30.11.08
जीवन तो है इक आग....!!
कतरा-कतरा क्या मिला....कतरा-कतरा आग
कतरा-कतरा सूर है... और कतरा-कतरा राग !!
जीवन का तो मर्म क्या समझ पाये....आदम
थोड़ा-सा तो कर्म है और थोड़ा अपना "भाग" !!
इतना सपना मत देख..सपना इतना सच नहीं
सच तो सामने है देख..आँखे खोल और जाग !!
हाँ भइया मुश्किल तो बहुत है जीना मेरे प्यारे
लेकिन मुश्किल में जीना ही तो जीवन का राग !!
अजीब है ये जीवन कि कुछ लोग तो हैं खुशहाल
कुछ लोगों का बेहाल, और दामन भी है चाक !!
राख हो रहे हैं हर पल ख़ाक हो जाने को हैं अब
साँस-साँस हम जलें और हर धड़कन है इक आग
सुबह से शाम तक हर वक्त की यूँ ही है भाग-दौड़
ये भी कोई जीवन है"गाफिल",ये तो है खटराग !!
अपना मंच की गोष्ठी में गूंजे कवियों के स्वर
व्यथा, बेचैनी और संत्रास
पर क्या इतना सबकुछ होने के बाद हम यह आशा कर सकते हैं कि लिजलिजे, रीढ़हीन, वोटपरस्त, अनैतिक और बेशर्म राजनेता अपना स्टैंड बदलेंगे। कम से कम मुझे इस बात का जरा भी यकीन नहीं है कि ये नेता ऐसा करेंगे। ये लोगों के जख्म भरने का तबतक इंतजार करते हैं, जब तक कोई दूसरा जख्म देने के लिए धमक न पड़े। अभी सारे बड़बोले नेता चुप हैं। उनको काठ मार गया है। इनकी निर्लज्जता देखिए। केंद्रीय इस्पात मंत्री रामबिलास पासवान ने २७ नवंबर को रांची में रैली की, सभा की, भाषण भी दिया। देश के सैनिक जूझ रहे थे, ये नरपिशाच राजनीति भुनाने में लगे थे। इस बार जनता आक्रोश में है। जनता को समझ आ गया है कि सारे फसाद की जड़ ये नेता ही हैं। ये जरा भी बोलें, तो इनका मुंह नोच लेगी जनता। महाराष्ट्र की सरकार ने क्या किया। कोस्टल सिक्यूरिटी की फाइल वर्षों दबाकर रखी। १० भाड़े के पाकिस्तानी आये और कहर बरपा कर चले गये। इसपर भी महाराष्ट्र का गृहमंत्री आरआर पाटिल बयान देने से बाज नहीं आये। निर्लज्जता से कहा- इतने बड़े शहर में ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं होती रहती हैं। जरा भी शर्म नहीं आयी। ऐसा व्यक्ति लगातार राज्य का गृह मंत्री बना रहता है और इतना अनैतिक है कि इस्तीफे की पेशकश भी खुद नहीं करता। जरा सोचिए, इनके हाथों में देश कितना सुरक्षित है? करकरे, सालस्कर, पाटिल, गजेंद्र सिंह समेत २० सुरक्षा जवानों की शहीदी से ही देश आज सुरक्षित है। उनके परिजनों की आंखों के आंसू पोंछने जाने का दिखावा करनेवाले नेताओं को क्या पता है इस शहीदी का मतलब? गोलियां मुंबई में उनको लगीं, सारा देश मर्माहत हो उठा। शहीद होनेवाले लोग देशवासियों के रिश्तेदार नहीं लगते थे, पर उन्होंने देशवासियों के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। इसलिए हर देशवासी आज खून के आंसू रो रहा है। देश के लोग बेहद सदमे, गुस्से और आक्रोश में हैं। बार-बार देश की जनता की सुरक्षा और सेंटीमेंट्स से खेलनेवाले नेताओं में से दो-तीन को भी अगर उग्रवादियों ने मार गिराया होता तो शायद लोगों की आंखों में इतने आंसू न होते, जितने सुरक्षाबलों के शहीद होने पर हैं। इस व्यथा, बेचैनी और संत्रास की कीमत ये वोटलोलुप नेता कब चुकाएंगे, इसी का इंतजार है।
कायरनाना में ये हाल हैं, तो विराना में...?
जब भी कोई आतंकवादी घटना घटित होती है, कई तरह के बयान मार्केट में आ जाते हैं। जैसे, हम आतंकवाद की जड़ को खत्म कर देंगे, आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है, हम कड़ी कार्रवाई करेंगे आदि-आदि। इन सब बयानों को सुन-सुन कर मैं उब चुका हूं। कोई नई बात करो तो जानें। आप पुछेंगे नई बात क्या? भई एक्सशन लो, और क्या?तो हम बात कर रहे थे बयानों की। आतंकी घटनाओं के जस्ट बाद बयानों की झड़ी लग जाती है, उनमें से एक बयान मुझे काफी परेशान है। वह बयान है, ये कायराना हरकता है। मुझे समझ नहीं आता है, आतंकवादी आकर सरेआम मौत का तांडव मचा देते हैं और हम इसे कायरना हरकत कहकर कैसे टाल देते हैं? आखिर, इनकी ये हरकत कायराना है, तो हमारी हरकतें विराना है क्या? क्या चुपचाप आतंकी हमलों को सहना, और बयान बाजी करना भर हमारी विरता है?एक बात और.. क्या? लोग बड़ी सहज रूप से इन हरकतों को कायरना कहकर टाल देते हैं। एक बात बताओं कि इन आतंकवादियों की इन कायराना हरकतों से देश थर्रा उठ जाता है, लोग त्राहि-त्राहि करते हैं, लोग दहशत में हैं, डर के साये में जीते हैं, तो ये आतंकवादी विराना हरकत करेंगे तो क्या होगा? मेरे मन में उठ रहे इन सवालों को शांत करो। भई मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है। आपको आ रहा है क्या? आपको आए तो जरूर बताना। बताओंगे ना?
प्यारे पी.एम्.साहेब....!!
प्यारे प्रधानमंत्री जी,
आपको इस देश के तमाम लोगों का राम-राम ,
आशा है सकुशल और सानंदित होंगे.....वैसे तो हम सब आम लोग आप लोगों की खुशियों के लिए भगवन से प्रार्थना करते हैं...मगर ना भी करें तो आप लोगों को क्या फर्क पड़ता है... (गलती से भगवान् लिख दिया है..आप अपनी सुविधानुसार खुदा..गाड...वाहे गुरु,जो भी चाहे कर लें...क्या करें हम हिंदू तो सम्प्रायवादी हैं...साले हम आज तलक भी आते-जाते लोगों को राम-राम ही करते चल रहे हैं...और दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच चुकी.....!!).....
खैर पी.एम. साहेब जी...६०-६५ घंटे पूर्व जो कुछ हमारी आंखों के सामने घटा...वो तो हम सब समेत आपने और भारत के तमाम राजाओं ने भी देखा...जी हाँ...राजाओं...!!वे राजा जो हम सबके द्वारा चुनकर संसद और देश की तमाम विधानसभाओं में भेजे जाते हैं...हमारी तकदीर तय करने...यानी हमारी जिन्दगी और मौत तय करने के लिए... और जिनकी जिन्दगी को सुचारू रूप से चलाने हेतु आप सब....और आप सब की जिन्दगी की सुरक्षा-व्यवस्था के लिए आप सब ही जो हजारों-हज़ार नौकर-चाकर-पुलिस-संतरी,एस.पी.जी.,बॉडी-गार्ड,हज़ार तरह की सुरक्षा-व्यवस्था,जवान-कमांडो...आदि-आदि....आप सब ख़ुद ही तय करते हो...आप ही तय करते हो किसानों को दी जाने वाली उनकी फसल का समर्थन-मूल्य.....भले ही सेठ-साहूकारों की प्रोफिट-पिपासा शांत ना कर सको....भले ही बड़े-बड़े घरानों की चीजों पे चस्पां होने वाले ऍम.आर.पी को कंट्रोल ना कर सको....आप ही तय करते हो देश के विकास में मंत्रियो और उनके गुर्गों और तमाम अफसरों और अन्य लोगों का योगदान क्या हो...भले ही अपना यह योगदान देने बहाने ये सारे लोग विकास की समूची राशि का गबन कर लें...और देश के बाहर मौजूद बैंकों में क़यामत तक के लिए जमा कर दें....आप काबू ना पा सको.....आप ही तय करते हो देश को चलाने का सिस्टम क्या हो....भले ही मंत्रियो और उनके गुर्गों और तमाम अफसरों और अन्य लोगों द्वारा ये सिस्टम हाईजैक कर लिया जाए....आप टुकुर-टुकुर ताकने के सिवा कुछ ना कर सको.....आप ही तय करते हो कि देश के विकास के लिए किसको क्या देना है...और किससे क्या लेना है....भले ही ये देने और लेने वाले ही इस देन-लेन में घपला कर इसमें भी बंदरबांट कर लें....और आप मुंह बांये खड़े रह जाएँ....आप ही तय करते हो देश को चलाने के लिए टैक्स का निर्धारण क्या हो...और उस टैक्स के आए हुए पैसे का समुचित वितरण कैसे हो....भले ही उस टैक्स निर्धारण में सैकडों भयानक विसंगतियां हों....और टैक्स लेने वाले आपके तमाम कलेक्टर टैक्स नहीं देना सिखाकर उसके एवज में अपना ही घर-बैंक-तिजोरी-पेट आदि-आदि सब ओवर-फ्लो की हद तक भरे जा रहे हों....यहाँ तक की रुपयों की गड्डी के बिस्तर पर सोते हैं और अय्याशी करते हैं....और यह पाक कार्य मंत्री-अफसर-नौकरशाह ही करते हैं.....आप की नाक के ठीक नीचे.....आपकी जानकारी में...गोया की आप ही की रहनुमाई में....६० सालों में आप लोगों की सुरक्षा-व्यवस्था में जितना खर्च हुआ है...उतने में तो देश के तमाम गरीब लोगों का राशन-पानी आ जाता....और जितना धन आपके मंत्री-अफसर-नौकरशाह-विधायक-सांसद और इन सबकी मिली-भगत से उद्योग-पतियों ने बैंकों का धन हड़प-गड़प-हज़म किया है...उतने से एक क्या कई भारतों का अकल्पनीय विकास हो सकता था...है...!!
