जब भी देखा कि यदि कुछ ऐसा है जो कि हमारी देशज सभ्यता के विरुद्ध है या कुदरती नियमों के खिलाफ़ है तो मन करता है कि उसे रोक कर बचाने का प्रयत्न करूं नैतिकता और लोगों के स्वास्थ्य को क्योंकि मैं एक टीचर होने की जिम्मेदारी को भलीभांति समझती हूं। आज जब स्वास्थ्य मंत्री रामदौस(ये आदमी अगर अपना नाम रामदास रखता तो लोगों को इसका नाम लेने में अड़चन न होती) का बयान देखा कि जनाब चाहते हैं कि इस देश में समलैंगिक यौन संबंधों को कानूनी जामा पहना कर जायज़ बना दिया जाए। किसी बात की वकालत अचानक कोई भारतीय राजनेता करने लगे तो उसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि मंत्री महोदय को या तो इस बकवास को करने के लिए पेट भर पैसा मिला है या फिर दूसरा कारण कि हो सकता है कि रामदौस खुद निजी तौर पर या तो आदमियों से मराते होंगे या आदमियों की मारने में विशेष दिलचस्पी रखते होंगे(क्या मारना और क्या मरवाना बताया जा रहा है ये भड़ास के मंच पर स्पष्टीकरण करना बचपना होगा क्योंकि भड़ासी भी किन्ही अलग अर्थों में कई बार कुछ कमीनों की कसकर मार चुके हैं)। हरामियों की एक N.G.O. जिसका नाम है नाज़ फाउंडेशन, उसने एक पिटीशन कोर्ट में दाखिल कर रखी है कि इस देश में कानून की किताब से धारा ३७७ के उन हिस्सों को पूर्णतया समाप्त कर दिया जाए जिसमें औरतों को औरतों की चाटना और चूसना, आदमियों का आदमियों से मरवाना,शरीर के हर छेद को पेलमपेल के लिये इस्तेमाल करना या कुत्तों, गदहों, धोड़ों या ऐसे ही अन्य जानवरों को आदमियों द्वारा ठोका जाना या औरतों द्वारा ठुकवाया जाना अपराध माना जाता है। आज ये सुअर और नाज़ फाउंडेशन के हरामी ये चाहते हैं और कल इनकी याचिका होगी कि मैं अपनी मां या बहन या बेटी के ठोकना चाहता हूं मेहरबानी करके कोर्ट उसे जायज़ करार कर दे ताकि हम खुलेआम ऐसा कर सकें। बजरंग दल से लेकर सिमी जैसे हिंदू और मुस्लिम उग्र विचारधारा के हिमायती चूतिये इधर-उधर बेसिर पैर की बातों पर फ़साद करते फिरते हैं तो क्या ये साले अंधे हैं कि इनकी सभ्यता और शरीयत की पिछाड़ी में मंत्री रामदौस और नाज़ फाउंडेशन कैसा कसकर बिना तेल लगाए डंडा घुसा रहे हैं? मुझे तो शक है कि इन संगठनों के नेता भी उल्टी साइकलें हैं जो खुद को पीछे से चलवाते हैं वरना क्यों इस बात पर चूं तक नहीं करते?अगर आप इन तथ्यों को और अधिक गहराई से समझना चाहें तो मनीषा दीदी के ब्लाग पर पड़ी पोस्ट कुदरत मानवजाति को नष्ट कर रही है पढ़िये। यदि नए भड़ासियों को इस बात को कहने के लिये इस्तेमाल करी गयी भदेस भाषा पर आपत्ति हो तो मुझे बताएं कि इस नीचपन का मुझ जैसी नक़ाब पहनने वाली औरत कैसे विरोध करे जब कोई साथ न दे?
9.8.08
क्या स्वास्थ्य मंत्री रामदौस समलैंगिक है?????????
Posted by मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ
Labels: डा.रूपेश, भड़ास, मनीषा दीदी, सभ्यता, समलैंगिकता
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3 comments:
जय हो भड़ासमाता की... आपने पैने, धारदार, रास्ता दिखाते विचार नवभड़ासी जनों के लिये शायद भयंकर हों पर हमको तो आदत है आपके द्वारा बदमाश बच्चों के कान उमेठ कर उनका भला-बुरा समझाने के तरीके की.....सोचता हूं कि मनीषा दीदी के जिस पोस्ट का आपने लिंक दिया है उसका प्रिंट निकाल कर स्वास्थ्य मंत्रालय भेज दूं ताकि रामदौस तो न सुधरेगा पर उसके नीचे के कर्मचारी उसकी हंसी जरूर उड़ाएंगे......
