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4.6.08

हसरतें कितनी है हमको ये बता दें कातिल

ज्बां सिली है और ओठ फड़फडा़ते हैं।
ल्फ्ज़ बेबस हैं, इसी बात पर रोना आया।


मिला सुकून तो दिल से मिलायेगें तुझको।
जिसके जरिये से ये आंसू का बिछौना आया।


भटक रहा हूं शबाबों के असर में जिसके,
उसे गुलफाम बनाने का ये टोना आया।


हम पे खारों ने किया देखिये हर लम्हा क्रम,
नाम पर यारों के गम का ही खिलौना आया।


हसरतें कितनी है हमको ये बता दें कातिल,
हमको खुद अपने सलीबों को ही ढोना आया।


हम तो सूरज की तरह जगते हुए हैं मकबूल,
अपनी फितरत में कभी यार न सोना आया।
--मृगेन्द्र मकबूल

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(मकबूल साहब ने अपनी रचना क्रुतिदेव फांट में मेल से रवाना किया था, जिसे यूनीकोड में करके यहां प्रकाशित कर रहा हूं। मकबूल साहब, मैंने आप को मेल से वो लिंक भी भेज दिया है, जिसके जरिए आप खुद ब खुद क्रुतिदेव को यूनीकोड में बदल सकेंगे....यशवंत)

3 comments:

Anonymous said...

sonch achchi lagi magar
gazal likhne ki ek paddhti hoti hai

mattala, bahar, kafiya sab kuch galat hai is liye kuch khaas mazaa nahi aaya

Anonymous said...

दद्दा,

मकबूल भाई को बधाई, अच्छा प्रयास है,
पेलते रहिये ऐसे ही, अनाम गुमनाम की फ़िकर नही करने का। एक बार शुरु हो गये तो हो गये।

जय जय भडास

Anonymous said...

rsjneesh ke jha ji aapki tippadi padha kar dukh huaa kash aap meri baat ki gahraai ko samajhte

maine kaha tha
,..................
(sonch achchi lagi magar
gazal likhne ki ek paddhti hoti hai

mattala, bahar, kafiya sab kuch galat hai is liye kuch khaas mazaa nahi aaya)


makbool sahab ki kriti vastav me achchi kai magar likhne ki vidhi galat hai

aur adhik jankari ke liye plz. is link ko padhe......


http://merekavimitra.blogspot.com/2008/01/blog-post_915.html
http://merekavimitra.blogspot.com/2008/01/blog-post_18.html
http://merekavimitra.blogspot.com/2008/01/blog-post_22.html
http://merekavimitra.blogspot.com/2008/01/blog-post_25.html
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................dhanyvaad