28.2.09

khwabon ki mehfil


aaj maine khwabon ki mehfil sajayi hai..........
tu aur bas teri yaad aaee hai..............................
aaj maine khwabon ki mehfil sajayi hai..........
mohabbat teri mujh ko is kadar paas laayi hai......
bas teri aur teri hi aarzo ho aayi hai...........
aaj maine khwabon ki mehfil sajayi hai.............
teri nazdikiyaan mujh ko is kadar paas laayi hai......
teri bahon main jhool jane ki tamanna ho aayi hai........
aaj maine khwabon ki mehfil sajaayi hai........
tere itne nazdeek mujh ko yeh tanhaiyaan le aayi hai...
gar tu na aaya to yeh mere pyaar ki ruswai hai.......
aaj maine khwabon ki mehfil sajaayi hai........
tu maane ya na maane tere itne nazdeek ...........
teri shokhiyaan mujh ko le aayi hai...........
aaj maine khwabon ki mehfil sajaayi hai.....

27.2.09

श्रद्धा से याद किए जाते हैं काली भक्त रामप्रसाद



विनय बिहारी सिंह


यह सत्रहवीं शताब्दी की बात है। पश्चिम बंगाल में रामप्रसाद सेन और मां काली का गीत एक दूसरे के पर्याय हैं। रामप्रसाद सेन सिर्फ रामप्रसाद के नाम से लोकप्रिय हैं। वे ६१ वर्ष तक इस पृथ्वी पर रहे। उनके लिखे मां काली के भजन सुनने वाले के दिल में उतर जाते हैं। मां आमाके कतो घुराबी (मां, मुझे कितना घुमाओगी, दर्शन क्यों नहीं देती?) इतना मधुर और दिल को छूने वाला है कि आज भी यह भक्ति संगीत का सिरमौर बना हुआ है। रामप्रसाद का स्वर इतना मीठा था कि जो उनका भजन सुनता, उनका दीवाना हो जाता। एक बार गंगा के किनारे वे भजन गा रहे थे और नवाब सिराजुद्दौला उधर से गुजर रहा था। उसने अपना बजरा रोका और रामप्रसाद को बुला लिया। रामप्रसाद ने दो ही भजन सुनाए और सिराजुद्दौला पर जादू सा असर हो गया। उसने अपने साथ उन्हें ले जाना चाहा, लेकिन वे राजी नहीं हुए। एक राजा ने कहा - यह आदमी मां काली में इतना डूबा हुआ है कि इसे कुछ होश नहीं है। इसकी एक एक सांस अपनी मां काली को समर्पित है। सन १७२० में जन्मे रामप्रसाद के पिता आयुर्वेद के प्रतिष्ठित डाक्टर थे। वे २४ परगना के कुमारहाटा में रहते थे। वे बेटे को भी डाक्टर बनाना चाहते थे। लेकिन रामप्रसाद तो बचपन से ही मां काली के भक्त थे। सिर्फ काली कह देने से ही वे गहरे ध्यान में डूब जाते थे। जब उनके पिता ने देखा कि उनका मन पढ़ने में नहीं लग रहा है तो उन्होंने रामप्रसाद के लिए फारसी का एक अध्यापक रख दिया। १६ साल की उम्र तक रामप्रसाद संस्कृत, बांग्ला, फारसी और हिंदी सीख ली थी। तभी अचानक उनके पिता की मृत्यु हो गई। परिवार आर्थिक संकट से जूझने लगा। रामप्रसाद नौकरी ढूंढ़ने कलकत्ता आए। वहां एक जमींदार के यहां क्लर्क की नौकरी मिल गई। लेकिन मां काली की भक्ति में वे इतने डूबे रहते थे कि बही खातों तक पर वे भजन लिख देते थे औऱ ज्यादातर अकेले में ध्यान करते रहते थे। जमींदार को लगा कि रामप्रसाद पहुंचे फकीर हैं। उन्हें एक सम्मानित राशि प्रति महीने देने का इंतजाम कर उसने उन्हें घर जाने की सलाह दी। रामप्रसाद को अब चिंता ही क्या थी। वे घर चले गए औऱ मां काली के भजन गाने लगे। दिल को छू लेने वाले उनके भजन पूरे बंगाल में फैलने लगे। उनकी ख्याति शिखर पर पहुंच गई। कई राजाओं ने उन्हें अपने दरबार में कवि की हैसियत से उन्हें रखना चाहा, लेकिन उन्होंने सबको मना कर दिया। उन्होंने कहा- मैं सर्वशक्तिमान के दरबार में पहले से ही हूं। अब किसी के दरबार में जाने की जरूरत ही क्या है। रामप्रसाद का निधन सन १७८१ में हुआ।

जल विद्युत परियोजना स्थगित करने के आदेश पर हाईकोर्ट की रोक



राजेन्द्र जोशी
नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तरकाशी जिले में निर्माणाधीन लोहारीनाग पाला जल विद्युत परियोजना को स्थगित करने के केंद्र सरकार के 19 फरवरी के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है । न्यायमूर्ति पीसी पंत तथा न्यायमूर्ति बीएस वर्मा की संयुक्त खंडपीठ में देहरादून की संस्था रूरल लिटीगेशन एंड इंटाइटिलमेंट केंद्र रूलेक की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने 19 फरवरी को एक आदेश जारी कर उत्तरकाशी में चल रही लोहारीनाग पाला जल विद्युत परियोजना का कार्य रोक दिया। पूर्व में एक उच्चस्तरीय कमेटी ने परियोजना का कार्य चालू रखने की संस्तुति दी थी। तब भी सरकार ने परियोजना का कार्य रोक दिया। परियोजना से गंगा की अविरल धारा प्रभावित नहीं हो रही है और न ही इससे पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। याचिका में परियोजना पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद सरकार द्वारा उसे स्थगित करने को जनहित के खिलाफ बताते हुए न्यायालय से सरकार के 19 फरवरी के आदेश को निरस्त करने की मांग की गई। याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायालय की संयुक्त पीठ ने परियोजना स्थगित करने के केन्द्र सरकार के 19 फरवरी के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी। मामले में न्यायालय ने केंद्र एवं राज्य सरकार से छह सप्ताह के भीतर प्रतिशपथ पत्र पेश करने के निर्देश दिए हैं। उल्लेखनीय है कि रूलेक प्रदेश सरकार द्वारा दो अन्य जलविद्युत परियोजनाओं पाला मनेरी 480 मेगावाट तथा भैंरोघाटी 381 मेगावाट की परियोजनाओं के बन्द किये जाने को लेकर भी नैनीताल उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर चुकी है।

खबरनामा

एक ख़बर-जबलपुर के निकट एक गाँव में एक दंपत्ति पर उसी गाँव के दबंगों ने हमला किया.उन्हें जिन्दा जलाने का प्रयास किया गया .अधजली हालत में जब पत्नी घर से निकलकर भागी तो आतताइयों ने उसे पकड़कर घटनास्थल के ही निकट स्थित चौराहे पर उसके साथ मर्यादाभंग का घिनौना खेल खेला.हमेशा की तरह दुर्भाग्य यह की अडोसी- पड़ोसी सभी अपने -अपने घरों में दुबककर जली हुई महिला और उसके पति की दर्दभरी चीखें सुनते रहे.इस दंपत्ति का अपराध यह था की पति ने दबंगों के ख़िलाफ़ चुनाओ लड़ने का दुस्साहस दिखाया था.

दूसरी ख़बर-पच्चीस साल का पति और बाईस साल की पत्नी .दो बच्चे -एक की उम्र पाँच साल दूसरा सवा साल का.गृह कलह के चलते दोनों किसी भी कीमत पर एक दूसरे के साथ रहने को तैयार नहीं .मामला पहुँचा जबलपुर के परिवार परामर्श केन्द्र में.लाख समझाइश के बावजूद दोनों एक दूसरे से अलग रहने की जिद पर अडे रहे .अंततः फ़ैसला हुआ.अब बड़ा बेटा पति के साथ रहेगा और छोटा माँ के साथ।

तीसरी ख़बर-दो साल तक बेटी से इश्क लड़ाने वाला आशिक अपनी होने वाली सास को लेकर भाग गया. बेटी ने थाने में रिपोर्ट लिखाई है की उसके प्रेमी और माँ के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जाए.रिपोर्ट में बेटी ने यह भी लिखवाया है की उसका भूतपूर्व आशिक उसकी माँ के साथ शादी रचाकर बिलासपुर में रह रहा है.लड़की का दर्द यह है कि अब वह अकेली रह गई है.उसका न पिता है और न अन्य कोई भाई अथवा बहन।

मेरी आवाज़-क्या हम इंसानों की बस्ती में रह रहे हैं?क्या इन तीनों घटनाओं में पीडितों को न्याय मिल पायेगा.पहली घटना में आतताई दबंगों को आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया है.पुलिस वालों का घिसा पिटा तर्क यह है कि कोई गवाह नहीं मिल रहा है.जबकि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग यह है की महिला का यह कहना ही पर्याप्त प्रमाण है कि उसके साथ दुराचार हुआ है.फ़िर भी पुलिस गवाह तलाश रही है.महिला का यदि आज मेडिकल टेस्ट करवाया जाए तो सामूहिक दुराचार की पुष्टि हो जायेगी.मगर उन कमजोरों की बात कौन सुने? जब तक मानव अधिकार संगठन सक्रिय होंगे तब तक शरीर के निशाँ और जख्म मिट चुके होंगे.गरीब दंपत्ति के पास जलने का इलाज कराने के भी पैसे नहीं न्याय पाने के लिए कोर्ट कचहरी की बात तो बहुत दूर।

दूसरी ख़बर में दोनों बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है ।एक बेटा माँ से तो दूसरा बाप से बिछड़ गया है.मासूम भाई जिन्होंने अभी एक दूसरे को ठीक से पहचाना भी नहीं अलग-अलग पते वाले हो गए.पति और पत्नी निश्चित रूप से नए जीवनसाथी चुनेंगे क्योंकि दोनों की उम्र अभी कुछ भी नहीं है .तब तो दोनों बच्चों का और भी बुरा हाल हो जाएगा।

तीसरी ख़बर के बारे मुझे सिर्फ़ इतना ही कहना है की यह पशु वृत्ति की याद दिलाती है.

