हर विचार पर सहमति और असहमति दौनों का मिलना लाजिमी ही है और मेरे पिछले ब्लॉग पर मिली तिप्पन्नियों ने मुझे प्रेरित किया की मैं पत्रकारिता और उसके निवर्तमान स्वरूप पर चर्चा को थोड़ा और आगे ले जाऊं....
मेरे एक मित्र ने कहा की हमे वाही दिखाया जाता है जो हम देखना चाहते हैं..या फ़िर दुसरे शब्दों मैं कहें की समाचार लोगों के स्वाद पर निर्भर करने लगा है........एक मित्र ने कहा की रोजगार गारंटी सिर्फ़ बेरोजगारों के लिए है इसलिए नही दिखाया या ऐसा कहें की नही लिखा जाता है......
अगर पत्रकारिता सिर्फ़ एक व्यवसाय है टैब हम क्योँ उसे ये अधिकार दें की वो हमारे संविधानिक पदों पर आसीन चाहे वो नेता हो या फ़िर बाबु से सवाल करे...बात जब पत्रकारों के फायदे की होती है टैब वो समाज के रहनुमान बन जाते हैं परन्तु जब बात उनके गैर जिम्मेदार कवरेज की होती है टैब वो टी आर पी की बात करने लग जाते है......
मुझे आज तक ये आर्गुमेंट समझ नही आया की "हम वही दिखाते है जो लोग देखना चाहते हैं"....आप भांड है या की मदारी....वैस्या हैं या फ़िर दलाल ....लोगों के समस्या को दिखाते हैं की उनका मनोरंजन पर रेसिप्रोक्रेत करते हैं...
लोगों की मानसिकता कामो बेश आज भी वोही है जो की आजादी के आन्दोलन से पहले थी....लोग टैब भी नग्नता और घोटाला (चाहे पैसे का हो या फ़िर चरित्र का) ही देखना चाहते थे लेकिन उन्हें पडोस जाता था आन्दोलन , आज़ादी की लड़ाई,,,, और नतीजा हम सब जानते हैं की पत्रकारों का कितना महत्वपूर्ण योगदान रहा हमारे आजादी की लड़ाई को कोने कोने तक ले जाने मैं.......
आज हम एक बार फ़िर से वोही लड़ाई लड़ने पर मजबूर हैं....इस बार दुश्मन हम और हमारी व्यवस्था है...कौन लोगों को बतायेगा की किसके खिलाफ लड़ना है......सीधी जिम्मेदारी तोह पत्रकारों की ही बनती है....लेकिन आज हमारी पत्रकारिता एक व्यवसाय बन कर रह गया है.....ख़बर का आना इस बात पर निर्भर करता है की वो कितना विज्ञापन आकर्शीत कर पायेगा.....
लोगों पर इल्जाम लगाना की आपको वही मिलता है जो आप चाहते है सरासर ग़लत है...... हर आदमी मीडिया से सरकार और उसके विभिन्न अंगों पर करी नज़र रखने की अपेक्षा रखता है........ रोजगार गारंटी योजना मैं खर्च हो रहा हर पैसे करदाता के खून और पसीने की कमाई है और उसका हक बनता है की वो जाने की पैसा ज़रूरत मंदों को मिल रहा है की नेताओं और अधिकारियों की हराम की कमाई का ज़रिया बन रहा है....
जिम्मेदार वो हरामखोर नेता या फ़िर अधिकारी नही हैं ----असली कुसूरवार पत्रक्कर बंधू हैं जो सो कॉल्ड लोकतंत्र की चौथा स्तम्भ कहलवाना पसंद करते हैं.....
हमाम मैं सब नंगे हैं ये बात हमारे राजनेताओं के लिए था परन्तु इक्कीसवीं सदी मैं सबसे ज्यादा नंग धरंग अगर कोई है जिसको अपनी नग्नता पर बेशर्मी से गर्व है तोह वो हैं हमारे आज कल के ये पत्रकार बंधू जिनका बड़ा बॉस आजकल सम्पादक नही होता है॥
बिग बॉस तोह बाबु पैसा है...सही भी है..होना भी चाहिए..परन्तु कृपा करके अपने आपको लोकतंत्र की तीसरी आँख और जनता का रहनुमा मत कहिये....आप भी टी.वी चैनल नाम के कोठे पर नाचने वाले तवायफ़ या फ़िर बार बाला या ऐसा कहें की नग्न अवस्था की चीयर गर्ल से ज्यादा नही हैं......
जय जय भड़ास!!!!
21.5.08
पत्रकारिता - लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ या फ़िर सिर्फ़ एक व्यवसाय.......
