1. बहनें
आंगन में बंधे खम्भे से
लट सी उलझ जाती हैं
बहनें
और
दर्द की एक सदी
खुली छत की गर्म हवा में
कबूतर बन उड़ जाती है।
वे बाप की छप्पन साल पुरानी कमीज हैं
वे मां के बचपन की यादें हैं
जो
उठती हैं हर शाम
चूल्हे के धुएं संग
और
उड़तीं हैं पतंग बन।
वे चुनती हैं
प्याली भर चावल
कि
जिन्दगी को बनाया जा सके
अधिक से अधिक
साफ और सफेद।
वे बनती हैं
आंगन से गली
और
गली से मैदान
जहां
रात की चादर में
बुलबुले सी फूटती है भोर
और
देखते ही देखते
धरती की मां बन जाती हैं
बहनेें।
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2. नींद में बारिश
नींद में
सबके सो जाने पर
होती है बारिश
अकेले ही भीगते हैं
नदी नाव और टापू
रात की खोह में
दलदल है
इत्र का
बारिश के झिरमिर सन्नाटे में
जो एकदम से महक उठता है
शिरीष खिलता है
उनींदी बारिशों में
भीग कर आयी हवाएं
घुस आती हैं
कोरे लिहाफ के भीतर
चौंक कर ताकता है
गरदन उठाये
एक बगूला
किसी गली से झांकता है चोर
इच्छाएं
पैदा करके मुझे
मेरा ही
शिकार करती हैं।
गाथाएं अन्तर्दहन की
चुपचाप भीगती हैं
गीले गीले ही
जल रहे हैं पत्ते
भीगी हुई
रात के पिछवाड़े में
जले पत्ते
आग की कहानी कहते हैं
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3. मैं नदी तुम नदी
हर बार
जब भी डूबा
नदी नयी मिली
गर्म शिलाओं की पीठ पर
लेट कर
दिन गुजर गये।
धोते रहे
इस घाट पर
पुराने दाग
बहा ले गयी अपने साथ
नदी सब कुछ ᄉ
थमा नहीं कभी भी
कुछ भी।
उल्लास का सार
बहते रहने में था।
किनारे वही थे
द्वीप भी
भोगे हुए
वही थे
पर नदी से परिचय
हर बार अलग था।
काटे हुए पल
नयी फसल से उगते रहे
कसमसाती देह में
धीमी आंच पर
अटका हुआ
उन्हें पुकारता रहा मन
और
पीढ़ियां गुजर गयीं।
थमा नहीं कुछ भी
किसी के लिये
रिश्ते अपने किनारों से
लहरों ने
बहते हुए ही निभाये।
तुम्हारी आंखों में कई बार
नदी मिली थी
अनजान
इन पत्थरों पर
बैठ कर
गिनता रहा
लहरों को
उनमें उतरते सितारों को
बीतने की निर्धारित गति की पहचान
और उनका समवेत स्वीकार
मुझमें नदी भरता रहा
इस
नदी हुई देह को
भर रहा हूं तुममें
गर्म शिलाओं पर लेटी हुई
तुम
नयी हो रही हो।
मुझे भर कर
हर बार
तुम भी नदी हो जाती हो।
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4. छूटती चीजों के बीच
छोड़ दिया तुमने भी
जैसे कि
सब चीज छूट रही है
नहीं थी पहले भी
अब तो और भी नहीं है
इस लौटती धार में
रेत के कुछ ढूह
ढह कर भी ठहर गये हैं
पैरों के बीच फंसा
एक घोंघा
घास का एक तिनका
और
उन सबको टटोलता मन
अब भी वहीं कहीं भटक रहा है
बाजार की थिरकती रोशनी के
बीच
एक पता पूछता
छोड़ दिया तुमने
और
अब समझने लगा हूं
अन्त भी भ्रम ही है ᄉ
एक आखिरी अंगड़ाई का इन्तजार
जो फिर नहीं आती
और अब नही आयेगा वो सब
जो तुमसे उगा था
सोचता हूं
ई-मेल के खोखले शब्दों मे कौन सा रस भरूं
किस लिबास मे पेश करूं
वह सब
जो अब नहीं है --
जो था ही नहीं
और जिसके पीछे का
एक खुला आकाश और भी सुन्दर हो चला है
देर दोपहर तक
थकी उबासी के बीच
कई बार दरवाजे पर
वही परछाईं मुस्कुराती दीखी
वही आंखें बोलती रहीं
मैं देखता रहा
सुनता रहा समय के शब्द
जब
तुम नहीं हो
तुम्हें हर कहीं सुन सकता हूं
उस खुलते आकाश में
देखता हूं
तुम पतंग सी दीखती हो
चटकीले पीले रंग की
और पीछे
हल्का नीला आकाश
खिलखिला रहा है।
Tushar dhaval mumbai me rahte hain. afsri krte hain. kvita to jahir hai likhte hi hain. mujhse lgta hai bahut dinon se naraj hain, inka fon bahut dino se aaya nhi hai, message ka jvab nhi dete hain...vaise yarbas aadmi hain...inke sath cnaught place me volga me daroo pine ki yaden hain...abhi bs itna hi...bhadasi bhaee khojen mera yh dost kahan hai aur mujhse naraj kahe hai. shayd fon no. yhi hai- 09930315966
(tushar ki ye kvitaen yhan TADBAV se sabhar di ja rhi hain)
http://www.tadbhav.com/issue%2015/Charkabitai%20tusar.htm#chartusar
10.4.08
तुषार धवल की चार कविताएं
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5 comments:
HARE DADA,AAPKE MITRA NAARAJ AGAR HONGE TO IS POST NE UNKI NARAJGI JARUR DUR KAR DI HOGI.VAISE ABHI FON LAGATA HUN.