26.2.09

पागल पागल रहतें हैं

जब मुझे प्यार नही था तो सोचता था कि जिस दिन प्यार करूँगा तो टूटकर करूँगा। सारी दुनिया भुला बैठूँगा। दोनों हाथ खोलकर खुशी से सारे आकाश को दौड़कर बांहों में भर लूँगा। खिली खिली फिजाये सिर्फ़ मेरी होंगी। फूल मेरे लिए खिलेंगे, बसंत मेरे लिए गाएगी और पतझड़ की उदासी मुझे छो तक नही पाएगी, बूँदें मेरे लिए बरसेंगी, सुबह मेरी होगी, शाम मेरी। सर्दी के गुलाबी दिन और गर्मियों की चांदनी रातें सिर्फ़ मेरे लिए महकेंगी।
मैं ऐसे प्यार करूँगा कि हर पल खुशियों से लबालब हो जाएगा। वो चाहे न चाहे पर मैं तो वेपनाह प्यार करूँगा उसे। ऐसे कि धर्मवीर भारती की उपन्यास गुनाहों का देवता का प्यार भी बहुत पीछे छूट जाएगा। उपन्यास की नायिका सुधा भी मुझ सा प्यार करने को लालायित हो उठेगी। उसकी हसी पर सारा जहा न्योछावर कर दूंगा। उसे इक पल दूर नही होने दूंगा। अपने रिश्ते को ऐसी गहराईयों तक ले जाऊंगा जहा से जुदाई की सारी लकीरें ख़ुद व ख़ुद मिट जाती हैं। प्यार की ऐसी गर्माहट दूंगा कि जीवन में कुछ और पाने की लालसा नही रह जायेगी। मेरे दिन जीवन के सबसे खूबसूरत और अनमोल लम्हे बन जायेंगे। जो भुलाये नही भूलेंगें।
उसका हाथ अपने हाथो में लेकर घंटों यूँ ही देखता रहूँगा। वो होगी तो जिन्दगी होगी। कोई गम मुझे छू तक नही पायेगा। पहले जानबूझकर उसे नाराज कर दूंगा फ़िर सर झुकाकर माना लूँगा। उसे।
ऐसा प्यार जहा एक-दूसरे के बिन जीना मुश्किल होगा। एक दिन बात न होने पर पहाड़ सा टूट पड़ेगा। जहा धडकनों को धडकनों के धड़कने से महसूस किया जाता हो। जहा मिलने की उत्सुकता हो, जहा एक दूसरे के लिए बेचैनी हो, जहा आतुरता हो, बेताबी हो, महज दिल बात करता हो दिमाग जैसी कोई चीज दरमियाँ न हो, जहा पागलपन हो, व्याकुलता हो, एक-दूजे से मिलने के लिए जहा छटपटाहट हो, रातों को अचानक उठ कर बैठ जाते हो जब नीद टूट जाती है,
पर आज जाने क्यो उसके होते हुए भी तनहा हूँ। सोचता हूँ कितनी अजीब होती हैं ये ख्यालों की बातें,,,,,,,, ? सच्चे प्यार की तलाश संभल जाओ ....

राहुल कुमार

कुछ मुक्तक

खामोश हम रहे तो पहल कौन करेगा
उजडे चमन में फेरबदल कौन करेगा
प्रश्नों के पक्ष में अगर चले गए जो हम
उत्तर की समस्याओं को हल कौन करेगा।

तुम नहीं थे पर तुम्हारी याद थी,
दिल की दुनिया इसलिए आबाद थी,
क्यों न बनता मेरे सपनों का महल,
इसमें तेरे प्यार की बुनियाद थी।

सबकी आँखों के प्यारे हुए,
हम थे ज़र्रा सितारे हुए,
लोग सब जानने लग गए,
दिल से हम जब तुम्हारे हुए।

तुझसे रिश्ते जो गहरे हुए,
दिन सुनहरे-सुनहरे हुए,
नींद आती नहीं रातभर,
तेरी यादों के पहरे हुए।

ये हमें महसूस होता जा रहा है,
वो बड़ा मायूस होता जा रहा है,
चिट्ठियाँ हाथों में आती ही नहीं अब,
डाकिया जासूस होता जा रहा है।

खुशबुओं की ज़रूरत हो तुम,
क्या कहूं कैसी मूरत हो तुम,
चाँद में भी दरार आ गई,
किस कदर खूबसूरत हो तुम।

चेतन आनंद

स्लम का डॉग

भारत के स्लम को डॉग बनाकर मिलियनों कमाने वाले डैनी बॉयल शायद यह भूल रहे हैं की इस स्लम डॉग देश का ही ( लक्ष्मी मित्तल ) उनके (ब्रिटेन ) देश का सबसे बड़ा हस्ती है। कुछ भारतीय कलाकार इस सिनेमा से जुड़कर आज अपने को सातवें आसमान पर पा रहे हैं और गोल्डन ग्लोब , बाफ्टा पाकर तथा ऑस्कर पाकर धन्य महसूस कर रहे हैं। किंतु यह पुरुस्कार उन्हें भारत की गरीबी , संस्कृति को बेइज्जत करने , बच्चों की नकारात्मक छवि बनाकर पेश करने की दी जा रही है । पश्चमी दुनिया को आज का उदीयमान भारत हजम नहीं हो रहा है और वह हर उस छवि को देखकर दिल को तसल्ली देगा जिसमें भारत को मलिन बस्ती वाला मुल्क ,गरीबों के घर वाला मुल्क , बाल शोषण वाला मुल्क, हिंदू मुस्लिम दंगो वाला मुल्क के रूप में चित्रण हो। डैनी बॉयल ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया हैं । क्या किसी भारतीय फिल्मकारों में यह हिम्मत क्यों नही होता है जो अपने फ़िल्म में 1947 में अंग्रेजों द्वारा लूट कर छोड़ दिए गए भारत को आज के विश्वा हस्ती बन रहे भारत के रूप में परिवर्तन को दिखा सके।

भगवान परेशान हैं

कोई पुरुष की आवाज है॥

कह रहा था.. लगता है चुराने आई है..अब बचा ही क्या है?इससे पहले तो अन्न का संकट आया तो तुम्हारे द्वार तक पहुंचा और तुम तो अन्नपूर्णा बन गई और मै तो फकीर ही रहा..

.बाकी ब्लॉग पर ........

फिलिस्तीन और गाजा पट्टी .... समस्या का अंत नही .....

फिलिस्तीनी भूमि आजकल फिर चर्चा में है । वैसे वह कब चर्चा में नही रहता यह कहना मुस्किल है । हमेशा वह कुछ न कुछ उथल पुथल मची ही रहती है । अगर लोगों के नारकीय जीवन का दर्शन करना हो तो आप गाजा पट्टी को देखिये । आपको पता चल जायेगा की जिंदगी कितनी कड़वी है ?
मै कई वर्षों से फिलिस्तीन की समस्या पर नजर रखे हुआ हूँ । सिविल सेवा की तैयारी की बाध्यता भी कह सकते है । सोचता हूँ फिलिस्तीन समस्या का समाधान हो जाने पर दुनिया को कितनी राहत मिलेगी ... इसका अंदाजा अभी मुस्किल है ...... खैर कोई जादू की छड़ी नही है जिससे यह समाधान निकल आएगा ।
आइये कुछ चीजों पर गौर करते है .....
* गाजा इजरायल और मिस्र के बिच समुद्री किनारे की छोटी सी संकरी पट्टी है जो लगभग ४० किमी लम्बी तथा १० किमी चौडी है । इस पट्टी में करीब १४ लाख फिलिस्तीनी और ८ हजार इजरायली रहते है । इनमे से अधिकाँश फिलिस्तीनी शरणार्थी है जिनमे से ज्यादातर १९४८ के अरब इजरायल वार से प्रभावित होकर गाजा में बसे थे ।
* गाजा पर फिलिस्तिनिओं का हजारों वर्ष पुराना दावा है । जबकि यहूदियों का तर्क है की यह उनकी पुराण कथाओं का पवित्र स्थल है ।
* १९६७ के वार में इजरायल ने गाजा पर कब्जा कर लिया तथा वह यहूदी बस्तियां स्थापित करनी शुरू कर दी ।
* स्पष्ट है की गज में यहूदी अल्पसंख्यक है । २००५ में तत्कालीन यहूदी प्रधानमन्त्री एरियल शेरोन ने ४८ घंटे में गाजा से यहूदी बस्तियों को हटाने की घोषणा कर दी थी लेकिन बाद में पता चला की यह अमेरिका से दो अरब डॉलर की सहायता लेने की रणनीति थी ।
* वास्तविकता यह है की १९६७ से गाजा और पश्चिमी तट पर इजरायल का कब्जा जरुर रहा है लेकिन नियंत्रण कभी नही रहा है । हमेशा होम्वार की स्थिति बनी रही है ।
*हमास ने २००७ के चुनाव में महमूद अब्बास की फतह पार्टी को गाजा में पराजित कर दिया तथा सरकार का गठन भी किया लेकिन अन्तार्रस्त्रिय समुदाय का सहयोग प्राप्त नही हुआ । गाजा पर हमास गुट का कब्जा है और वह इजरायल को मान्यता देने से इनकार करता है ।
* इजरायल ने मिश्र की रफाह सीमा पर अपनी सेना तैयार कर राखी है । गाजा के अधिकाँश बन्दरगाहों पर इजरायल का ही कब्जा है ।
* अभी वहाँ की हालत सबसे ख़राब है । एक रिपोर्ट के अनुसार १९६७ के बाद आज की मानवीय दशा नारकीय है
* अन्तार्रस्त्रिय न्यायालय हेग भी मान चुका है की गाजा और पश्चिमी तट पर इजरायल का कब्जा अबैध है । जबकि इजरायल का मानना है की उसका कब्जा पुरी तरह जायज है ।
कई लोगो के मत अलग हो सकते है लेकिन यह एक सच्चाई है की इजरायल का गाजा पर कब्जा अबैध है । उसकी वजह से फिलिस्तीनी नारकीय जीवन जीने को मजबूर है । जबतक इसका न्यायोचित हल नही निकालता तब तक वहाँ शान्ति स्थापित होना मुस्किल है ।
आप अपने विचारों से अवगत करा सकते है ...... आपका स्वागत है ....

इंग्लिश क्लास कमिंग सून....

इंग्लिश क्लास कमिंग सून....
लीजिये, आपकी खिदमत में हाजिर है english-4all। आपका वेल-कम। शीघ्र यहाँ आप-हम शुरू करेंगें ऑनलाइन इंग्लिश क्लास। क्या आप है तैयार ? आप भी रहें रेडी और अपने दोस्तों को भी कर लें तैयार।
... आपका पंकज व्यास, रतलाम

जवाब दें ये तथाकथित गंगा प्रेमी व पर्यावरणविद ?


जलविद्युत परियोजनाओं को बंद कराने से आखिर किसे होगा फायदा ?

या केवल पुरस्कार पाने तक ही सीमित है ये ड्रामा?


