थीं और समझाती थीं कि जो खाना हमने पंद्रह मिनट में खाकर खत्म कर लिया, वह खाना कितनी मेहनत से बनता है। वह अनाज हम तक पहुंचने में मानो किसान का खून निचोड़ लेता है। किसान दिन-रात मेहनत करता है, खेत जोतता है, बीज डालता है, पानी देता है, खाद देता है, खर-पतवार साफ करता है, फसल की रखवाली करता है, फसल काटता है। महीनों लग जाते हैं तब फसल तैयार होती है। वे यह भी कहती थीं कि जो खाना हम खाते हैं, उसमें पिता की कमाई और मां का प्यार छिपा है। उसे बर्बाद नहीं कर सकते। मेरी मां ने मुझे अनाज की और भोजन की इज्जत करना सिखाया। खाना खाने से पहले, किसान का धन्यवाद करना, माता-पिता का धन्यवाद करना और भगवान का धन्यवाद करना हमारी दिनचर्या का हिस्सा था, आज भी है।
मेरी मां ने मुझे परिश्रम की महत्ता समझाई। उसका परिणाम यह था कि मैंने किसी भी तरह के काम में कभी शर्म नहीं की। दुनिया का कोई भी काम मेरे लिए छोटा नहीं है। मेरी मां ने मुझे परिवार का आदर करना सिखाया जिसका अर्थ है कि हमें कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे परिवार की शान में फर्क आए। उन्होंने मुझे सिखाया कि किसी भी हालत में झूठ बोलना बुरी बात है, इससे मुझमें नैतिक साहस आया कि मैं सच बोल सकूं, हर हालत में सच बोल सकूं और अपनी गलतियों को स्वीकार कर सकूं। उन्होंने मुझे जीवन की इज्जत करना सिखाया। मैं धन का जोखिम ले सकता हूं, जीवन का नहीं। मैं कभी भी गाड़ी इस तरह नहीं दौड़ाउंगा कि दुर्घटना हो जाए और जान चली जाए। जीवन के आदर का दूसरा अर्थ है कि हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकें।
संसार की सारी नेमतों के लिए मुझे उन्होंने भगवान का धन्यवाद करना सिखाया। आप जिस भी धर्म को मानते हैं, जिसे भी अपना इष्ट देव मानते हैं, आप चाहे उसे परमात्मा कहें, वाहेगुरू कहें, अल्लाह कहें, जीसस कहें, उसका स्मरण कीजिए। आज अभी उस परमात्मा का धन्यवाद दीजिए, जिसने आपके लिए अनाज बनाया, फल-फ्रूट बनाए, पेड़-पौधे बनाए, रिश्ते बनाए, परिवार बनाया। मेरे एक मित्र श्री नीरज गोयल ने एक ऐप बनाया है जिसका नाम ही है "थैंक गॉड"। यह ऐप बिलकुल मुफ्त है। इस ऐप में कुछ नहीं बिकता। आप इसे प्ले स्टोर से मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं और जीवन की हर खुशी के लिए परमात्मा का धन्यवाद कर सकते हैं।
सार यह है कि अपने बच्चों के बुरे व्यवहार पर रोक लगाइए पर उनके अच्छे व्यवहार के लिए उन्हें शाबासी भी दीजिए। बच्चों को इतनी छूट जरूर दीजिए कि उनका आत्म विश्वास खत्म न हो। अपने बच्चों को पॉज़िटिव सोचने की शिक्षा दीजिए, ताकि उनके जीवन में निराशा न आये। पॉज़िटिव थिंकिंग होगी तो कठिनाइयों में भी रास्ता निकल आयेगा, चुनौतियों में भी अवसर निकल आयेंगे और नेगेटिव थिंकिंग होगी तो वो खुशियों में भी समस्याएं ढूंढ़ लेंगे।
लेखक एक हैपीनेस गुरू और मोटिवेशनल स्पीकर हैं।
विश्व बाघ दिवस : जब बाघ का कटा सिर देखते ही विचलित हो गईं इंदिरा जी, फिर बनाया कड़ा कानून
जयराम शुक्ल
चीन भले ही अपने काल्पनिक/भुतहे ड्रैगन(अजदहा) को लेकर इतराता हो लेकिन अपन वास्तव में 'टाइगर नेशन' हैं। इसी मंगलवार को विश्व बाघ दिवस की पूर्व संध्या पर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने भारत में बाघों को लेकर जानकारी साझा की है, जिसके अनुसार भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2963 पहुँच गई जो विश्व की 70 प्रतिशत है। यह आँकड़े 2018 की बाघ गणना के निष्कर्ष हैं।
वर्ष 2000 से 2014 का अंतराल बाघों की सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संकट पूर्ण रहे। 2006 बाघों की संख्या घटकर 1411 हो गई थी। यह वही दौर था जब राजस्थान के सरिस्का और मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो चुका था। पन्ना टाइगर रिजर्व में तो 2009 में बाघों का पुनर्वास किया गया। पन्ना की यह घटना वन्यजीव जगत की अनोखी घटना है जहां कैपटिव टाइगर को वाइल्ड बनाया गया। आज पन्ना टाइगर इसकी बड़ी दिलचस्प कहानी है, अलग से सुनने सुनाने लायक।
बहरहाल 2014 से बाघ संरक्षण कार्यक्रम ने गति पकड़ा तब 2226 बाघ थे जो चार वर्ष में बढ़कर 2967 हो गए। अब स्थिति यह कि बाघों के लिए जंगल का दायरा ही छोटा पड़ने लगा। बाघों की संख्या 6प्रतिशत के मान से बढ़ रही है इसके मद्देनजर सरकार को कुछ और टाइगर रिजर्व बनाने की योजना पर विचार करना पड़ रहा है।
बाँधवगढ़ नेशनल पार्क व टाइगर रिजर्व को विश्व की सबसे घनी बाघ आबादी का गौरव बरकरार है। नेशनल जियाग्रफी और डिस्कवरी में दिखने वाला हर दूसरा बाघ यही का है। बाँधवगढ नेशनल पार्क की कोर एरिया और बफर में बाघों की संख्या बढ़कर 124 हो गई है।
इधर 2010 तक बाघ विहीन रहे संजय नेशनल पार्क में भी अब 12 से 14 बाघ बताए जाते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा अब छत्तीसगढ़ में गुरुघासीदास नेशनल पार्क के नाम पर है और वहां भी बाघों की अच्छी खासी आबादी बढ़ चुकी है। कान्हा-बाँधवगढ़-पन्ना और संजय नेशनल पार्क में बाघों का कारीडोर प्रस्तावित है लेकिन जरूरत इन्हें तत्काल जोड़ने की है नहीं तो बाघों की बढ़ती आबादी से जल्दी ही एक नया संघर्ष शुरू होने वाला है। जंगल में टेरीटरी बनाने के लिए और गाँवों को उस दायरे में शामिल करने के लिए।
भारत में बाघकथा बड़ी दर्दनाक रही है। सबसे पहले मुगलों ने बाघों के शिकार की परंपरा को नबावी बनाया। फिर अँग्रेजों ने इसे खेल में बदलते हुए गेम सेंचुरी का नाम दे दिया। यह गेम सेंचुरी देसी राजे रजवाड़ों की पनाह में शुरू हुई। आजादी के पहले तक भारत में गेम सेंचुरी का कारोबार 445 करोड़ रु. सालाने का था। विदेशों की टूर एवं ट्रेवेल एजेंसियां इसे संचालित करती थी। राजाओं, इलाकेदारों के लिए यह व्यवसाय की भाँति था। ये शिकार अभियानों के साथ ही बाघ के शिरों की ट्राफी और उसकी खाल, नाखून व हड्डियों का व्यापार करते थे। यह सिलसिला 1972 तक चलता रहा जबतक कि वन्यसंरक्षण कानून अस्तित्व में नहीं आया। शिकार के इसी सिलसिले ने भारत के जंगलों से चीता का वंशनाश कर दिया।
एक बाघ के कटे हुए सिर ने इंदिरा गाँधी को इतना विचलित कर दिया कि जब वे प्रधानमंत्री बनीं तो वन्यजीवों के शिकार के खिलाफ कड़ा कानून बनाया। यह घटना बेहद मर्मस्पर्शी है और इसका एक शिरा रीवा से जुड़ा है इसलिए जानना जरूरी है।
पंडित नेहरू को रीवा के महाराज ने एक जवान बाघ के सिर की रक्त रंजित ट्राफी और खाल भेंट की..तो उसे देखकर इंदिरा जी का दिल दहल गया..आँखों में आँसू आ गए.. काश यह आज जंगल में दहाड़ रहा होता..। राजीव गाँधी को लिखे अपने एक पत्र में इंदिरा जी ने यह मार्मिक ब्योरा दिया है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा जी ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट समेत वन से जुड़े सभी कड़े कानून संसद से पास करवाए। राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर रिजर्व, व अभयारण्य एक के बाद एक अधिसूचित करवाए। आज वन व वन्यजीव जो कुछ भी बचे हैं वह इंदिरा जी के महान संकल्प का परिणाम है।
.....इंदिरा जी का वो मार्मिक पत्र
‘‘हमें तोहफे में एक बड़े बाघ की खाल मिली है. रीवा के महाराजा ने केवल दो महीने पहले इस बाघ का शिकार किया था. खाल, बॉलरूम में पड़ी है. जितनी बार मैं वहां से गुजरती हूं, मुझे गहरी उदासी महसूस होती है. मुझे लगता है कि यहां पड़े होने की जगह यह जंगल में घूम और दहाड़ रहा होता. हमारे बाघ बहुत सुंदर प्राणी हैं....
