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4.3.08

गीतकार रमेश रमनः गेंद सूरज को बनाकर खेल मेघों को खिला.....

((पिछले दिनों हरिद्वार यात्रा पर था तो कई पोस्टों के जरिए कई कई अनुभवों, मिलाकातों, भ्रमण आदि के बारे में बताया था। पर एक चीज छूट गई थी जो शायद सबसे कोमल चीज है। हरिद्वार के बसे और देश भर में मशहूर गीतकार रमेश रमन से मुलाकात। डा. अजीत तोमर के सौजन्य से जब रमेश रमन जी से मिलने उनके आफिस पहुंचे तो उस वक्त आफिस बंद होने का समय हो चला था। ढलती हुई शाम के वक्त रमन जी के आफिस में हो शुरुवाती परिचय होने के बाद जो स्वर लहरियां फूटीं तो रुकने थमने का नाम ही नहीं लेतीं। मुझसे रहा नहीं गया, कागज कलम उठाकर तुरंत नोट करने लगा। शब्द जितने अच्छे, स्वर उतना ही उत्तम। ये संयोग, ये मेल बहुत कम लोगों में देखने को मिलती है। अगर संक्षेप में कहूं कि मेरी हरिद्वार यात्रा का सबसे कोमल पक्ष व सबसे संवेदनशील पक्ष कोई रहा है तो वो रमेश रमन जी से मुलाकात ही है। देर से ही सही, मैं रमन जी द्वारा लिखित कई गीतों, कविताओं को यहां नीचे भड़ासियों के लिए डाल रहा हूं। मैं तो इन सभी को उनके कोमल कंठ से मय राग के सुन आया हूं इसलिए मैं तो इन लाइनों के पिछे छिपे धुन व संगीत को भी महसूस कर पा रहा हूं व बैठे बैठे गुनगुना भी रहा हूं। आप लोग फिलहाल पढ़िए, कभी मौका मिला तो भड़ास सम्मेलन के दौरान रमन जी को बुलाया जाएगा...जय भड़ास, यशवंत))

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1.
तू अगर पुरवाई है तो

तू अगर पुरवाई है तो बादलों के साथ आ
प्यास धरती की बुझा, ये पेड़ पौधे मत हिला

खेत की क्यारी है सूखी, आ जरा यहां घूम जा
भीगे भीगे होठों से तू, क्यारी क्यारी चूम जा
झरनों को दो जिंदगी, कुछ नदी का कर भला
तू अगर पुरवाई है तो...............

धूल धरती की उड़ा मत, देख फूलों को सता मत
दर्द सोये तू जगा मत, प्यास को पागल बना मत
गेंद सूरज को बनाकर खेल मेघों को खिला
तू अगर पुरवाई है तो...............

प्यास की तू अंजुली भर, कुछ दान कर कुछ पुण्य कर
आके पेड़ों को नहला जा, कर कृपा इन फूलों पर
परियों की तरह उतरकर, परिंदों को झुला झूला
दू अगर पुरवाई है तो................


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2.
बिन आहट के आ जाते हो


बिन आहट के आ जाते हो
आंखों को नहला जाते हो
बहुत सताते हो पलकों को
सांसों को उलझा जाते हो
बिन आहट के......

सागर के पानी से खारे
कैसे कह दें तुम हो हमारे
कितने राज छुपा जाते हो
अंदर कुछ पिघला जाते हो
बिन आहट के .....


तुम ममता की गोद पले हो
तुम यादों के बहुत सगे हो
कितने दर्द जगा जाते हो
दिल को बहुत दुखा जाते हो
बिन आहट के ......

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3.
आम कट गया


आम कट गया
शीशम ने तो देखकर
आंखें फेर लीं
पीपल ने पूजा का
बहाना बनाकर
मौन धारण किया
बरगद को अपने बुढ़ापे
का खयाल आया
कुछ नहीं बोला
और......
आम कट गया

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4.
अस्तित्व की कविता सुनें

आओ कभी किसी वृक्ष से अस्तित्व की कविता सुनें
या फिर कभी किसी फूल से व्यक्तित्व की कविता सुनें
जीना का दर्शन सरल मिल जायेगा निश्चित है ये
आओ कभी किसी दीप से अपनत्व की कविता सुनें

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5.
तुम्हारा मेरा साथ



तुम्हारे पास अर्थ बहुत है
मेरे पास शब्द बहुत हैं
आओ, थोड़ी दूर तक चलें
शब्दार्थ बनकर
जीवन के भावार्थ से मिलने
विश्वास रखना
तु्म्हारे अर्थ का अनर्थ नहीं होने दूंगा
तुम्हें भी ध्यान रखना होगा
कि मेरा कोई भी शब्द
अपशब्द की संज्ञा न पा जाए

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उपरोक्त सभी गीत व कविताएं गीतकार रमेश रमन द्वारा रचित हैं। आप रमन जी से उनके निवास के फोन 01334-220749 और कार्यालय के फोन 01334-227904 पर फोन कर संपर्क कर सकते हैं।

2 comments:

Unknown said...

jaroor...kavitaen kam layk hain

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

बहुत गहराई से जाकर कविताओं के मोती हाथ में लाए हैं वरना यदि भावनाओं के समुद्र की तरंगों से डर कर बैठे होते तो सीपियां और घोंघे ही हाथ आते ....
बहुत ही सुन्दर