राजेन्द्र जोशी

उत्तराखण्ड की गंगा घाटी में निमार्णाधीन जलविद्युत परियोजनाओं को बंद कराने के पीछे किन्ही लोगों का क्या उद्देश्य है? कहीं ये लोग उत्तराखण्ड की आर्थिक रीढ़ बनने जा रही इन परियोजनाओं को रोक कर इस नये राज्य को भिखारी तो नहीं बना देना चाहते या ये लोग कहीं विकास विरोधी तो नहीं ? गंगा का प्रवाह भला कोई रोक सकता है? ऐसे-ऐसे प्रश् आज आम उत्तराखण्डी नागरिकों के जेहन में कौंध रहे हैं। उन्हे लगता है गंगा की सफाई की जरूरत तो हरिद्वार से गंगा सागर तक के बीच होनी चाहिए न कि गोमुख से हरिद्वार के बीच। हां गंगा की पवित्रता का ध्यान यहां के लोगों को भी रखना होगा लेकिन विकास की कीमत पर गंगा पर बन रही जलविद्युत परियोजनाओं को यहां के लोग रोकना ठीक नहीं मानते। अब इन तथाकथित पर्यावरविदों तथा गंगा बचाओं के नाम पर पुरस्कार पाने वालों के खिलाफ एक आन्दोलन की जरूरत महसूस की जा रही है जो इस प्रदेश को अंधेरी सुरंग की ओर धकेलने का प्रयास कर रहे हैं। अखिर देश तथा प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई का करोड़ों रूपया खर्च करने के बाद इन परियोजनाओं को रोकने का क्या मकसद है। इन परियोजनाओं पर देश तथा प्रदेश के हजारों रोजगार पा रहे लोगों को बेरोजगार कर क्या ये तथाकथित ''गंगाप्रेमी''े भीख का कटोरा इन बेरोजगार हुए लोगों के हाथों में थमाना चाहते हैं?

ण एक के बाद एक बंद हो रही निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं के कारण जहां प्रदेश की आर्थिकी प्रभावित हो रही है वहीं ऊर्जा के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर विद्युत उत्पादन को भी भारी हानि उठानी पड़ रही है। पर्यावरण तथा गंगा बचाओ आन्दोलनों के नाम पर हो रहे खेलों के कारण जहां इन परियोजनाओं की कीमत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है वहीं इन परियोजनाओं के बंद होने से हजारों लोग बेराजगारी की मार झेलने को मजबूर हैं। जानकारों का मानना है कि विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को किसी भी परियोजना के शुरू किये जाने से पहले जांचा-परखा जाना चाहिए था। ताकि करोड़ों खर्च होने के बाद परियोजनाओं के बंद किए जाने की नौबत ही न आये। अब ऐसे में परियोजनाओं के बंद होने के कारण होने वाली करोड़ों की क्षति के लिए भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए ताकि आमजन के पैसे का दुरपयोग न हो।

उल्लेखनीय है कि गंगा बचाने के नाम पर अब तक राज्य सरकार की दो महत्वाकांक्षी जल विद्युत परियोजनाओं में से 480 मेगावाट की पाला मनेरी जिसकी लागत दो हजार करोड़ रूपये आंकी गयी थी और इस पर सरकार ने 80 करोड़ रूपये खर्च भी कर दिये थे बीती जून माह में बंद कर दी गयी वहीं 381 मेगावाट की भैरोंघाटी योजना जिस पर निर्माण की अनुमानित लागत भी लगभग दो हजार करोड़ आंकी गयी थी को भी बंद करने के आदेश प्रदेश सरकार प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के पहले उत्तरकाशी तथा बाद में दिल्ली में अनशन पर बैठने के कारण पहले ही बंद की जा चुकी हैं और अब एनटीपीसी बनायी जा रही 600 मेगावाट की लोहारी नागपाला जलविद्युत परियोजना जिसकी लागत 22सौ करोड़ रूपये आंकी गयी थी, पिछले तीन साल को निर्माणाधीन है, तथा जिसका लगभग 30 से 35 फीसदी निर्माणकार्य पूरा भी हो चुका है और इस पर एनटीपीसी लगभग 600 करोड़ रूपए खर्च हो चुके हैं, पर भी केन्द्र सरकार ने 20 फरवरी को बंद करने का निर्णण ले लिया है। जहां तक पाला मनेरी तथा भैंरोघाटी परियोजनाओं का सवाल है इन परियोजनाओं के पूर्ण होने के बाद इनसे प्रदेश को पूरी की पूरी बिजली मिलनी थी और जो प्रदेश को जहां ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलम्बी बनाती वहीं इससे प्रदेश को अतिरिक्त आय भी होती लेकिन गंगा बचाओं अभियान की भेंट ये योजनाऐं चढ़ गयी। साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी बिजली की मांग को पूरा करने में मददगार होती। जहां तक लोहारी नागपाला योजना की बात की जाय इसे भले ही केन्द्र सरकार का उपक्रम एनटीपीसी ही क्यों न बना रहा है लेकिन इससे प्रदेश को 13 फीसदी बिजली मुफ्त में मिलनी थी। सवाल मुफ्त में बिजली मिलने का नहीं सवाल है नये राज्य की आर्थिकी का भी और सवाल है देश तथा राज्य के उन लोगों का जिनको इन योजनाओं के बंद होने के कारण बेरोजगार होना पड़ा है।

गंगा बचाओं तथा पर्यावरण आन्दोलनों के कारण टिहरी परियोजना का भी कमोवेश यही हाल हुआ। 1972 में 196 करोड़ की लागत से बनने वाली यह परियोजना पूर्ण होने पर 6500 करोड़ तक जा पहुंची है। जिससे निर्माण में जहां लागत बढ़ी है वहीं देश मिलने वाली बिजली में भी देरी हुई है उस वक्त भी पर्यावरण और समाज सेवा से जुड़े होने का दावा करने वाले लोग विकास में आम जनता की नजर में बाधक बनते दीख रहे थे। इनमें से कुछ को राष्ट्रीय सम्मान तक भी प्रदान किया गया। गंगा तथा पर्यावरण के नाम पर रोज-रोज इन बांधों के खिलाफ आन्दोलनों से अखिर किन लोगों को इसका फायदा पहुंच रहा है इसके भी जांच किए जाने की आवश्यकता है। परियोजनाओं के लगातार विरोध के बाद अब स्थानीय लोग भी इन तथाकथित गंगा बचाओ तथा पर्यावरण बचाओ के नाम पर आन्दोलन कर रहे लोगों के खिलाफ मुखर होने लगे हैं। क्योंकि पिछले अनुभवों के आधार पर टिहरी बांध निर्माण को लेकर आन्दोलन करने वालों के समय के साथ हुए बदलाव की मानसिकता के वाकिफ हैं। अब आम जनता इन लोगों को चिन्हित कर चुकी है। चार धाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष सूरतराम नौटियाल के अनुसार अकेली लोहारी नागपाला परियोजना से प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 1500 से ज्यादा बेरोजगार जुड़े हुए हैं। केन्द्र सरकार ने परियोजना को रोक कर जहां पूरे देश का आर्थिक नुकसान किया है वहीं युवाओं को भी बेराजगार कर दिया है। क्षेत्र के तमाम बुद्धिजीवियों तथा समाजसेवियों का कहना है यदि इसी तरह देश तथा प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ बनने जा रही इन परियोजनाओं का इस तरह विरोध होता रहा तो देश के तथा प्रदेश के सामने संकट पैदा हो जाएगा। वहीं इनका कहना है कि गंगा क ो साफ रखने की जो लोग सोच रहे हैं उन्हे हरिद्वार से लेकर गंगा सागर तक गंगा की दशा पर सोचना होगा न कि गंगोत्री से हरिद्वार तक के बारे में। इनका कहना है गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक गंगां वैसी भी साफ है और यहां से बह रहे पानी का उपयोग देश तथा राज्य क ो मिलने वाली ऊर्जा परियोजनाओं में किया जाना चाहिए।


कैलाश मानसरोवर यात्रा जोशीमठ- मलारी मार्ग से शुरू करने को लेकर बहस शुरू


राजेन्द्र जोशी

धारचूला -गंूजी मार्ग के बंद हो जाने बाद अब कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए प्रदेश के ही जोशीमठ- मलारी मार्ग से भी यात्रा शुरू करने को लेकर बहस शुरू हो गई है। जिसे उत्तरपथ कहा जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को मोक्ष का रास्ता भी कहा जाता रहा है। स्कंध पुराण में भी इस यात्रा का वर्णन मिलता है। धारचूला से कैलाश मानसरोवर तथा मलारी से कैलाश मानसरोवर मार्ग का प्रयोग आजादी के 15 सालों तक हुआ करता था। 1962 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के बाद ये दोनों मार्ग बंद कर दिये गये थे । जिन पर पुन: 1981 में चीन की रजामंदी के बाद यात्रा शुरू हो पायी। जबकि मलारी से तिŽबत के तुंन जेन ला तक इस उत्तरपथ से भी व्यापार होता रहा था, और यह मार्ग भी कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सबसे सुगम बताया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस उत्तरपथ से भारत तथा तिŽबत के बीच व्यापारिक रिश्ते काफी पुराने थे लेकिन तिबबत में अशांति के बाद यह मार्ग लगभग बंद सा हो गया है। हालांकि अभी भी भारत तथा तिŽबत के बीच धारचूला के लिप्पूलेख दर्रे से व्यापार की अनुमति है लेकिन यह अनुमति केवल 18 चीजों के लिए ही है। जिसमें ऊन तथा भेड़ का व्यापार प्रमुख है। जबकि आजादी के 15 सालों तक मलारी मार्ग से तिŽबत के लिए भेड़ो तथा याक से नमक,तेल तथा ऊन सोना आदि का व्यापार हुआ करता था। जिससे क्षेत्र के लोगों की आर्थिकी मजबूत तो थी ही साथ ही उन्हे रोजगार भी मिलता रहा था। इतना ही नहीं इन दोनों देशों के बीच इतनी व्यापारिक प्रगाढ़ता थी कि कभी उत्तराखण्ड के सीमावर्ती गमशाली तो कभी तुन जेन ला में व्यापारिक मेले आयोजित किये जाते थे जिसमें वे एक दूसरे के यहां की वस्तुओं की खरीद फरोख्त किया करते थे। गमशाली गांव में रह रहे 87 वर्षीय मोहन सिंह के अनुसार वे कई बार अपने पिता व अन्य रिश्तेदारों के साथ तिŽबत की यात्रा अपनी जवानी के दिनों में कर चुके हैं। उस समय को याद कर उनकी अंश्रुपूरित आंखों में यह साफ दिखाई देता है कि उस समय यह क्षेत्र धन-धान्य से कितना परिपूर्ण रहा होगा। उनके अनुसार आज उनका गांव वीरान हो चुका है गांव के कई परिवार मलारी,जोशीमठ तथा देहरादून तक जा बसे हैं। उनके अनुसार इस क्षेत्र में विकास कार्य तो हुए हैं लेंकिन लोगों में वो सौहार्द अब नहीं दिखाई देता। वहीं इसी क्षेत्र के रहने वाले उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड के पूर्व पर्यटन मंत्री व वर्तमान में बदरीनाथ क्षेत्र के विधायक केदार सिंह फोनिया के अनुसार जोशीमठ से मलारी होते हुए सुमना तक अब सडक़ मार्ग 86 किमी का बन चुका है यहां से पैदल बाड़ाहोती होते हुए तुन जेन ला पहुंचा जा सकता है जो कि प्राचीन भारत तथा तिŽबत का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र रहा था। यहां से लगभग 60 किमी पर मानसरोवर तथा कैलाश परिक्रमा पथ है। उनके अनुसार इस मार्ग को एक बार फिर विकसित कर इससे भी यात्रा शुरू किये जाने की योजना थी लेकिन यह कार्यरूप में परिणित नहीं हो पाई। जबकि प्रदेश के पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत के अनुसार इन दोनों मार्गो से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संम्बध एक बार फिर मजबूत किए जा सकते हैं। जबकि उनका कहना है कि अभी केवल धारचूला मार्ग से ही यात्रा की स्वीकृति चीन द्वारा दी गयी है। उनके अनुसार अभी भीे केवल 18 चीजों पर ही व्यापार की अनुमति है जो दोनों देशों के व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नाकाफी है उनके अनुसार इस नियंत्रण से दोनों देशों का व्यापार चौपट हो गया है। उल्लेखनीय है कि समुद्र तल से लगभग 22 हजार 28 फीट की ऊंचाई पर स्थित कैलाश पर्वत क ा परिक्रमा पथ 32 मील है। हिन्दु आस्था के प्रतीक कैलाश को मोक्ष का मार्ग मानते हैं वहीं जैन इसे अष्टïपाद मेरू तथा बौद्घ इसे पवित्र कांग रिन पोचे के रूप में मानते हैं । यहीं से सिंधु, सतलज तथा ब्रह्मïपुत्र जैसी पवित्र नदियों का उद्गगम भी बताया गया है। वर्तमान में यहां तक पहुंचने के लिए तिŽबत के ल्हासा के अलावा नैपाल तथा उत्तराखण्ड के धारचूला के मार्ग जो अब चीन क्षेत्र से होकर गुजरते हैं से पहुंचा जा सकता है। वर्तमान में धारचूला के पास के कई गांवों के भूस्खलन तथा इसके बाद काली नदी में इसका मलवा आ जाने के बाद प्राचान इस मार्ग से एक बार फिर यात्रा शुरू करने को लेकर बहस शुरू हो गयी है। यह तो समय ही बताएगा कि इस मार्ग से यात्रा शुरू हो भी पाती है या नहीं लेकिन इस बहस ने इस मार्ग को जरूर चर्चा में ला दिया है।

