ये पोस्ट विशेष रूप से हर बात में कमेन्ट करने वाले रूपेश जी के लिए लिखी जा रही है. मेरी पिछली एक पोस्ट क्या सही, क्या ग़लत पर आपने अपनी टिप्पणी दी थी. आगे लिखने से पहले उस टिप्पणी को देना जरूरी लगता है. टिप्पणी इस तरह थी-जब औरत और मर्द के बीच के मुद्दों पर शांति समझौता हो जाए तब इस खोल से बाहर आकर मनीषा दीदी जैसे लैंगिक विकलांग लोगों के बारे में बात करियेगा अगर साहस जुटा पाएं तो.....जय जय भड़ास
उनकी विगत कई टिप्पणियों की तरह ही मुझे इस पर अपनी पोस्ट के लिए कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि उनकी शायद आदत सी बन गई है किसी भी पोस्ट पर कुछ भी टिप्पणी करने की. कभी की ये भडासियों को मालूम है, कभी ये कि बाहर निकल जाने दो....बगैरह-बगैरह..... वे अपनी पोस्ट पर उतना ध्यान नहीं देते न अपनी टिप्पणियों पर बस धकापेल लिखा देते हैं। भूल जाते हैं कि बहुत लोग हैं जो अंदरसे निकालने का दिखने का काम करते हैं. बहरहाल उन पर चर्चा नहीं उनकी टिप्पणी पर चर्चा करना है.
यहाँ उनहोंने एक शब्द इस्तेमाल किया है "लैंगिक विकलांग" मेरा मानना है कि किसी व्यक्ति किसी अंग विशेष बेकार हो या काम न कर रहा हो वो विकलांग होता है। रूपेश जी चूंकि डॉक्टर हैं और चिकित्सा सेवा से जुड़े है मैं नहीं जानता कि चिकित्सकों की दृष्टि में विकलांग की और क्या परिभाषा क्या होती है? बात विकलांगता की है तो वे बताएं कि इस समाज में विकलांग कौन नहीं है. डॉक्टर साहब शरीर से परिपूर्ण (लैंगिक परिपूर्णता) हैं तो वे विकलांग नहीं हैं पर मनीषा दी...........बहरहाल मेरी दृष्टि में सभी विकलांग हैं. जो चश्मा लगा रहा है वो दृष्टि विकलांग..........जो छड़ी लेकर चल रहा है वो चाल से विकलांग........जो पढ़-लिख नहीं सकता वो शिक्षा से विकलांग......जिसको पेट की बीमारी बनी रहती है वो पाचन विकलांग........और गिनाएं या बंद करें?
इसी श्रेणी में वे लोग भी आते हैं जिन्हें बेवजह किसी न किसी बात पर अपने विचारों को प्रकट करना है। वे गधों की भाषा समझ कर बता देते हैं कि देश का हाल ठीक है, वे प्रेमिका के लिए एक फूल खरीदने का मशविरा देकर बच्चों के कष्टों को दूर कर देने का दम भर लेते हैं......कहीं आप भी तो इसी श्रेणी में नहीं आते हैं?
जहाँ तक आपके शब्द "लैंगिक विकलांगता" वालों के दर्द का सवाल है तो जो लैंगिक संपूर्ण हैं वे भी किसी न किसी दर्द से परेशान हैं. नारी के अपने दर्द, पुरूष के अपने दर्द. शरीर होने के बाद भी शारीरिक सुखों को (पति-पत्नी वाला शारीरिक सुख ही शारीरिक सुख नहीं होता) नहीं उठा पाते, क्या वे आपकी निगाह में विकलांग होंगे? आपकी मनीषा दीदी के दर्द को इतना समझ सकता हूँ जितना एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में मैं स्वयं मिला हूँ. (एक विनती डॉक्टर साहब आपसे, किसी के बारे में जाने बिना किसी तरह का कमेन्ट न किया करिए) मनीषा जी के ब्लॉग पर जाता रहता हूँ उनके विचरों को देख कर भी यदि उनका आकलन आपकी शब्दावली में करें तो ये मानसिक विकलांगता होगी.
अब लगता है बहुत हो गया. शेष डॉक्टर साहब आप टिप्पणी करने से चूकेंगे नहीं. वो कहते हैं न कि चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से न जाए.
25.8.08
पहले विकलांगता को समझिये
Posted by राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
Labels: विकलांगता रूपेशजी
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6 comments:
"शेष डॉक्टर साहब आप टिप्पणी करने से चूकेंगे नहीं. वो कहते हैं न कि चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से न जाए."
बस इस बात से सहमत हूं बाकी तो आपका अपना चश्मा है और मेरा अपना...... आप मनीषा को दीदी सम्बोधन पूर्ण रूप से नहीं दे पा रहे,ये शब्द विकलांगता हुई न? जीवन एक प्रोजेक्ट की लम्बाई भर नहीं होता इस लिये बस नजरिये का चश्मा चढ़ाए आप अपनी और हम अपनी पेले रहें.....:)टिप्पणियों को पढ़ कर भी आप इतना लिखते हैं तो साहित्य को आप जैसों की भयंकर जरूरत है:)
जय जय भड़ास
सेंगर भाई,डा.भाई की हर बात को बड़े गौर से देखते हो इसके लिये धन्यवाद चाहे वह बच्चे के फूल हों या गधों की भाषा..... विकलांगता आंगिक होती है जहां तक शरीर की बात है लेकिन आपकी अपनी परिभाषा है विकलांगता की.... आप डा.रूपेश को अपने हिसाब से जिस श्रेणी में रख कर खुश होना चाहें खुश रहिये; न मुझे कोई परेशानी है न उनको होगी बस आप बचियेगा कि इस श्रेणी में शामिल न हो जाएं :)
जय भड़ास
लाल अक्षरों में वो भी बोल्ड लिखा करते हैं ये अच्छी बात है वरना लोग यही समझेंगे कि कोई साधारण आदमी लिख रहा है जैसे कि बाकी भड़ासी सामान्यतः लिखते हैं। इस तरह कुल मिला कर तीन कमेंट्स से आपकी पोस्ट अमीर हो गयी,मुबारक हो भाई इतना तो लोग भड़ास के दोनो माडरेटरों यशवंत सिंह और डा.रूपेश पर भी ध्यान नहीं देते:)
भड़ास ज़िन्दाबाद
आपकी नजरों में सभी विकलांग हैं समाज में तो आप बस इतना बता दीजिये कि आप समाज में हैं या नहीं या फिर किस किस्म की विकलांगता से पीड़ित हैं? इस विकलांगता को जान कर भी ओढ़े हुए हैं या उसे दूर करने का कुछ उपाय तलाश रहे हैं?जनाब मुझे लगता है कि आप जैसे लोग ही मनीषा जैसे बच्चों को सड़कों पर फेंक देते हैं क्योंकि मनीषा के ब्लाग पर आपको मानसिक विकलांगता मिल जाती है। शायद आप नपुंसकता और लैंगिक विकलांगता के अंतर को नहीं जानते या बस अन्जान बन रहे हैं या बस यूं ही शब्द प्रपंच करके इस वेब पेज पर स्वयं को विचारक सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं? जो भी हो लगे रहिये आपका स्वागत है।
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