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1.3.08

कुछ तो शरम करो भडास बंद करने वालों

विराट अंतर्जाल पर स्व के अस्तित्व के सवाल पर ब्लॉग को मठ का आकार देनेवाले तमाम मूर्तिकारों से प्रार्थना है की जमीन से जुड़े मुद्दे को दरकिनार कर तानाशाही रवैया अपनाने की गैर लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर अविलम्ब विराम लगवाएंक्योंकि आप कथित विद्वानों की जमात ने अभिव्यक्ति को लगाम लगाने की कवायद का प्रारंभ कर एक सुप्त क्रांति को हवा दे दी है,जिसकी तपिश की तासीर का एहसास न सिर्फ़ आपको बल्कि उन तमाम असंवेदनशील बुधिजिविओं को होगी जो खीज कर अपनी रचनाओं में दुश्मन पर चप्पल तक तोड़ने की कल्पना कर बैठते हैं। लेकिन वास्तव में जब समस्या के समाधान के प्रति कोई ध्यान आकृष्ट कराना चाहता है तो उनका समाजवाद फासिस्त्वादी राग अलापने लग जाता है। जब कोई जमीनी हकीकत को आपकी दहलीज पर रखने की हिम्मत करता है तो प्रगतिशील मानसिकता के धनि कहे जाने वाले तथाकथित विद्वानों को यह नागवार गुजरता है की वो परदा उतार रहा है...इनका गर्दन उतार लो...यह दुनिया को हमारा नंगा सच दिखा रहा है ..जिस सभ्यता और परम्परा को ढाल बना कर हम अपना अस्तित्व बचाए हैं वह हमें चुनौती दे रहा है..उसे मारो ,पीटो...पत्थर फेंको ..बस चले तो चौराहे पर टांग कर गांड मार लो।


सदियों से यही होता आ रहा है ..आज आप लोग ऐसा कर रहे हैं तो कौन नयी परिकल्पना,नए प्रतिमान को साकार कर रहे हैं....नई परिकल्पनाएं तो वे कर रहे हैं जो भारत की असली आबादी है जिनकी मज्बुरिआं आपके अस्तित्व को सहेजे खडा है ये वो आबादी है जो तुम्हारी तरह जीने का नाटक नही कर रही है। भले ही ये तुम्हारे नजरों में जाहिल,गंवार,मूर्ख और उपेक्षित हैं लेकिन ये जानते हैं की जड़ता और यांत्रिकता के मोहपाश से निकलने के बाद से ही वास्तविक जीवन प्रारम्भ होता है। ये तुम्हारी तरह प्रतिरोध,गतिरोध एवं विषैली रणनीति का हितैषी इसलिए नही बनना चाहते हैं क्योंकि ये भली भांति जानते हैं की समाज को बदलना है तो सबसे पहले मनुष्य को बदलना होगा और शक्ति की अराजकता जैसा तुमलोग कर रहे हो ठीक उससे इतर यह जाहिल शक्ति के संयम एवं संतुलन का हितैषी है। तुम लेने के पक्षधर हो तो ये देने को अपना सर्वस्व मानते हैं। क्योंकि ये जानते हैं की मेरे भीतर जो घाट रहा है उसे बांटना है,जो गीत घटा है उसे गा देना है,जो शोक घटा है उसे रो देना है,जिन पलों को जी चुके हैं उनको बाँट देना है ...ये बांटते जाओ बढ़ता जाएगा में यकीं रखते हैं क्योंकि उसे रोक दो वह रुक जाएगा ,तुम्हारा सत्य सड़ना शुरू हो जाएगा,दुर्गन्ध आने लगेगी जैसा तुम्हारे स्थिर सत्य से आ रही है। तो तुम इनके सत्य को स्वीकार करने का साहस नही कर सकते हो क्योंकि सत्य को ग्रहण करने में चोट पड़ते हैं और तुम लोगों ने यह धारणा बना लिए हो की सत्य,ज्ञान और विद्वता तथा समाज की प्रगति का गूढ़ रहस्य सिर्फ़ तुम्हारे पास है,तुम्हे सत्य कौन दिखला सकता है?