-इंदिरा गांधी
(राजीव गांधी को 7 सितंबर 1956 को लिखे पत्र के अंश)
इंदिरा जी ने वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 बनाया। इसके बाद जब जंगलों का ही नाश होने लगा तो वन संरक्षण कानून 1980 आया। 2002 में वन्य संरक्षण कानून इतना कड़ा कर दिया गया कि आदमी की हत्या से कोई मुजरिम बच भी सकता है लेकिन शिड्यूल्ड प्राणियों की हत्या के आरोपी की जिंदगी जेल में ही कटेगी।
नेशनल पार्कों व टाइगर रिजर्व की परियोजनाओं का विस्तार के पीछे भी इंदिरा जी की ही सोच थी। आज देश में 50 से ज्यादा टाइगर रिजर्व हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरों की तर्जपर वन्यप्राणियों के प्रति अपराध रोकने के ब्यूरो और कानून बने। आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि वन्यप्राणियों के संरक्षण के प्रति इंदिरा जी ने ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति न दिखाई होती तो आज हमारे जंगल चीतों की भाँति बाघों से भी विहीन होते।
बाघ हमारी संस्कृति के अटूट हिस्से हैं। वे दैवीय हैं और ईश्वर के अवतारी। इन्हें भौतिकवादी प्रगतिशीलों ने कभी इस नजरिए से नहीं देखा। बाघ सनातन से हमारी आस्थाओं में हैं। इसलिए बाघों के प्रति मेरा नजरिया वन्यप्रेमी, प्राणिशास्त्री से अलग हटकर है।
अपन को जब भी मौका मिलता है जंगल निकल लेता हूँ। जंगल प्रकृति की पाठशाला है, हर बार कुछ न कुछ सीख मिलती है। जानवर, पेंड़-पौधे, नदी, झरने सभी शिक्षक हैं, बशर्तें उन्हें ध्यान से देखिए, सुनिए समझिए। ये सब उस विराट संस्कृति के हिस्से हैं जो सनातन से चलती चली आ रही है। ये सह अस्तित्व के प्रादर्श थे कभी।
जब से सत्ता व्यवस्था शुरू हुई तभी से जंगल में संघर्ष की स्थिति बनी। समूचा वैदिक वांगमय जंगल में ही रचा गया। इसलिए पशु-पक्षियों की बात कौन करे पेड़-पौधे, नदी,पहाड़, झरने सभी जीवंत पात्र हैं। पुराण कथाओं में वे संवाद भी करते हैं। रामायण, रघुवंश, अभिग्यान शाकुंतलम और भी कई ग्रंथों ने अरण्यसंस्कृति को स्थापित किया। इसके समानांतर एक लोकसंस्कृति की भी धारा फूटी जिसके अवशेष अभी भी वनवासियों के बीच देखने को मिलती है। इस बार के जंगल प्रवास में यही सबकुछ देखा और अंतस से महसूस भी किया।
छह साल पहले ..कहानी सफेद बाघ की..(Tale of the white tiger) पुस्तक की सामग्री जुटाने के तारतम्य में जंगल से जो रिश्ता बना वो साल दर साल गाढा होता गया। एकांत क्षणों में मैं महसूस करता हूँ कि जंगल मुझे बुला रहा है। जब वहां जाता हूँ तो हर जगह देखकर ऐसा लगता है कि ...हो न हो यह मेरा देखा हुआ..। मेरा ही क्यों हर किसी का यहाँ से जन्म जन्मांतर का रिश्ता है। जरूरत है श्रवणग्राहिता और दृष्टिक्षमता की।
सुनने और देखने का तरीका ही हमारी संवेदनाओं का सूचकांक है। जंगलों में पशु पक्षियों के शिकार वाल्मीकि और सिद्धार्थ से पहले भी होते रहे हैं। संवेदना ने वाल्मीकि को आदि कवि बना दिया और सिद्धार्थ को भगवान् गौतमबुद्ध। ईश्वर ने आँख और कान सबको इन्हीं जैसे दिए हैं फिर भी कोटि वर्षों में कोई वाल्मीकि, कौई गौतमबुद्ध पैदा होता है। इसीलिए जंगल प्रकृति की ऐसी पाठशाला हैं जहाँ पढकर मनुष्य भी ईश्वर समतुल्य बनकर निकलता है।
वाणभट्ट ने कादंबरी में जिस विन्ध्याटवी का वर्णन किया है। वही विन्ध्याटवी सफेद बाघों का प्राकृतिक पर्यावास है। इतिहासवेत्ता और वनस्पतिशास्त्री इस क्षेत्र को बाँधवगढ, संजय नेशनल पार्क के साथ वर्णन जोड़ते हैं। मेरे अध्ययन व भ्रमण का क्षेत्र भी यही रहा। सफेद बाघ मोहन जिसकी संतानें आज दुनियाभर के अजायबघरों में मौजूद हैं, संजय नेशनल पार्क के बस्तुआ बीट के बरगड़ी के जंगल से पकड़ा गया था। संजय नेशनल पार्क का अब आधा हिस्सा छत्तीसगढ़ के कोरिया, अंबिकापुर जिले में आता है।
इस जंगल में अभी भी पचास से ज्यादा वन्यग्राम हैं। वहां अब सभ्यता पहुंच गई,बिजली, मोबाइल, जैसी चीजें, फिर भी वनों की लोकसंस्कृति के अवशेष देखने को मिल जाते हैं। पिछले प्रवास में एक घर के भित्तिचित्र ने ध्यान खींचा था,जिसमें हाथी बाघ से हाथ मिलाते हुए चित्रित था। उस घर के मालिक वनवासी भाई से पूछा तो उसके लिए बस यूं ही ऐसी कलाकारी थी,जो उसके पुरखे के जमाने से चलती चली आ रही है।
इस बीच संदर्भ के लिए ..प्रो.बेकर की पुस्तक.. बघेलखंड द टाईगर लेयर..पढने को मिली। तो पता चला कि विन्ध्य के जंगल कभी हाथियों की घनी आबादी के लिए जाने जाते थे। यहां के राजा का हाथियों के बेचने का कारोबार था। सीधी जिले के जिस मडवास रेंज के वन्यग्राम में वो भित्तिचित्र देखा उसी मड़वास के हाथियों के बारे में ..रीवा राज्य का इतिहास..के लेखक गुरू रामप्यारे अग्नीहोत्री ने लिखा कि ..एक बार राजा ने यहां से 30 हाथी पकड़वाए इसके बाद वे यह भूल गए कि इनका करना क्या है परिणाम यह हुआ की तीसों हाथी भूख से तड़प के मर गए थे। यानी इस जंगल में हाथी और बाघ सहअस्तित्व के साथ रहा करते थे।
भित्तिचित्र का संदेश भी दोनों की दोस्ती की कथा बताता था। इसी क्षेत्र में सात सफेद बाघों के मारे जाने का रिकॉर्ड बाँम्बे जूलाजिकल सोसाइटी की जंगल बुक में दर्ज है। रीमाराज्य की तीन पीढी के राजाओं ने अपने हिस्से के जंगल में तीस साल के भीतर 2 हजार बाघ मारे थे। सरगुजा के राजा के नाम से तो 17 सौ बाघों को मारने का विश्व रेकार्ड कायम है। इन्होंने भी इसी समयकाल में शिकार किए। पाँच साल पहले मैं जब इस जंगल में गया था तब एक भी बाघ नहीं थे। हाथी तो इतिहास की बात हैं।
इस बार जंगल प्रवास में एक वन्यग्राम के घर में बने भित्तिचित्र ने फिर ध्यान खींचा। गोबर से लीपी हुई भीत पर कोयले के रंग से एक बाघ उसके सामने एक गाय और बीच में बछडे़ का चित्र था। यह चकरा देने वाला मामला था। हाथी की दोस्ती तो चलो बराबरी की,पर इस गाय की भला बाघ के सामने क्या बिसात..? पूर्व की भाँति इस बार भी मकान मालिक का जवाब वही-पुरखों के समय से ऐसे ही कुछ न कुछ उरेहते आए हैं।
