मां मैं अंश हूं तेरा।
मुझमे समाहित हैं तेरे विचार
संस्कार तेरा प्यार।।
तू जननी है मेरी, मेरे गुणों की।
मां मैं अंश हूं तेरा।।
तूने ही मुझको चलना सीखाया।
ये जीवन है क्या तुम्ही ने बताया।।
मुसीबत से लडना भी तुमने सीखाया।
मैं आवाज हूं मां तेरी धडकनों का।
तू जननी है मेरी, मेरे व्यक्तित्व की।
मां मैं अंश हूं तेरा।।
जहां भी रहूंगा तेरा नाम लूंगा।
तेरे आंसुओं को अपनी पलकों पर थाम लूंगा।
मेरी हर खुशी तेरी चरणों में माते।
मैं कर्जदार हूं तेरी हर एक सांस का।
तू जननी है मेरी, मेरी भावनाओं की।
मां मैं अंश हूं तेरा।
मां मैं अंश हूं तेरा।।
मां यह शब्द सुनते ही हम खुद को सबसे सुरक्षित महसूस करते हैं। यह केवल एक शब्द ही नहीं ममता की वह विशाल छांव है जो हमे हर मुसीबत और विपदा से बचा कर रखती है। यह शब्द सुनते ही हम खुद को एक बच्चा महसूस करते हैं चाहे हमारी उम्र जो भी हो। साथ ही हमारा बचपना भी झलकने लगता है। सभी साथियों से अपील है कि इस कविता को पढने के बाद एक बार मां शब्द का उच्चारण जरूर करें। देखिएगा इससे कितना सुकून मिलेगा। तो कहिए मां।
11.5.08
मां मैं अंश हूं तेरा
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2 comments:
अबरार भाई,दिल को छू लेने वाली रचना है....
एक बार मां शब्द का उच्चार्ण मात्र हमें हमारे बचपन की तरफ ले जाता है...
धन्यवाद
अबरार भाई,
बेहतरीन है, वैसी आप एक बार की बात करते हैं यहाँ जब तक रोज अम्मा से एक बार बात ना कर लूं दिन खली खली सा लगता है. अम्मा से बात हुई नहीं की शरीर में उर्जा सा आ जाता है. सच में "माँ" अद्भुत है ये शब्द .... अपने आप में अनंत, विशाल , समग्र सच कहूं तो बिना इस शब्द के मनुष्य की मनुष्यता पूरी नहीं होती. सच में आज आपके इस कविता से में मेंटीसेंटल हो गया थोडा सा.
बहूत बढ़िया
आपको बधाई.
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