पहल करने वालों में ''प्रथम'' थे सावरकर


स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर की पुण्य तिथि पर विशेष - २६ फरवरी १९६६
अप्रितम क्रांतिकारी, दृढ राजनेता, समर्पित समाज सुधारक, दार्शनिक, द्रष्टा, महान कवि और महान इतिहासकार आदि अनेकोनेक गुणों के धनी वीर सावरकर हमेशा नये कामों में पहल करते थे। उनके इस गुण ने उन्हें महानतम लोगों की श्रेणी में उच्च पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया। वीर सावरकर के नाम के साथ इतने प्रथम जुडे हैं इन्हें नये कामों का पुरोधा कहना कुछ गलत न होगा। सावरकर ऐसे महानतम हुतात्मा थी जिसने भारतवासियों के लिए सदैव नई मिशाल कायम की, लोगों की अगुवाई करते हुए उनके लिए नये मार्गों की खोज की। कई ऐसे काम किये जो उस समय के शीर्ष भारतीय राजनीतिक, सामाजिक और क्रांतिकारी लोग नहीं सोच पाये थे।

वीर सावरकर द्वारा किये गए कुछ प्रमुख कार्य जो किसी भी भारतीय द्वारा प्रथम बार किए गए -
वे प्रथम नागरिक थे जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में उसके विरूद्ध क्रांतिकारी आंदोलन संगठितकिया।
वे पहले भारतीय थे जिसने सन् 1906 में 'स्वदेशी' का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी।
सावरकर पहले भारतीय थे जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी।
वे पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।
वे पहले भारतीय थे जिन्होंने सन् 1857 की लड़ाई को भारत का 'स्वाधीनता संग्राम' बताते हुए लगभग एकहजार पृष्ठों का इतिहास 1907 में लिखा।
वे पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश और ब्रिटिशसाम्राज्यकी सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया।
वे दुनिया के पहले राजनीतिक कैदी थे, जिनका मामला हेग के अंतराष्ट्रीय न्यायालय में चला था।
वे पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे, जिसने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था।
सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कंाग्रेस मेंमैडम कामा ने फहराया था।
सावरकर ही वे पहले कवि थे, जिसने कलम-कागज के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायेंलिखीं। कहा जाता है उन्होंने अपनी रची दस हजार से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षोंस्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वह किसी किसी तरह देशवासियों तक नहीं पहुच गई।
सन् 1947 में विभाजन के बाद आज भारत का जो मानचित्र है, उसके लिए भी हम सावरकर के ऋणी हैं। जबकांग्रेस ने मुस्लिम लीग के 'डायरेक्ट एक्शन' और बेहिसाब हिंसा से घबराकर देश का विभाजन स्वीकार कर लिया, तो पहली ब्रिटिश योजना के अनुसार पूरा पंजाब और पूरा बंगाल पाकिस्तान में जाने वाला था - क्योंकि उन प्रांतोंमें मुस्लिम बहुमत था। तब सावरकर ने अभियान चलाया कि इन प्रांतो के भारत से लगने वाले हिंदू बहुल इलाकोंको भारत में रहना चाहिए। लार्ड मांउटबेटन को इसका औचित्य मानना पड़ा। तब जाकर पंजाब और बंगाल कोविभाजित किया गया। आज यदि कलकत्ता और अमृतसर भारत में हैं तो इसका श्रेय वीर सावरकर को ही जाता है
भारत की स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्षों के इतिहास में वीर सावरकर का नाम बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखताहै। वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। महान देशभक्त और क्रांतिकारी सावरकर ने अपनासंपूर्ण जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया। अपने राष्ट्रवादी विचारों के कारण जहाँ सावरकर देश को स्वतंत्रकराने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहे, वहीं देश की स्वतंत्रता के बाद भी उनका जीवन संघर्षों से घिरा रहा।
ऐसे महान व्यक्तित्व को हमारा सादन नमन।


प्रस्तुति - दिल दुखता है...

जब बाड ही खेत को खाना लगे ...

देश के दो बड़े शिक्षा बोर्ड और विधार्थिओं का भविष्य

देश के पहला आईएसओ 9001 प्रमाण पत्र हासिल करने वाले हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड से इतनी बड़ी लापरवाही हो सकती है। दसवीं कक्षा के तीन लाख 75 हजार छात्र पूरी तैयारी करके गणित की दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा देने पहुंचे थे। उनके होश फाख्ता हो गए जब उन्हें पहले सेमेस्टर के प्रश्न पत्र थमा दिए गए। प्रश्न पत्र देखकर परीक्षार्थियों का दिल बैठना स्वाभाविक था। कई केंद्रों पर इस तरह की गड़बड़ी हुई। बोर्ड की लापरवाही पता चलने पर हर परीक्षा केंद्र में हंगामा मचा। सूचना बाहर आते ही छात्रों के अभिभावक बेहद नाराज हो गए। ऐसी लापरवाही से छात्रों के परीक्षा परिणाम पर बुरा असर पड़ता है।
अध्यापकों के साथ अभिभावक भी उन्हें ज्यादा परिश्रम के साथ परीक्षा देने की नसीहत देते हैं। अच्छे अंकों के लिए वे इसका पालन भी करते हैं,लेकिन परीक्षा रद होने से उनकी तैयारी धरी रह जाती है। अब छात्रों को मानसिक रूप से स्वयं को दोबारा तैयार करना पड़ेगा। परीक्षा रद होने से उनका सारा शेड्यूल गड़बड़ा गया है। बोर्ड की इस कार्रवाई से छात्रों को गहरा आघात पहुंचा है। ऐसे में उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए। देखा जाए तो ऐसी परिस्थिति में बोर्ड के पास कोई और विकल्प भी नहीं था। व्यवस्था के अनुसार तैयार किया गया प्रश्न-पत्र सीधे प्रेस से छपने के बाद पैकेट में परीक्षा केंद्रों की संख्या के अनुसार मुख्यालय को भेज दिए जाते है। क्या इस बीच जांच नहीं की जाती कि मार्कशीट के अनुसार किस विषय का प्रश्न पत्र भेजा जा रहा है। परीक्षाएं आरंभ होने से पूर्व बोर्ड सचिव ने प्रदेशभर का दौरा किया था। साथ ही यह दावा किया था कि परीक्षाएं सुचारु, नकल रहित व बाहरी हस्तक्षेप के बिना संपन्न करवाई जाएंगी। इतनी व्यवस्था के बावजूद प्रतिदिन नकल करने वाले पकड़े जा रहे हैं और एक बड़ी चूक हो गई। कुछ ऐसा ही मामला शिक्ष जगत मैं आग्र्निया रहा अजमेर मैं भी देखना को मिला है । अजमेर की सेंट्रल अकादमी स्कूल मैं आधियनरत ४० विद्यार्थियो को शाला की निदेशक शोभासुमन ने बिना सीबीऍसई से मान्यता के १० वी क्लास मैं परवेश दिया पर एक्साम का सर पर आने का बाद मान्यता नही मिलना की बात कही। स्कूल की ऐसी गलती से जहा ४० विद्यार्थिओं का भविष्य अधर मैं लटका है वही कोई बी बोर्ड आब उनका साथ नही दे रहा।किस स्तर पर गलती हुई है और इसके लिए कौन दोषी हैं, यह बाद में ही पता चलेगा। इसकी जांच करवाकर दोषी के खिलाफ कार्रवाई करने की जरूरत है।

निकलो बे नकाब जमाना ख़राब नही है

निकलो न बे नकाब जमाना ख़राब है ये बात पुराणी हो गई है अगर आज के दौर मैं बिना नकाब के निकले तो घर बाले पकड़ लेंगे अगर उनने नही पकड़ा तो कोई न कोई पहचान वाला पकड़ लेगा सहर मैं चारों तरफ़ जोडों को ऐसे ही नकाब टंगे घुमते हुए देखा जा सकता है सत प्रतिशत मैं से सिर्फ ५ परसेंट ही वजह बता सकते है वरना हर किसी के पास सिर्फ़ ख़ुद को छुपाने कही ठोस बहाना हो ता है पर जरा सोचो की जो कम परदे मैं हो वो कितना नैतिक होगा लोग क्या सोचते होंगे क्योकि कुछ ग़लत कम करने वाले और वाली भी इसी नकाब का सहारा लेते है भलाई इसी मैं है की बे नकाब निकलो क्योंकि जमाना ख़राब बिल्कुल नही है

जय हो विकास

आज पूरा देश जय हो के जश्न मैं डूबा हुआ है लेकिन क्या आपको पता है कि अगर एक व्यक्ति न होता तो न रहमान का मान होता और न गुलजार इतने गुलजार होते , आखिर कौन है वह व्यक्ति। जनाब वह व्यक्ति है विकास स्वरूप। जी हाँ विकास की लिखी पुस्तक पर ही तो स्लमडॉग मिलियेनियर बनी। विकास का नाम किसी ने नहीं लिया, गुलजार सुखविंदर का नाम जरुर ले रहे हैं पर उन्होंने भी विकास का नाम नहीं लिया। खैर कोई बात नहीं हम अपनी तरफ़ से विकास को ओस्कर देते हैं और ये दुआ भी करते हैं की वे इसी प्रकार लिखते रहें ताकि इस देश का मान बढे और सदियों तक यह देश गुलजार रहे ।

क्या आप जानते है?


