चुपके-चुपके पैर दबाकर
जाती है ये आती रात......
अक्सर आकर खा जाती है
ख्वाबों को भी काली रात
गम रोये तो आँचल देकर
मुझे सुलाती प्यारी रात....
प्यारा सपना आते ही दूर
चली जाती है सारी रात....
आँखों को मूँद लेता हूँ तो
आखों में भर जाती रात....
शाम गए जब घर लौटूं तो
जख्मों को सहलाती रात....
मुझसे तो अक्सर ही प्यारी
baaten karti hai प्यारी रात....
कुछ मुझसे सुनती है और
कुछ अपनी भी सुनाती रात.....
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