जय जय भड़ास
भड़ासमाता को चरणवंदन,
आज बहूत दिनों बाद माता आप पुन: अपने तेवर के साथ, डॉक्टर साहब ने सही कहा की नौनिहाल भडासी को ये अटपटा सा लग सकता है मगर अटपटा हो या चटपटा सच की उगलाहट का दर्शन आपसे बेहतर कोई दे ही नही सकता,
समाज के जिस हिस्से पर आपने चोट किया है उसका करण कुछ भी हो मगर रामदौस नमक जीव अपने स्वार्थ साधना और राजनैतिक हित के लिए किस से उलटी सायकल चलवा ले कोई भडोसा नही और स्वस्थ्य मंत्री कह रहे हैं तो हमारे समाज का तिकड़म बकडाम समझ सकते हैं.
नाम से ही ये रामदौस राम के दुश्मनों के श्रेणी में आता है तो पिछवाडे की बात करेगा ही, परन्तु जिस तरह से ये प्रकृति के खिलाफ की सार्थकता की बात करते हैं उस से उलट सामाजिक मापदंड और मर्यादा इन चूतियों में कहीं फिट नही बैठती है क्यूंकि अगर एसा होता तो मनीषा दीदी और उन जैसी हजारों लाखों के मान्यता की बात भी ये करते, वस्तुत: अपने अपने गांड को चौडा करवाने वाले ये लोग चाहते हैं की अपने पद का सदुपयोग कर गांड को हमेशा के लिए सुरक्षित कर लिया जाय. मनीषा दीदी के सत्य को तो ये नपुंशक लोगों की जमात वाला समाज आत्मसात कर ही नही सकता क्यूंकि ये वो है जोई इन नामर्दों की सारी पोल पट्टी को खोल देती है और कोई (कुदरती नही वरन मानसिक और सामाजिक हिजडा) कैसे चाहेगा की एक लैंगिक विकलांग उसके मर्दानगी (जो की है ही नही किसी चूतिये मैं ) को चुनौती दे.
जय जय भड़ास
प्रिय यशवंत
अपने एक मित्र से आपके ब्लॉग के बारे मे सुना था. मै अपने ही अख़बार की खबरों से बेखबर रहता हूँ सो उनकी सलाह थी की आपके ब्लॉग से जानकारी ले लू. वैसे कोई बड़ा मसला नही था लेकिन सहज जिज्ञासा थी सो ब्लॉग खोला. अच्छा प्रयास है. इसके लिए बधाई. कुछ कोशिशे अच्छी लगी. जैसे वरिष्ठ पत्रकारों से बातचीत. पत्रकारों की मदद के लिए प्रयास अदि इत्यादि. गपशप तो खैर है ही आपका ब्लॉग का खास आकर्षण है ही.
मुझे खुशी इस बात की हुई कि ब्लॉग जैसी नई विधा के इस्तेमाल मे हिन्दी के साथी पत्रकार कितने सजग और उत्साहित है. दूसरी महत्वपूर्ण बात उएह कि इसने मीडिया को लोकतान्त्रिक बनाया है. हर कोई खुल कर अपनी बात कह सकता है. किंतु उसका ग़लत इस्तेमाल भरी नुकसानदायक है.
आपने लोगो को अपनी बात कहने के लिए प्लेटफोर्म उपलब्ध कराया इसके लिए साधुवाद. लेकिन एक गुजारिश है कि इसमे क्या लिखा जा रहा है इस पर ध्यान दे.
मै एक पोस्ट कि तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ. मुन्नवर सुल्ताना का है. उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री रामदोस के समलैंगिको वाले बयां पर आपत्ति के है. इसमे दो राय नही कि मोहतरमा सुल्ताना को अपने विचार या प्रत्रिक्रिया रखने का हक है लेकिन वैसा ही हक रामदोस को भी है. वो ग़लत हो सकते है. उनसे असहमत हुआ जा सकता है. उसकी आलोचना की जा सकती है लेकिन मर्यादित शब्दों मे.
जिस तरह कि भाषा सुल्ताना जी ने इस्तेमाल के है मै उसे उचित नही समझता .
उन्होंने बेहद भद्दे शब्दों का इस्तेमाल किया है.
आपसे इतना ही कहना है की अपने ब्लॉग की प्रतिष्ठा यूँ न गवाए. मानता हूँ कि ब्लॉग सेंसरशिप के ख़िलाफ़ है इसलिए किसी के विचारो को रोकना उचित नही किंतु अश्लील शब्दों के इस्तेमाल को वर्जित करने मे कैसा संकोच.
आशा है इस और ध्यान देंगे.
संजय
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