1. अंको का आविष्कार भारत में ३०० .पू. हुआ था।
2. शून्य का आविष्कार भारत में ब्रह्यगुप्त ने किया था।
3. अंक गणित का आविष्कार 200 .पू. भास्करार्चाय ने किया था।
4. बीज गणित का आविष्कार भारत में आर्यभट्ट ने किया था।
5. सर्वप्रथम ग्रहों की गणना आर्यभट्ट ने 499 .पू. की थी।
6. मोहन जोदड़ो और हडप्पा में मिले अवषेशों के अनुसार भारतीयों को त्रिकोणमिती और रेखागणित का ज्ञान.पू. था।
7. जर्मन लेखक थामस के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता में मिले भार मापक यंत्र भारतीयों के दशमलव प्रणाली केज्ञान को दर्शाते हैं।
8. समय और काल की गणना करने वाला विश्व का पहला कलेण्डर भारत में लता देव ने 505 .पू. सूर्य सिद्धांतनामक अपनी पुस्तक में वर्णित किया है।
9. विश्व में सबसे पहले चरक ने 2500 वर्ष पूर्व औषध विज्ञान को आयुर्वेद के रूप में संकलित किया।
10. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड के अनुसार 400 .पू. सुश्रुत ने सर्वप्रथम प्लास्टिक सर्जरी का प्रयोग किया।
11. विश्व के पहले लेखन कार्य का प्रमाण 5500 वर्ष पूर्व हडप्पा सभ्यता के अंतर्गत मिलता है।
12. विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला के रूप में 700 .पू. भारत में स्थापित हुआ। जहां दुनिया भर केविद्यार्थी लगभग 60 विषयों का अध्ययन करते थे।
13. पाइथागोरस प्रमेय की खोज बोधायन ने की थी लेकिन आज भी उसे पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जाना जाताहै।
इतना ही नहीं और भी कई बातें हैं जिनसे हम-तुम सब अनजान हैं। जागो अपने अस्तित्व को पहचानों और अपने ज्ञान को ढूंढो वह यहां-वहां बिखरा पड़ा है। जरूरत है उसे समेटने की। अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी है या मिलती है तो उसका प्रसार करें। साथ ही मुझे मेरे ईमेल -rajpoot1983lokendra@gmail.com पर भेजने काकष्ट करें। जय भारत - जय भारत की प्रखर संतान। दिल दुखता है...

कौन देश के आदमी

शिरीष खरे
- 'Vands' कच्छ में खानाबदोश जनजातियों की बस्ती को कहते है, जिसमें बबूल के पेड़ों के बीचोबीच एक कलस्टर में करीबन 40 अस्त-व्यस्त घर मिलेंगे। इसकी बसाहट, गांव से कोसों दूर होती है। क्योकि इसे गांव का हिस्सा ही नही माना जाता है, इसलिए यहां कानूनी पहचान और मौलिक हकों को पाने की जद्दोजहद आजतक जारी है। ऐसी बस्तियों की संख्या 195 है, जो सरकारी योजनाओं के नक्शो से अक्सर बाहर रहती हैं।

- यहां के लोग, पानी के लिए कई मील पैदल चलते हैं। 'पब्लिक हेल्थ सेंटर', उनकी पहुंच से काफी दूर (10 से 15 किलोमीटर तक) होते हैं। स्कूल हो या हर जरूरी सेवा, वहां के लिए पहुंच मार्ग और बसों का भी अकाल नजर आता है। आलम यह है कि :

87%= घर बिजली से रोशन नही हो पाए
40%= परिवारों के वास्ते राशन-कार्ड नही और85%= गरीबों को 'गरीबी रेखा-सूची' में शामिल नही किया गया।
- यहां 1000 में से 145 बच्चे मौत के मुंह में चले जाते हैं
लिंग-अनुपात तो और भी चौकाने वाला है, 1000 : 844!
आधे बच्चे ऐसे है, जो स्कूल नहीं जा पाते
और जो जाते हैं, उनमें से भी ज्यादातर अनियमित रह जाते हैं।

- मैदान सूखे, मिट्टी रेतीली और पानी का स्वाद नमकीन होता है। फिर, यहां मौसम की मार भी खूब पड़ी है। बीते 10 सालो में, 6 बार सूखा, 2 बार चक्रवात, 2 बार बाढ़ के साथ ही जनवरी 2001 का भूकंप भारी तबाही बरपा चुका है। अपनी जीविका के लिए कुछ लोग ऊँची जातियों के यहां खेतीबाड़ी का काम करते हैं, तो कुछ पशुओं को चराने का। दलितों के खाते में जमीन का मामूली हिस्सा ही है, वे दैनिक मजदूरी पर निर्भर हैं। इसी प्रकार, 'कोल' जाति के लोग अपना गुजारा चलाने के लिए कोयला तोड़ते हैं। अक्सर, लोग काम की तलाश में दूसरी जगहों की तरफ रूख करते हैं। कुछेक, जब इन बस्तियों से कुछ ज्यादा ही बाहर निकल आते हैं, तब अपनी पहचान के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष करते हैं।

आसपास, ऐसे कितने लोग हैं....
जो अपने ही देश के होते हुए, पराए हैं।

अपने सुख की खातिर रिश्तों को बदनाम ना करें....

जब से दुनिया बनी है तब से ही हम न जाने कितने रिश्तों को निभाते आयें है या यूँ कहिये कुछ को तो बस नाम के लिए ही बनाए रखते है....और जब रिश्ते .बौझ....बनने....लगे तब आवय्क्सकता पड़ती है नए रिश्तों की.और अब तो ये .फेशन....सा बन गया है.इसी आपाधापी में लोग किसी से कुछ भी रिश्ता बना लेते है जो किसी ना किस्सी सवार्थ से .बंधा....होता है....ये रिश्ते अपने काम को निकालने के लिए ही बनाए जाते है इसलिए इनमे .गंभीरता....बहुत कम रह पाती है.इन रिश्तों की आड़ में लोग असली रिश्तों को भूल जाते है या भुलाने की चेष्टा करते हैजिससे कई तरह की समस्याएँ खड़ी हो जाती है....कोई किसी का भी भाई बना बैठा है तो किसी ने चार चार भाइयों के होते हुए भी किसी अन्य को भाई बना रखा है.फ़िर ऐ धीरे इन की आड़ में अनैकिकता का घिनोना खेल शुरू हो जाता है तो फ़िर इन रिश्तों की मर्यादा ख़तम हो जाती है...ये तथाकथित भाई बहन जहाँ असली रिश्तों को कलंकित कर रहे है वहीँ समाज में भी अनातिकता फैला रहें है...[yeduniyahai.blogspot]

बैचलर लाइफ .... कभी कभी खाना अच्छा बना लेता हूँ ....

कभी कभी खाना अच्छा बना लेता हूँ । उस दिन कुछ ज्यादा ही हो जाता है । पढ़ाई पर असर पड़ता है । चावल प्रिय है । खूब खाता हूँ । दिल्ली आने के बाद रोटियाँ भी तोड़ने लगा हूँ । चावल से पेट निकलने का डर भी रहता है । सो थोड़ा बहुत जोगिंग भी कर लेता हूँ ।आजकल रोटियां अच्छी नही लग रही । रोटी बनाने में भी बड़ा झंझट है । बनाने में मन ही नही लगता । चावल बनाना आसान है...... कुकर में पानी डालकर रख दो , एक सिटी के बाद बन गया । मार्केट से सब्जी लाओ और खा लो । इधर मेरा कुकर सिटी देना भूल गया है । अंदाज से ही काम चलाना पड़ता है ।बैचलर लाइफ है .... बढ़िया खाना कभी कभी नसीब होता है । चावल के साथ सब्जी होती है या दाल । तीनों का मिलन तो मुस्किल से ही होता है । जब कभी तीनों साथ होते है तो ओवर डोज की मुसीबत खड़ी हो जाती है ।अभी तो खाने के लिए नही जीता ....जीने के लिए ही कुछ खा लेता हूँ ।अरे मै बातों में कहा चला गया । फिसल जाना और उलटा सीधा सोचना आदत बन गई है । ये अच्छी बात नही है । अभी बहुत जोरों की भूख लगी है । चावल दाल बनाया हूँ । सोचता हूँ जल्दी से खा लूँ ............

भारत में बाल विवाह क्यों ?

यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार .........
* भारत में दुनिया के ४० परसेंट बाल विवाह होते है ।
* ४९ परसेंट लड़कियों का विवाह १८ वर्ष से कम आयु में ही हो जाता है ।
* लिंगभेद और अशिक्षा का ये सबसे बड़ा कारण है ।
* राजस्थान ,बिहार ,मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश और प बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है ।
* यूनिसेफ के अनुसार राजस्थान में ८२ परसेंट विवाह १८ साल से पहले ही हो जाते है ।
* १९७८ में संसद द्बारा बाल विवाह निवारण कानून पारित किया गया । इसमे विवाह की आयु लड़कियों के लिए कम से कम १८ साल और लड़कों के लिए २१ साल निर्धारित किया गया ।
* भारत सरकार ने '' नेशनल प्लान फॉर चिल्ड्रेन २००५'' में २०१० तक बाल विवाह को पुरी तरह ख़त्म करने का लक्ष्य रखा है ।

भारत के लिए बाल विवाह एक प्रमुख सामाजिक समस्या है । प्राचीन काल से यह समस्या चलती आ रही है । वैसे तो बहुत लोग विदेशी आकडों पर विशवास नही करते लेकिन बाल विवाह एक कटु सत्य की तरह है । आजादी के इतने साल बाद भी जब हम कई क्षेत्रों में काफी प्रगति कर चुके है । यह एक गंभीर समस्या बनी हुई है । सरकारी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे है । आइये हम और आप मिलकर कुछ प्रयास करे । संभव है की कुछ सकारात्मक असर हो .......

व्यवस्था में कमी पर लिखेंगें तो भी क्या मान हानि आड़े आएँगी

व्यवस्था में कमी पर लिखेंगें तो भी क्या मान हानि आड़े आएँगी

किसी का मन दुखाना हमारा मकसद न हो, किसी के सम्मान को हनी पहूचना हमारा इरादा न हो, और व्यवस्था की कमी को इंगित करना हमारा लक्ष्य हो तो क्या कोई मान हानि लगेंगी। व्यवस्था में कमी पर लिखेंगें तो भी क्या मान हानि आड़े आएँगी? ये प्रश्न मेरे जेहन में उठा रहा है और मुझे परेशां कर रहा हैं।
इस मामले में क्या?

पंकज व्यास रतलाम

कांग्रेस नीत यूपीए की खुल गई पोल!

