कुछ समय पहले यशवंत दादा मुंबई आए थे अपनी पहली हवाई यात्रा करके जिसे उन्होंने अपने अंदाज में एक पोस्ट के रूप में लिखा था। आप सब ने उसका आनंद लिया था और आज उस काफ़ी पुरानी हो चुकी पोस्ट पर भड़ास पर कुछ समय से दिखने वाली हमारी अघोषित भड़ासी बहन(पूरा यकीन है कि नीलोफ़र इस संबोधन का बुरा न मानेंगी) ने एक बड़ी प्यारी सी मजेदार छिद्रान्वेषी टिप्पणी करी है लेकिन हो सकता है कि एक बहुत पुरानी पोस्ट पर करी गयी टिप्पणी का सब लोग मजा न ले पाते तो मैं इस टिप्पणी को ज्यों का त्यों उठा कर एक पोस्ट के रूप में डाल रहा हूं जरा आप लोग भी नीलोफ़र जी के मजेदार-धारदार-पैने से लेखन का आनंद लें जो कि ओशो(?)को रज्जू कहने का गहरा प्रेम भी अपने आप में समेटे हैं, लीजिये सादर है वो टिप्पणी.....
nilofar has left a new comment on your post "दिल्ली-अहमदाबाद-मुंबईः पहली जहाज यात्रा, पहली मुला...": ॰ दुरूस्त, कि मैं आप की फैन ठहरी पर ये क्या लिखा है कि एयरोप्लेन की खिड़की से मिट्टी-२ दिख रही थी। साल में दो हवाई यात्राएं तो कैलीफोरनिया से दिल्ली की करनी ही पड़ती हैं। मुझे तो कभी मिट्टी नहीं नजर आई। ढाई तीन हजार फीट की ऊंचाई से मिट्टी? कुछ ज्यादा तो नहीं हो रहा। टीएडीए कंपनी से ले लिया न, ठीक हां दुरुस्त आइंदा नैरेशन संभाल के। इसे लिटरेचर जो मैं पढ़ाती हूं, उसमें मिशप्रपोरशन कहते हैं। गोर्की ने बेकरी कहानी में मोमबत्ती की रोशनी में दीवार पर आठ परछाईयां दिखा दी थी जबकि कमरे में सात ही लोग थे। तालस्ताय ने टोका था कि मोमबत्ती लगता है गलत जगह रखी हुई है।॰ पांच-छह गिलास पानी- यू मीन टू से अबाउट टू लीटर्स मेकिंग टाइड्स इन योर स्टमक। रात का अल्कोहल अगर पेट में हो तो उसमें मौजूद यूरिक एसिड के कारण गैस बनेगी ही। उसके कैसे दबाया जाना संभव हुआ या अगर ग्रामीण चतुराई से चेहरे पर मासूमियत मिश्रित, निरविकार भाव रखते हुए हंस अकेला की तरह उड़ जाने दिया गया तो बगल वाले अध्ययनशील शरीफ सज्जन की क्या प्रतिक्रिया रही। इसका ब्यौरा होना ही चाहिए था। हां और हां.....एयर पोर्ट पर कैसे हल्के हुए, हाई सिक्योरिटी के कारण वहां निपुण से निपुण कुत्ते भी ऐसा नहीं कर पाते।॰ संजय और दूसरे वाले ब्लागर जिनका टिफिन आपने खाया उनने क्या खाया। नििश्चत ही प्यार, जो अपने साथ भरपूर मात्रा में ले गए थे।॰ भारत की महिलाएं आपके लिए रोती हैं. यह जानकारी मुझे विभोर करके रूला देने वाली है।थोड़ी जलकुकड़ी हूं, इसलिए मजे-मजे में लिख दिया। इसे विदेशी भाषा से अनूदित, स्वतंत्र अपने से असंबद्ध व्यंग रचना की तरह पढ़े मजा आएगा। सेक्स वाले राइटअप में रज्जू (रजनीश) ने क्या कहा है-अपने से अलहदा होकर खुद के अिस्तत्व को महसूस करना, भोगना यही तो जीने और ब्लागिंग की कला है न। वह टाइम मेरे प्यारे ब्लागर........ जब द्रिष्टी आंख को देखने लगती है।
आशा है कि बहन नीलोफ़र मेरी इस हिमाकत का बुरा न मानेंगी और वे भी आनंदोत्सव में शामिल होंगी जो हर पल भड़ास पर घटित होता रहता है।
सादर
डा.रूपेश श्रीवास्तव
7.6.08
बड़ी प्यारी सी मजेदार छिद्रान्वेषी टिप्पणी......
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
why not being accepted google wala jars.
बहुत दिन हुए एक बेबाक हसीना को देखे। अब जब आई है तो बिल्कुल खुलकर। कहीं कोई परदा नहीं। अमृता को सात जन्म बनाने पडे एक नीलोफर को पेश करने के लिए यहां यह कौनसी नीलोफर है जो नंगे को नंगा कहती है जबकि रिवाज बिना कपड़ों के कहने का है। जो भी हो यशवंत का छिद्रान्वेषण और डॉक्टर साहब के शब्दान्वेषण दोनों ने आन्दोलित किया। ये तेवर यहां के अलावा कहीं और भी मिल जाएं तो मजा आ जाए।
अभी तक की तो कोशिश महज झील में एक और लहर पैदा करने तक की ही लग रही है।
बेबाकी की मिशाल इस से बेहतर हो ही नहीं सकती है, सच्चाई को स्वीकारने में जहाँ हम और हमारे सो काल्ड संस्कार बाधक बनते हैं वहीं इस हसीना ने सब को पटक दिया.
मोहतरमा आपकी बेबाकी को इस भडासी का सलाम.
Post a Comment