मेरे स्मृति पटल में कालिदास के रघुवंश की वह कथा आ गई जिसमें राजा दिलीप बाघ से यह निवेदन करते हैं कि गाय की जगह वह उन्हें अपना शिकार बना ले। पर इस भित्तिचित्र के साथ इस कथा का कोई तारतम्य जमा नहीं। उधेड़बुन में अम्मा का बहुला चौथ उपवास और वो ब्रतकथा याद आ गई। एक बार वह ब्रतकथा मुझे सुनानी पड़ी थी, क्योंकि पंडित नहीं आए थे।
संक्षेप में कथा कुछ इस तरह थी- जंगल चरने गई गाय से बाघ का सामना हो गया। बाघ शिकार करने ही वाला था कि गाय ने उससे विनती शुरू कर दी,बोली- आज मुझे मत खाओ, घर में मेरा बछड़ा भूखा इंतजार कर रहा होगा, मैं जाकर उसे अपना दूध पिला आऊं फिर मुझे खा लेना। बाघ बोला तू मुझे बुद्धू बना रही है, क्या गारंटी कि तू लौटके आएगी ही। कातर स्वर से गाय बोली- भैय्या मैं अपने बछडे़ की कसम खाती हूँ उसे दूध पिलाने के बाद पल भर भी नहीं रुकूंगी, मेरा विश्वास मानो भैय्या।
गाय के मुँह से भैय्या का शब्द बाघ के अंतस को छू गया, फिर भी बाघ तो बाघ। गाय ने फिर अश्रुपूरित स्वरों में कहा-आप जंगल के राजा जब आप ही मेरी बात का विश्वास नहीं करेंगे तो फिर क्या कहें, अब आपकी मर्जी। इस बार बाघ कुछ पसीजा बोला- जा बछडे़ को दूध पिला आ, पर लौटके आना जरूर। गाय जंगल से भागती, रँभाती गांव पहुंची। बछडे़ से कहा चल जल्दी दूध पी ले।
बछडे़ को संदेह हुआ कि कुछ न कुछ बात जरूर है। वह बोला- माँ ..मेरी कसम,पहले सच सच बताओ क्या बात है तभी थन में मुँह लगाऊंगा। गाय ने बाघ वाली पूरी बात बता दी। बछडे़ ने कहा चिंता की कोई बात नहीं माँ कल सुबह मैं तुम्हारे साथ चलूंगा। कैसे भी रात बीती। पूरे गांव को गाय और बाघ की बात पता चल गई। वचन से बँधी गाय बाघ की मांद की ओर लंबे डग भरते हुए चल दी। बछड़ा आगे आगे।
बाघ ने दूर से देखा कि गाय तय वक्त से पहले ही आ रही है। जाकर गाय बाघ के सामने स्वयं को शिकार के रूप में प्रस्तुत किया। बछड़ा चौकड़ी भरता बीच में आ गया। बोला- बाघ मामा मुझे खा लो माँ को छोड़ दो, माँ बची रही तो आपके लिए मेरे जैसे शिकार पैदा करती रहेगी। बाघ यह सुनकर सन्न रह गया। उसकी आँखों आँसू आ गए, गाय से बोला-जा बहना जा, भाँन्जे का ख्याल रखना। बाघ ने अभयदान दे दिया। इधर समूचा गांव ताके बैठा था कि क्या होगा..।
गोधूली बेला में जंगल से बछड़े के साथ सही सलामत आती गाय को देखकर सभी की जान में जान आई। घरों में चना जैसे कच्चे अन्न से गाँव वालों का उपवास टूटा। तभी से बहुला चौथ की ब्रत अपनी परंपरा में आया, जिसमें माँ,बहने अपने भाई के कुशलमंगल के लिए यह ब्रत रखती हैंं। गाय बाघ के कुशलमंगल और दीर्घायु के लिए ब्रत रखे..विश्व के किसी विचार दर्शन और कथानक में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। यह है हमारी अरण्यसंस्कृति, हमारी ल़ोकधारा जो जंगल से वन्यजीवों के बीच से फूटती है। वन्यजीव सरकारी सप्ताह के आयोजनों से नहीं बचेंगे। हमारी संस्कृति और परंपरा ही बचा सकती है इन्हें। जंगल को सुनऩे व देखने की श्रवणग्राहिता और दृष्टिक्षमता लानी होगी और वह जंगल के सरकारी कानूनों से नहीं आने वाली।
संपर्कः। 8225812813
चीन भले ही अपने काल्पनिक/भुतहे ड्रैगन(अजदहा) को लेकर इतराता हो लेकिन अपन वास्तव में 'टाइगर नेशन' हैं। इसी मंगलवार को विश्व बाघ दिवस की पूर्व संध्या पर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने भारत में बाघों को लेकर जानकारी साझा की है, जिसके अनुसार भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2963 पहुँच गई जो विश्व की 70 प्रतिशत है। यह आँकड़े 2018 की बाघ गणना के निष्कर्ष हैं।
वर्ष 2000 से 2014 का अंतराल बाघों की सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संकट पूर्ण रहे। 2006 बाघों की संख्या घटकर 1411 हो गई थी। यह वही दौर था जब राजस्थान के सरिस्का और मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो चुका था। पन्ना टाइगर रिजर्व में तो 2009 में बाघों का पुनर्वास किया गया। पन्ना की यह घटना वन्यजीव जगत की अनोखी घटना है जहां कैपटिव टाइगर को वाइल्ड बनाया गया। आज पन्ना टाइगर इसकी बड़ी दिलचस्प कहानी है, अलग से सुनने सुनाने लायक।
बहरहाल 2014 से बाघ संरक्षण कार्यक्रम ने गति पकड़ा तब 2226 बाघ थे जो चार वर्ष में बढ़कर 2967 हो गए। अब स्थिति यह कि बाघों के लिए जंगल का दायरा ही छोटा पड़ने लगा। बाघों की संख्या 6प्रतिशत के मान से बढ़ रही है इसके मद्देनजर सरकार को कुछ और टाइगर रिजर्व बनाने की योजना पर विचार करना पड़ रहा है।
बाँधवगढ़ नेशनल पार्क व टाइगर रिजर्व को विश्व की सबसे घनी बाघ आबादी का गौरव बरकरार है। नेशनल जियाग्रफी और डिस्कवरी में दिखने वाला हर दूसरा बाघ यही का है। बाँधवगढ नेशनल पार्क की कोर एरिया और बफर में बाघों की संख्या बढ़कर 124 हो गई है।
इधर 2010 तक बाघ विहीन रहे संजय नेशनल पार्क में भी अब 12 से 14 बाघ बताए जाते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा अब छत्तीसगढ़ में गुरुघासीदास नेशनल पार्क के नाम पर है और वहां भी बाघों की अच्छी खासी आबादी बढ़ चुकी है। कान्हा-बाँधवगढ़-पन्ना और संजय नेशनल पार्क में बाघों का कारीडोर प्रस्तावित है लेकिन जरूरत इन्हें तत्काल जोड़ने की है नहीं तो बाघों की बढ़ती आबादी से जल्दी ही एक नया संघर्ष शुरू होने वाला है। जंगल में टेरीटरी बनाने के लिए और गाँवों को उस दायरे में शामिल करने के लिए।
भारत में बाघकथा बड़ी दर्दनाक रही है। सबसे पहले मुगलों ने बाघों के शिकार की परंपरा को नबावी बनाया। फिर अँग्रेजों ने इसे खेल में बदलते हुए गेम सेंचुरी का नाम दे दिया। यह गेम सेंचुरी देसी राजे रजवाड़ों की पनाह में शुरू हुई। आजादी के पहले तक भारत में गेम सेंचुरी का कारोबार 445 करोड़ रु. सालाने का था। विदेशों की टूर एवं ट्रेवेल एजेंसियां इसे संचालित करती थी। राजाओं, इलाकेदारों के लिए यह व्यवसाय की भाँति था। ये शिकार अभियानों के साथ ही बाघ के शिरों की ट्राफी और उसकी खाल, नाखून व हड्डियों का व्यापार करते थे। यह सिलसिला 1972 तक चलता रहा जबतक कि वन्यसंरक्षण कानून अस्तित्व में नहीं आया। शिकार के इसी सिलसिले ने भारत के जंगलों से चीता का वंशनाश कर दिया।