.........मैं बताऊँ सर....,देश में होने वाले इन और उन तमाम प्रकार के हादसों के लिए अन्य और कोई नहीं,बल्कि आप सब ही और सीधे-सीधे तौर पर जिम्मेवार हो....और इसके लिए आप-सबको अभी-की-अभी फांसी लगा लेनी चाहिए....आप सब तो ख़ुद ही ऐसे जल्लाद हो कि...अपने सामने सब कुछ होते देखते हो...कसूरवारों को कभी दंड नहीं देते....सरकार चलाने के लिए तमाम समझौते करते हो...हर किसी को उसकी मनमानी करने देते हो...अपनी भी मनमानी करते हो...जो चाहे...जब चाहे...जैसे चाहे करते हो...चाहे वो देश-राज्य-शहर-गांव या किसी के भी हित में हो या ना हो....सिर्फ़ अपना हित और अपनी अय्याशी हो...सिर्फ़ अपने स्वार्थ-अपने अंहकार का पोषण हो....देश के इन-आप जैसे लोगों को फांसी भी हो तो कैसी हो....हम तो यह तय करने में भी अक्षम हैं....६० सालों में आप सबों ने अपने-अपने समय के शासनकाल में देश की जो दुर्गति की है...वो अकल्पनीय है....और शैतानों के लिए भी एक उदाहरण है.... प्रशासन-हीनता का ऐसा घटिया उदाहरण शायद नरक या जहन्नुम में भी ना मिले....!!!!देश की हर प्रकार की मशीनरी का इस तरह पंगु बना दिया जाना.....शैतानी परिकल्पना की सफलता का एक अद्भुत उदाहरण है....और इस बात का परिचायक भी कि जब नाकाबिल लोग कहीं पर शासन करते हैं तो कैसे सब कुछ ध्वस्त हो जाता है...!!
अब आप ये जरूर कहेंगे कि ये जो इतना विकास देश का हुआ है...क्या वो तुम्हारे(मेरे) बाप ने किया है.....नहीं माई-बाप नहीं....बल्कि मैं आपसे उलट कर ये पूछना चाहूँगा कि इस विकास में क्या वाकई देश के इस प्रभुसत्ता-संपन्न राजनीतिक वर्ग का कोई रत्ती-भर भी योगदान है.....??!!बल्कि देश के विवेकशील लोगों के अनुसार तो ये वर्ग उलटा विकास में रोड़ा ही है.....!!!!हे वर्तमान और तमाम निवर्तमान पी.एम्. साहेबों मैंने तो सूना है कि शैतान भी हैरान होता है और सबसे ये पूछता चल रहा है कि धरती पर भारत नाम के इस देश में राजनीतिक प्रभुसत्ता-संपन्न यह वर्ग शैतानियत में उनसे भी मीलों आगे कैसे निकल गया है कि किसी भी वाहन से पकड़ ही नहीं आता....और ये भी कि अब वो (शैतान)क्या करे...पहले शैतान थोड़े से थे....अब तो इस वर्ग के उदय होने और शक्ति-संपन्न होने से वो बेरोजगार हो गए हैं....सब निठल्ले बैठे आगे की योजना बना रहे हैं....उनके (शैतानों के )लास्ट सम्मेलन में ये प्रस्ताव पारित हुआ है कि अब शैतान परोपकार और पुण्य का कार्य करेंगे...अब उन कार्यों की रूप-रेखा बनाई जा रही है...जल्द ही इसे कार्यान्वित किया जायेगा...!!
..............हे वर्तमान और तमाम निवर्तमान पी.एम्. साहेबों....मंत्रियों...छोटे-बड़े-छुटभैय्ये नेताओं...तमाम सरकारी कारिंदों तमाम शक्तिशाली लोगों....... ऐसा लगता है कि अगरचे तुन्हें देश की जरुरत सिर्फ़-व्-सिर्फ़ अपने और अपने कुटुंब का स्वार्थ और हित साधने के लिए है...अपनी गंदी वासनाओं की पूर्ति के लिए देश की अस्मिता को बेच देने के लिए है....तो तुम्हे एक बार फ़िर राम-राम....मगर इसके लिए तुम सब अपने लिए एक नया देश (क्यूंकि गद्दारों को कौन अपने पास पनाह देगा...!!??)बना लो....हम देश के आम नागरिक तुम सबों को आश्वस्त करते हैं कि हम कई देशों की सरकारों को इस बात के लिए मना लेंगे कि अपने यहाँ से थोडी-थोडी जगह देकर इनके लिए एक नए देश के निर्माण में सहयोग करें....हमें आशा है कि हम ऐसा कर पायेंगे....क्यूंकि हम जानते हैं कि धरती का दिल बहुत बड़ा है.....!!!!
आतंकवाद और हम
अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत के प्रति संवेदनाओं के साथ ही भारत के सुरक्षा तंत्र पर भी सवाल उठने लगे हैं। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अपने चुनाव प्रचार के दौरान पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों पर हमले की पैरवी कर चुके हैं। शायद यही वज़ह है कि अमेरिका को ईष्ट मानने वाला तबका भी इस बात का समर्थन कर रहा है और भारत को भी यही सलाह दे रहा है। सोचने वाली बात यह है कि लोकतंत्र के मूल्यों को उठाकर ताक पर नहीं रखा जा सकता। उदारता और सहिष्णुता की जिस नीति ने हमें पूरी दुनिया की संवेदनाओं के साथ ही सम्मान भी दिलाया है उनकी तिलांजली देना क्या उचित है? यहां गुस्से की नहीं वरन एक समग्र बहस की ज़रूरत है। अपने तंत्र और अपनी राजनीति में सुधारों का वक्त है। पिछले महीने हुई राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में आतंकवाद के खिलाफ कोई ठोस नीति नहीं बन सकी है। इसकी वज़ह रही लोकतंत्र की संघीय प्रणाली में राज्यों को स्वायत्तता देना। जिस भावना को संविधान में निरपेक्ष भाव से रखा गया था उसे राज्यों ने निजी अधिकार क्षेत्र मान लिया है। जिसकी वज़ह से एक फेडरल एजेंसी (संघीय एजंसी) के कल्याणकारी विचार ने दम तोड़ दिया। सबसे हैरत की बात तो इस दौरान यह रही कि इस बैठक में आतंकवाद को चरमपंथ शब्द से संबोधित किया गया। इस मुद्दे पर जितना उदासीन केंद्र दिखा उतनी ही राज्यों ने भी लापरवाही बरती। इस साल को याद रखने के लिए आतंकवाद ही काफी है। दक्षिण से लेकर उत्तर तक पूर्व से लेकर पश्चिम तक पूरे भारत में लोग आतंकवाद के शिकार बने। जनता रेज़गारी की मौत मरती रही और हर घटना के बाद नेताओं की घोषणा, अनुदान राशि और दौरों का दौर चलता रहा। नेता भाषण से लोगों के आंसू पोंछने की नाकामयाब कोशिशें करते रहे और आतंकवादी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आए। अवसरवादिता की राजनीति होती रही। दोनों दल यानि सत्ता और प्रतिपक्ष ब्लेम गेम खेलते रहे। ऐसा ही मुंबई हमले में भी हुआ। मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने हमले के अगले ही दिन आतंकवाद को मुद्दा बनाकर विज्ञापन प्रकाशित करा दिया। कांग्रेस इस वार से घबराई और अगले ही दिन इसके खंडन के तौर पर जनता की देशभक्ति से भरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ शुरू कर दिया। इस विज्ञापन में शहीदों के लिए आदर कम और भाजपा के विज्ञापन से प्रभावित लोगों का ब्रेन वॉश करने की उत्कट इच्छा जाहिर हो रही थी। वरना कंधार के शहीदों से विज्ञापन के शुरूआत करने की कोई खास ज़रूरत नहीं थी।
दूसरी तरफ हर हमले के बाद हमारी सुरक्षा एजेंसियां कहती रहीं कि हमने पहले ही राज्य सरकार को आगाह किया था, लेकिन सूचना से सरकार कोई फायदा नहीं उठा सकी। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि हमारे सुरक्षा और राजनीतिक तंत्र में कोई खास तोलमेल नहीं है। यह वक्त है अपने तंत्र को टटोलने का और दुनिया भर को दिखा देने का कि हम ‘बनाना रिपब्लिक’ नहीं हैं। अपने लोकतांत्रिक मूल्यों पर चलकर आतंकवाद को मात दे सकते हैं। सुरक्षा के इस खदबदाते सवाल पर चिंतन खत्म नहीं होने वाला इसलिए आपके सुधी विचार भी आमंत्रित हैं। सामाजिक मीडिया का दायित्व निभा रहे ब्लॉग जगत से ही शायद कुछ कारगर उपाय निकल खड़े हों जो इन सवालों का सर कुचलने का माद्दा रखते हों।
nationalism
Impact: शर्म करो पाटिल आर.आर. पाटिल
महाराष्ट्र का शिखंडी उप मुख्यमंत्री आर.आर. पाटिल देश के सबसे बड़े आतंकी हमले को छोटी-मोटी वारदात मानता है। इस बे-शर्म मंत्री को कौन बताए कि तुम जैसे नेता ही देश के लिए सबसे बड़े आतंकी है। शनिवार को मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में इस हिजड़े नेता ने कहा कि 'बड़े शहरों में ऐसे एकाध हादसे होते रहते हैं।' आतंकी बड़े पैमाने पर तबाही मचाने आए थे, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। इस तरह का बयान देकर आर.आर. पाटिल जैसे हिजड़े नेता इस हमले में शहीद जवानों समेत उन तमाम नागरिकों का अपमान किया है, जो इस हमले में अपने प्राणों की आहुति दे गए। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि एक हिजड़ा पाटिल केंद्र में कुंडली मार कर बैठा है तो दूसरा हिजड़ा पाटिल मुंबई में। क्या अब मनमोहन सिंह को राष्ट्रीय शर्म दिखाई नहीं देता?
