Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

9.3.08

महिला दिवस... सुन सुन कर कान पक गए

महिला दिवस. महिला दिवस.. महिला दिवस... सुन सुन कर कान पक गए. कोई कहता है ये करों कोई कहता है ऐसा मत करो... लेकिन किसी ने इसके अलावा भी कभी एक और प्रजाति की सुध ली है... वह जीव है पुरुष... सिर्फ पुरुष नहीं पत्नी पीड़ित पुरुष... सुबह जिसे पूरी नींद भर सोने नहीं दिया जाता. .. झिंझोड़ते हुए उठाकर आदेश दे दिया जाता है जाओ गुल्लू को स्कूल बस तक छोड़ कर आओ... तब लगता है बहनचो.. क्या जिंदगी है काश यह स्कूल ही न होती... स्कूल से लौटे तो पता चला आज आटा खतम है तो गेहूं पिसाना है या खरीद कर लाना तब चाय मिलेगी... बाई आई तो बरतन हम नहीं देगें श्रीमती जी ही अधिकार पूर्वक बर्तन निकालेंगी... फिर जल्दी से काम निबटा कर बार-बार आफिस कब जाओगे... और न जाने कितने तरीके से पुरुष प्रताड़ित होता है. हर पुरुष के अपने अपने दर्द हैं लेकिन ये महिला के पीछे घूमने वाला समाज साला कभी इन पुरुषों का दर्द नहीं समझ सकता जरूरत है इसकी भी आवाज उठे और मांग हो कि हर वर्ष एक दिन पुरुष दिवस तो जरूर मनाया जाय...

3 comments:

जेपी नारायण said...

लाहौलबिलाकूवत...कुछ और तो नहीं पका?
वैसे पुरुष का कोई भी दर्द मां के दर्द से बड़ा नहीं होता है श्रीमान।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाई,आप लोग मर्द और औरतों के बीच में फिर उन्हें नज़रअदाज कर जाते हैं जो लैंगिक विकलांग हैं उनका समय कब आयेगा ???????

Ramashankar said...

जेपी नारायण जी मां को इन सब के बीच में न लाएं. मां अतुलनीय है. रही बात दर्द की तो शायद आपने गौर से नहीं पढ़ा ... पत्नी पीड़ित पुरुष की बात की गई है.