रोते-रोते सपने भी बोता है……
ख़ुद को संभालता भी जाता है...
हर पल ख़ुद को कहीं खोता है…
अक्सर ही वो अकेले में …
तन्हाई को आंसुओं से भिगोता है…
किसी को भूल जाने के लिए…
यादों को नश्तर चुभोता है…
अभी तो वो हंस रहा था…
और जाने क्यूँ अब रोता है…
अब तो ऐसा लगने लगा है कि
…यादें समंदर भरा एक लोटा है…
ख़ुदको भूलने के लिए “गाफिल”…
खुदा में ख़ुद को डुबोता है…
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