भारतीय हाकी का सबसे काला दिन
हाकी में भारत ने किया शर्मशार
शर्मशार हुई भारतीय हाकी
हाय रे हाकी
देश के तमाम बडे अखबारों की सुबह आज इस हेडलाइंस के साथ हुई। बडे बडे हेडिंग और इतनी थू थू आज पहली बार हाकी को लेकर न्यूज पेपरों से लेकर न्यूज चैनलों तक में देखने को मिली। हर कोई अचरज के साथ यही कह रहा है कि देश का राष्ट्रीय खेल गर्क में चला गया। अस्सी साल के सुनहरे इतिहास में हम पहली बार इतने शर्मशार हुए। हाकी महासंघ के प्रमुख केपीएस गिल को बिना देरी के इस्तीफा दे देना चाहिए। मगर कोई भी जिम्मेदार नागरिक यह सोचने की जहमत नहीं उठा रहा कि आखिर इस शर्मनाक हालत के लिए क्या वह जिम्मेदार नहीं। भारतीय समाज जिम्मेदार नहीं। पूंजीवाद जिम्मेदार नहीं। क्रिकेट के प्रति दिवानगी जिम्मेदार नहीं। गरमागरम खाबरों को बेचने वाला मीडिया जिम्मेदार नहीं।आज तमाम अखबारों में हाकी की हार को जितनी तरजीह दी गई है मुझे नहीं लगता हाकी की जीत पर कभी इतनी जगह दी गई थी। सच तो यह है कि चक दे इंडिया का नारा क्रिकेट के लिए हम दे तो सकते हैं लेकिन हाकी के लिए बोल भी नहीं सकते। हमने क्रिकेट को ही अपना नेशनल गेम मान लिया है। यह बात और है कि हम उसे संविधान में स्थान नहीं दे सकते। यही हाल देश के चौथे स्तंभ मीडिया का भी है। मीडिया ने कभी हाकी को इतनी तरजीह ही नहीं दी कि देश का यह खेल देश की नई नस्ल की नब्ज तक पहुंच सके। अगर आप ने हाकी को अपना देश खेल माना ही नहीं तो केपीएस गिल से इस्तीफा मांगने का मतलब समझ से परे है। आज हाकी खिलाडी भी समझ गए हैं कि खेलने से कुछ मिलने वाला तो है नहीं। तो जान देने से फायदा क्या। आप सब को याद होगा पीछले कुछ माह पहले जब भारतीय हाकी टीम गोल्ड मेडल जीतकर जब स्वदेश लौटी तो इन हाकी खिलाडियों को न के बराबर इनाम या सम्मान दिया गया। इसी बीच धोनी के धूरंधरों ने 20 ट्वेंटी का क्रिकेट विश्व कप जीत लिया। यह टीम देश लौटी तो अभूतपूर्व स्वागत के साथ मुंबई में टीम का जबरदस्त स्वागत किया गया। यह बात हाकी खिलाडियों को बुरी लगी तो उन्होंने अपना रोष जताया और सम्मान की मांग की। तब जाकर सरकारें जागीं और उनको भी कुछ दे दिया। अब जिस देश में क्रिकेट को बिन मांगे सब कुछ मिल रहा हो और देश के राष्ट्रीय खेल के जवानों को अपना सम्मान मांगना पड रहा हो उस देश में यह दिन तो आना ही था। अब इस पर अफसोस करने से क्या फायदा। हाकी को आप और हम बचा नहीं सकते। क्योंकि इसमें कोई बडा पूंजीपती अपना हाथ नहीं लगाएगा, इसकी फ्रेंचाइजी नहीं लेगा। कोई इसे स्पांसर नहीं करेगा और न ही कोई मीडिया इसकी खबर देगा और न ही हम इसे अपना राष्ट्रीय खेल समझेंगे।
देश के तमाम बडे अखबारों की सुबह आज इस हेडलाइंस के साथ हुई। बडे बडे हेडिंग और इतनी थू थू आज पहली बार हाकी को लेकर न्यूज पेपरों से लेकर न्यूज चैनलों तक में देखने को मिली। हर कोई अचरज के साथ यही कह रहा है कि देश का राष्ट्रीय खेल गर्क में चला गया। अस्सी साल के सुनहरे इतिहास में हम पहली बार इतने शर्मशार हुए। हाकी महासंघ के प्रमुख केपीएस गिल को बिना देरी के इस्तीफा दे देना चाहिए। मगर कोई भी जिम्मेदार नागरिक यह सोचने की जहमत नहीं उठा रहा कि आखिर इस शर्मनाक हालत के लिए क्या वह जिम्मेदार नहीं। भारतीय समाज जिम्मेदार नहीं। पूंजीवाद जिम्मेदार नहीं। क्रिकेट के प्रति दिवानगी जिम्मेदार नहीं। गरमागरम खाबरों को बेचने वाला मीडिया जिम्मेदार नहीं।आज तमाम अखबारों में हाकी की हार को जितनी तरजीह दी गई है मुझे नहीं लगता हाकी की जीत पर कभी इतनी जगह दी गई थी। सच तो यह है कि चक दे इंडिया का नारा क्रिकेट के लिए हम दे तो सकते हैं लेकिन हाकी के लिए बोल भी नहीं सकते। हमने क्रिकेट को ही अपना नेशनल गेम मान लिया है। यह बात और है कि हम उसे संविधान में स्थान नहीं दे सकते। यही हाल देश के चौथे स्तंभ मीडिया का भी है। मीडिया ने कभी हाकी को इतनी तरजीह ही नहीं दी कि देश का यह खेल देश की नई नस्ल की नब्ज तक पहुंच सके। अगर आप ने हाकी को अपना देश खेल माना ही नहीं तो केपीएस गिल से इस्तीफा मांगने का मतलब समझ से परे है। आज हाकी खिलाडी भी समझ गए हैं कि खेलने से कुछ मिलने वाला तो है नहीं। तो जान देने से फायदा क्या। आप सब को याद होगा पीछले कुछ माह पहले जब भारतीय हाकी टीम गोल्ड मेडल जीतकर जब स्वदेश लौटी तो इन हाकी खिलाडियों को न के बराबर इनाम या सम्मान दिया गया। इसी बीच धोनी के धूरंधरों ने 20 ट्वेंटी का क्रिकेट विश्व कप जीत लिया। यह टीम देश लौटी तो अभूतपूर्व स्वागत के साथ मुंबई में टीम का जबरदस्त स्वागत किया गया। यह बात हाकी खिलाडियों को बुरी लगी तो उन्होंने अपना रोष जताया और सम्मान की मांग की। तब जाकर सरकारें जागीं और उनको भी कुछ दे दिया। अब जिस देश में क्रिकेट को बिन मांगे सब कुछ मिल रहा हो और देश के राष्ट्रीय खेल के जवानों को अपना सम्मान मांगना पड रहा हो उस देश में यह दिन तो आना ही था। अब इस पर अफसोस करने से क्या फायदा। हाकी को आप और हम बचा नहीं सकते। क्योंकि इसमें कोई बडा पूंजीपती अपना हाथ नहीं लगाएगा, इसकी फ्रेंचाइजी नहीं लेगा। कोई इसे स्पांसर नहीं करेगा और न ही कोई मीडिया इसकी खबर देगा और न ही हम इसे अपना राष्ट्रीय खेल समझेंगे।
वाकई में चक दिया इंडिया
अबरार अहमद
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