नाम - नुरुल हसन
उम्र - 62 से ज्यादा
निवासी - गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
हसन नुरुल हज जाने के लिए कुछ जरुरी कागजातों सिलसिले में गुरुवार को लखनऊ गए हुए थे. लेकिन हर दाढ़ी- टोपी वाले में आतंक का निशां खोज रही उत्तर प्रदेश एस टी एफ के चंगुल में फंस गए. दो दिन की पुछ्ताझ के बाद अब हाजी साहब की यह हालत यह है की वह अब हज छोड़, खुदा से अपने को उठा लेने की दुआ मांग रहे हैं. उत्तर प्रदेश में पीयूएचआर के लोगो के बाद हाजी साहब एस टी एफ के नए शिकार हैं. हसन को भी उसी दिन एस टी एफ ने उठाया था जिस दिन पीयूएचआर के अन्य लोगो को गायब किया था. इसी दिन आजमगढ़ से दिल्ली जा रहे दो युवकों को कैफियत एक्स्स्प्रेस से अगवा करने का प्रयास किया था. लेकिन पीयूएचआर के लोगो के हस्तक्षेप से वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी थी. एक ही दिन उठाए गए इन लोगों के मामले अब खुल के सामने आ रहे हैं. गाजीपुर के कासिमाबाद कसबे के रहने वाले नुरुल हसन उत्तर प्रदेश रोडवेज के सेवानिवृत कर्मचारी हैं. 24 अक्टूबर को हसन साहब अपने हज जाने के कागजो को दुरुस्त करने के लिए गाजीपुर से लखनऊ के लिए रवना हुए थे. लखनऊ में वह जैसे ही बस स्टैंड पर उतरे एस टी एफ के लोगो ने उन्हें घेर लिए और एक गाड़ी में बैठ वहां से करीब २० मिनट की दुरी पर स्थित किसी मकान में ले गए, वहां पुछ्ताझ के लिए उन्हें काफी प्रताडित किया. दो दिनों तक एक खंभे से बाँध कर रखा गया. उनकी दाढ़ी नोची गई और कई तरह से प्रताडित किया गया. एस टी एफ उनसे बार-बार एक ही सवाल पूछती रही - " तुम्हारा आजमगढ़, सरायमीर और संजरपुर से क्या ताल्लुकात हैं. कौन-कौन रिश्तेदार वंहा रहते हैं, क्या करते हैं," इन सभी सवालों का जवाब नुरुल हसन के पास अभी भी है. वह आतंकित से अब इन सवालों का जवाब ख़ुद से ही पूछ रहे हैं.तीन दिनों तक पीटने के बाद भी इसका जवाब नहीं मिला तो एस टी एफ ने २७ अक्टूबर उन्हें इस हिदायत के साथ सड़क किनारे फेक दिया कि " किसी को कुछ नहीं बताना." बाद में रोडवेज के ही एक परिचित कर्मचारी ने उन्हें मऊ के फातिमा हॉस्पिटल में भरती कराया. वहां भी दो दिनों बाद अचानक अस्पताल वालो ने उन्हें अस्पताल से निकल दिया. फिलहाल नुरुल हसन ने गाजीपुर में मामला दर्ज कराया है. दैनिक हिंदुस्तान और कुछ उर्दू के अखबारों ने इस खबर को प्रकाशित किया लेकिन अन्य किसी अखबार में नुरुल हसन को जगह नसीब नहीं हुई. शायद इस लिए की एस टी एफ ने उन्हें मीडिया के सामने एक आतंकी के रूप में नहीं पेश किया, और सड़क किनारे फेक दिया.अगर नुरुल को भी एस टी एफ आतंकी सिद्ध कर उनके रिश्ते आजमगढ़ से जोड़ती तब मीडिया की आँख खुलती क्योंकि आज की आम मीडिया पुलिस की प्रेस ब्रिफिन्गों के आधार पर चलने की आदी होती जा रही है.एक ही दिन ( 24 अक्टूबर, 08) में उत्तर प्रदेश की 'तेजतर्रार' एंटी टेरिरिस्ट फोर्स द्वारा लोगो को अगवा कर प्रताडित करने की तीसरी घटना है. उस दिन लखनऊ से उठाए पीयूएचआर नेता अभी भी जेल में हैं, पीयूएचआर से जुड़े शाहनवाज़ आलम, राजीव यादव लक्ष्मण प्रसाद अभी भी इनके निशाने पर हैं. इनके फोन लगातार टेप किए जारहे हैं. यंहा के 'माया राज' में उत्तर प्रदेश में सच बोलने वाले और अल्पसंख्यक सरकारों और सुरक्षा एजंसियों के निशाने पर है.
पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स की ओर से जारी
शाहनवाज़ आलम 09415254919
राजीव यादव 09452800752
लक्ष्मण प्रसाद 09889696888
विजय प्रताप 09982664458
ऋषि कुमार सिंह 09911848941
( विजय प्रताप vijai.media@gmail.com द्वारा भड़ास पर प्रकाशनार्थ प्रेषित)
3.11.08
यूपी एसटीएफ के नए शिकार, नुरुल
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh
Labels: जागरूकता, न्याय, मांग, मानवाधिकार, विजय प्रताप
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