29.11.08
Mumbai Par Hamla (शर्मशार होने वाली घटना )
कितना कड़वा सच है, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर, चंद मुठ्ठी भर लोग, जब चाहें बता-बता कर उसकी मर्यादा का मानमर्दन करें, लोगो के खून से होली खेले और ऐसे खूनी भेड़ियों की गर्दन सिर्फ हम इसलिए बचाएं क्योंकि जम्मू-कश्मीर में सत्ता को नुकसान हो जाएगा, कुछ को बिहार में, कुछ को यू.पी. में और कुछ को लोकसभा के चुनावों में. इसलिए अफज़ल जैसे मौत के सौदागर को फांसी नहीं देना है, बाटला हाउस के लिए सुरक्षा बलों को चीख-चीख कर बदनाम करना है, सिम्मी की वकालत करना है और सेना के कर्तव्यनिष्ठ अफसरों को एक नार्को टेस्ट की आड़ में पूरी सेना को कटघरे में खड़ा करना आदि-आदि की परिणिती क्या है? कराहती मुंबई है, इसका जवाब. कहाँ है मुलायम? कहाँ हैं लालू? मुंबई वाले आज पूछ रहें हैं? ये मौत के सौदागर क्या सिर्फ 26 नवंबर 2008 को मुंबई आए और उन्हे पूरी मुंबई की पहचान हो गयी ? इस पहचान में मदद करता है, सिम्मी, ये बात देश की ख़ुफ़िया एजेन्सी के प्रमुख कहते हैं. जब इनकी बात पर गौर नही करोगे तो देश को, गृह मंत्री ये बताकर क्या साबित करना चाहते हैं कि आतंकवादियों के पास जैविक और रासायनिक हथियार भी हैं. जनाब, आप देश को ये बताएँ कि इस देश में कबसे आतंकवादी हमले में अब और कोई बेगुनाह की जान नहीं जाएगी .क्या आपमें वो हिम्मत जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपने देश के लोगो को 11 सितंबर के हमले के बाद आश्वस्त किया था कि वो अब अमेरिका पर और कोई आतंकवादी हमला नहीं होने देंगे. उन्होने जो कहा वो कर के दिखाया. क्या आप ऐसा कर पाएंगे? एक रेल दुर्घटना पर मंत्री पद से इस्तीफ़ा देने वाले लालबहादुर शास्त्री क्या अब सत्ता के आदर्श प्रतिबिंब नही रहे ?
जयपुर, अहमदाबाद, बंगलोर, दिल्ली और अब मुंबई. वो मुंबई जिस पर पिछले एक साल से हमले की बात आतंकवादी कर रहे थे, आखिरकार वो इस पर अमल करने में कैसे कामयाब रहे? मुंबई ही नहीं पूरा देश इसको जानना चाहता है. देश जानना चाहता है कि आतंकवादियों के इतने हमलों के बाद भी क्या हम हमलों को अंजाम देने वालों को नही पहचान पाए? इन हमलों में देश के भीतर और बाहर किन-किन का हाथ है ? इन हाथो पर अब तक प्रहार नही किया गया है तो कब तक किया जाएगा ? ये नही कर पाए हो तो लोगो क़ी सुरक्षा क़ी गारंटी कौन देगा? देश क़ी इज्जत मट्टी पलित हो रही है पूरी दुनिया में. यहाँ तक कि इंग्लेंड की क्रिकेट टीम भारत का दौरा रद्द कर स्वदेश लौटना चाहती है, क्या अब भी कोई शर्मशार होने वाली घटना का इंतजार किया जा रहा है ? आतंकवाद रोकने वाले कानून पोटा को धर्म विशेष के लोगो से जोड़ कर, क्या देश को गर्त में धकेलना ठीक है ? कठोर कानून आतंकवादियों के लिए है तो फिर ये किसी धर्म विशेष \के खिलाफ कैसे हो गया? मान लिया जाय है भी, तो क्या देश से बड़ा धर्म है? देश की रक्षा के लिए तो हमारे देवी- देवताओं ने भी अस्त्र-शस्त्र उठाए हैं, और दुष्टों का दमन किया है. आज के इन दुष्टों पर आप काबू नही पा सकते तो फिर आम आदमी जानना चाहता है कि आप सत्ता में क्यों रहे? आखिर आम आदमी ने ही तो अपनी सरकार बनाकर आपको देश की और अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी है? जब ये दोनो आपके हाथों सुरक्षित नही तो आप उसकी {आम आदमी} सत्ता पर काबिज नही रह सकते. मुंबई का दर्द बड़ा पीड़ा दायक है. आप बैठके न करे, जनता समाधान चाहती है. सता के लिए आतंकवाद पर नर्म नहीं आरपार की इच्छा शक्ति शब्दों में नहीं धरातल पर नजर आनी चाहिए. अब तुष्टिकरण नहीं जनता की सुरक्षा की पुष्टि कीजिए, वरना जनता की सत्ता छोड़ दीजिए.
मानवता के दरिंदों के हमलों में मुंबई में हताहत हुतात्माओं को विनम्र श्रद्धांजलि ..................................
तांडव और नहीं
आतंकवादी हमेशा एक नये तरीके से अपने कारनामों को अंजाम दे रहा हैं। लेकिन तमाम वादों,कसमों और दावों के बावजूद परिणाम वहीं ढाक के तीन पात आ रहे हैं। अगर पिछ्ले कुछ आतंकवादी हमलों का विश्लेषण किया जाये, तो एक खास पैटर्न का इस्तेमाल देखने को मिलता था। लेकिन मुबंई में उसे नहीं अपनाया गया। इतना ज्यादा गोला-बारुद हमले के वक्त़ एक बार में होटल के अंदर ले जाना नामुमकिन था। तो क्या इसे पहले से होटल के अंदर जमा किया जा रहा था ? अगर हाँ, तो क्या इसे खुफ़िया तंत्र और होटल प्रशासन की लापरवही मानी जाये ? आतंकी जिस तरह से पुलिस की गाड़ी लेकर मुबंई की सड़कों पर भागे, उससे लगता था कि वे मुबंई की सड़कों से अनजान नहीं थे। तो क्या सचमुच आतंकी विदेशी थे ? या फ़िर इनके साथ कुछ स्थानीय नुमांईदे भी थे ? या ये विदेशी आतंकी पहले से मुबंई मे डेरा जमा रखे थे ? यहाँ फिर खुफ़िया तंत्र की नकामी नज़र आ रही हैं।
हमेशा की तरह प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने इस हमले में विदेशी हाथ होने का दावा किया हैं। माननीय प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के पास इसके समर्थन में क्या सबुत हैं ? और अगर सबुत हैं,तो आखिर कितने बलिदानों का इंतजार हैं माननीय प्रधानमंत्री और गृहमंत्रीजी को ? मेरे पहुँचने से डर कर भाग गये आतंकी। क्या यह बयान किसी भी मुल्क के गृहमंत्री उन हालातों के बीच दे सकता हैं ? पाटिल साब अगर सचमुच आपके डर से आतंकी भाग खड़े हुये, तो कामा अस्पताल के साथ-साथ आपको ताज होटल, ओबेरॉय होटल और नरीमन हाउस भी जाना चाहिये था। अगर आप ऐसा करते तो शायद जान-माल की इतनी क्षति नहीं उठानी पड़ती।
पाटिल साब, इतनी मांगों के बावज़ूद आखिर क्यों एक आतंकवाद निरोधक केंद्रीय एजेंसी नहीं बनायी जा रहीं ? आखिर क्यों आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई को भी राज्यों के भरोसे छोर दिया गया हैं ?
अब जनता हिसाब मांगना शुरू कर चुकी हैं, और अब हुक्ममरानों को जबाब देने के लिये तैयार हो जाना चाहिये। देश के नागरिकों की जान की कीमत चंद सिक्कों में नहीं तोली जा सकती। और न हमारी मौत का फ़ैसला सीमापार बैठे कुछ कायर कर सकते हैं। भारत के सरजमीं पर आये हर सैलानी यहाँ के मेहमान हैं, कसम उन जानों की यह तांडव और नहीं।
अब यह अवाम पूछता हैं हुक्ममरानों से आखिर यह तांडव कब तक ?
By: Sumit K Jha
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कुर्सी की माया...
कांग्रेस सरकार सभी मायनों पर फ़ेल,
सरकार को छोडिये भाजपा को वोट दीजिये,
आतंकवाद में सवा एक परसेंट की छुट लीजिये,
हमें वोट दीजिये ...हम आतंकवाद पर लगाम लगाएँगे,
इस बार पानी नहीं हवा के रास्ते आतंकी आएँगे,
मुंबई में मारे गए शहीदों को श्रधांजलि दीजिए ,
दो चार लाख देकर मामला रफा दफा कीजिए,
हम आतंकवाद के मुद्दे पर एक जुट हैं,
पर कुर्सी से भी हमारा नाता अटूट है,
जब जब देश में आतंकी आता है,
हमारी कुर्सी की एक टांग डगमगाता है,
साल में एक बार ही २६/११ याद आएगा,
शायद तब तक चुनाव पहुँच जाएगा........
पत्रकार मित्र धीरेन्द्र पाण्डेय की लेखनी...
परमहंस योगानंद
विनय बिहारी सिंह
योगी कथामृत (आटोबायोग्राफी आफ अ योगी) के विख्यात लेखक और महात्मा गांधी को क्रिया योग की दीक्छा देने वाले परमहंस योगानंद एक महान संत थे। योगी कथामृत दुनिया की सारी भाषाओं में अनूदित है। उर्दू में भी। परमहंस योगानंद ने सन १९२० में यूरोप और सारी दुनिया में क्रिया योग की जानकारी दी। उन्होंने अपना मुख्य केंद्र अमेरिका को बनाया। भारत में उन्होंने योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के नाम से और अमेरिका में सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के नाम से उनके द्वारा स्थापित संस्थाएं आज सारी दुनिया में आध्यात्म का प्रकाश फैला रही हैं। योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया (वाईएसएस) में क्रिया योग बताया जाता है जिसे महान संत श्यामा चरण लाहिड़ी ने सबसे पहले सिखाना शुरू किया। लाहिड़ी महाशय को उनके गुरु महावतार बाबा जी ने क्रिया योग की दीक्छा दी थी। लाहिड़ी महाशय ने क्रिया योग की दीक्छा स्वामी श्री युक्तेश्वर जी को दी। स्वामी श्री युक्तेश्वर ने इसे अपने दिव्य शिष्य परमहंस योगानंद को सिखाया और उनसे कहा कि पश्चिमी देशों के लोगों को इससे लाभान्वित करो। शुरू में परमहंस योगानंद जी कोई भी संगठन बनाने के पक्छ में नहीं थे। उनका कहना था कि संगठन बनाने से आरोप ही ज्यादा मिलते हैं। तब स्वामी श्री युक्तेश्वर जी ने कहा कि क्या आध्यात्मिक मलाई तुम अकेले ही खा लेना चाहते हो? परमहंस योगानंद जी ने गुरु की बात मानी और वाईएसएस और सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप की स्थापना की। आज ये संगठन नहीं होते तो लाखों लोगों को क्रिया योग की दुर्लभ दीक्छा कैसे मिलती? स्वामी श्री युक्तेश्वर जी ने कहा- पश्चिम में समृद्धि तो है लेकिन आध्यात्म शिक्छा की कमी है। स्वामी श्री युक्तेश्वर जी ने बाइबिल और गीता में अनेक समानताओं के बारे में एक पुस्तक लिखी है- कैवल्य दर्शनम। यह पुस्तक वाईएसएस के केंद्रों में हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला और अन्य भाषाओं में उपलब्ध है। सन १९५२ में जब उन्होंने अमेरिका में अपना शरीर छोड़ा तो उनका शरीर शव गृह में एक महीने तक रखा रहा। लेकिन उसमें कोई विकृति नहीं आई । अमेरिका के शव गृह के इंचार्ज ने तब लिख कर दिया था जो आज भी वहां रखा हुआ है। शव गृह के इंचार्ज ने लिखा है कि यह अद्भुत उदाहरण है। एक महीने बाद भी शव का तरोताजा रहना, आश्चर्यजनक है। लेकिन यह सत्य है। मरने के बाद भी महान संत परमहंस योगानंद ने अपने शव के जरिए आध्यात्म का संदेश दिया। उन्होंने कहा- सिर्फ शुद्ध और सच्चा प्रेम ही मेरी जगह ले सकता है। परमहंस योगानंद ने अनेक पुस्तकें लिखी हैं। क्रिया योग में दीक्छा लेने के इच्छुक लोगों को वहां अपना नाम दर्ज कराना पड़ता है। तब उन्हें हर महीने ध्यान करने संबंधी एक लेसन या अध्याय डाक से भेजा जाता है। साल- डेढ़ साल के बाद अगर व्यक्ति ने लेसन में पूछे गए सवालों का ठीक ठीक जवाब दे दिया तो उसे क्रिया योग की दीक्छा के लिए अधिकृत कर दिया जाता है।
अवध पीपुल्स फोरम..