यहाँ तुम्हारा अहम् वल्वती हो जाता है । तुम अपने आवरण से बाहर निकलने का साहस नही कर पाते हो .अगर कोई तुमसे कहे की वह शरीफ है तो तुम सौ बार पता लगाओगे...लेकिन कोई यह कहे की वह चोर है तो तुम और तुम्हारा अंहकार तृप्त होता है तुम्हे सुख मिलेगा की चलो हम अकेले चोर तो नही हैं सामने वाला भी चोर है।

इसलिए सामाजिक मनोवृति के सांचे में प्रशंशा कभी भी स्वीकृत नही हुई है और निंदा जल्द स्वीकृत हो जाती है और व्यक्तिगत मेरे ख्याल से हिन्दुस्तान की हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में अभी ठीक यही घटित हो रहा है। शैशवावस्था के दौर से गुजरते हुए ब्लोगोंग विधा सच्चे अर्थों में अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट मंच है जिसने अपनी व्यापक छवि निर्मित की है। लेकिन तुम जैसे स्व नाम धन्य मठाधीशों की तानाशाही के कारन ऐसा लगने लगा है की इसका गला घोंटा जा रहा है। मेरे जैसे ग्रामीण पृष्ठभूमि का युवा इस उम्मीद से आप तक अपनी बात पहुंचा रहा था की अप विद्वानों की टोली ,विभिन्न शास्त्रों के ज्ञाता ,विभिन्न अलान्करानो से अलंकृत हमारे बुजुर्ग अनुभवी देश के उपेक्षित पडी आबादी के मर्म को समझ कर वैश्विक स्तर पर ब्लॉग समुदाय का ध्यान मानव की उपेक्षित पडी इस आबादी की और दिलाएंगे,उनके जीर्ण-शीर्ण-विदीर्ण हालत को सहानुभूति के सामुहिक स्वर एवं कठिन परिस्थिशन में जीवन जीने की कला सीखेंगे लेकिन यह क्या ''भडास'' जब इन उपेक्षितों के हित की बात करने लगा तो प्रतिबन्ध लगाने एवं यहाँ तक की व्यक्ति विशेष को केंद्रित कर लांछन लगाने का एक अनवरत सिलसिला चल पडा।
स्वाभाविक है की सदियो से मानवता के रक्त पिपाशु,झूठ,फरेब,छल और प्रपंच से जीवन जीने वाले नर भक्षकों को अपना अस्तित्व ,चिट्ठाजगत की भाषा में धाक का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिखने लगा तो हताश और निराश हो कर भादों के कीडे के समान ज्योति पुंज पर एक साथ हमला कर दिया तो इसमे न ही उत्तेजित होने की आवश्यकता है और न ही आक्रोशित होने की क्यूंकि आम अवाम अब तुम्हारे सच से वाकिफ हो चुकी है। हम भाडासिओं को सिर्फ़ थोरा जोर देकर तुम्हारी नंगई प्रगतिशीलता के खोखले सच का रास्ता दिखा देना है ताकि वंचित वर्ग को यह एहसास हो जाए की वर्षो से प्रगति का सपना दिखाने वाले ऐसे उन्मादी तत्व ब्लॉग पर भी अपना एकाधिकार ज़माना चाह रहे हैं।
गाली अगर आपको बेधती है तो मनुष्य की आत्मा से गाली का उन्मूलन कैसे हो ,अगर यह आपके श्लिलता का चिर हरण करती दिख रही तो इसका अंत कैसे हो इस पर बैठ कर सोचिये,पोस्टर छापाइए ,लोगो को बताइए जैसा मैं आगे बता रहा हुं:-