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7 comments:
randheer jhaji patrkarita me ab wo baat kaha . aaj har koi bas paise chahta hai bas paise .samachaar channel me samachaar gayab ho gaye hai rah gai hai to bas channel.aur samachaar ban gaye hai vigyaapan ............pesh hai mukhya khabre............yuvi ko mammi se bachao srilanka le jaao offer , gori ,sundar twacha ka raaj lux jo dekhe khicha chala aaye
भाई,इसी तरह से जितना धुंआ भीतर भरा है निकाले जाओ त्त्कि थोड़ा दिल ह्ल्का हो जाए। पीछे मत हटना गरियाने में...
जय जय भड़ास
BOSS KOI AASMAN SE TAPAK KE NAHI AAYA.SAB MAA KE KOKH SE HE PAIDA HUE HAI.BRASTA HUM SAB HAI.BADE AASANE SE HUM APNE AAP KO ALAG KAR KE HATH DHO LETE HAI.AAGAR AAPKE AUR MERE GHAR ME CCTV LAGA DIA JAYE TO HUM BHI PATRAKAR SE KOI KAM NAHI..HUM AUR AAP BHI UNN ANGREZO KE HE TALWE CHATTE HAI SO CALLED "PROFFESSIONS".SACH TO YE HAI KI JINKO DESH SE NIKALNE KE LIE HUM MARE JAA RAHE THE AAJ UNKO RECEIVE KARNE KE LIE HAMARA AIRPORT CHOTA PADH GAYA HAI..NETA ;JISKA CHAYAN HUM AUR AAP KUDH HE KARTE HAI...AUR MEDIA JO HAMARE PRATIBIMB HAI.AISE SAKAL DEKH KAR GUSSA TO JAYIZ HAI AAYEGA.. KINTU KIS PAR...APNE AAP PAR YA USS PAR JO DIKHA RAHE HAI.SAMAAJ BADAL GAYA HAI.PHLE DUSHMAN GORE THE AB AUR BURE HALAT HAI KYUKI GHAR WALA HAI...AAKIR APNE ANSH KE GALTIYO PE NARAZGI KAISE?...YE TO HAMARE SANSKAR HAI JO BADAL RAHE HAI....FIR MEDIA SE AISE UMMMED KYU?HAMARE ANTAR AATMA ITNE MARR CHUKI HAI....AUR JAHA TAK BAAT HAI MAHAN BANNE KE TOH HUM SAB AISE HE HAI...WARNA CRICKET KE JEET KE KHOSI MANNANE KE LIE HAME CHEER GIRLS KE ZARURAT NAHI??SAWAL HAI GALAT KOHN CAMERA MAN ,PUBLIC YA SPONCERS....?
tagdi bhadas hai....keep it up
media bahak jaroor jata hia. magar ek media person hone ke nate mujhe esa lagta hai ki halat utne nirasajanak nahin hai, jitne ki lagte hai. chenal 24 ghante chalte hai, isiliye ve ek khabar ke pichhe hath dhokar pade rahre hai. ese bhi chanal hai, jo berojgari ki samasya par kam karte hai. mahgai par bhi charcha hoti hai. media lachar isliye hai ki ye vyaoastha nirmam hai. koi bhi khabar chhap jaye, chenal kuchh bhi dikha den, kya sarkaron ke chehron par sikan aati hai? neta jab nange hone kagte hai, to ve aapni bhulen sudharne ka prayas nahin karte, unka prayas media ka muh band karne ha hota hia. muh band karne ke liye tarah-tarah ke hathkande apnaye jate hia, media ke malikon ko kharidna bhi unme se ek hai. media malik patrakarita ko nahin samajhta. uske liye akhabar ya chenal bhi ek karkhane jaise hote hai. jinse labha kamaya jata hai. ise bhi uchit nahin kaha ja sakta hai ki media house khada karne me karodon rupye funke koi seth or uske sansthan me baithkar kranti karen ptrakar. itne davav ke babjood media jitna kar pa jaha hai, utna kar raha hai.
अच्छा लिखा है, भडास उगलने के लिए बधाई.
विषय को बदल कर और भी तथ्यपरक भडास उगलिए.
रणधीर जी,
लोकतंत्र के चारों स्तंभों की कूंजी हम जनता के पास ही है. जैसे कोई नेता अगर अच्छा काम नही करता है तो अमूमन लोग उसे अगली बार के लिए नही चुनते है यानी उसे बदलने का संकेत देते हैं उसी तरह अगर मीडिया अपना धर्म नहीं निभा रहा है तो उसे भी हम जनता ही सुधरने के लिए मजबूर कर सकते हैं और इसके लिए जरिऊरी है कि हम टीवी देखने में भी सेलेक्टिव हो जाएं.
वरुण राय
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