संयोजन समिति प्रथम बैठक का मिनट्स
22 नवम्बर 2008/ रेलवे कालोनी, फैजाबाद
साथियों मै इस ब्लॉग के ज़रिये आप सभी तक फैजाबाद के हम कुछ नवयुवकों द्वारा किये जा रहे प्रयास को बताने की कोशिश कर रहा हूँ ताकि अवध पीपुल्स फोरम को आपका सहयोग एवं मार्गदर्शन बराबर मिलता रहेगा ऐसी हम सभी साथी आशा करते हैं. 17 नवम्बर 08 को हम कुछ लोगों ने फैजाबाद की एतिहासिक धरती से एक ऐसा प्रयास करने की कोशिश की है जिससे हम अपनी संस्कृति को फिर से जीवित करें,बाल शिक्षा के ज़रिये अपने आने वाले कल को सुरक्षित और मज़बूत बनायें, नशा, पलायन जैसी समस्या को रोकने और रोजगार के प्रति लोगों को सचेत करें तथा हमारे बीच हो रही दूषित और स्वार्थी राजनीति में बदलाव का प्रयास करें l
२.फैजाबाद एवं आस पास के एतिहासिक महत्त्व और साम्प्रदायिकता के सवाल पर फोरम की और से पर्चा निकला जायेगा। इस काम को करने में शहर के वरिष्ठ साथियों की मदद ली जायेगी।
३। जो बच्चे पढाई से दूर हैं और विभिन्न सार्वजानिक स्थानों पर काम कर रहे हैं उनको पढाई से जोड़ने के लिए शहर के सिविल लाइन,रेलवे स्टेशन,बस स्टाप और नवीन मण्डी में काम करने वाले बच्चों की सूचि बना कर उनको शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया जायेगा सूचि तैयार करने की ज़िम्मेदारी साथी गुफरान सिद्दीकी,इरफान और गुड्डू ने ली है.साथ ही साथ बच्चों के बचपन पर एक कविता छाप कर बँटा जायेगा.
४.समय-समय पर राजनीति एवं सामाजिक समझ का विकास करने के लिए फोरम की और से मुद्दे आधारित कार्यशालाओं का आयोजन किया जायेगा. दिसम्बर की मासिक बैठक में इस पर बात होगी l 5।संस्कृति पहेल करने के उद्देश्य से साथियों की सूचि तैयार कर नाटक एवं गाने की कार्यशालाओं का आयोजन किया जायेगा।6.सफाई के मुद्दे पर 26 जनवरी को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम बनाया जायेगा l छेत्रों का चुनाव कर सुचना के अधिकार का प्रयोग करते हुए कर्मचारियों की सूचि एवं उपस्थिति की जानकारी मांगी जायेगी l
7. चार अलग-अलग स्थान (चांदपुर-अफज़ल/शफीक, पहाड़गंज-गुड्डू, सिविल-लाइन-अशोक और छावनी-राजू/आशीष) साथियों के साथ स्थानीय स्तर पर बैठकों का आयोजन किया जायेगा l
8.जो भी लोग फोरम के साथियों के संपर्क में आएंगे उनकी सूचि तैयार की जायेगी.इसकी ज़िम्मेदारी संयोजन समिति की होगी l
9।फोरम के तमाम कामों को करने के लिए आने वाले खर्च के लिए समुदाय एवं सभी काम करने वाले साथियों से चंदा लिया जायेगा।
10।फोरम की मासिक बैठक का आयोजन प्रत्येक माह के तीसरे शनिवार को 4:00 से 7:00 बजे शाम तक ओ.पी.एस.एकेडमी निराला नगर में होगी lसंयोजन समिति सभी साथियों को इसकी सुचना देगी l
11.फोरम के लिए पत्र व्यव्हार का पता 'मुराद अली पहाड़गंज घोसियाना फैजाबाद-224001'फ़ोन पर संपर्क के लिए 'इरफान-9918069399' तथा इ.मेल के लिए ghufran.j@gmail.com पर साथियों से संपर्क किया जायेगा
आप सभी भडासी बन्धुवों से आशा है की आप सभी का प्यार और मार्ग दर्शन हम सभी को हमेशा मिलता रहेगा
और यशवंत जी को हम सभी धन्यवाद देना चाहते हैं जिनका आशीर्वाद हम सभी को मिलता रहता है।
आपका हिन्दुस्तानी भाई (गुफरान)
ये सफलता हमारे जवानों की है ना कि कब्र में पैर लटकाए नेताओं की
26 नवंबर 2008 बुधवार को शुरू हुए मुंबई के आतंकी हमलों से निपटने केलिए बिना देरी किए दिल्ली के 200 एनएसजी कमांडो को रवाना किया गया। देश केलिए मर मिटने को तैयार रहने वाले इन स्पेशल कमांडो मुंबई पहुंचते ही मोर्चा संभाल लिया। पर किसी ने नहीं सोचा था कि हमारे बीच से दो जाबांज मेजर संदीप और कमांडो गजेंद्र चले जाएंगे। 60 घंटे तक चला आपरेशन जब पूरा हुआ तो हमारे बीच ये दुखद खबर भी आई कि अब ये जाबांज सिपाही हमारे बीच नहीं रहे। उनकी इस कुरबानी को देखकर लता जी का गाया गाना ऐ मेरे वतन केलोगों जरा आंख में भर लो पानी..., जेहन में गूंजने लगा। इसकेसाथ ही मुंबई के एटीएस प्रमुख हेमंत किरकरे और अशोक काटे जैसे सच्चे सिपाहियों की शहादत दिल को कचोटने लगी।
देश केलिए अपनी कुरबानी देने वाले ये जवान तो चले गए पर इसकेपीछे राजनीति की रोटी सेंकने वालों को पीछे छोड़ गए। जब मुंबई जल रही थी, हर तरफ आतंक फैला हुआ था तब राज ठाकरे का ना तो कोई बयान आया ना ही उनका मराठा मानुष इस सीमापार आतंकियों से लोहा लेने केलिए सामने आया। इस मुश्किल की घड़ी सबसे पहले अगर कोई दिखा तो वह था पूरे देश का जज्बा जो अपनी मुंबई को खतरे में देख सजग हो गया था और हर जगह उसकी सलामती केलिए दुआएं मांग रहा था। पूरे साठ घंटे चले आपरेशन को लोग टीवी पर देखते रहे। हमारे सैनिकों ने तो अपना काम कर दिया अपनी बहादुरी से दुश्मन केदांत खट्टे कर दिए। कायरों की तरह वार करके आतंकियों ने जहां लगभग 200 मासूमों की बलि चढ़ाई तथा 300 से भी अधिक लोगों को घायल कर दिया। तो हमारे शेरों ने इस्लाम के नाम को कलंकित कर रहे इन आतंकियों को सामने से वार करकेउनके अंजाम तक पहुंचा दिया।
आतंक फैलाकर अपनी जान देने वाले इन युवा आतंकियों जैसे और हजारों आतंकियों को इससे तो एक सबक लेना ही चाहिए कि जब वे मरते हैं तो लोग उनकी लाशों पर थू-थू करते हैं तथा जब हमारे देश केसैनिक उनको मारते हुए शहीद होते हैं तो उनकी याद में हमारे देश की करोड़ों जनता की आंखें नम हो जाती हैं। लोगों को बचाने के लिए जिन लोगों ने अपनी कुरबानी दी है उनका नाम हमेशा इस जहां में अमर रहेगा। सीमा पार आतंकियों को इससे एक चीज तो सीख ही लेनी चाहिए कि वे जितनी भी हमारी देश की अखंडता को तोड़ने की कोशिश करेंगे उससे लोग और एक दूसरे से जुड़ जाएंगे। आतंकी सिर्फ अपने कमीनेपन को उजागर मासूम लोगों को मारकर कर सकते हैं पर जब बहादुरों से उनका सामना होगा तो उनकी रूह कांप उठेगी।
अगर मुंबई केइस आपरेशन पर कोई भी पार्टी में बाद मेंं बयानबाजी करके एक दूसरे पर आरोप मढ़ने की कोशिश करेगी तो उससे हमारे शहीदों को बहुत दुख पहुंचेगा। पर इन नेताओं को कौन समझाए घटिया संस्कारों में पले बढ़े ये देश केभाग्यविधाता अपनी हरकतों से बाज नहीं आएंगे। अब आपरेशन खत्म हुआ है और अतीत की बातों पर भरोसा करें तो इस पर सियासत कल से ही शुरू हो जाएगी। केंद्र सरकार आने वाले चुनाओं में इन जाबांजों की मेहनत को अपनी कुशलता बताकर लोगों से अपने पक्ष में वोट करने को कहेगी तो विपक्षी पार्टी उन पर दूसरे तरह से वार करके इसमें मरने वाले लोगों का जिमेदार केंद्र को ठहराएगी। पर जो सच्चाई है वह पूरी दुनिया ने देखी है और सब जानते हैं कि मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, अमर सिंह, लाल कृष्ण आडवाणी, राज ठाकरे एक मच्छर भी मारने की ताकत नहीं रखते तो ऐसे में आतंकियों से अगर उनका सामना हो जाए तो वे क्या करेंगे इसकी आप कल्पना कर सकते हैं। यह जीत हमारे जाबांजो की है और उनकी सफलता का श्रेय कोई भी तुच्छ पार्टी नहीं ले सकती।
जय भारत और जय जवान
अमित द्विवेदी
यसवंत जी माफ़ करे
किस नपुंसक की याद दिला दी आपने यसवंत जी...मुंबई में जो आतंकवादी आये वो कायर थे ..और हमारे मुंबई का वो गुंडा नपुसक है जी हाँ राज ठाकरे !!! और देश को कायर या नपुंसक न तो मिटा सकते है न ही बचा सकते है इशलिये !! अपने पवित्र मन् में इनकी बात लाना भी गोबर खाना है !!!हमारे देश के वीर सिपाही सीने पर गोली खाते है हिंदुस्तानिओं की रक्षा के लिए और साला ये राज उन में भी उत्तर भारतीय और अन्य लोगों में अंतर और नफ़रत पैदा करता है !! इसकी में अगर इतनी दम होती तो अपनी लुगाई के पल्ले में मुह छिपाकर न बैठा होता वो और उसकी कायर सेना लोगो की रक्षा में सामने आ सकती थी ..पर हम लोगों को ही इन गांडू की रक्षा करनी पड़ेगी !!! अगर अब ये साले जयादा मुंबई में उचल कूंद करते नजर आये तो सालो को नंगा करके मारना चाहिए !! माफ़ कीजिये यसवंत जी गुस्से में कुछ जायदा गलत शब्द बोल गया par इन सालों के लिए तो वो भी कम है ...सहीदों को श्रधांजलि ...और इन आतंकवादियों को भगवन अकल बख्शे!!