13 फरवरी को संसद में अंतरिम बजट पेश करते हुए प्रभारी वित्त मंत्री संसद में कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ होने का दावा कर रहे थे और उन्हें उम्मीद है कि इस बार फिर जनता कांग्रेस को दिल्ली दरबार सौंपेगी। संप्रग सरकार ने आम आदमी के हित के नाम पर पहले से चल रही कई योजनाओं के लिए हजारों करोड़ रुपये जारी किए, लेकिन जिस भारत निर्माण कार्यक्रम को सीढ़ी बनाकर कांग्रेस दिल्ली के सपने सजा रही है उसकी पोल लेखा नियंत्रक एवं महापरीक्षक (कैग) ने खोल दी है। संप्रग सरकार के भारत निर्माण कार्यक्रम में आखिरकार कैग ने कई छेद खोज निकाले। पिछले वित्त वर्ष के खर्च के ब्यौरे को देखते हुए लगता नहीं कि सरकार और कैग के खातों में तालमेल है। 23 फरवरी को जारी कैग रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि सरकार विभिन्न योजनाओं के खर्च को आंकड़ों की बाजीगरी से बढ़ाकर पेश कर रही है।
2007 में भारत निर्माण के अंतर्गत चल रही योजनाओं के लिए सरकार ने इक्यावन हजार करोड़ से ज्यादा राशि मंजूर की थी और इस राशि को स्वायत्त और गैरसरकारी संस्थाओं के खातों में स्थानान्तरित किया जा चुका था। कैग को दिए गए जवाब में संप्रग सरकार का कहना है कि योजना को जमीनी स्तर पर लागू करने वाली संस्थाओं ने असल में कितना रुपया खर्च किया है इस बारे में सरकार को कोई जानकारी नहीं है। कैग ने इस मामले में भ्रष्टाचार की गंध सूंघते हुए कहा है कि योजना लागू करने वाली इन संस्थाओं के खातों में दिया गया धन सरकारी खातों के दायरों से बाहर है। साथ ही यह राशि सरकारी चेक और बैलेंस के दायरे से भी बाहर हैं। कैग ने सरकार को लताड़ते हुए कहा है कि गैरसरकारी संस्थाओं को जारी किए गए रुपये में से न खर्च किए गए रुपये का ब्यौरा आसानी से नहीं पता लगाया जा सकता है। ऐसे हालात सरकार की लापरवाही से पैदा हुए हैं। संप्रग के आंक़ड़ों की बाजीगरी पर कैग ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि खातों में हेर-फेर के लिए सीधे पर तौर वित्त मंत्रायलय के खाता नियंत्रक महानिदेशक और व्यय सचिव को जिम्मेदार माना जाएगा और हर बात की जवाबदेही इनकी होगी। यह एक एतिहासिक फैसला है कैग ने पहली बार वित्त मंत्रालय को डाइरेक्ट पार्टी बनाया है।
कैग की रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब चुनाव आयोग कभी भी लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों का एलान कर सकता है। चुनाव में आम आदमी के हित का राग अलापने वाली कांग्रेस की छवि को इस रिपोर्ट से लोकसभा चुनाव में धक्का लग सकता है, लेकिन मुझे यह मुमकिन नहीं लगता क्योंकि इस तरह की जानकारी आम आदमी के पास तक नहीं पहुंचती।
कैग ने आम आदमी के हित के बहाने सरकार की फिजूलखर्ची की तरफ भी इशारा किया है। कैग ने 2006 के आंकडो़ का हवाला देते हुए कहा है कि सामाजिक एवं ढांचागत विकास निधि (SIDF) का धन सरकार ने अन्य गैरजरूरी योजनाओं में बहा दिया। इस धन से विकलांगों के लिए रोजगार, ग्रामीण गरीब आबादी के लिए बीमा जैसे जनहित के काम होने थे जबकि सरकार ने इन योजनाओं के हिस्से के धन को कई सांस्कृतिक संस्थाओं को अनुदान देने के साथ ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं वर्षगांठ मनाने में खर्च कर दिया। 2007 में सरकार ने 6,500 करोड़ और 2008 में 6,000 हजार करोड़ रुपये सामाजिक एवं ढांचागत विकास के मद में जारी किए, लेकिन इन दोनों वर्षों में सरकार ने इस निधि का 3,000 हजार करोड़ रुपया गैरसरकारी संस्थाओं को अनुदान दे दिया और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गैरजरूरी खर्च कर दिया। यहां एक बात सभी जानते हैं कि नौकरशाही में फैले भ्रष्टाचार को देखते हुए गैरसरकारी संस्थाओं को जनहित योजनाएं लागू करने के लिए सरकार ने साझीदार बनाया था। नब्बे के दशक में आई इन संस्थाओं ने शुरू शरू में जिम्मेदारी से काम किया लेकिन उसके बाद ये संस्थाएं भी भ्रष्टाचार की चपेट में आ गईं और साथ ही सरकार की जेबी संस्थाएं बन गईं। आज हमारे राजनेताओं के अपने खास लोग इन संस्थाओं को चला रहे हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर संप्रग सरकार के मुख्य घटक और परिवहन मंत्री टी. आर. बालू पर भी संस्थाओं और अपने परिजनों को अनुचित लाभ पहुंचाने के आरोप लगे हैं। इससे पहले की सरकार पर भी ऐसे आरोप लगे हैं।
इसके अलावा सरकार ने “आम आदमी” यानी ग्रामीण आबादी को टेलीफोन सब्सिडी के लिए 20,000 करोड़ रुपये जारी किए, लेकिन इस राशि में से केवल 6,000 करोड़ रुपये ही इस मद में खर्च हो सके। बाकी के धन के बारे में सरकार कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं करा पाई है। 20,000 करोड़ रुपये की यह राशि सरकार ने 2003 से 08 तक सार्वभौम सेवा दायित्व निधि(Universal Service Obligation Fund) से इकट्ठा किए थे। बात साफ है कि बाकी बचे हुए धन से सरकार ने राजस्व घाटे की पूर्ति की है। खैर राजस्व घाटे की पूर्ति भा जरूरी है लेकिन इसके लिए आम आदमी को धोखे में रखने की कोई जरूरत नहीं है।
इन आंकड़ों को देखकर साफ पता चलता है कि सरकारें कैसे आम आदमी को बेवकूफ बनाकर अपना हित साधती रही हैं। आंकड़ों की बाजीगरी से नागरिकों को छला जा रहा है। कैग की रिपोर्ट हरेक वित्तीय वर्ष के बाद आती है और रद्दी की टोकरी में चली जाती है। उसे न सरकार तवज्जो देती है और हम। आज हम अपने अधिकारों के लिए जागरुक हो रहे हैं। ज़रा सोचिए क्या हमारा अधिकार यह नहीं कि हम अपना सरकार के खर्च के ब्यौरे को नजदीक से जानें और कैग रिपोर्ट को आधार बनाकर अपनी सरकार चुनने का फैसला करें?

बेतुकीः अगला आस्कर फिर ले आओ

भैये देश को पहली बार आस्कर मिला। ये मानो पहली बार इसकी पुरस्कार की जुगा़ड़ हुई। अपने आमिर भाई को पहले ही आस्कर मिल जाता पर उन्हें फिल्म बनाने का सलीका नहीं आया। अरे भाई अंग्रेजों के मात्र गेम में ही उन्हें गंवार हरा दें और वो तुम्हें आस्कर देंगे। लोग कह सकते हैं जिसने कभी मोहल्ला पुरस्कार भी नहीं देखा वह तो यही कहेगा। पर गुरू मुझे मालूम है आस्कर का यह रिकार्ड अपन तोड़ सकते हैं। एक फिलम बनाने की जरूरत है। अबकी फिलम बनानी होगी एक ही भूल। नाम कुछ और भी रखा जा सकता है पर कहानी होगी वर्तमान की और फ्लैश बैक में चलेगा 1947 से पहले का किस्सा। कहानी का उद्देश्य होगा अगर हम आजाद न होते तो देश कैसा होता। यहां स्लमडाग नजर नहीं आते। हर शहर में खूबसूरत इमारतें होती और देश में गरीबी कहीं नजर नहीं आती। फिर फ्लैश बैक शुरू होगा। ब्रिटिश अधिकारी आ रहे हैं और भारतीयों को काम करने का तरीका बता रहे हैं। जिसने काम नहीं किया उसको कोड़ा मारा। दिखाया जाएगा किस तरह से आतंकवादी बेचारे अंग्रेजों को परेशान कर रहे हैं। फिर अंग्रेजों को विकास का मसीहा बताया जाएगा।
फिलम के आखिर में कहा जाएगा अगर भारत आजाद न होता तो विश्व में उसकी जगह कहीं और होती। भारत विकासशील नहीं विकसित देश होता। फिलम में एक-दो गाने भी होंगे। जब ब्रिटिश अधिकारी भारत आ रहे हैं तो एक अच्छा गाना फिट हो सकता है। गाने के बोल नहीं लिख रहा हूं विवाद की वजह से पर कुछ उसका मकसद होगा, हे महानुभाव, आप आओ। आप हमारे भाग्य के विधाता हो। हम लोग आपको चरणों में अपना सर रखते हैं। एक गाना बाद में फिट हो सकता है जिसमें कहा जाएगा
अगर हम आजाद न होते तो अच्छा था
जमाने भर की खुशियां हमें मिल जाती
न कहीं गरीब नजर आते, न बेकार ही दिखते
विकास की नदियां कल-कल बहतीं।
अगर हम आजाद न होते तो अच्छा था।
गाने को आप लोग बढ़ाइये।
फिल्म की कहानी आपको पसंद आई कि नहीं। यह फिलम सच के बेहद करीब मानी जाएगी आस्कर में सब कुछ जीत लायेगी। आमिर भैया का भी सुझाव है, आस्कर जीतना है तो खुद को हारता हुआ दिखाओ। आखिर हम भारतीय हैं, दूसरों की जीत की खातिर हार भी सकते हैं। फिर अंग्रेज कहेंगे, जय हो, जय हो, जय हो।
पंकुल

लैला-मंजनू की आखिरी पनाहगाह


लैला-मंजनू का नाम कौन नहीं जानता! ये नाम तो अमर प्रेम का प्रतीक बन गया है। लैला-मंजनू के आत्मिक प्रेम पर कई फ़िल्म बन चुकी हैं। लैला-मंजनू कैसे थे? कहाँ के रहने वाले थे? इनके परिवार वाले क्या करते थे? कौन जानता है। लेकिन ये बात सही है कि इन दोनों प्रेमियों ने अपनी अन्तिम साँस श्रीगंगानगर जिले में ली। श्रीगंगानगर जिले के बिन्जोर गाँव के निकट लैला-मंजनू की मजार है। दोनों की मजार पर हर साल जून में मेला लगता है। मेले में नवविवाहित जोडों के साथ साथ प्रेमी जोड़े भी आते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि बँटवारे से पहले पाकिस्तान साइड वाले हिंदुस्तान से भी बहुत बड़ी संख्या में लोग मेले में आते थे। मेले के पास ही बॉर्डर है जो हिंदुस्तान को दो भागों में बाँट देता है। राजस्थान का पर्यटन विभाग इस स्थान को विकसित करने वाला है। लैला-मंजनू की मजार को पर्यटन स्थल बनाने के लिए दस लाख रुपये खर्च किए जायेंगें।अगर इस स्थान का व्यापक रूप से प्रचार किया जाए तो देश भर से लोग इसको देखने आ सकते हैं। मजार सुनसान स्थान पर है ,इसलिए आम दिनों में यहाँ सन्नाटा ही पसरा रहता है।
लैला -मंजनू की इसी मजार के बारे में जी न्यूज़ चैनल पर प्राइम टाइम में आधे घंटे की स्टोरी दिखाई गई। सहारा समय भी इस बारे में कुछ दिखाने की तैयारी कर रहा है।