(१)आज के बाद से कोई बाप अपने बच्चे की शैतानी से खीजकर खुल कर तो दूर की बात अपने मन में भी न भुन्भुनाएं नही तो इन तिकड़ी ब्लोगरो के द्वारा निर्मित किए गए संविधान के उल्लंघन के आरोप में सजा के भागीदार हो सकते हैं।
(२)आज के बाद से भारत गणराज्य के किसी भी शहर,गाँव,मोहल्ले की हर गलियो में होने वाले हर लड़ाई में एक भी गाली का इस्तेमाल करना संवैधानिक रूप से वर्जित है और दोषी पाए जाने पर आरोपी को टेक्नीकल भाषा में फ्लेग रूपी बांस किया जाएगा।
(३)आज के बाद अगर कोई साला अपने बहनोई को और बहनोई साला को गाली दिए जाने का आरोपित होता है तो इनका संविधान आपको प्रतिबंधित करने के लिए पुरी तरह स्वतंत्र है।
(४)आज के बाद अगर आप टेलीविजन पर भारत और पाकिस्तान के बिच खेले जा रहे रोमांचक निर्णायक मोड़ पर आए मैच को देख रहे हों और अचानक बिजली गुल हो जाए तो एकदम गाँठ बाँध लीजिये भूल से भी आपके मुंह से अभद्र गाली नही निकलना चाहिए अन्यथा आप इनके कोप के शिकार हो सकते हैं।
(५)आज के बाद से कोई चरवाहा अपने जानवर को खूटा से खोलने के वक्त में गाली का प्रयोग नही करे भले उसका जानवर किसी का पूरा खेत चाट कर जाए।
(६)आप अगर होली का मजा लेना चाहते हैं तो परम्परा-तरम्पारा ,होलिका दहन संगीत जोगीरा सा रा रा रा भूल जाएं....और ''आँस के पत्ता बांस के पत्ता मुस के लंगरी अ जानी के चुत्ताद पर लाल घंघ्री ऐसे शब्दों का इस्तेमाल बंद कर दें और हो सके तो होली से पहले सभी गाँव वालों को बता दें की देश में कुछ स्पेसल कानून बनाने वाले आ गए हैं।
(७) विशेष सूचना ख़ास कर शराबी मित्र के लिए:-अगर तीन पैग लेने के बाद आपको अपने बौस का चेहरा याद आ जाए या जीवान का कोई क्षण भेदे या प्रतिशोध की भावना वल्वती हो तो श्री यन्त्रं, का ग्यारह माला जप करें....भूल कर भी पान खाने के वक्त भी नही मतलब किसी भी समय ख़ास कर वर यात्रा में तो आपके द्वारा दिया गया गाली एकदम निषिद्ध है।
(८) देश के तमाम थानाध्यक्षों ,चूँकि आप भडासी परम्परा के ध्वज वाहक रहे हैं इसलिए कुख्यात से कुख्यात अप्राधिओं से क्लू लेने के लिए भी गाली का प्रयोग एक दम मत करें.....बमक गए का....ऐसा हम थोरे कह रहे हैं.....कुछ अपनों ने संविधान बनाया है उसी का पाठ याद कर रहा हुं।
(९) आज के बाद देश के तमाम कृषक बंधू आप भी इस परिसीमन के शिकार हुए हैं लेकिन आप को आरक्षण का लाभ मिला है इसलिए खेत में अगर आपका बैल अकड़ जाए तो उसे गूड इंग्लिश पढाएं भूल कर भी गाली का इस्तेमाल मत करें।
(१०) गुल गुल्वा बंधू आप तो फकिराना अंदाज और लफ्जो के लिए मशहूर हैं आप का गुस्सा परवान पर होता है तो बड़े क्लिष्ट भाषा में गाली का बौछार करते हैं इसलिए कृपया..पिलिज....अरे समझा कर न यार....ये भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रश्न है ....तो कभी भूल कर भी एक गाली भी नही ..समझा क्या?