एक बाघ के कटे हुए सिर ने इंदिरा गाँधी को इतना विचलित कर दिया कि जब वे प्रधानमंत्री बनीं तो वन्यजीवों के शिकार के खिलाफ कड़ा कानून बनाया। यह घटना बेहद मर्मस्पर्शी है और इसका एक शिरा रीवा से जुड़ा है इसलिए जानना जरूरी है।
पंडित नेहरू को रीवा के महाराज ने एक जवान बाघ के सिर की रक्त रंजित ट्राफी और खाल भेंट की..तो उसे देखकर इंदिरा जी का दिल दहल गया..आँखों में आँसू आ गए.. काश यह आज जंगल में दहाड़ रहा होता..। राजीव गाँधी को लिखे अपने एक पत्र में इंदिरा जी ने यह मार्मिक ब्योरा दिया है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा जी ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट समेत वन से जुड़े सभी कड़े कानून संसद से पास करवाए। राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर रिजर्व, व अभयारण्य एक के बाद एक अधिसूचित करवाए। आज वन व वन्यजीव जो कुछ भी बचे हैं वह इंदिरा जी के महान संकल्प का परिणाम है।
.....इंदिरा जी का वो मार्मिक पत्र
‘‘हमें तोहफे में एक बड़े बाघ की खाल मिली है. रीवा के महाराजा ने केवल दो महीने पहले इस बाघ का शिकार किया था. खाल, बॉलरूम में पड़ी है. जितनी बार मैं वहां से गुजरती हूं, मुझे गहरी उदासी महसूस होती है. मुझे लगता है कि यहां पड़े होने की जगह यह जंगल में घूम और दहाड़ रहा होता. हमारे बाघ बहुत सुंदर प्राणी हैं....
-इंदिरा गांधी
(राजीव गांधी को 7 सितंबर 1956 को लिखे पत्र के अंश)
इंदिरा जी ने वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 बनाया। इसके बाद जब जंगलों का ही नाश होने लगा तो वन संरक्षण कानून 1980 आया। 2002 में वन्य संरक्षण कानून इतना कड़ा कर दिया गया कि आदमी की हत्या से कोई मुजरिम बच भी सकता है लेकिन शिड्यूल्ड प्राणियों की हत्या के आरोपी की जिंदगी जेल में ही कटेगी।
नेशनल पार्कों व टाइगर रिजर्व की परियोजनाओं का विस्तार के पीछे भी इंदिरा जी की ही सोच थी। आज देश में 50 से ज्यादा टाइगर रिजर्व हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरों की तर्जपर वन्यप्राणियों के प्रति अपराध रोकने के ब्यूरो और कानून बने। आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि वन्यप्राणियों के संरक्षण के प्रति इंदिरा जी ने ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति न दिखाई होती तो आज हमारे जंगल चीतों की भाँति बाघों से भी विहीन होते।
बाघ हमारी संस्कृति के अटूट हिस्से हैं। वे दैवीय हैं और ईश्वर के अवतारी। इन्हें भौतिकवादी प्रगतिशीलों ने कभी इस नजरिए से नहीं देखा। बाघ सनातन से हमारी आस्थाओं में हैं। इसलिए बाघों के प्रति मेरा नजरिया वन्यप्रेमी, प्राणिशास्त्री से अलग हटकर है।
अपन को जब भी मौका मिलता है जंगल निकल लेता हूँ। जंगल प्रकृति की पाठशाला है, हर बार कुछ न कुछ सीख मिलती है। जानवर, पेंड़-पौधे, नदी, झरने सभी शिक्षक हैं, बशर्तें उन्हें ध्यान से देखिए, सुनिए समझिए। ये सब उस विराट संस्कृति के हिस्से हैं जो सनातन से चलती चली आ रही है। ये सह अस्तित्व के प्रादर्श थे कभी।
जब से सत्ता व्यवस्था शुरू हुई तभी से जंगल में संघर्ष की स्थिति बनी। समूचा वैदिक वांगमय जंगल में ही रचा गया। इसलिए पशु-पक्षियों की बात कौन करे पेड़-पौधे, नदी,पहाड़, झरने सभी जीवंत पात्र हैं। पुराण कथाओं में वे संवाद भी करते हैं। रामायण, रघुवंश, अभिग्यान शाकुंतलम और भी कई ग्रंथों ने अरण्यसंस्कृति को स्थापित किया। इसके समानांतर एक लोकसंस्कृति की भी धारा फूटी जिसके अवशेष अभी भी वनवासियों के बीच देखने को मिलती है। इस बार के जंगल प्रवास में यही सबकुछ देखा और अंतस से महसूस भी किया।
छह साल पहले ..कहानी सफेद बाघ की..(Tale of the white tiger) पुस्तक की सामग्री जुटाने के तारतम्य में जंगल से जो रिश्ता बना वो साल दर साल गाढा होता गया। एकांत क्षणों में मैं महसूस करता हूँ कि जंगल मुझे बुला रहा है। जब वहां जाता हूँ तो हर जगह देखकर ऐसा लगता है कि ...हो न हो यह मेरा देखा हुआ..। मेरा ही क्यों हर किसी का यहाँ से जन्म जन्मांतर का रिश्ता है। जरूरत है श्रवणग्राहिता और दृष्टिक्षमता की।
सुनने और देखने का तरीका ही हमारी संवेदनाओं का सूचकांक है। जंगलों में पशु पक्षियों के शिकार वाल्मीकि और सिद्धार्थ से पहले भी होते रहे हैं। संवेदना ने वाल्मीकि को आदि कवि बना दिया और सिद्धार्थ को भगवान् गौतमबुद्ध। ईश्वर ने आँख और कान सबको इन्हीं जैसे दिए हैं फिर भी कोटि वर्षों में कोई वाल्मीकि, कौई गौतमबुद्ध पैदा होता है। इसीलिए जंगल प्रकृति की ऐसी पाठशाला हैं जहाँ पढकर मनुष्य भी ईश्वर समतुल्य बनकर निकलता है।
वाणभट्ट ने कादंबरी में जिस विन्ध्याटवी का वर्णन किया है। वही विन्ध्याटवी सफेद बाघों का प्राकृतिक पर्यावास है। इतिहासवेत्ता और वनस्पतिशास्त्री इस क्षेत्र को बाँधवगढ, संजय नेशनल पार्क के साथ वर्णन जोड़ते हैं। मेरे अध्ययन व भ्रमण का क्षेत्र भी यही रहा। सफेद बाघ मोहन जिसकी संतानें आज दुनियाभर के अजायबघरों में मौजूद हैं, संजय नेशनल पार्क के बस्तुआ बीट के बरगड़ी के जंगल से पकड़ा गया था। संजय नेशनल पार्क का अब आधा हिस्सा छत्तीसगढ़ के कोरिया, अंबिकापुर जिले में आता है।
इस जंगल में अभी भी पचास से ज्यादा वन्यग्राम हैं। वहां अब सभ्यता पहुंच गई,बिजली, मोबाइल, जैसी चीजें, फिर भी वनों की लोकसंस्कृति के अवशेष देखने को मिल जाते हैं। पिछले प्रवास में एक घर के भित्तिचित्र ने ध्यान खींचा था,जिसमें हाथी बाघ से हाथ मिलाते हुए चित्रित था। उस घर के मालिक वनवासी भाई से पूछा तो उसके लिए बस यूं ही ऐसी कलाकारी थी,जो उसके पुरखे के जमाने से चलती चली आ रही है।
इस बीच संदर्भ के लिए ..प्रो.बेकर की पुस्तक.. बघेलखंड द टाईगर लेयर..पढने को मिली। तो पता चला कि विन्ध्य के जंगल कभी हाथियों की घनी आबादी के लिए जाने जाते थे। यहां के राजा का हाथियों के बेचने का कारोबार था। सीधी जिले के जिस मडवास रेंज के वन्यग्राम में वो भित्तिचित्र देखा उसी मड़वास के हाथियों के बारे में ..रीवा राज्य का इतिहास..के लेखक गुरू रामप्यारे अग्नीहोत्री ने लिखा कि ..एक बार राजा ने यहां से 30 हाथी पकड़वाए इसके बाद वे यह भूल गए कि इनका करना क्या है परिणाम यह हुआ की तीसों हाथी भूख से तड़प के मर गए थे। यानी इस जंगल में हाथी और बाघ सहअस्तित्व के साथ रहा करते थे।
