आज सुबह जब मैं उससे मिला तो वो एक नयी कमीज़ और पन्त में था मुरझाई आँखों में एक आशा की नयी किरण नज़र आ रही थी। एम्स के ओपीडी के सामने वोह बैठा मेरा अखबार यानी की अमर उजाला पढ़ रहा था। मुझे देखते ही उसका चेहरा खुशी से खिल गया। मैंने कहा क्या बात है करुनाकर तुम तो एकदम हीरो लग रहे हो। देखो हमेशा खुश रहा करो। हम साथ साथ एम्स के एक्सरे डिपार्टमेन्ट की तरफ़ रूम नम्बर एक में गए। सुबह के यही कोई सवा आठ बजा रहा होगा। डॉक्टर ने सिटी स्कैन की रिपोर्ट और अन्य रिपोर्ट जामा करवा ली और बाहर वेट करने को कहा। हम बेसब्री से बाहर डॉक्टर का इंतज़ार कर रहे थे। अंदर से डॉक्टर अरविन्द लगभग १० बजे बाहर आए। उन्होंने हमारा नाम पुकारा। जब हम उनके पास गए तो उन्होंने मुझे बताया की सर्जरी नही हो सकती क्यूंकि दोनों तरफ़ का लुंग प्रभावित हो चुका है। आप एक काम करो डॉक्टर जुल्का से मिलो और उनसे कीमियो थेरेपी के लिए बात कर लो। बस यही एक अब इसका इलाज़ है। हम एम्स के रेड बिल्डिंग में गए तो पता चला की डॉक्टर जुल्का कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर गए हुए हैं। रूम नम्बर चार में एक दूसरे डॉक्टर बैठे थे मैंने उनके पास पर्चा जामा करवा दिया। थोड़ी देर बाद में मुझे उन्होंने कॉल किया जब मैं गया की ये तुम्हारा क्या लगता है। मैंने बोला भाई। उन्होंने करुनाकर को रूम से बाहर भेज दिया और मुझे बताया की इसकी उम्र अब सिर्फ़ ६ या ७ महीने बची है। आप को इसके मम्मी पापा को ये बता देना चाहिए। यहाँ पर इसे भरती करवाने का कोई फायदा नही है। इसे अपने परिवार के पास रहना चाहिए। इसका इलाज़ जहाँ पहले करवाया था आप वहां ही करवाते रहें। और आगे भगवान् पर छोड़ दें। मैं जब बाहर निकला तो करुनाकर से बात नही की बस यही बोला की मैं गाडी लेकर आता हूँ। जब मैं आया तो उसने कहा भैया मुझे अब की दवा नही करवानी है कुछ दिन और जीकर क्या करूंगा। उसकी यह बात सुनकर मैं बहुत दुखी हुआ। मेरे आंखों से आंसू निकल पड़े। मैं उसे क्या बोल्लूँ समझ में नही रहा था। बस पूरे रस्ते एक बात सोचता रहा की भगवान् मुझे इसकी जगह मुझे क्यूँ नही अपने पास बुला लेता। उसके सारे सपने जो थे सब टूट गए। उसे इस बात की चिंता खाए जा रही है की उसके माँ बाप ने उसके लिए इतना किया पर बदले में उसने उन्हें क्या दिया। जब देने की बारी आयी तो मौत ने दस्तक दे दी। दिल को दहला देने वाला ऐसा वाक्या पहली बार मेरे साथ घटा है। मैं इतना दुखी अपने पूरे जीवन में नही हुआ था जितना की आज हूँ। किसी से बात करता हूँ तो आंसू टपकने लगते हैं। बस मैं एक चीज़ चाहता हूँ की किसी तरह उसके पापा जेल से बाहर आ जायें और उसकी बची हुयी ज़िंदगी में उसका साथ दें। मैं चाहता हूँ की कोई एक कदम इसके लिए बढाये जिससे इस दर्दनाक स्टोरी में कुछ तो गम दूर हों। किसी को यह पता चल जाए की उसकी ज़िंदगी बस इतने दिन और बची है इसका दर्द क्या होता है इसे एक बार सोचकर भी महसूस किया जा सकता है।
................ अभी भी बाकी है ये कहानी
अमित द्विवेदी
28.6.08
और उसकी ज़िंदगी अन्तिम पडाव पर आ गयी
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2 comments:
अमित भाई, घनघोर स्वार्थ के इस दौर में आप इतना सब कुछ कर पा रहे हैं, दिल से साधुवाद स्वीकारिये। मेरे लायक जो हो बताइएगा। वैसे, मैं आपको अभी फोन कर पूरे मामले को समझता हूं।
अमित भाई वास्तव में एक दर्दनाक बात है । आपकी दोनो पोस्टें मेंने पढी,पढकर अपार कष्ट हुआ । अभी यशवंत भाई से मेरी बात हुयी है कि उसकी क्या मदद की जाये और कैसे मदद की जाये । डा.रूपेश ने इलाज के लियें तैयारी कर ली है जैसा यशवंत भाई ने बताया । करूणाकर के स्वास्थ्य और उनके पिता की रिहायी के लियें बाबा आनन्देश्वर से प्रार्थना की है । मै कानपुर में हू मै आपकी इस मुहिम तथा करूणाकर के किस काम आ सकता हू कृपया मुझे बतायें । इस प्रकरण में हम अपने आप को बिलकुल आसाहय समझ रहे है । अमित भाई मुझे मेरे मोबाईल न. 09415068287 पर बताये तथा दिशा निर्देश प्रदान करे कि हम किस प्रकार करूणाकर की परेशानी थोडी कम सकते है ।
शशिकान्त अवस्थी
कानपुर ।
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