दूल्हा पिटेगा

एक बहुत पुराना गाना है, देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान कितना बदल गया इंसान। गीतकार ने नाहक ही भगवान को परेशान कर डाला। अरे जमाना कोई बूंदी का लड्डू थोड़े ही जो हमेशा एक जैसा नजर आयेगा। अरे पहले के लोगों ने जो नहीं किया वह हम भी नहीं करें। यह तो कोई तुक की बात नहीं। भैया पहले लोग लंगोट पहनते थे अब क्या पहनते हैं यह अंदर की बात है। पहले लोग खेत में लोटा लेकर जाते थे अब कमरे (अटैच लैट) में ही हल्के हो जाते हैं। भैया सबको बदलना पड़ता है।
पहले बेगानी शादी के दीवाने अब्दुल्लाओं की कोई कमी नहीं थी। किसी की शादी हो उन्हें घोड़े के सामने नाचना। जिसे देखो वह आज मेरे यार की शादी ठुमकने लगता, आज मेरे यार की शादी है, यार की शादी है मेरे दिलदार की शादी है। ऐसा लगता है जैसे सारे संसार की शादी है। भैया तमाम लोग यार की शादी में नाचने के लिये खुद कुंवारे ही रह गये। कोई नाचता, मेरा यार बना है दूल्हा और फूल खिले हैं दिलके, मेरी भी शादी हो जाए दुआ करो सब मिलके। भैया नाचता ही रह जइयो, कोई तेरी शादी की दुआ नहीं कर रहा।
भैये, ये नया जमाना है। यहां अकल से काम लेना पड़ता है। तभी तो सारे के सारे बाराती दूल्हे से ही पूछ रहे हैं,तैनो घोड़ी किसने चढ़ाया भूतनी के। तैनो दूल्हा किसने बनाया भूतनी के। नाचते-नाचते भाई मेरे खुद ही दूल्हे को मारने का प्लान बना लेते हैं। बारात में तो कोई बात नहीं, घर की बात है। भैये, लड़की के दरवाजे पर डीजे तोड़ डांस करते हैं और दूल्हे से ही पूछते हैं भैया कल तक तू नंगा था, ये सूट-बूट क्या किराये पर ले आया। दूल्हा बेचार खींसे निपोरते हुए सब कुछ सह लेता है। कभी-कभी ऐसा लगता है कोई डीजे से कूद कर सीधे स्टेज पर न पहुंच जाए और दूल्हे का सूट ही खींच ले।
भैये दूल्हे की धुलाई करते हैं और जमकर खा-पीकर चले जाते हैं। बताओ जमाना बदला कि नहीं। अरे दुल्हन एक लाये और बाकी उसे यार बतायें कहां का इंसाफ था। अब कम से कम अपने मन की भड़ास तो निकला ही लेते हैं। एक और गाना कभी अपने सांसद राजबब्बर ने गाया था, दूल्हा बिकता है बोलो खरीदोगे। अब कोई गायेगा, दूल्हा पिटता है वोलो पीटोगे।
पंकुल

दिल दुखता है...


दिल दुखता है... जब अपने ही देश के लोगों से देश की बुराई सुनता हूँ।
दिल दुखता है... जब चालाक लोगों की बातों में समाज के भोले-भाले लोगों को फंसते देखता हूँ।
दिल दुखता है... जब चोरो को उपदेश देते सुनता हूँ।
दिल दुखता है... जब बच्चों का बचपन छिनते देखता हूँ
दिल दुखता है... जब राह चलती किसी लड़की को कोई सीटी मारता है या रास्ता रोकता है.
दिल दुखता है... जब कोई झूठ बोलता है और कहता है - trust me।
दिल दुखता है... जब कोई नवजात सुबह-सुबह घूरे पर पड़ा मिलता है.
दिल दुखता है... जब देखता हूँ इस देश के नेता अपने से अधिक उम्र के लोगों से पैर छुलवाते है.
दिल दुखता है... जब लालची वोटर लालची नेता को चुनते हैं और हम चद्दर तान के सोते हैं.
दिल दुखता है... जब देश आतंक में जलता है और हमारे चूल्हे की आग पर मटर पनीर पकता है.
दिल दुखता है... जब भारतीय त्योहारों पर विदेशी त्यौहार भारी पड़ते हैं.
दिल दुखता है... जब लोगों के मुंह से सुनता हूँ इस देश ने हमको क्या दिया है?
दिल दुखता है...

24.2.09

ख्वाब कोई आग ना बन जाए कहीं !!

ख्वाब को ख्वाब ही बना रहने दो.....
ख्वाब कोई आग ना बन जाए कहीं !!
आग के जलते ही तुम बुझा दो इसे
सब कुछ ही ख़ाक ना हो जाए कहीं !!
अपने मन को कहीं संभाल कर रख
तेरे दामन में दाग ना हो जाए कहीं !!
तेरी जानिब इसलिए मैं नहीं आता !!
मेरी नज़रें तुझमें ही खो जाए ना कहीं !!
खामोशी से इक ग़ज़ल कह गया"गाफिल"
इसके मतलब कुछ और हो जाए ना कहीं !!

its touching....


'I felt sorry for the British. After all the glitz and glamour they had to return to the poverty and debt back home.'

लाला .........और भारत की पहली सेंचुरी .......

१९३३ में बोम्बे जिमखाने में ......सामने इंग्लैंड की टीम ......और लाला अमरनाथ ने अपना पहला मैच खेलते हुए भारत की ओर से पहला टेस्ट सेंचुरी जड़ दिया । यही से भारत की शुरुआत होती है ........और अब सचिन ,राहुल ..... टेस्ट क्रिकेट को एक नई उचाई पर ......

11 सितंबर 1911 को जन्में लाला अमरनाथ का अलसी नाम था नानिक अमरनाथ भारद्वाज। उनके खेल के स्तर और चरित्र को आंकड़ों में नहीं बांधा जा सकता। इंग्लैंड, वेस्ट इंडीज, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने 1933 से 1953 के दरम्यान कुल 40 पारियां खेलते हुए करीब 25 की औसत से 878 रन बनाए और 45 विकेट भी लिए। उन्होंने अपना करियर विकेटकीपर बल्लेबाज के तौर पर शुरू किया था लेकिन उन्हें बल्लेबाजी के अलावा स्विंग गेंदबाजी के लिए भी जाना गया। दूसरे विश्व युद्ध के कारण उनके खेल जीवन के सुनहरे साल बर्बाद हो गए जैसा कि महान बल्लेबाजों डॉन ब्रेडमैन और लेन हटन के साथ भी हुआ था.......
आजाद भारत के पहले कप्तान के रूप में उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई दौरे में टीम का नेतृत्व किया। विक्टोरिया के खिलाफ खेली गई उनकी 228 नॉटआउट की पारी पर विक रिर्चड्सन ने एक भारतीय अखबार के लिए लिखा, 'यह पारी मेरी याददाश्त में डोनाल्ड ब्रेडमैन की 1930 में लीड्स में खेली गई 339 की और सिडनी में स्टैन मैकेब की 182 की पारी के साथ हमेशा अंकित रहेगी ।
लाला अमरनाथ के जीवन में इसके बाद कई उतार चढ़ाव आए लेकिन अपनी नैतिक दृढ़ता के बल पर वे हर बार कामयाबी से उस से बाहर आ गए। उनके तीनों बेटों मोहिंदर, सुरिंदर और राजिंदर को यही गुण विरासत में मिले थे। मोहिंदर 1980 के दशक में भारत में तेज गेंदबाजी के खिलाफ सबसे अच्छे बल्लेबाज थे और उनका करियर बहुत शानदार रहा। सुरिंदर अमरनाथ ने भी पहले टेस्ट मैच में शतक लगाया था जो इत्तफाकन भारतीय क्रिकेट इतिहास का सौवां शतक था।

सच लाला अमरनाथ का योगदान भुलाया नही जा सकता है । उन्हें कोई भी क्रिकेट प्रेमी कभी नही भुला सकता ...... सरकार और भारतीय क्रिकेट बोर्ड भले भुला दे .....

कैसे मनाई महाशिवरात्रि



विनय बिहारी सिंह


कल महाशिवरात्रि योगदा मठ, कोलकाता में मनाने का मौका मिला। वहां ध्यान, भजन और पूजन के बाद प्रसाद वितरण हुआ। जैसे जैसे रात गहराती गई स्वामी अमरानंद जी का भजन और भावपूर्ण होता गया। ऊं शिव ऊं का गायन हारमोनियम और ढोलक की संगत में इतना मधुर हो गया कि लोग झूमने लगे। ये तीन शब्द कितने प्रभावशाली हैं, यह कल रात अनुभव हुआ। इन शब्दों का स्पंदन समूचे माहौल में फैल गया- ऊं शिव ऊं, ऊं शिव ऊं। इसके बादहर हर शंकर शंभु सदाशिवहर हर महादेव बम बम भोला।।इसके बादचंद्रमौलि चंद्रशेखर शंभु शंकर त्रिपुरारी.... ऐसे ही अनेक भजन। रात गहरा रही थी और लग रहा था ढोलक कभी मृदंग हो गया तो कभी डमरू। ढोलक के कलाकार एक शिव भक्त ही थे। अद्भुत माहौल बन गया था। मानो हम सब कैलाश पर्वत पर बैठे हों और शिव जी का दिव्य नृत्य देख रहे हों।बम बम बबमबम... की ध्वनि के साथ हर हर महादेव की सम्मिलित ध्वनि से रोम रोम तृप्त हो रहा था। शिव का नाम लेने से ऐसा सुख भी मिल सकता है, कई लोगों ने पहली बार जाना। शिव का नाम उच्चारित करने से सचमुच एक खास किस्म का स्पंदन माहौल में पैदा होता है। अगर सबके मन में वह भाव भक्ति हो तो क्या कहने। यही तो कल देखा महसूस किया। इतना दिव्य, अद्भुत और रोम रोम को तृप्त करने वाला आयोजन विरल है रेयर है। योगदा मठ के सन्यासी सचमुच प्रणम्य हैं। बिना एक पैसा लिए लोगों को प्रसाद खिला कर खुश हो रहे थे वे। हर हर महादेव।

पोस्ट ब्लोग्वानी व् चिट्ठाजगत पर नही दिखाती, कोई हेल्प करेंगा ,,,

मेरे ब्लॉग आप-हम की पोस्ट ब्लोग्वानी व् चिट्ठाजगत पर नही दिखाती है। क्या कोई मदद कर सकता है। अगर कोई मदद करें तो उसका आभारी रहूँगा।
पंकज व्यास, रतलाम













ये
है खाध्य और आपूर्ति मंत्री, (स्वतंत्र प्रभार ) मध्यप्रदेश शासन पारस जैन। रतलाम में जैन शोश्यल ग्रुप ग्रेटर की ओर से आयोजित योग शिविर में योग के गुर सिखाते हुए। बतातें है की इनका वजन ९० केजी है।
फोटो: विजय शर्मा, रतलाम

पटरी पर सरकती जिंदगी ?