भित्तिचित्र का संदेश भी दोनों की दोस्ती की कथा बताता था। इसी क्षेत्र में सात सफेद बाघों के मारे जाने का रिकॉर्ड बाँम्बे जूलाजिकल सोसाइटी की जंगल बुक में दर्ज है। रीमाराज्य की तीन पीढी के राजाओं ने अपने हिस्से के जंगल में तीस साल के भीतर 2 हजार बाघ मारे थे। सरगुजा के राजा के नाम से तो 17 सौ बाघों को मारने का विश्व रेकार्ड कायम है। इन्होंने भी इसी समयकाल में शिकार किए। पाँच साल पहले मैं जब इस जंगल में गया था तब एक भी बाघ नहीं थे। हाथी तो इतिहास की बात हैं।
इस बार जंगल प्रवास में एक वन्यग्राम के घर में बने भित्तिचित्र ने फिर ध्यान खींचा। गोबर से लीपी हुई भीत पर कोयले के रंग से एक बाघ उसके सामने एक गाय और बीच में बछडे़ का चित्र था। यह चकरा देने वाला मामला था। हाथी की दोस्ती तो चलो बराबरी की,पर इस गाय की भला बाघ के सामने क्या बिसात..? पूर्व की भाँति इस बार भी मकान मालिक का जवाब वही-पुरखों के समय से ऐसे ही कुछ न कुछ उरेहते आए हैं।
मेरे स्मृति पटल में कालिदास के रघुवंश की वह कथा आ गई जिसमें राजा दिलीप बाघ से यह निवेदन करते हैं कि गाय की जगह वह उन्हें अपना शिकार बना ले। पर इस भित्तिचित्र के साथ इस कथा का कोई तारतम्य जमा नहीं। उधेड़बुन में अम्मा का बहुला चौथ उपवास और वो ब्रतकथा याद आ गई। एक बार वह ब्रतकथा मुझे सुनानी पड़ी थी, क्योंकि पंडित नहीं आए थे।
संक्षेप में कथा कुछ इस तरह थी- जंगल चरने गई गाय से बाघ का सामना हो गया। बाघ शिकार करने ही वाला था कि गाय ने उससे विनती शुरू कर दी,बोली- आज मुझे मत खाओ, घर में मेरा बछड़ा भूखा इंतजार कर रहा होगा, मैं जाकर उसे अपना दूध पिला आऊं फिर मुझे खा लेना। बाघ बोला तू मुझे बुद्धू बना रही है, क्या गारंटी कि तू लौटके आएगी ही। कातर स्वर से गाय बोली- भैय्या मैं अपने बछडे़ की कसम खाती हूँ उसे दूध पिलाने के बाद पल भर भी नहीं रुकूंगी, मेरा विश्वास मानो भैय्या।
गाय के मुँह से भैय्या का शब्द बाघ के अंतस को छू गया, फिर भी बाघ तो बाघ। गाय ने फिर अश्रुपूरित स्वरों में कहा-आप जंगल के राजा जब आप ही मेरी बात का विश्वास नहीं करेंगे तो फिर क्या कहें, अब आपकी मर्जी। इस बार बाघ कुछ पसीजा बोला- जा बछडे़ को दूध पिला आ, पर लौटके आना जरूर। गाय जंगल से भागती, रँभाती गांव पहुंची। बछडे़ से कहा चल जल्दी दूध पी ले।
बछडे़ को संदेह हुआ कि कुछ न कुछ बात जरूर है। वह बोला- माँ ..मेरी कसम,पहले सच सच बताओ क्या बात है तभी थन में मुँह लगाऊंगा। गाय ने बाघ वाली पूरी बात बता दी। बछडे़ ने कहा चिंता की कोई बात नहीं माँ कल सुबह मैं तुम्हारे साथ चलूंगा। कैसे भी रात बीती। पूरे गांव को गाय और बाघ की बात पता चल गई। वचन से बँधी गाय बाघ की मांद की ओर लंबे डग भरते हुए चल दी। बछड़ा आगे आगे।
बाघ ने दूर से देखा कि गाय तय वक्त से पहले ही आ रही है। जाकर गाय बाघ के सामने स्वयं को शिकार के रूप में प्रस्तुत किया। बछड़ा चौकड़ी भरता बीच में आ गया। बोला- बाघ मामा मुझे खा लो माँ को छोड़ दो, माँ बची रही तो आपके लिए मेरे जैसे शिकार पैदा करती रहेगी। बाघ यह सुनकर सन्न रह गया। उसकी आँखों आँसू आ गए, गाय से बोला-जा बहना जा, भाँन्जे का ख्याल रखना। बाघ ने अभयदान दे दिया। इधर समूचा गांव ताके बैठा था कि क्या होगा..।
गोधूली बेला में जंगल से बछड़े के साथ सही सलामत आती गाय को देखकर सभी की जान में जान आई। घरों में चना जैसे कच्चे अन्न से गाँव वालों का उपवास टूटा। तभी से बहुला चौथ की ब्रत अपनी परंपरा में आया, जिसमें माँ,बहने अपने भाई के कुशलमंगल के लिए यह ब्रत रखती हैंं। गाय बाघ के कुशलमंगल और दीर्घायु के लिए ब्रत रखे..विश्व के किसी विचार दर्शन और कथानक में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। यह है हमारी अरण्यसंस्कृति, हमारी ल़ोकधारा जो जंगल से वन्यजीवों के बीच से फूटती है। वन्यजीव सरकारी सप्ताह के आयोजनों से नहीं बचेंगे। हमारी संस्कृति और परंपरा ही बचा सकती है इन्हें। जंगल को सुनऩे व देखने की श्रवणग्राहिता और दृष्टिक्षमता लानी होगी और वह जंगल के सरकारी कानूनों से नहीं आने वाली।
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28.7.20
सपा सरकार में मंत्री की बहन ने ग्रीन बेल्ट में किया व्यावसायिक निर्माण, BJP ने खोला मोर्चा, मुख्यमंत्री से शिकायत
अलीगढ | सपा सरकार में अलीगढ विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अफसरों की मिलीभगत से ग्रीनबेल्ट में बने अवैध हॉस्पिटल/इंस्टिट्यूट सहित अन्य सभी अवैध निर्माणों के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने मोर्चा खोल दिया है | भाजपा के वरिष्ठ जिला उपाध्यक्ष गौरव शर्मा ने सपा सरकार में मंत्री की बहन की शिकायत सीएम योगी से की है | भाजपा नेता ने अलीगढ विकास प्राधिकरण में व्यापत भ्रष्टाचार की भी शिकायत की है |
भाजपा के जिला उपाध्यक्ष गौरव शर्मा ने सीएम योगी से की शिकायत में अलीगढ के धोर्रा-क्वार्सी बाईपास स्थित ग्रीन बेल्ट में समुदाय विशेष के लोगों द्वारा गैरकानूनी रूप से अवैध व्यावसायिक निर्माण बनाने की शिकायत की है | शिकायत में सपा की अखिलेश सरकार में मंत्री रहे विधायक यासिर शाह की बहन सपा नेत्री डॉक्टर अलवीरा शाह द्वारा नियमो और कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए व्यावसायिक निर्माण डॉ वकार हार्ट सेण्टर हॉस्पिटल एवं इंस्टिट्यूट अवैध रूप बनाने की भी शिकायत की है |
भाजपा नेता ने ग्रीन बेल्ट को सपा नेताओं और माफियाओं द्वारा तहस नहस करने का आरोप लगाया है | साथ ही अलीगढ विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अफसरों की मिलीभगत की भी शिकायत की है |