संजय सेन सागर
www.yaadonkaaaina.blogspot.com
क्या हम तैयार हैं?
अपने कायर नेताओं ने फ़िर एक बार साबित कर दिया कि हम आम इंसान शान्ति से सुरक्षा में नहीं जी सकते, बदौलत उनकी भ्रस्टाचारी, बेईमानी, धूर्तता और सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता की निकृष्ट राजनीति के।
बहुत खुशी और गर्व की बात है कि हिन्दुस्तान के खून में गर्मी और साहस है जो दिखाई दिया मुंबई में।
बहुत दुःख और अफ़सोस की बात है कि हम इस खून का यूँ बहना रोक नही पाये।
ये खून इस तरह बहने देना ज़रूरी नहीं है , लेकिन मजबूरी ज़रूर है। व्यवस्था लचर है और हम लाचार।
अपनी व्यवस्था है, अपना देश है, अपने ही निर्दोष लोगों की जाने बेवज़ह चली जाती हैं!
वो जो आए हमें मारने को, बाहर के लोग थे। लेकिन ये जो जिम्मेदार हैं इस सबके, पूज्य नेतागण, ये कैसे हमारे हुए!
मज़ा ये है इन तमाम बातों और हादसों के बावजूद ये अपने ही सर पे सवार अपने ही दुश्मन, फ़िर से अपने सरों पे सवार रहेंगे और हम सब इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे। ज्यादा से ज्यादा एक निकम्मे को एक दूसरे निकम्मे से बदल सकते हैं। ये हमारी मजबूरी है , नियति है!
और अगर हम नियति बदलने की सोच सकें कभी, तो ये तय है की एक बहुत बड़ी सोच की ज़रूरत होगी!
क्या हम तैयार हैं??
आख़िर कब तक
पिछले तीन दिनों से मै अपने भड़ास को दबाकर रखा हुआ था जो आज फुट पड़ा है ......
देश में आए दिन हो रही आतंकी हमले से जहाँ मासूम बेगुनाह भारतीयों की जान जा रही है, वहीँ हमारे देश के नेताओं को इसमे भी राजनीति नजर आती है , लगता है ये चाहते यही है की आतंकी हमला हो और ये सरकार को कोसने में अपनी सारी ताकत लगा दे। मुझे ऐसे राजनीतिज्ञों पर घृणा होती है जो मासूम लोगों की लाशों पर भी अपनी राजनितिक रोटियां सकने से बाज नही आते। इन्ही कायर नेताओं की देन है की आए दिन अचानक हो रही आतंकी हमलों में हमारे दर्जनों शुरक्षाकर्मी शहीद हो रहे है और ये ऐ० सी० रूम में बैठकर आतंक के जन्मदाताओं से शान्ति की बात करते नजर आते है । आखिर कब तक हम शान्ति राग अलापते रहेंगे और अपने लोगों को ऐसे ही मरते देखते रहेंगे। हमारे देश में जब कोई हमला होता है तब ये नेता बड़ी बड़ी बातें करतें है , कुछ दिनों के बाद वही ढाक के तीन पात वाली कहानी नजर आने लगती है । हम अपने सैनिकों को यूँ ही शहीद होते देखने के बजाय उन्हें खुली छूट दे देनी चाहिए इन मुठी भर आतंकियों को इनके घर में घुसकर मरने के लिए। अब अहिंसा का यूग खत्म हो चला है हमें हिंसा का जवाब हिंसा से ही देना। राजनीतिज्ञों को भाषण बाजी छोड़ ठोस कदम उठाना चाहिए क्योंकि लड़ना तो आख़िर हमारे जवानों को ही है ........
आतंकी हमला और मेरे मोबाइल पर आए तीन एसएमएस
Where is Raj Thackeray and his ''brave'' Sena? Tell him that 200 NSG Commandos from Delhi (No marathi manoos! All South & North Indians!) have been sent 2 Mumbai.
SMS No.2
Goli ke jawab goli sey deney waley Maharastra k Dy CM RR Patil ki goli kaha gayi? Kaha gaya Mumbai ka so called rehnuma raj thakary, uski mumbai ko kyu bacha rahey hain gair marathi loag...Apni jaan deney waley NSG ke Major kya Marathi the....MNS ki sena ney maa ka doodh piya hai to bahar aayey...Jai Hind
SMS No.3
Plz forward Raj Thackeray's phone no. if u find it. Dnt no where he is when u need him. We want him to go and save amchi mumbai alongwith his MNS goondas, ''THE" sons of the soil. Army, NSG commandoes are not Marathi Manoos...Why should they fight or lay their life for Mumbaikars......
उपरोक्त तीन एसएमएस आज मुझे दिन में मिले। पहला वाला शरद ने भेजा, दूसरा शलभ ने और तीसरे साथी का नाम मेरे सस्ते वाले मोबाइल में सेव नहीं है क्योंकि केवल 250 मोबाइल नंबर ही सेव करने की क्षमता मेरे मोबाइल में है और इन्हीं में से डिलीट व रिप्लेस व सेव करता रहता हूं। तो, इन तीनों साथियों के एसएमएस में जो कामन बात थी वो राज ठाकरे और उनके लोगों को ये नसीहत देना कि बेटा, बहुत मराठी मराठी करते थे, अब जब फटी पड़ी है तो देखो किस तरह देश के कोने कोने से सेना में सेवा दे रहे जवान तुम लोगों की धरती बचाने के लिए अपनी जान देने आए हैं। अरे, राज ठाकरे और आर आर पाटिल, तुम लोगों में थोड़ी भी हिम्मत होती तो अपने लोगों को साथ लेकर आतंकवादियों से दो दो हाथ करने के लिए कम से कम सामने तो आते। लेकिन ये लड़ेंगे क्या, चेहरा तक दिखाने सामने नहीं आ रहे हैं।
मैं इन तीनों एसएमएस को इसलिए यहां डाल रहा हूं ताकि आप लोग भी इसे अपने मोबाइल में टाइप कर या मेल में डालकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को भेजें और बताएं कि क्षेत्र, जाति और धर्म के नाम पर बंटवारा व मारपीट कराई ही इसलिए जाती है क्योंकि इसके आधार पर राजनीतिक लाभ लेना होता है और इस लाभ के जरिए देश या प्रदेश की सत्ता हासिल करनी होती है या सांसद या विधायक या पार्षद बनना होता है। ये जो राजनेता लोग हैं, वो इस वक्त सबसे गिरे हुए लोग हैं और दुर्भाग्य से इन्हीं लोगों के हाथों में देश के भविष्य को तय करने वाली नीतियों पर फैसला लेने की ताकत है। ऐसे में कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि क्षेत्र, जाति या धर्म के आधार पर राजनीति किए बिना ये कैसे चुनाव जीत पाएंगे। क्योंकि चुनाव में वोट मांगने किस आधार पर जाएंगे। जनता उनके काले कारनामों का हिसाब न मांगे इसलिए वो जनता को जाति, भाषा या धर्म के आधार पर लड़ा देते हैं, और जनता ससुरी पगलिया के लड़ भी जाती है। बस, फिर क्या, पोलराइजेशन तगड़ा हो जाता है। दे दनादन वोट गिरने लगते हैं हिंदू-मुस्लिम के आधार पर, हिंदी गैर हिंदी के आधार पर, दलित सवर्ण के नाम पर.........................
धन्य है अपन का देश। और इस देश की हम जैसी जनता। हम साले चोर टाइप के लोग अपने खोल में जीते रहेंगे, राजनीति में नहीं आएंगे क्योंकि मान चुके हैं कि ये ठग्गूवों का काम है। और ठग्गू जब हम लोगों को आपस में लड़वा देते हैं तो भी हम नहीं समझ पाते कि ये जो चिरकूट ठग्गू हैं, हमें बिना मुद्दे को मुद्दा बनाकर लड़ा रहे हैं। हम भी करने लगते हैं जय हिंदू या मार मुस्लिम या अल्ला हो अकबर और काफिर हिंदू.......
यही वक्त है समझने का। देश मुश्किल में हैं। सिस्टम भ्रष्टतम स्थिति में है। सब साले पैसा ले लेकर आतंकवादी घुसा रहे हैं। आईबी या इंटेलिजेंस या रा या सीबीआई या पुलिस.....सबमें दो तिहाई से ज्यादा लोग सेटिंग गेटिंग वाले हो गए हैं, जुगाड़ पानी से आए हुए लगते हैं.....किसी को कुछ खबर ही नहीं लगती कि आखिर इतने आतंकी इतने सारे हथियार लेकर कहां से चले आते हैं........
अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, जर्मनी समेत ज्यादातर देशों में आतंकवाद विरोधी कानून अलग से बनाए गए हैं लेकिन अपने देश के ये चिरकुट नेता साले कभी सोचते भी नहीं हैं कि आतंकवाद को सबसे बड़ा खतरा मानकर इससे निपटने के लिए समुचित कानून बनाया जाए। पुलिस तो बिना हेल्मेट के जा रहे दो पहिया वाले को पकड़कर वसूली करने में लगी रहती है, उसे कहां चिंता है कि कार की डिग्गी में विस्फोटक लादे टाई कोट वाले भाई साहब चले जा रहे हैं। उसे तो कार देखकर ही डर लगता है, पता नहीं कितना बड़ा सोर्स सिफारिश वाला होगा, वर्दिया न उतरवा दे.......।
क्या कहा जाए, कुछ कहा नहीं जाए
बिन कहे कुछ, रहा नहीं जाए.....
भड़ासियों, चलो कुछ हम लोग भी सोचा जाए इस दिशा में, कुछ करा जाए इस दिशा में, क्यों न रीजनीति में कूदा जाए हम लोग भी.....सोचो जरा.......कब तक शरीफ के नाम पर अपनी और अपने देश की मरवाते रहेंगे.....अब ढिठाई के साथ अच्छे लोगों को आगे बढ़ना चाहिए और उसी बेशरमी से अच्छी राजनीति करनी चाहिए जिस बेशरमी से गंदे नेता गंदी राजनीति करते हैं......लेकिन सवाल है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन?
जय भड़ास
यशवंत
((हां, आतंकवादी हमले के मामले पर भड़ास के साथियों ने जिस तरह की भावोत्तोजक पोस्टें डाली हैं, उसे पढ़कर वाकई यह समझ में आता है कि सिस्टम के नाकारेपन को लेकर देशभक्तों के दिल में कितना दर्द है, मैं आप सभी लिखने वालों को सलाम करता हूं जो अपनी दिल की भड़ास को प्रकट निकाल पाए लेकिन इस भड़ास निकालने से ही दिल हलका कर लेने की जरूरत नहीं है। ये जो सीने में आग लगी है, इसे सही मंजिल तक पहुंचाना जरूरी है वरना कल को हम फिर शांत हो जाएंगे और परसों फिर कहीं आतंकी हमला होगा))
हम क्या करें गाफिल.....??!!
वहाँ कौन है तेरा...मुसाफिर....
जायेगा कहाँ.....
दम ले ले.....
दम ले...दम ले ले...
दम ले ले घडी भर...
ये समा पायेगा कहाँ...
पिघलता सा जा रहा है हर ओर
किसी बदलती हुई-सी शै की तरह.....
किसका कौन-सा मुकाम है...
किसी को कुछ
पता भी तो नहीं....
कभी रास्ते खो जाते हैं...
और कभी तो...
मुकाम ही बदल जाते हैं....
बदलता ही जा रहा है सब कुछ....
वजह या बेवजह...
किसी को कुछ भी नहीं पता
और जो कुछ पता है हमें...
वो कितना सोद्देश्य है...
या कितना निरक्षेप....
और कितना निस्वार्थ...
ये भी भला कौन जानता है.....
मगर जो कुछ भी
घट रहा है हमारे आसपास
वो इतना कमज़र्फ़ है....
और इतना तंगदिल...
इतना तंग नज़र है....
और इतना आत्ममुग्ध...
किसी को वह...
जीने ही नहीं देना चाहता...
सिवाय अपने ...
या अपने कुछ लोगों के....!!
तो क्या एक झंडे....
एक धरम....
एक बोली में...
सिमट जाना चाहिए
हम सबको
हम सातों अरब को....??
यही आज मै सोच रहा हूँ......!!
28.11.08
Impact: ..कहां है वे हिजड़े नेता
..कहां है वे हिजड़े नेता, जिन्होंने केंद्र सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे के बावजूद कुछ ही समय पूर्व सिमी को निर्दोष बताया था। देश में इस समय एक भीषण आतंकी हमला हुआ है, और वे शिखंडी (नेता) इस वक्त किसी को ढाढ़स बंधाने के लिए भी आगे नहीं आए। शर्म करो अमर सिंह, लालू, पासवान, राज ठाकरे, अबू आजमी और महा बेशर्म गृहमंत्री समेत केंद्र सरकार भी। खैर जब ये बेशर्म ही हैं तो इनके बारे में क्या कहना। सरकारी लापरवाही से देश की आर्थिक राजधानी पर हुए इस बड़े आतंकी हमले में हम मुंबई के जज्बे को सलाम करते है। साथ ही देश के घटिया राजनेताओं की गंदी राजनीति की भेंट चढ़े उन तमाम लोगों, एटीएस के अधिकारियों और कमांडो जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते है, इस उम्मीद के साथ शायद उन हिजड़े राजनेताओं को अब सद्बुद्धि आ जाए जो आतंकवादियों में भी वोट बैंक तलाशते रहते है।
देश की चिंता
यह शोक का दिन नहीं
यह शोक का दिन नहीं
यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
रामकृष्ण परमहंस
विनय बिहारी सिंह
रामकृष्ण परमहंस कहते थे- जैसे पांकाल मछली कीचड़ में ही रहती है फिर भी कीचड़ उसके शरीर से दूर रहता है वैसे ही मनुष्य को संसार में रह कर भी सांसारिक तनावों, झमेलों या वासनाओं का गुलाम नहीं बनना चाहिए। वे एक कहानी सुनाते थे। एक आदमी अपनी स्त्री को बहुत प्यार करता था। उसके बिना वह जी नहीं सकता था। एक दिन उसके गुरु ने एक दवा दी। कहा कि इसके खाते ही तुम्हारा शरीर कुछ देर के लिए मृत जैसा हो जाएगा। लेकिन तुम मरोगे नहीं। तुम्हें होश रहेगा। तुम सबकी बातें सुन सकोगे। फिर उन्होंने वैद्य को सिखाया कि तुम जाकर झूठमूठ यह कह दो कि इसे जिंदा करने के लिए किसी को अपनी जान देनी पड़ेगी। फिर देखो तुम्हारी पत्नी तुम्हें कितना प्यार करती है। तुम तो उसके बिना जी नहीं सकते। वही हुआ। दवा खा कर वह मृत जैसा हो गया। घर में रोना- पीटना मच गया। तब वैद्य आया और बोला कि यह तो जिंदा हो जाएगा लेकिन इसके बदले किसी को जान देनी पड़ेगी। उसकी पत्नी से पूछा गया कि क्या वह अपनी जान देने को तैयार है? पत्नी ने साफ इंकार कर दिया और कहा कि यह तो मर ही गए। मैं मर जाऊंगी तो इन छोटे- छोटे बच्चों को कौन देखेगा? वे कहते थे कि संसार में सब काम करो लेकिन यह जान लो कि असली घर ईश्वर के पास है। वह सब देख रहा है। मनुष्य को उसने इच्छा शक्ति दे कर छोड़ दिया है। ईश्वर देखते रहते हैं कि मनुष्य अपनी इच्छा शक्ति का इस्तेमाल कैसे करता है। रामकृष्ण परमहंस की बातें इतनी सरल होती थीं कि अनपढ़ व्यक्ति के दिल में भी वे उतर जाती थीं। वे कहते थे कि सब रुपए पैसे, परिजन और सांसारिक सुख के लिए रोते हैं। ईश्वर के लिए कौन रोता है। ईश्वर के लिए रोइए तब तो वह मिलेगा। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- मनुष्य का जन्म सिर्फ ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हुआ है। लगातार प्रार्थना करिए-- हे भगवान, हे भगवान क्या आप दर्शन नहीं देंगे? मैं आपके लिए व्याकुल हूं। लगातार प्रार्थना से उनका दिल पिघल जाता है।
मुंबई किसकी ...?
प्रिये साथियो
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रिश्ते.....और ब्लोगिंग....!!
रिश्ते......और ब्लोगिंग....!!
(रचना जी की कविता पर...)
ब्लोगिंग इन्टरनेट की देन है......,
....और रिश्ते आदमी का इजाद...!!
...........ब्लोगिंग एक शौक है....,
.........और रिश्ते एक जरूरत....!!
ब्लोगिंग हमारी सोच है.......,
और रिश्ते सोच का सार्थक अंत....!!
रिश्ते अगर किसी भी चीज़ से बनते हैं....,
तो उन्हें बेशक बन ही जाने दें....!!
रिश्ते बाकी ही कहाँ रहे...
अब भला आदमियत में....!!
अब तो सिर्फ़ आदमी है....,
और ढेर सारे उसके शौक...!!
इनके बीच अगर थोड़े-से रिश्ते..
पैदा भी हो जाएँ...तो हर्ज़ क्या है....??
रिश्ते तो प्रश्न हैं...हमारे...बीच के संबधों का...,
और हम उनके उत्तर...अपने संबधों द्वारा...!!
जिनका कोई भी नही...
उनसे पूछिए रिश्तों का अर्थ....!!
जिन्होंने खोये हैं रिश्ते...
वे ही जानते हैं...रिश्तों के मानी...!!
रिश्ते तो प्यार हैं...बेशक तकरार भी...,
उसकी बाद उनका अहसास भी...
थोड़ा रूमानी भी...थोड़ा नफरत भी...
नफरत से सीख लेकर....
पुनः प्यार भी ला सकते हम....
और प्यार ही प्यार हो..........
तो फिर बात ही क्या....
मगर ब्लोगिंग जरूरी हो या ना हो...
प्यार तो जरूरी है.....!!
और उसके लिए रिश्ते तो...
उससे भी ज्यादा जरूरी....!!
ब्लोगिंग रहे ना रहे....
रिश्ते हमेशा बच रहेंगे....
रिश्ते अगर बच गए....
तो बच रहेंगे हम भी....
बेशक ब्लोगिंग ही करने के लिए....!!