Hare Bhai,
Arey Bhai,
Kehto ho Naraz Hoon.
Kyon Hoon ... kahan hoon
Do baat kya nahi huwi jane kya kuch samajh baithe
Kuch udaas kuch roothe
Man masos kar rah gaye
yahan dhoodha wahan dhoondha
na jane kahan kahan dhoondha
wahin dil mein ghar kiya baitha tha
tumne wahan nahi dhoondha.
Phone par baat huwi. Bataya ki aapne narazgi ki wajah di hoti toh masha allah zaroor naraj huwa hota... par ... ye nah thi hamari kismat.
Beher haal aapko aapki shahadat (mera matlab shaadi) ki agrim badhayi. Ummeed hai ab Volga ki yadon mein aur bhi kadiyan judengi. Meri hone wali bhabhi ji ko mera pranam kahen. Ab zindagi se aap aur bhi ru-ba-ru ho sakenge, aur bhi paina kuch likh sakenge.
Shubh ki kamnaon ke saath aapka mitr
Tushar Dhawal
Hare Bhai,
Arey Bhai,
Kehto ho Naraz Hoon.
Kyon Hoon ... kahan hoon
Do baat kya nahi huwi jane kya kuch samajh baithe
Kuch udaas kuch roothe
Man masos kar rah gaye
yahan dhoodha wahan dhoondha
na jane kahan kahan dhoondha
wahin dil mein ghar kiya baitha tha
tumne wahan nahi dhoondha.
Phone par baat huwi. Bataya ki aapne narazgi ki wajah di hoti toh masha allah zaroor naraj huwa hota... par ... ye nah thi hamari kismat.
Beher haal aapko aapki shahadat (mera matlab shaadi) ki agrim badhayi. Ummeed hai ab Volga ki yadon mein aur bhi kadiyan judengi. Meri hone wali bhabhi ji ko mera pranam kahen. Ab zindagi se aap aur bhi ru-ba-ru ho sakenge, aur bhi paina kuch likh sakenge.
Shubh ki kamnaon ke saath aapka mitr
Tushar Dhawal
Hare Bhai,
Arey Bhai,
Kehto ho Naraz Hoon.
Kyon Hoon ... kahan hoon
Do baat kya nahi huwi jane kya kuch samajh baithe
Kuch udaas kuch roothe
Man masos kar rah gaye
yahan dhoodha wahan dhoondha
na jane kahan kahan dhoondha
wahin dil mein ghar kiya baitha tha
tumne wahan nahi dhoondha.
Phone par baat huwi. Bataya ki aapne narazgi ki wajah di hoti toh masha allah zaroor naraj huwa hota... par ... ye nah thi hamari kismat.
Beher haal aapko aapki shahadat (mera matlab shaadi) ki agrim badhayi. Ummeed hai ab Volga ki yadon mein aur bhi kadiyan judengi. Meri hone wali bhabhi ji ko mera pranam kahen. Ab zindagi se aap aur bhi ru-ba-ru ho sakenge, aur bhi paina kuch likh sakenge.
Shubh ki kamnaon ke saath aapka mitr
Tushar Dhawal
युवा पीढ़ी के मेरे कुछ पसंदीदा कवियों में हैं तुषार......... और आप भी.
वे उन युवा कवियों की जमात में हैं जो कम लिखते हैं मगर उम्दा लिखते हैं.
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