आपके नेतृत्व भाजपा की सरकार नित नए आयाम रच रही है और पिछली समाजवादी पार्टी की भ्रष्ट सरकार के गलत कार्यों को सही कर रही है | अलीगढ में सपा की सरकार में क्वार्सी-धोर्रा बाईपास स्थित ग्रीन बेल्ट को सपा के नेताओं और माफियाओं ने तहस नहस कर दिया है | अलीगढ विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अफसरों से मिलकर अवैध व्यावसायिक निर्माण कर लिए हैं | भाजपा नेता गौरव शर्मा ने ग्रीन बेल्ट के गाटा संख्या 40 व 61 के जुज भाग पर बने इस अवैध निर्माण को ध्वस्त करने के लिए प्राधिकरण ध्वस्तीकरण आदेश कई बार जारी कर चुका है लेकिन जिले के अफसर सपा नेताओं के प्रभाव में कार्यवाही नहीं कर रहे हैं |
भाजपा जिला उपाध्यक्ष ने शिकायत में कहा है कि बिना किसी नक़्शे के, बिना किसी अनुमति के अवैध रूप से शहर के क्वार्सी-अनूपशहर बाईपास पर सपा के पूर्व मंत्री की बहन दबंग सपा नेत्री ने ने डॉ वकार हार्ट सेण्टर हॉस्पिटल एवं इंस्टिट्यूट बना लिया है | कई बार प्राधिकरण ने ध्वस्तीकरण आदेश पारित किये हैं लेकिन आज तक अवैध निर्माण नहीं हटाया गया है | इस क्षेत्र में प्राधिकरण की मिलीभगत से अन्य अवैध निर्माण भी है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं और एनजीटी के निर्देशों/नियमों का खुला उल्लंघन कर रहा है |
भाजपा के जिला उपाध्यक्ष गौरव शर्मा ने कहा है कि सपा सरकार में शहर में समुदाय विशेष के लोगों और सपा नेताओं ने तमाम वैध निर्माण किये हैं | सपा के मंत्री रहे यासिर शाह की बहन डॉ अलवीरा ने तो नियमो और कानूनों को ठेंगा दिखाकर ग्रीनबेल्ट में अवैध निर्माण किया है | उन्होंने कहा कि धोर्रा क्वार्सी बाईपास स्थित ग्रीन बेल्ट को खाली कराने और अवैध निर्माणों को ध्वस्त कराने के लिए मुख्यमंत्री जी से शिकायत की है | जल्द कार्यवाही कराई जाएगी |
24.7.20
सड़कें हैं , सवार नहीं ….!!
सड़कें हैं , सवार नहीं ….!!: बड़ी मारक है , वक्त की मार हिंद में मचा यूं हाहाकार सड़कें हैं , सवार नहीं हरियाली है , गुलज़ार नहीं बाजार है , खरीदार नहीं गुस्सा है , इजहार नहीं सोने वाले सो रहे खटने वाले रो रहे खुशनसीबों पर सिस्टम मेहरबान बाकी भूखों को तो बस ज्ञान …
गाज़ियाबाद में पत्रकार की हत्या के विरोध में प्रेस क्लब फिरोजाबाद ने दिया ज्ञापन
2 दिन पूर्व गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी को अज्ञात लोगों ने सिर में गोली मार दी थी। पत्रकार विक्रम जोशी ने लड़कियों से अभद्रता कर रहे बदमाशों को रोका था जिसके बाद उन्हें गोली मारी गई। यह गोली भी उनकी 8 साल की लड़की के सामने ही मारी गई। उसके बाद पत्रकार को हॉस्पिटल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई।
आकाश में फुर्र हो गया विमान का आकर्षण
हमारे आसमान से हवाई जहाज गायब हैं। दुनिया भर का आकाश खाली है। लगभग सभी देशों के अनगिनत हवाई उड्डों पर लाखों हवाई जहाज यूं ही पड़े हैं। लॉकडाउन ने सब कुछ लील लिया है। एयरलाइंस की कमाई बंद हैं। तो खर्चे कम करने के लिए वे कर्मचारी कम कर रहे हैं। दुनिया भर की एयरलाइंस में रोजगार खतरे में हैं और कर्मचारी निराश हैं। उम्मीद की कोई किरण भी नहीं दिखाई दे रही। उड्डयन सेक्टर का हाल सचमुच बेहाल हैं।
-निरंजन परिहार
आकाश में उड़ते हवाई जहाजों के आकर्षण से बाहर निकल आइए। क्योंकि अब वहां आकर्षण जैसा कुछ भी नहीं बचा है। कोरोना हमारे सारे आकर्षण हजम करने पर तुला है। किसी को भी, कहीं का नहीं छोड़ा है। क्या आप। क्या हम। और क्या हमारी जिंदगी। खासकर कोरोना हमें वहीं मार रहा है, जिससे हम सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं। फिर भले ही वह हमारा कोई रिश्ता हो, काम हो या हमारा शौक, या फिर हो हमारी हसरतों का सपना। देखिये न, ये हवाई जहाज भी हर किसी को आकर्षित करते हैं। आपको, हमको और सारी दुनिया को। यह कोरोना भी उसी आकर्षण में बंधा हुआ अब हवाई कंपनियों को भी लग गया है। रोग है, तो लगेगा ही। और लग गया है, तो नुकसान निश्चित है। सो, पहले तो कोरोना ने एयरलाइंस के धंधे को धमकाया, महीनों तक माहौल ठप करके सारे विमानों को धरती पर ले आया, कंपनियों को लगभग खड्डे में उतार दिया। ठीक वैसे ही, जैसे आपके और हमारे धंधे को उसने नुकसान पहुंचाया है। अब कोरोना नौकरियां खाने पर उतर आया है। इसीलिए एयर इंडिया तो वैसे भी मुश्किल में हैं, अब इंडिगो एयरलाइंस अपने करीब 2 हजार 500 कर्मचारियों को घर भेजने की तैयारी कर चुकी है। आकाश हवाई जहाजों से खाली है और दुनिया भर के हजारों एयरपोर्ट पर लाखों हवाई जहाज ग्राउंड हुए पड़े हैं।
23.7.20
एनयूजे की विक्रम जोशी के परिवार को एक करोड़ की आर्थिक सहायता देने की मांग
ससंद पर प्रदर्शन करने की घोषणा
नई दिल्ली । नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स-इंडिया, दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन और यूपी जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय विक्रम जोशी के परिवार को एक करोड़ रुपए की सहायता देने की मांग की है। साथ ही उनकी पत्नी को सरकारी नौकरी देने और बेटियों की शिक्षा का व्यवस्था करने का अनुरोध भी किया गया है।
नई दिल्ली । नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स-इंडिया, दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन और यूपी जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय विक्रम जोशी के परिवार को एक करोड़ रुपए की सहायता देने की मांग की है। साथ ही उनकी पत्नी को सरकारी नौकरी देने और बेटियों की शिक्षा का व्यवस्था करने का अनुरोध भी किया गया है।
IJU Concern killing of UP Journalist Vikram Joshi and 2 Fresh Cases of Assault on Journalists
New Delhi : The Indian Journalists Union expresses serious concern over killing of Vikram Joshi of Jana Sagar Today and two other fresh cases of attacks involving journalists in past 48 hours -columnist, blogger and environmentalist Rajiv Nayan Bahuguna in Uttarakhand, and Dilnawaz Pasha of BBC, both in Uttar Pradesh.