अकेलेपन को बांटता हुआ मिलूँगा
कोई अतीत तुम्हें याद है
जिसके स्पर्श से छत पर अकेले बैठे
एक आदमी ने गुनगुनाते हुए
मीलों लंबा पत्र लिखा था
दुनिया की सबसे पवित्र नदी में स्नान करने के बाद
जिसने एक रंग मलना शुरू किया
और रंग धुलने के लिए एक बारिश का इंतजार करता रहा
जिसके बारे में तुमने कहा था
त्वचा के आवरण में वह कितनी ही दीवार खड़ी कर ले
मैं उसके अंदर के आदमी को हाथ पकड़कर बाहर निकाल सकती हूं
कभी सौ बार थपकी देकर सुलाया गया था उसे
और एक बार बिना थपकी लिए वह तुम्हारी
थकान में गुम हो गया था
जब सभी छतें खाली हो गयी
उसके मरने के बाद
वह बादलों को भीगता हुआ मिला था
उसी छत पर अपने अकेलेपन को बांटता हुआ
pawan nishant
http://yameradarrlautega.blogspot.com
कोलकाता में अपना मंच की काव्य गोष्ठी शनि २८ नवम्बर को
27.11.08
अरे भाई राज...कहाँ हो.....!!??
अरे भाई राज कहाँ हो...........??
...........अरे भई राज कहाँ हो आज तुम...?देखो ना अक्खी मुंबई अवाक रह गई है कल के लोमहर्षक हादसों से.....चारों और खून-ही-खून बिखरा पड़ा है..और धमाकों की गूँज मुंबई-वासियों को जाने कब तक सोने नहीं देगी....और जा हजारों लोग आज मार दिए गए है...उनकी चीख की अनुगूंज एक पिशाच की भांति उनके परिवार-वालों के सम्मुख अट्टहास-सी करती रहेगी...हजारों बच्चे...माएं...औरते...बूढे...और अन्य लोग.....यकायक हुए इस हादसे को याद करके जाने कब तक सहमते रहेंगे....!! असहाय-बेबस-नवजात शिशुओं का करून क्रंदन भला किससे देखा जायेगा...!!शायद तुम तो देख पाओगे ओ राज....!!तुम तो पिछले दिनों ही इन सब चीजों के अभ्यस्त हुए हो ना !!....तुमने तो अभी-अभी ही परीक्षा देने जाते हुए छात्रों को दौडा-दौडा कर मारा है....!!किसी और के प्रांत के लोगों से नफरत के नाम पर कई लोगों की जाने तुमने पिछले ही दिनों ली है...और मरने-वालों के परिवारजनों के करून विलाप पर ऐसा ही कुछ अट्टहास तुमने भी किया होगा...जैसा कि अभी-अभी हुए इस मर्मान्तक बम-काण्ड के रचयिता इस वक्त कर रहे होंगे.....!!
...................मुझे नहीं पता ओ राज...कि उस वक्त तुम्हें और इस वक्त इन्हे किसी भी भाषा-प्रांत-मजहब.....या किसी भी और कारण से किन्हीं भी निर्दोष प्राणियों की जान लेकर क्या मिला....और मैं मुरख तो ये भी नहीं जानता कि बन्दूक कैसे चलाई जाती है....बस इतना ही जानता हूँ....कि बन्दूक किसी भी हालत में नहीं चलाई जानी चाहिए क्योंकि इससे किसी की जान जाती है....और जान लेना अब तक के किसी भी मजहब की रीति के अनुसार पाक या पवित्र नहीं माना गया है....बेशक कुछ तंग-दिल लोगों ने बीते समय में हजारों लोगों की जान धर्म का नाम लेकर ही की हैं....लेकिन मैं ये अच्छी तरह जानता हूँ कि यह धर्म के नाम पर पाखण्ड ही ज्यादा रहा है...दुनिया में पैदा हुए किसी भी विवेक-शील इंसान ने कभी भी इस बात का समर्थन नहीं किया है...बल्कि इन चीजों की चहुँ-ओर भर्त्सना ही हुई है....बेशक ऐसा करने वाले लोग अपने समय में बेहद ताकतवर रहे हैं...जैसे कि आज तुम हो...मगर ये भी तो सच है...कि इन तमाम ताकतवर लोगों को समय ने ही बुरी तरह धूल भी चटाई है...वो भी ऐसी कि इनका नामलेवा इनके वंशजों में भी कोई नहीं रहा.....!!
.................तो राज यह समय है...जो किसी की परवाह नहीं करता...और जो इसकी परवाह नहीं करते....उनके साथ ऐसा बर्ताव करता है...कि समय का उपहास करने वालों को अपनी ही पिछली जिंदगी पर बेतरह शर्म आने लगती है....मगर...तब तक तो......हा..हा..हा..हा..हा..(ये समय का ठहाका है!!) समय ही बीत चुका होता है....!!....तो राज समय बड़ा ही बेदर्द है....!!
................मगर ओ राज तुम यह सोच रहे होगे कि वर्तमान घटना तो किसी और का किया करम है....इसमें मैं तुम्हे भला क्यों घसीट रहा हूँ....ठहरो...तुम्हे ये भी बताता हूँ...बरसों से देखता आया हूँ कि कभी तुम्हारे चाचा....तुम्हारे भाई....और आज पिछले कुछ समय से तुम......आपची मुंबई......और आपना महाराष्ट्र के नाम पर लोगों को भड़काते-बरगलाते रहे हो.....और लोगों की कोमल भावनाओं का शोषण करते हुए तुमलोगों ने सत्ता की तमाम सीढिया नापी हैं....हालांकि इस देश में तमाम नेताओं ने पिछले साठ वर्षों में यही किया है....और हर जगह नफरत का बीज ही रोपा है...और इसी का परिणाम है....अपनी आंखों के सामने यह सब जो हम घटता हुआ देख रहे हैं.....!!और तुमसे ये कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना ही है....इस देश में सिर्फ़ तुम्हारा ही परिवार वह परिवार है...जो हर वक्त शेर की भांति दहाड़ता रहता है...बेशक सिर्फ़ अपनी ही "मांद" में...!!मगर इससे क्या हुआ शेर बेशक अपनी ही मांद में दहाड़े.....!!....है तो शेर ही ना...बिल्ली थोड़ा ही ना बन जायेगा.....??
...................तो तुम सबको हमेशा शेर की दहाड़ते हुए और अपने तमाम वाहियात कारनामों से देश की पत्र-पत्रिकाओं में छाते देखा है... !!....ऐसे वक्त में कहाँ गायब हो जाते हो...क्या किसी पिकनिक स्पॉट में...??मुंबई आज कोई पहली बार नहीं दहली....और ना देश का कोई भी इलाका अब इस दहशतगर्दी से बाकी ही रहा...आतंकियों ने इस सहनशील...सार्वभौम...धर्मनिरक्षेप देश में जब जो चाहे किया है...और कर के चले गए हैं...वरना किसी और देश में तो "नौ-ग्यारह" के बाद वाकई एक चिडिया भी पर नहीं मार सकी है...और एक अन्य देश में एक कार-बम-विस्फोट के बाद एक परिंदा भी दुबारा नहीं फटक पाया.....लेकिन ये भारत देश...जम्बू-द्वीप....जो तमाम राजनीतिक-शेरों.....सामाजिक बाहुबलियों का विशाल देश...जो अभी-अभी ही दुबारा विश्व का सिरमौर बनने जा रहा है....इसके आसमान में ऐसे-वैसे परिंदे तो क्या...इसके घर-घर के आँगन में जंगली कुत्ते-बिल्ली-सियार-लौम्री आदि धावा बोलकर...हग-मूत कर चले जाते हैं....और यहाँ के तमाम बड़े-बड़े सूरमाओं को...और बेशक तुम जैसे शेर का कोई अता-पता नहीं चलता.....!!यहाँ के जिम्मेवार मंत्री तो इस वक्त बेशक कई दर्जन ड्रेसें बदलते हुए पाये जा सकते हैं....!!
...............तो हे महाराष्ट्र के महाबलियों....हे आपची मुंबई के जिंदादिल शेरों.....तुम अभी तक कहाँ छिपे बैठे हो...अरे भई इस वक्त तो तुम्हारी मुंबई...तुम्हारे महाराष्ट्र को वाकई तुम्हारी....और सिर्फ़ तुम्हारी ही जरूरत है....ज़रा अपनी खोल से बाहर तो निकल कर तो आओ....अपनी मर्दानगी इन आतंकियों को तो दिखलाओ...!! क्यूँ इन बिचारे मिलेट्री के निर्दोष जवानों की जान जोखिम में डालते हो !!.....भाई कभी तो देश के असली "काम" आओ...!!तुम्हारे इस पाक-पवित्र कृत्य पर वाकई ये देश बड़ा कृतज्ञ रहेगा....तुम्हारे नाम का पाठ बांचा जायेगा....तुम्हारे बच्चे तुम पर वाकई फक्र करेंगे....तुम्हारी जान खाली नहीं जायेगी....देखते-न-देखते तुम्हारी प्रेरणा से देश के अनेकों रखवाले पैदा हो जायेंगे....और ये देश अपनी संतानों पर फिर से फक्र करना सीख जायेगा....इस देश के लोग महाराष्ट्र वालों की शान में कसीदे गदेंगे...!!.....ओ राज....ओ राज के भाई....ओ राज के चाचा....ओ और कोई भी जो राज का पिछलग्गू या उनका जो कोई भी है....आओ महाराष्ट्र और मुंबई की खातिर आज मर मिटो....आज सबको दिखला ही दो कि तुम सब वाकई शेर ही हो....कोई ऐरे-गैरे-नत्थू-खैरे नहीं....आज सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं....कहाँ हो ओ शेरों...ज़रा अपनी मांद से बाहर तो निकलो......!!??
Impact: सलाम सतेंद्र दूबे...सलाम सतेंद्र दूबे
उसे क्या पता था कि उसकी ईमानदारी ही उसके लिए एक दिन मौत का कारण बन जाएगी।
विगत पांच वर्षों में देश की एक महत्वपूर्ण जांच एजेंसी एक ईमानदार इंजीनियर के हत्यारों को सजा भी नहीं दिला सकी।
कोई अमर सिंह को मुंबई क्यों नहीं ले जाता, वो राज ठाकरे कहां है.........
