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11.5.08

नेकी कर दरिया में डाल

क्या कभी आपने अपने पड़ोसी की मदद की है. अगर हां, तो आगे से मत कीजिएगा. चौंक गये होंगे कि कल एक अनजान महिला की मदद ना करने पाने पर परेशान होने वाला शख्स आज अचानक इतना उद्वेलित क्यों है. तो आइये आपको एक सच्ची कहानी सुनाता हूं. लगभग ५२ साल पहले की बात है, मेरे पिता श्री राम प्रसाद शुक्ल आठवीं की पढ़ायी के बाद दिल्ली कमाने चले गये. घर में उनके पिताजी (मेरे दादाजी, बुआ और दादी थीं). जमींदारी खत्म हो गयी थी और घर में कमानेवाला कोई नहीं था. दिल्ली में उन्हें शायद ३० रुपये महीने या १६ रुपये (पिताजी से पूछ कर बताऊंगा)की नौकरी मिल गयी. दिन भर काम करते और रात में पढ़ाई. इस तरह १०वीं तक पढ़ भी लिया. हालांकि अनुभव ने उन्हें इतना सिखाया है कि जिस कंपनी में काम करते हैं, उसका सीए भी उनसे घबराता है. हां, तो पिताजी धीरे-धीरे प्रगति करते गये और हम पांच भाई-बहनों को पढ़ाया-लिखाया और किसी काबिल बनाया. इस बीच उन्होंने गांव और रिश्तेदारी के लगभग ५० लोगों को काम दिलाया. इन्हीं लोगों में एक हैं राममणि शुक्ल, जो मेरे ताऊ लगते हैं. मेरे घर के ठीक सामने इनका घर है. पिताजी ने ताऊ जी को नौकरी दिलायी, नहीं कर पाये. उनके बड़े बेटे अशोक शुक्ल को नौकरी दिलायी, नहीं कर पाये. मंझले बेटे मनोज शुक्ल (अब इस दुनिया में नहीं) को नौकरी दिलायी, नहीं कर पाये. छोटे बेटे रामखेलावन उफॆ हवलदार को नौकरी दिलायी, जो आज भी कर रहा है. उसकी बदौलत ताऊजी का घर बना. घर बनाते समय किसी पंडित ने बताया कि जहां हमारा रास्ता है, वहां उनका घर बनता है. अब वह लगे गिड़गिड़ाने. इस पर एक समझौता हुआ कि घर के पीछे से हमें रास्ता देंगे और सामने वह मकान बनवा लें. उनका मकान बन गया, लेकिन पीछे जो पुराना मकान था, उसका एक कच्चा कमरा अब भी खड़ा है. बार-बार आग्रह और कुछ धन लेने के बावजूद अब तक उन्होंने रास्ता नहीं दिया. १६ अप्रैल को ताऊजी के पोते की शादी थी, जिसके लिए पिताजी हजारों रुपया खचॆ करके पहुंचे, टूर रास्ते में छोड़ कर. चार मई को गांव में रहनेवाले मेरे बड़े भाई विकास ने हवलदार को बुला कर एक बार फिर आग्रह किया कि रास्ते के लिए जगह छोड़ दें. बताते चलें कि मेरे घर तक साइकिल व मोटरसाइकिल जा सकती है, कोई अन्य वाहन नहीं. हां, तो भाई के आग्रह के बाद, पता नहीं किस भावना के वशीभूत होकर (भाई ने किसी तरह की जोरजबदॆस्ती की बात नहीं की) उन लोगों ने स्व. मनोज की पत्नी नीलम देवी के नाम से पुलिस अधीक्षक, गोंडा के यहां लिखित शिकायत कर दी कि विकास ने उन्हें गाली दी है. यहां एक बात और स्पष्ट कर दूं कि विकास भैया को गाली से भारी चिढ़ है. एक बार स्व. मनोज ने उन्हें गाली दी थी, तो उनका सिर फोड़ दिया था. अब आप लोग बतायें कि हम क्या करें. बता दूं कि जिस कंपनी में हवलदार काम करते हैं, पिताजी उसी में बड़े अधिकारी हैं. तो क्या हवलदार को नौकरी से चलता कर देना चाहिए???? यहां यह भी बता दूं कि यह महज एक उदाहरण है. हमने उस परिवार से हजारों गालियां खायी हैं. हमेशा उसने हमारे रास्ते में गड्ढा खोदा है, पर पिताजी की वजह से हमेशा बच गये. पिताजी का एक ही सिद्धांत रहा है कि हमारे कारण कोई दुखी या परेशान न हो. रात-बिरात जब भी जरूरत पड़ी हम उनके साथ रहे. आज उन्होंने ही भाई के खिलाफ एसपी से शिकायत की है. उनके घर में धन आने का एकमात्र रास्त हवलदार की नौकरी है. वहीं बंद करवा दें?????????? न रहेगा बांस, न रहेगी बांसुरी. जो काम आपस में बैठ कर समझ-बूझ कर बिना किसी विवाद के लिए हो सकता है, क्या अब उसके लिए हम अग्रेसिव होकर मुकदमा करें और अपना हक लेते हुए उस परिवार को बरबादी की कगार पर ढकेल दें. आप लोग क्या कहते हैं???????????? यह पोस्ट सिर्फ इसलिए कि आप बतायें, हम क्या करें? अब भी चुप रहें, तो कायरता होगी???????? कदम उठायें, तो एक परिवार बरबाद होता है?????????? फिर पत्रकार होते हुए जिस पुलिस को आज तक घास नहीं डाली, उसके सामने खड़े हों और ताऊजी की खिलाफत करें????????????इस पोस्ट का कतई मतलब नहीं कि मैं पिताजी या अपने परिवार की बड़ाई के लिए कुछ कह रहा हूं. इसका सिर्फ इतना मतलब है कि भड़ास नामक अपने परिवार से मुझे राय चाहिए, स्पष्ट कर दूं, राय चाहिए, मदद नहीं. अन्य के लिए हम काफी हैं. तो क्या है आप लोगों की राय? मामले की गंभीरता को समझते हुए उचित सलाह दें.

3 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

vishal, mamla wakayi kaafi gambhir hai. meri salah hai ki es jhagde ko pitaa ji ko hi niptaane dijiye. aap esme kuchh na bolen.

agar jyada pareshani hoti dikhe to ek baar lucknow se pressure banwa diya jayega. sab theek ho jayega.

yashwant

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

विशाल भाई,जमाना ऐसा आ गया है कि नेकी कर और दरिया में डाल और खुद भी उसी दरिया में कूद कर डूब मर.....

Anonymous said...

भाई,
आपने जो कहा वो नया नहीं है और कमोबेश सभी जगह ये स्थिति आपको मिलेगी. और मैं तो कहूं की दद्दा ने सही कहा की आप तो इसे अभी पिता जी के ऊपर ही छोरो. उन्हें ही इसे सुलझाने दो.
और नेकी कर दरिया में दाल सो डालते रहो. इसलिए नहीं की जिसका नेक किया हो वो ही तुम्हारा भी करेगा बल्कि इसलिए की तीसरा जरूर तुम्हारा नेक ही करेगा.
भाई माफ़ करना ई ससुरा भडासी कहाँ विचारों में उलझ गया बस इतना कहूँगा की उम्मीद मत रखो तकलीफ होगी. बाकी सबसे अच्छी राय डॉक्टर साब ने दी है.
जय जय भडास