JFA expresses shock at scribe’s murder, demands stringent punishments
Guwahati: Journalists’ Forum Assam (JFA), expressing shock and anger
over the murder of Vijay Nagar (Ghaziabad) based journalist Vikram
Joshi, who worked for a local newspaper named JanSagarToday, demands
stringent punishments to all the culprits, at least nine of the
suspects have been arrested by the Uttar Pradesh police.
बड़े पर्दे, टीवी के बाद अब ओटीटी का जमाना
himanshu joshi
कोरोना की वजह से हॉलीवुड की बड़ी फिल्में 'टेनेट' और 'वंडर वुमन 1984' की रिलीज़ होने की तारीख़ बढ़ हो गयी हैं तो बॉलीवुड में 'राधे', 'लाल सिंह चड्डा' और '83' को बड़े पर्दे पर आने के लिए इंतज़ार करना पड़ रहा है। वहीं 'गुलाबो सिताबो' के बाद कुछ अन्य फिल्में भी ओटीटी पर दर्शकों के सामने आने के लिए तैयार है।
सवर्णवाद के छलावे में, सरकार फंसी सांसत में
kp singh
जातिवाद प्रेरित गिरोहबंदी देश में संवैधानिक शासन के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है। एक ओर हाल में उग्र राष्ट्रवाद का उभार चर्चाओं कें केंद्र में था दूसरी ओर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जातिवाद उभार हिंदुत्व की छतरी को छेदने लगा है। पहले दलित और पिछड़े वर्तमान शासन के खिलाफ जातिवाद और भेदभाव को लेकर मुखर थे, अब ब्राहमणों को लग रहा है कि इस शासन द्वारा उनके दमन और उत्पीड़न का सुनियोजित कुचक्र रचा जा रहा है। सरकार के कर्ता-धर्ता उनकी चरम तिक्तता देख हतप्रभ हैं।
जातिवाद प्रेरित गिरोहबंदी देश में संवैधानिक शासन के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है। एक ओर हाल में उग्र राष्ट्रवाद का उभार चर्चाओं कें केंद्र में था दूसरी ओर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जातिवाद उभार हिंदुत्व की छतरी को छेदने लगा है। पहले दलित और पिछड़े वर्तमान शासन के खिलाफ जातिवाद और भेदभाव को लेकर मुखर थे, अब ब्राहमणों को लग रहा है कि इस शासन द्वारा उनके दमन और उत्पीड़न का सुनियोजित कुचक्र रचा जा रहा है। सरकार के कर्ता-धर्ता उनकी चरम तिक्तता देख हतप्रभ हैं।
19.7.20
जनसुनवाई पोर्टल पर कोविड हेल्पलाइन में शिकायत का फर्जी निस्तारण
- शिकायतकर्ता ने की सीएम योगी से शिकायत
वाराणसी: रोहनियां/राजातालाब : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए जनसुनवाई पोर्टल की शुरुआत की थी। इससे त्वरित न्याय के साथ सरकार की छवि बेहतर होने की उम्मीद थी, लेकिन जनपद में अधिकांश अधिकारियों की लापरवाही सीएम के इस सपने पर पानी फेर रही है। इसका खुलासा जनसुनवाई पोर्टल पर कोरोना के बढ़ते संक्रमण और संचारी रोगों के प्रति आज तक साफ सफाई दवा छिड़काव सैनिटाइजेशन अवजल भराव के निकासी अभियान के अंतर्गत कोविड 19 मामले का निस्तारण किए बिना लखनऊ कंट्रोल रूम को झूठी रिपोर्ट भेजने के साथ ही शिकायतकर्ता का फीडबैक लिए बिना ही पोर्टल पर फर्जी सकारात्मक फिडबैक दर्ज होने के बाद हुआ है।
18.7.20
तारिका विचार मंच प्रयाग द्वारा प्रदान किए जाने वाले नामित सम्मान घोषित
डॉ अशोक गुलशन को मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान अशोक कुमार स्नेही को सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान कौशल पांडे को गणेश शंकर विद्यार्थी स्मृति सम्मान दिया गया
तुलसी देवी तिवारी को महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान नीलम त्रिवेदी को सुभद्रा कुमारी चौहान स्मृति सम्मान निक्की शर्मा रश्मि को शकुंतला सिरोठिया स्मृति सम्मान से नवाजा गया
कुल 30 नामित सम्मान इस वर्ष दिए गए
प्रयागराज : उत्तर भारत की सुपरिचित साहित्यिक संस्था तारिका विचार मंच प्रयाग 1983 से अब तक निरंतर अपने स्थापना दिवस पर प्रत्येक वर्ष साहित्यकारों कवियों और लेखकों को उनकी कृतियों पर नामित सम्मान प्रदान करती रही है एवं अपनी सहयोगी संस्थाओं के आयोजनों में भी संस्था राष्ट्रीय प्रतिभाओं का सम्मान करती आ रही है यह सम्मान प्रतिवर्ष संस्था के स्थापना दिवस पर भव्य समारोह करके दिए जाते रहे हैं किंतु इस बार ऐसा नहीं हो पाया
तुलसी देवी तिवारी को महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान नीलम त्रिवेदी को सुभद्रा कुमारी चौहान स्मृति सम्मान निक्की शर्मा रश्मि को शकुंतला सिरोठिया स्मृति सम्मान से नवाजा गया
कुल 30 नामित सम्मान इस वर्ष दिए गए
प्रयागराज : उत्तर भारत की सुपरिचित साहित्यिक संस्था तारिका विचार मंच प्रयाग 1983 से अब तक निरंतर अपने स्थापना दिवस पर प्रत्येक वर्ष साहित्यकारों कवियों और लेखकों को उनकी कृतियों पर नामित सम्मान प्रदान करती रही है एवं अपनी सहयोगी संस्थाओं के आयोजनों में भी संस्था राष्ट्रीय प्रतिभाओं का सम्मान करती आ रही है यह सम्मान प्रतिवर्ष संस्था के स्थापना दिवस पर भव्य समारोह करके दिए जाते रहे हैं किंतु इस बार ऐसा नहीं हो पाया
17.7.20
प्रताड़ना तंत्र में तब्दील होता प्रजातंत्र!