ये टीवी चैनल वाले भी केवल चीख रहे हैं। इतने मर गये, वे शहीद हो गये। उनके लिये भी ब्रेकिंग न्यूज हो जाती। यदि अमर सिंह मुठभेड़ को फर्जी करार दे दें। जैसा कि इस तरह की हर घटना के बाद वे करते हैं। भले ही अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिये ही सही।
वह राज ठाकरे कहां गया। वह तो मुंबई में ही रहता है। उसके सबसे बड़े दुश्मन पूरबिहे हैं। अब उसकी क्यों फट रही है। घर में क्यों छिपा है। क्यों नहीं कहता, आमची मुंबई। मुंबई मराठी मानुष के लिये है। बोले, आतंकी उसकी मार देंगे।
यशवन्त भाई, हो सके तो इसे अपने भड़ास पर डाल दें ताकि मेरे जैसे लोग अपने सीने में दबी आग निकाल कर खुद को ठंढा कर सकें।
नवनीत प्रकाश त्रिपाठी
गोरखपुर, फोन नंबर 09415211230
navneetgkp@gmail.com
हाथ में माला मन में खोट
कल का ताज और आज का ताजमहल होटल
आतंकवादी हमला और मेरा रात्रि जागरण
देश दहल गया। हिल गयी मुम्बई। हिल गया भारतीय जनमानस। शहीद हो गए हेमन्त करकरे। कई अन्य पुलिस अधिकारी और सिपाही भी युद्धक्षेत्र में शहीद हो गये। यह पूरी तरह से युद्ध है। सरकार और तमाम नेताओं को अब यह मान लेना चाहिए। रात दो बजे तक की सूचना के अनुसार दो आतंकी भी मारे गये हैं। मेरा मन डर रहा है। मुझे शंका है कि कहीं करकरे की शहादत को भी अमर सिंह झूठा न बता दें।
आतंक की जड़ें देश में गहरे पैठ चुकी हैं। दिल्ली विस्फोटों के बाद बाटला हाउस एनकाउंटर व अन्य गिरफ्तारियों से मुझे लगने लगा था कि सिमी टूट गया, बिखर गया। अब आतंक को खड़े होने में समय लगेगा। क्योंकि बताया जा रहा था कि अब देश के लोग ही आतंकी बनने लगे हैं और इनकी तादाद बहुत कम है। बाहर से सिर्फ इनको खाद-पानी मिलता है। सांस ये यहीं की हवा में लेते हैं। दिमागी और माली इमदाद ही इन्हें बाहर से मिलती है। बाहर के आतंकी अब सेंध लगाने में सक्षम नहीं रहे। लेकिन मेरी सोच भ्रम थी जो टूट गई। आतंकवादी बाजे पर नेता तराना तो गुनगुनाते ही हैं। लेकिन इस बीच नेता और बुद्धिजीवियों ने तराना गाना छोड़ दिया और बहुत गम्भीरता से आतंकवाद के बीच एक नये आतंकवाद ‘हिन्दू आतंकवाद’ की थियरी इस्टैब्लिश करने में जुट गये थे। इसे हम थियरी कहें या हाइपोथिसिस समझ में नहीं आता। बहरहाल, लोगों का ध्यान आतंकवाद, सरकार की असफलता आदि से हटने लगा। इस नयी थियरी को लेकर देश में बहस-मुबाहिसों का दौर चालू हो गया। बैठकें गर्माने लगीं। बुद्धिजीवियों और मीडिया के हाथ पर्याप्त मसाला लग गया। कुल मिलाकर असल मुद्दे से ध्यान हट गया। साध्वी प्रज्ञा इस नये आतंकवाद की प्रणेता बतायी गयीं।
फिलहाल विदेशी मीडिया पर भी रात के तीन बजे मेरा ध्यान है। उनका जोर इस बात पर है कि आतंकी ब्रिटिश और अमेरिकन की तलाश में थे। एक प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से बीबीसी यह बात बार-बार गोहरा रहा है। उसका कहना है कि आतंकियों ने पूछा कि किसी के पास ब्रिटिश या अमेरिकन पासपोर्ट है? खैर उनकी चिन्ता जायज है। अपने देश के नागरिकों की वे चिन्ता करें तो यह उचित ही है। उन्हें ऐसा करना ही चाहिए। भारत के नक्शे-कदम से वे दूर हैं, यह राहत की बात है। देर-सबेर यहां के नेता भी इससे सबक ले सकते हैं। हो सकता है कि वे समझ जाएं कि पहले देश है, देश के नागरिक हैं तब और कुछ है। उनकी बेहद निजी राजनीति भी और कुर्सी भी। लेकिन बुद्धिजीवियों को क्या कहा जाए वे किस लालच में अंट-शंट क्रियाकलाप करते रहते हैं। समझ से परे है। झटके में बुद्धिजीवी बनने के फेर में, उदारवादी दिखने के फेर में, अहिंसावादी बनने के नाटक के तहत ऐसा स्वांग रचाया जाता है। निर्मल वर्मा ने एक बार कुछ इसी तरह का आशय जाहिर किया था।
अब रात के 3 बजकर 25 मिनट हो रहे हैं। ओल्ड ताज होटल की ऊपरी मंजिल में आतंकियों ने आग लगा दी है। यह होटल विश्व धरोहर में शामिल है। 105 साल पुराना है। आधुनिक हिन्दुस्तान के निर्माताओं में से एक जमशेद जी टाटा का मूर्त सपना। मैं टीवी पर इसे धू-धू कर जलते हुए देख रहा हूं। संवाददाता फायरिंग के राउंड गिनने में व्यस्त हैं। दोनों की अपनी मजबूरी है। मुझे पाकिस्तान के प्रसिद्ध होटल में हुए धमाके की याद आ रही है। यकीन मानिए उस समय मैंने सोचा था कि भारत में ऐसा नहीं हो सकता। उस हमले के बाद सुबह-सुबह अपने सहकर्मियों से बातचीत में मैंने कहा कि “हालांकि यहां भी आतंकवाद है, खूब है लेकिन उसकी तीव्रता उतनी नहीं। यहां एक ट्रक विस्फोटक कोई इकट्ठा नहीं कर सकता और इकट्ठा कर भी ले तो ऐसे ले के घुस नहीं सकता। पहली बात तो यह कि इतना साज-ओ-सामान कोई जुटा ही नहीं सकता…” ऐसा मैंने दृढ़ मत व्यक्त किया था। सुनते हैं कि पाकिस्तान में सरकार और कानून नाम की कोई चीज नहीं है। वहां कठमुल्लों का शासन है। लेकिन मेरा भ्रम फिर टूट गया। पाकिस्तान की तरह हिन्दुस्तान में भी वैसा ही हो गया। बल्कि उससे भी ज्यादा भीषण हमला हुआ। वहां ट्रक पर लदा विस्फोटक गेट तोड़ते हुए घुसा और दग गया। लेकिन यहां तो बाकायदे मोर्चेबन्दी हुई और खौफनाक मंजर सामने है। लगभग छ: घण्टे हो गये लेकिन आतंकियों का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा है। देश ने यह समय भी देख लिया। मेरे विचार से मध्ययुग में, 1857 की क्रांति के समय तथा विभाजन के वक्त जो घाव लगे, जो प्रहार हुए मुम्बई पर हुआ हमला उन्हीं के टक्कर का है। पता नहीं लोग अब साध्वी प्रज्ञा की चर्चा करेंगे या नहीं। एटीएस ने तो अपना प्रमुख ही खो दिया। जो फिलवक्त साध्वी प्रज्ञा प्रकरण के चलते इस समय काफी चर्चा में थे। हालांकि मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि धर्मनिर्पेक्ष जन साध्वी की ही चर्चा करेंगे। मूल तत्व पर न वह प्रहार करेंगे न सरकार। काश! वह ऐसा करते। तब शायद उन्हें यह नया काम 'हाइपोथिसिस ऑफ हिन्दू टेररिज्म' नहीं करना पड़ता।
और अब अंत में दो बातें और। आतंकियों ने अबकी बहुत देर तक तांडव मचाया। तांडव के लम्बा खिंचने से देश-विदेश का मीडिया तमाम मौकों पर पहुंच गया और सारा कुछ लाइव हो गया। वैसे, अमर, लालू, पासवान यह प्रश्न अवश्य पूछ सकते हैं कि करकरे ने बुलेटप्रूफ जैकेट पहनी थी या नहीं? ऐसे मौके पर घटिया राजनीति की बात करते समय मेरा मन खट्टा हो रहा है। लेकिन देश की कमान जब घटिया हाथों में हो तो अच्छे की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
ये लो फिर फटे हम
जय भारत
26.11.08
वसुंधरा के राज में बढ़ रहा राजस्थान
सूरदास अंधे नहीं थे
विनय बिहारी सिंह
भक्ति काल के विख्यात कवि सूरदास की रचनाओं को पढ़ कर यह बिल्कुल नहीं लगता कि वे अंधे थे। श्री कृष्ण और श्री राम के सौंदर्य का वर्णन करते हुए उन्होंने जो पद लिखे हैं, उसे पढ़ कर भी यह बात साफ हो जाती है। वे लिखते हैं-(गोपी अपनी सखी से कह रही है-)
सजनी, निरखि हरि कौ रूप।
मनसि बचसि बिचारि देखौ अंग अंग अनूप।।
कुटिल केस सुदेस अलिगन, बदन सरद सरोज।
मकर कुंडल किरन की छबि, दुरत फिरत मनोज।।
अरुन अधर, कपोल, नासा, सुभग ईषद हास।
दसन की दुति तड़ित, नव ससि, भ्रकुटि मदन बिलास।।
अंग अंग अनंग जीते, रुचिर उर बनमाल।
सूर सोभा हृदे पूरन देत सुख गोपाल।।
गोपी कह रही है कि हरि का रूप निहार कर मन और वाणी से विचार करके देख िक इनके अंग प्रत्यंग की छटा निराली है। सुंदर घुंघराले केश भौरों के समान हैं। मुख शरद ऋतु के कमल की भांति है और मकराकृत कुंडलों की ज्योति रेखा की शोभा देख कर कामदेव भी लज्जा से छिपता फिरता है। लाल लाल ओठ (होंठ) हैं, कपोल, नासिका और मंद मंद मुसकान बड़ी सुंदर है। दांतों की कांति विद्युत या द्वितीया के चंद्रमा की भांति है और भौंहें तो कामदेव की क्रीड़ा हैं। अंग प्रत्यंग ने कामदेव को जीत लिया है, सुंदर छाती पर वनमाला है। सूरदास कहते हैं कि गोपाल अपनी शोभा से हृदय को पूर्ण आनंद दे रहे हैं। इस वर्णन को पढ़ कर कौन कहेगा कि सूरदास अंधे हैं। एक एक अंग की शोभा का विस्तार से वर्णन क्या कोई जन्मांध व्यक्ति दे सकता है? बिल्कुल नहीं। सूरदास निश्चय ही अंधे नहीं थे। वे खूबसूरत आंखों वाले सुंदर गोरे व्यक्ति थे। हां, वे सांसारिक भोग विलास से विरक्त थे। इसलिए कुछ लोगों ने उन्हें अंधा कह दिया होगा।