(((इस पोस्ट के ठीक नीचे पोस्ट है, साथी पंकज पराशर ने कई उदाहरणों के जरिये बताया है कि ब्लागिंग के जो मठाधीश आज भाषा के नाम पर भड़ास पर पाबंदी की बात कर रहे हैं, दरअसल उनकी चले तो काशीनाथ का अस्सी का मोर्चा कभी छपे ही नहीं और छप भी जाए तो काशीनाथ को इस जुर्म में फांसी पर लटका दिया जाए। मैं पंकज जी की पोस्ट पर कमेंट करने गया तो गद्य ने पद्य की शक्ल अख्तियार कर ली और बन कई एक कविता, बिलकुल धारधार, मठाधीशी के खिलाफ।
दरअसल मठाधीश कोई एक व्यक्ति नहीं होता, वह ट्रेंड होता है, वह संस्थान होता है, वह बीमारी होती है, वह माफिया होता है। और उसे समझने के लिए आपको थोड़ी अक्ल लगानी पड़ती है पर इनकी पहचान बहुत जल्दी हो जाती है।
ब्लागिंग के मठाधीश और उनके कुछ चिलांडुओं पर जो कविता बन पड़ी है जो नीचे पंकज पराशर वाली पोस्ट में कमेंट के रूप में भी लिखा है, उसे थोड़ा और बड़ा करते हुए और ठीक करते हुए एक अलग पोस्ट के रूप दे रहा हूं। अच्छा लगे तो कमेंट में वाह वाह कर दीजिएगा, बुरा लगे तो गरिया दीजिएगा....जय भड़ास, यशवंत.....)))
मठाधीशों के पास आत्मा नहीं होती,
आत्मा होने का नाटक होता है,
मठाधीशों के पास तर्क नहीं होता,
तर्क होने का नाटक होता है,
मठाधीशों का कोई सरोकार नहीं होता,
सरोकार होने का नाटक होता है,
मठाधीशों के पास व्यक्तित्व नहीं होता
व्यक्तित्व होने का नाटक होता है
और नाटकों से बने इन नाटकीय व्यक्तित्वों को
....
साहित्य
समझ
संस्कृति
सोच
सिनेमा
रेडियो
थिएटर
विचारधारा
सरोकार
....
से बस इतना लेना देना होता है कि
इनकी मठाधीशी और फैले
बोले तो
इनकी पल्लगी करने वाले और बढ़ें
इनको ढेर सारे पुरस्कार मिलें
इनका हर जगह नाम लिया जाए
इन्हें हर कोई सराहे
इनका हर कहा माना जाए
ये जहां जाएं तो लोग इन्हें सजदा करें
ये जो बोलें उसे संस्कृति का बोल माना जाए
ये जो सोचें उसे राष्ट्रीय सोच माना जाए
इनके कदम जिधर चलें, उधर ही आंदोलन शुरू हो जाएं
ये जब सोएं तो दुनिया शांत रहे
ये जब हगें तो दुनिया पानी लेकर खड़ी रहे
ये जब मूतें तो लोग वाह वाह करें
ये जब सलाह दें तो उसे आदेश माना जाए
ये जिसे चाहें बंद करा दें, जिसे चाहें आजाद करा दें
ये मठाधीश हैं, ये चिलांडु हैं
जो अपने घर में गंदगी फैलाए रहें, इनकी मर्जी
पर दूसरे के घरों में घुसकर अरेस्ट वारंट दिखाते हैं
उन्हें तहजीब और नसीहत सिखाते हैं
उन्हें जीने का ढंग और भाषा की समझ बताते हैं
ये सरोकारों के नाम पर खुद को विद्वान
और बाकी विद्वानों को चूतिया मानते हैं
...................
ऐसी ढेरों कामनाओं, भावनाओं, तावनाओं, खावनाओं....से अंटे बसे इन लोगों को
भइया या तो आइना न दिखाओ
या जब दिखाओ तो खुल के गरियाओ
और कह दो
कुत्तों....सूअरों....बिल्लियों.....
तु्म्हारे बौद्धिक मैथुन से हम स्खलित नहीं होंगे
वरन हम तुम्हारे मुंह को ही तोड़ देंगे
जिसका तुम लिंग के रूप में
इस देश की भाषा और जनता के पिछवाड़े
अनाम नाम से, स्याह अंधेरे में
और कभी कभी तो दिनदहाड़े
इस्तेमाल कर रहे हो....
तेरी गंदी सोच, विकृत मानसिकता और अंधी हो चकी संवेदना पर हम थूकते हैं
सुन ले ओ बे मठाधीश
और मठाधीश के चिलांडु
जय भड़ास
यशवंत
1.3.08
एक कविताः सुन ले, ओ बे मठाधीश और मठाधीश के चिलांडु...
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5 comments:
DADA....SACHMUCH VAH.VAH
jio guru..manoge nhi...khair ve bhi kahan man rhe...sahi hai sahi guru....hm sath hain
maja a gaya. fad di bachhon ki. ye mathadhish thone hain, jo anjan nam se fadfadate hain. ye bachhen hain jinki kuchh din baad bolati band ho jayegi.
jai bhadas
alok raghuvanshi
गिरगिट गावैं, गाल बजावैं,
लाल सलामी पेलि के।
बूढ़ गांड़, अंग्रेजी बाजा
सुनैं, सुनावैं झेलि के।
लेकिन भला भड़ासी कैसे
मानैं गज भर ठेलि के।
एतना मारि गिराइ-गिराइ
कि रोवैं पुक्का रेलि के।
पड़ी मार जब समशेरन की
महाराज मैं नाई हूं....
जय भड़ास
जय यशवंत।
गिरगिट गावैं, गाल बजावैं,
लाल सलामी पेलि के।
बूढ़ गांड़, अंग्रेजी बाजा
सुनैं, सुनावैं झेलि के।
लेकिन भला भड़ासी कैसे
मानैं गज भर ठेलि के।
एतना मारि गिराइ-गिराइ
कि रोवैं पुक्का रेलि के।
पड़ी मार जब समशेरन की
महाराज मैं नाई हूं....
जय भड़ास
जय यशवंत।
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