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22.1.09

बिना बैंकों के मिलीभगत के संभव नहीं था सत्यम घोटाला

अगर अभी तक सत्यम के मसले पर काेई आलस्य भरा कदम उठा रहा है तो वह है रिजर्व बैंक आफ इंडिया। जबकि आरबीआई हर बैंक पर वाचडाग (रखवाली करने वाला कुत्ता) की तरह नजर रखता रहा है। इसने बैंकों से यह चेक करने के लिए कहा है कि कहीं उन्होंने अपना अधिक पैसा सत्मय या फिर राजू के परिवार की कंपनी मेटस में तो नहीं लगा रखा है। हां एसबीआई का पैसा मेटस में लगा हुआ है। पर अभी तक जो मुय काण्ड है वहां तक कोई नहीं पहुंच पाया है। जो सारा का सारा घपला हुआ है वह पैसे को लेकर हुआ है जो कि बैंकों में नहीं मिला। ऐसे में आरबीआई यह बहाना नहीं बना सकती है कि यह उसकी समस्या नहीं है।
इसमें किसी को कोई गलती नहीं करनी चाहिए क्योंकि कहीं भी जब कोई ऐसा घोटाला होता है तो उसमें बैंक की धांधली भी सामने आती है। जब पैसा इसमें शामिल है तो बैंक अपना पल्ला कैसे झाड़ सकते हैं। क्99ख् में जब हर्षद मेहता नाम के एक बड़े ठग ने जब भारत में एक बड़ा घोटाला किया था तब भी वह देश को हिला देने वाली धांधली में भी बैंक धोखाधड़ी शामिल थी। बैंक उस समय अपकर्ष की ओर चल पड़े थे जब उनके साथ एक बड़ा छल हुआ। जो कि उनके बांड पोर्टफोलियो पर दिखाई पड़ा क्योंकि उन पर Žयाज दरें बढ़ाने का दबाव था। क्योंकि उन्हें कहीं से लाभ दिखाना था। उस समय भी भारत सरकार ने बैंकों को लोन देने में पारदर्शिता बरतने के लिए कहा था। जिसके चलते बैंकों पर अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव आ गया था। मेहता ने बैंकों को लाभ दिखाने में मदद की और अपने आप को उसमें शामिल करके करोड़ों रुपये प्रोसेस में डाले। हर्षत मेहता कांड में बैंक बबाüदी के कागार पर पहुंच गए थे इसमें कोई दो राय नहीं थी। मेहता और उनके अन्य ठग दोस्त बैंकों को अपने हिसाब से चला रहे थे। जिसमें उनकी पहुंच बैंक के सिक्योरिटी डिपार्टमेंट तक थी। उन बैंकों में स्टेट बैंक आफ इंडिया, स्टैंडर्ड चार्टर्ड, केनारा बैंक आदि शामिल थे। उस समय इस तरह से बैंकों को एक कड़वा घूंट पीने का अनुभव हुआ था।
केतन पारेख घपला भी स्टाक माकेüट का ही घोटाला माना गया था। उस समय भी इस घटना के केंद्र में दो बैंकों का नाम सामने आया था जिसमें बैंक आफ इंडिया और मधेपुरा बैंक शामिल थे। उस कांड में ये बैंक दोषी माने गए थे। उस समय आईपीओ में उछाल लाने के लिए उसकी कीमत बढ़ाने के लिए एक ही व्यक्ति ने ढेर सारे डीमेट अकाउंट का प्रयोग किया था जिसमें उनकी मंशा अधिक से अधिक शेयर अपने नाम अलाट करवाने की थी। इसको भी हम एक बैंक स्कैम ही कहेंगे। बाद में सेबी ने इसकी जांच करके इन बातों का खुलासा किया था। उस दौरान कई बैंकों पर रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने नो योर कस्टमर(अपने ग्राहक को भली भांति से जानो)के मानक पर खरा ना उतरने के कारण जुर्माना भी लगाया था। उन बैंकों में एडीएफसी, आईसीआईसीआई, सिटी बैंक और स्टैंडर्ड चार्टर्ड शामिल थे। इसमें इन बैंकों ने डीमेट अकाउंट के दौरान कोताही बरती थी। हर्षद मेहता के घटना के बाद भी सिटी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने उसकी पुनरावृçत्त दोबारा की। क्योंकि अक्सर अच्छे बैंक अपने आपको बहुत स्मार्ट समझते हैं पर यह भी सच है कि ऐसे बैंक भी देर सवेर जाल में फंस ही जाते हैं।
सत्यम कांड में भी अगर आप अच्छे तरीके से देखेंगें तो आपको बैंकों की मिलीभगत नजर आएगी। जब राजू रामलिंगा सबके सामने आकर यह स्वीकार करते हैं कि उन्होंने कंपनी की नकदी को बढ़चढ़कर दिखाया तो ऐसा कैसे हो सकता है कि उसमें बैंकों की मिलीभगत ना हो। यह सोचने वाली बात है। आप ही सोचिए क्या यह एक कंपनी के लिए संभव है कि वह जो पैसा बैंक में है नहीं उसके बारे में भी अपने आडिटर्स के माध्यम से कंपनी रिकार्ड में रख सकते हैं? जब तक कि उन्हें बैंक द्वारा फिग लीफ सार्टीफिकेट बैंक ना दे दे। मेरा दावा है कि अगर वह सार्टीफिकेट असली हैं तो उसमें बैंक की मिलीभगत है। अगर यह गलत है तो बैंकों को सामने आकर यह पता लगाना चाहिए कि उनका नाम मिसयूज क्यों किया जा रहा है। अगर यह कुछ भी नहीं था तो बैंकों को परेशान होने की क्या जरूरत है? इन सभी चीजों का सही से पता लगाने के लिए सेबी को तेजी से कदम उठाना चाहिए तथा आरबीआई को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए। जिससे भविष्य में कोई भी बैंक ऐसे बड़े घोटालों का हिस्सा ना बने। यह बहुत ही गंभीर मामला है जिस पर हर किसी को गंभीर होने की जरूरत है।

3 comments:

KANISHKA KASHYAP said...

why do you see it in such limited horizon...
there exists much beyond the news we are beig feeded drom diffrent news sources,,bring forth something that approches the matter distinctively.

KANISHKA KASHYAP said...

why do you see it in such limited horizon...
there exists much beyond the news we are beig feeded drom diffrent news sources,,bring forth something that approches the matter distinctively.

Anonymous said...

अरे भाई नजर रखने वालों में सरकार अथवा उसके द्वारा बनाये निकायों के प्रतिनिधी भी होते हैं बोर्ड में ? इनकी मिलीभगत भी तो सबसे ज्यादा है। यही वे आखों हैं जिन से सरकार अथवा सरकारी निकाय अपनी नजर रखने की बात करते हैं। इन मनोनित प्रतिनिधियों की भी पूरी जांच होनी ही चाहिये। http://pinksitygold.blogspot.com/