भारत के हुक्मरान कैसा सिस्टम चाहते हैं, यही कि गरीबों के साथ ज़ुल्म और अमीरों की जी-हुजूरी हो? क्या आप ये चाहते हैं कि, भारत का सिस्टम गरीबों के साथ बर्बरता का बर्ताब करे और अमीरों के तलवे चाटे? अगर साहिबानों को गरीबों को प्रताड़ित करके ही भारत को विश्व गुरु बनाना है तो, प्रताड़ना तंत्र का विश्वगुरु आपको मुबारक हो! हमारे देश के स्कूलों और कॉलेजों में भले ही पढ़ाने के लिए गुरु न हो। लेकिन नेता दंभ विश्वगुरु का ही भरेंगे।
विषय - मुगलसराय की खबरें ना लगाए जाने के संबंध में
Subject : मुगलसराय की खबरें ना लगाए जाने के संबंध में
सेवा में
संपादक महोदय
दैनिक जागरण
दिल्ली , लखनऊ , कानपुर , वाराणसी
विषय - मुगलसराय की खबरें ना लगाए जाने के संबंध में
महोदय
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विषय - मुगलसराय की खबरें ना लगाए जाने के संबंध में
महोदय
राजस्थान में गजब की राजनीतिक रगड़ाई चल रही है !
राजस्थान की राजनीति में सबसे अधिक प्रचलित शब्द इन दिनों
“रगड़ाई” बनता जा रहा है ,हालांकि यह हिंदी शब्द ‘रगड़’ के साथ आई लगाने से
बनता है ,पर है एकदम देशज शब्द,जिसके बारे में अंग्रेजीदां लोग कम ही
जानते हैं.
14.7.20
दैनिक जागरण का प्रशांत मिश्र नामक पालतू गुलाम केवल कांग्रेस से ही सवाल करता है...
दैनिक जागरण में एक कथित रूप से बड़े पत्रकार हैं। नाम है प्रशांत मिश्र। दिल्ली में बैठकर लिखते पढ़ते हैं। उनकी समीक्षा पढ़ता रहता हूँ। वह पत्रकार कम मोदी के पालतू गुलाम ज्यादा नजर आते हैं। मेरी निगाह में वह पत्रकार तो कत्तई नहीं हैं। केवल और केवल गुलाम। दलाल। मालिक के सामने दुम हिलाकर वफादारी का संकेत देने वाला जानवर।
राजस्थान में आपरेशन आउट, सर्वसत्तावाद का एक और नमूना
राजस्थान में राजनीतिक बवंडर जारी है। काफी समय से यह तय माना जा रहा था कि भाजपा राजस्थान में भी काग्रेस की सरकार का तख्ता पलट कराने से नहीं चूकेगी। अग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का पाठ लगता है कि भाजपा ने बढ़ी तन्मयता से पढ़ा है। दुनिया की सबसे शातिर अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए से भी उसने तमाम मक्कारियां और अय्यारियों को बड़े मन से गुना है। सीआईए किसी देश को अस्थिर करने के लिए वहां के अंतर्विरोधों को खंगालती है और फिर उन्हें बढ़ाकर सही समय पर धावा बोल देती है। काग्रेस में हर राज्य में अंतर्विरोध है। भाजपा का संगठन काग्रेस पार्टी की दुखती रगो पर निगाह रखने में कसर नहीं छोड़ता। चाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या सचिन पायलट इन्होंने अचानक बगावत नहीं की। इनका विद्रोह भाजपाई मंथराओं की लम्बी ब्रेनवाश साधना का परिणाम रहा है। काग्रेस का अहंकारी नेतृत्व संवादहीनता के कारण भाजपाई वारों को समय पर निष्फल नहीं कर सका। कर्नाटक, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में अपने गढ़ बचाने के लिए जब तक काग्रेस नेतृत्व हरकत में आया तब तक उसका का तमाम हो चुका था। इसके बाद उसके सामने कारवा गुजर गया गुबार देखते रहे के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। काग्रेस की बदकिस्मती यह है कि इसके बावजूद उसने सबक नहीं सीखा और राजस्थान में उसकी सरकार में सेंध लग जाना इसी का नतीजा है। सोनिया गांधी अपने भौंदू पुत्र राहुल गांधी को स्थापित करने की कोशिश में चूक पर चूक करती जा रही हैं फिर भी उनका पुत्र मोह समाप्त नहीं हो रहा है। इसी कारण प्रियंका गांधी भाई का लिहाज करते हुए तब तक सक्रिय नहीं हुई जब तक पूरा रायता फैल नहीं गया। प्रियंका गांधी ने तब कोशिश शुरू की जब सचिन पायलट अपने को कही और इंगेज कर चुके थे।
13.7.20
दिया तले अँधेरा !
शिवांग माथुर, वरिष्ठ पत्रकार
बीते चार महीने से दुनिया भर में पसरी निराशा और हताशा और उससे जन्मे अंधकार को मिटाने वाली कोई प्रकाश की किरण अब तक नज़र नहीं आई, लेकिन इस अंधकार के विराट् सागर में दुःख और पीड़ा तब और ज़्यादा गहरी हो जाती हैं जब आपका कोई साथी आपको छोड़ कर चला जाए. राजधानी दिल्ली में एक युवा पत्रकार तरुण सिसोदिया अपनी दो नन्ही परियों और अपनी पत्नी को इस क्रूर दुनिया में अकेला छोड़ कर मुक्ति की और चल दिया. यूँ तो तरुण को कोरोना ने जकड रखा था और उसका आल इंडिया ऑफ़ मेडिकल साइंस (एम्स ) में इलाज चल रहा था लेकिन किस्मत देखिये की मौत उसको कोरोना से नहीं बल्कि चौथी मंज़िल से छलांग लगा कर नसीब हुई. तरुण को निजी तौर पर जानने वाले बताते हैं की वो एक ज़िंदा दिल पत्रकार था, कोरोना का शिकार होने के बावजूद उसका हौसला बुलंद था. वो बाकी लोगो को भी मनोबल बनाये रखने की सलाह दिया करता था. ऐसे में एक निर्भीक युवा पत्रकार का यूँ मौत को गले लगा लेना कई गंभीर सवाल खड़े करता हैं. तरुण की मौत, जुगनू सी चमचमाती इस मीडिया इंडस्ट्री के पीछे की काली सच्चाई को चीख चीख कर बयान करती हैं. शीशे सी चमचमाती इन बड़े-बड़े चैनेलो और अखबारों के दफ्तरों की इमारते और उनमे बड़े और उच्च पदों पर आसीन अंधे, बहरे और गूंगे अधिकारियों के पत्थर दिल होने की कहानी हैं तरुण सिसोदिया की मौत. ये मौत हैं या हत्या इसका जवाब पत्रकारों को खुद से भी पूछना चाहिए.
स्त्री जीवन के तमाम सारे संबंधों को समझने की जरूरत -प्रो. सुधा सिंह
अलवर, राजस्थान
आज नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़, अलवर (राज ऋषि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय, अलवर से सम्बद्ध) एवं भर्तृहरि टाइम्स, पाक्षिक समाचार पत्र, अलवर के संयुक्त तत्त्वाधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार, स्वरचित काव्यपाठ/मूल्यांकन ई-संगोष्ठी-2 का आयोजन किया गया। जिसका विषय ‘स्त्री संबंधी मुद्दे’ था। इस संगोष्ठी में देश भर के 21 राज्यों एवं 3 केंद्र शासित प्रदेश आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और पुडुचेरी से सहभागिता करने वालों ने भाग लिया। जिनमें 16 युवा कवि-कवयित्रियों ने अपना काव्य पाठ किया।