तो कर दीजिए फतवा जरी की ''हिंदू हो या मुसलमान चाहे जात का हो माली ,सूली चढ़ा दी जाओगे अगर बकोगे गाली''...तो तुम उपेक्षित चुप....एकदम चुप...सुग्गा चुप....मैना चुप...हम विद्वान् जो कहेगा वो सुनो चुप चाप ...आहो बुआ हो.....सिर्फ़ सुनेगा...बकेगा नही.....समझा॥
''भडास'' को बंद करो की मुहीम में शामिल कुछ मित्रा को ''इन सूअरों को आइना मत दिखाइये,ये गूंह खाना नही छोरेंगे'' शीर्षक में जिन जलते सच को दिखाया गया था की राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् ने अपने ताजा रिपोर्ट में यह बताया है की देश के पैंतालीस फीसदी बच्चे जोड़ घटाव भी नही जानते हैं तो इन प्रगतिशील कहे जाने वालों को ''सर्वत्र हरा हरा '' ही दिखता है तो इनके नयन जिन विसन्गतिआन् में ही तृप्त होते हैं तो हम औघर बंजारों का क्या? क्यूंकि हम भडासी सिर्फ़ इतना जानते हैं की संस्कारों के रुद्ध जड़ बनावटी आवरणों एवं पूर्वाग्रहों से मुक्त कर समाज की रुग्न काया में संभावनाओं के नए सूर्योदय का उदय करना ही हमारा मुख्य लक्ष्य है भले ही भाषा विचार,शास्त्र विचार से पीड़ित लोग हमारा क्षरण करने का सामुहिक प्रयास क्यों न करते हो।
इतिहास के अध्येता इस तथ्य से सहमत हैं की यह वाही शास्त्र है जिसने अपने पन्ने पर न तो महावीर को स्थान दिया और न ही गौतम बुध के तर्क के तरकश से निकले तीर को सह सके,इनसे जहा तक सम्भव हुआ इन्होने जमीं से जुड़े सच को जीने वाले,जीने की सिख देने वाले,बुध भिक्षुओं को जिंदा जलाया,दार्श्निको को अपने देश से भगा दिया भले ही इनके प्रकाश पुंज की आभा के कारण ये जहा भी गए वही अपनी नींव डाल दी,मकान बना दिया और अंततः इनके विजय को स्वीकार करना ही पडा।
तो हम भडासी किसी बुध या महावीर की तरह क्रांति या पंथ के जनक बनने का शौक पलने की मुहीम में नही जुटे हैं। हमने अब उस नब्ज को पकड़ लिया है जहाँ से पुरी दुनियाहमारा नंगा -भूखा-तड़पता स्वरुप देख सके और विकास के पैरोकारों तक हमारी चीख पहुँच सके और हम पर तरस खा कर कोई हम उपेक्षितों का भला कर सके, बस इसी मिसन पर हम भडासी काम कर रहे हैं और अगर आप झादाबर्दारो को यह नागवार गुजर रहा है तो कृपया वेवाशी का फायदा मत उठाएं। लेकिन आप ऐसा नही कर सकते हैं क्यूंकि इन क्षणों को झेलने की हिम्मत चाहिए जो आपके क्रोध और प्रतिशोध की बलि चढ़ गया है।
जय भडास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मनीष भाई,अब इन्हें समझ में आएगा कि ज्वालामुखी पर सुस्सू करने से उसका लावा बुझ नहीं जाता है बल्कि नुन्नू जल जाती है और अब सब अपने अपने बिलों में बैठ कर एक दूसरे की नुन्नू पर बरनौल लगा रहे हैं.....
जय भड़ास
जय यशवंत
जय मनीषराज
जय क ख ग घ
जय च छ ज झ
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जय क्ष त्र ज्ञ
जय A B C....Z
पर हर हाल में जय जय भड़ास