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21.2.08

इसलिए पतित होने दो ताकि वह अपने लिए स्पेस गढ़ सके

((आजकल भड़ास के अलावा मैं कुछ दूसरों ब्लागों पर टिप्पणियां कर रहा हूं और पोस्ट लिख रहा हूं। मनीषा पांडेय का ब्लाग है बेदखल की डायरी। इस ब्लाग पर मनीषा जो लिखती हैं, उसे मैं बड़े चाव के पढ़ता हूं। उनके लिखने का अंदाज बिलकुल भड़ासियों जैसा होता है। बिलकुल साफ साफ मन की बात, सोच, इरादे लिख देती हैं। तो मनीषा ने अपने इसी अंदाज, साहस या दुस्साहस के क्रम में एक पोस्ट चोखेरबाली पर लिख मारी...हम लड़कियां पतित होना चाहती हैं। इस पोस्ट को काफी पढ़ा गया। उसके बाद उन्होंने लिखा..क्या पतनशीलता कोई मूल्य है? मैंने इसी पर टिप्पणी की है, जो इस तरह है....यशवंत))

यशवंत सिंह yashwant singh said...
सारी भाई मनीषा, गलत नाम लिखने के लिए। देखो, नाम तक याद नहीं है, बस लिखने की तुम्हारी स्टाइल व कंटेंट व याद है।

आपकी तारीफ करने के क्रम में मैं अपनी एक असहमति का जिक्र नहीं कर पाया था, वो अब कर रहा हूं।

आपका उपसंहार सैद्धांतिक तौर पर अच्छा है, लिखा अच्छे से है, पर व्यावहारिक नहीं है। पतित होने के लिए जिस बड़े विजन, बड़े फलक, बड़े संदर्भों की शर्त लगा दी है वो उचित नहीं है।

भइया, लड़की को मुक्त होने दो। उस ढेर सारी चीजें न समझाओ, न बुझाओ और न रटाओ। उसे बस क से कबूतर पढाओ। माने अपनी मर्जी से जीने की बात सिखाओ। आत्मनिर्भर होने को कहो। दिल की बात को सरेआम, खुलेआम रखने का साहस दो।

मनमर्जी करेगी तो जाहिर सी बात है कि गलत भी करेगी, सही भी करेगी। दिल की बात कहेगी तो अच्छी बात भी कहेगी, बुरी बात कहेगी। पर ये क्या कि स्त्री पतित हो लेकिन विचारधारा का चश्मा लेकर, नैतिकता का आवरण ओढ़कर, महिलावादी विजन लपेटकर.....।

इस लड़की को अभी सिर्फ इसलिए पतित होने दो कि वह इससे अपने लिए स्‍पेस पा सकती है, वह इससे चीप किस्‍म की ही सही, निजी आजादी पा सकती है।

समूची मानवता, उदात्तता, रचनात्मकता...ये सब तब होंगी जब वह अपने निजी स्पेस की जंग को जीत ले। रिएक्ट करने में सफल हो जाए। इतने महान लक्ष्य अभी से देंगी तो वैसे ही महानता के बोझ से दबी स्त्री फिर और महान हो जाएगी और पतित होने से रह जाएगी।

मैं तो कहूंगा इस पतनशीलता को किसी मूल्य से न जोड़ो। इसे मूल्यहीन पतनशीलता कहना पड़े तो खुल के कहो। चीजें क्रमिक तरीके से विकसित होती हैं। अभी रिएक्ट कर लेने दों, स्पेस ले लेने दो, चीप किस्म के सुख जी लेने दो....अपने आप इससे मन उबेगा और फिर अंदरखाने बड़े सवाल उठने शुरू हो जाएंगे। लेकिन अगर पतन होने के लिए पहले ही ढेर सारे मूल्य वगैरह बना दिए तो फिर सब टांय टांय फिस्स.....

एक बढ़ियावाली बहस शुरू करने के लिए आपको बधाई।
जय भड़ास
यशवंत
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2 comments:

Unknown said...

yshvant bhai bilkul pte ki bat kahi aapne...
drsl sahjta se bada n to koi muly hai n naitikta...
hr niym aakhirkar rudhiyon me tbdil ho jata hai aur jivn aage badh jata hai use atkrmit krta hai

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सहजता और सरलता ही धर्म है बाकी सब जो है वह बस गढ़ा हुआ है बनावटी सा चाहे वह स्त्री के संदर्भ में हो या पुरुष के......