पिछले दिनों संसद में अंतरिम रेल बजट पेश किया गया। रेल बजट पर केन्द्रित लैब जर्नल के लिए मुझे एक रिपोर्ट लिखना था। इसलिए मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ निकल पड़ा। रेलवे अघिकारियों से अनुमति लेने जब मैं पटरियों से गुजर रहा था तब मुझे आदित्य दिखाई दिए। आदित्य के बहाने मुझे गैंगमेनों की स्थिती जानने का मौका मिला ....



गैंगमैन आदित्य कुमार पिछले बीस वर्षों से रेलवे की सेवा कर रहे हैं। ये उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले हैं। इनकी नौकरी जब लगी थी तो परिवार खुशी से फूले नहीं समा रहा था। गरीब आदित्य की जिंदगी का यह सबसे हसीन पल था। घर छोड़कर ये कमाने दिल्ली आ गए। विश्वास था कि रेलवे इन्हे घर जैसा माहौल तो नहीं, कम-से-कम घर तो देगा ही। लेकिन इतने साल बीतने के बाद भी इन्हे एक अदद ‘घर’ की तलाश है। कहने को तो रेलवे ने इन्हे घर दिया है लेकिन उसे घर की तुलना में झुग्गी कहना ज्यादा सही होगा।यह कहानी केवल आदित्य की ही नहीं है। यह उन सब परिवारों की दास्तां है जो नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास बनाये गए ‘इस्ट इंट्री रोड झुग्गी’ के निवासी हैं। यह झुग्गी करीब चालीस वर्ष पुरानी है और यहां करीब 100 परिवारों का बसेरा है। रेलवे अपने चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के प्रति कितना संवेदनशील है इसकी बानगी यहां दिखती है?



इन कर्मचारियों के घरों की कई ‘विशेषताएं’ हैं। कई तो काफी जर्जर हो चुके हैं तो कई गिरने की हालत में हैं। इन घरों में बिना झुके घुसा नहीं जा सकता। दीवारें भी ऐसी मानो छूते ही गिर जाऐंगी। शौचालय की भी यहां कोई ठोस व्यवस्था नहीं। बारिश के मौसम में छत पर पाॅलिथीन की चादर डालना इनकी मजबूरी हैं।ऐसी बात नहीं कि इनके बदहाल जीवन को लेकर आवाज न उठाई गई हो। इनके संगठन आॅल इंडिया एससी/एसटी रेलवे इम्प्लॅायज एशोशियेसन ने आंदोलन किया तो इन्हें आंगनबाड़ी केन्द्र का तोहफा मिला। इसके बावजूद अभी भी यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। वैसे ‘सलाम बालक’ जैसे कुछ संगठन भी इन जगहों पर सक्रिय हैं, जो इनके बच्चों पढातें हैं।
आदित्य से मिलकर पता लगा कि पटरियों पर रेल की सुरक्षित दौड़ सुनिश्चित करने वाले कर्मचारी कितनी असुरक्षा में अपना जीवन बसर कर रहे हैं। घर के अभाव में झुग्गी में रह रहे इन कर्मचारियों की जीवन पटरी पर कब दौड़ेगी यह तो वक्त बताएगा? फिलहाल रेलवे की नीति से ये सरकने को मजबूर हैं?

१८ वां ताज महोत्सव २००९ -- परेशान महोत्सव

१८ वां ताज महोत्सव २००९ हर साल की तरह इस साल भी "ताज महोत्सव" अपने तय समय के मुताबिक १८ - २७ फरवरी तक के लिए लगा है, ताज महोत्सव के हालत साल दर साल बिगड़ते जा रहे हैं, बहुत बुरा हाल कर रखा है, जनता परेशान है, विदेशी नागरिक परेशान है, होटल व्यवसायी परेशान है,......

सबसे पहले जनता की बात करते है, ताज महोत्सव जिस तरह से लगाया जाता है उसके मूल रूप मे अब बदलाव कर दिया गया है, वो बिल्कुल भूल भुलैया बन चुका है सब रास्ते घुमा फिरा कर दे दिए गए हैं, कहीं जाने के लिए सीधा रास्ता नहीं है, अगर आपको झूलो तक जाना है तो आपको एक नई बनी बिल्डिंग मे से घुमते हुए जाना होगा जहाँ पर इतना पतला रास्ता है की आप बगैर किसी के जिस्म को छुए वहां से नही निकल सकते है क्यूंकि इन दिनों वहां पर बहुत भीड़ होती है, चलने के लिए जगह नही है वहां मैं कल गया था वहां पर बुरा हाल हो गया जा कर... आगे पढ़े

23.2.09

क्या कहें क्या पता !!

क्या कहें क्या पता !!
कैसी ये आरजू ,क्या कहें क्या पता !
तेरे इश्क में हम, हो गए लापता !!
चलते-चलते मेरी, गुम हुई मंजिलें
जायेंगे अब कहाँ,क्या कहें क्या पता !!
तेरे गम से मेरी,आँख नम हो गयीं
कितने आंसू गिरे,क्या कहें क्या पता !!
सुबो से शाम तक,ख़ुद को ढोता हूँ मैं
जान जानी है कब,क्या कहें क्या पता !!
नज्र कर दी तुझे,जिन्दगी भी ये मेरी
करना है तुझको क्या,क्या कहें क्या पता !!
उफ़ मैं भी "गाफिल"हूँ हाय बड़ा बावला
ढूंढता हूँ मैं किसे,क्या कहें क्या पता !!

देश को सबसे बड़ा खतरा बंगलादेशी कीडों से है ......

हम तो भाई उनसे तंग आ गए है । हर गली चौराहे में मिल जाते है । आतंरिक शान्ति के लिए खतरा बन गए है । आतंकवादी घटनाओं में भी शामिल है । चोरी चमारी तो उनकी आदत बन गई है । ऐसा हम तो सोचते है ही ,सरकार और कोर्ट का भी यही मानना है । पर हमारी सरकार ........ उसपर तो कमेन्ट करना मुर्खता है । जानते हुए छोटे घाव को कैसे नासूर बनाया जाता है ? यह सीखना हो तो कोई इसे सरकार से सीखे ।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है की हरेक भारतीय के पास पहचान पत्र होना चाहिए । जिससे की उनकी नागरिकता पहचानी जा सके । सीमावर्ती इलाकों में तो इसे अनिवार्य कर देना चाहिए । कोर्ट ने सरकार से जबाब भी माँगा ......पर वह लगता है सो गई है । यह नासूर इस कंट्री को ही तबाह कर देगा जिस तरह स्पेन का नासूर नेपोलियन को और साउथ का नासूर औरंगजेब को बरबाद कर दिया । समय रहते चेत जाने में ही समझदारी है ।

ऐसे लोगो को भी सबक सिखाया जाय जो बिना सोचे समझे बंगालादेशिओं को नौकर बना लेते है । कैम्पों में अबैध बंगालादेशिओं को वे समान उपलब्ध है जो यहाँ के अधिकाँश नागरिकों को भी नही है । रासन कार्ड , नौकरी , शिक्षा का अधिकार देश के नागरिकों को है न की अबैध नागरिकों को ।
बन्ग्लादेशिओं को पनाह देने में पश्चिम बंगाल और असाम का बड़ा हाथ है । वह वे पहचान में ही नही आते की कौन देशी है और कौन विदेशी ...... नेता अपनी नेतागिरी से बाज नही आते । एक दिन देश की जनता उनसे सवाल जरुर करेगी । तब उन्हें बचाने के लिए कोई बंगलादेशी नही आयेगा ।

नर्गिस का असली नाम क्या था ?

राज्य सभा में पहुचने वाली पहली अभिनेत्री नर्गिस थी । उनका असली नाम क्या था ? मदर इंडिया आस्कर के लिए नोमीनेट हुई थी .....उस फ़िल्म में उनका नाम क्या था ?
नर्गिस को पहला नेशनल अवार्ड किस फ़िल्म के लिए मिला ?......
सुना है उनके नाम पर कोई अवार्ड भी दिया जाता है ?
वह कैंसर से मरी पर किस साल ?
आपसे नीवेदन है .... आप कुछ और जानते है तो मुझे लाभान्वित करें
आपका ऍम के राय .....

जय हो! की जय

इक्यासिवें ऑस्कर अवॉर्ड्स में पहली बार भारतीयों ने धाक जमा दी। बेस्ट फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर ने इतिहास रचते हुए आठ ऑस्कर पर कब्जा किया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर की बच्ची पर आधारित एक शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म स्माइल पिंकी को भी बेस्ट शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए एक ऑस्कर से नवाजा गया।
एक ऑस्कर की उम्मीद लिए हमारी कई फिल्में ऑस्कर दरवाजे से लौ़ट आईं, इसलिए मीर का एक शेर याद आता है। बारहा ये हुआ जाकर तिरे दरवाज़े तक, हम लौट आए हैं नाकाम दुआओं की तरहा, लेकिन सोमवार को सौ करोड़ लोगों की उम्मीदों को स्लमडॉग मिलिनेयर ने आखिरकार पूरा कर ही दिया। स्लमडॉग मिलिनेयर ने बेस्ट फिल्म का अवार्ड अपने नाम करके पूरी दुनिया में बॉलीवुड की धाक जमा दी। एक ऑस्कर के लिए तरस रहे भारत की झोली में आठ-आठ ऑस्कर डाल दिए। गोल्डन ग्लोब से जीत का सफरनामा शुरू करते हुए वाया बाफ्टा ऑस्कर में भी स्लमडॉग ने जय हो का झंडा बुलंद कर दिया।
सायमन बिफॉय के नाम बेस्ट अडॉप्टेड स्क्रीनप्ले के लिए पहले ऑस्कर का एलान होते ही स्लमडॉग ने भारत के फिल्म जगत में इतिहास की एक अमिट इबारत लिख दी। इसके बाद बेस्ट सिनेमेटॉग्राफी के लिए एंथनी डॉड मेंटल, बेस्ट साउंड मिक्सिंग के लिए रेसूल पोकुट्टी और स्लम डॉग मिलिनेयर की बेस्ट एडिटिंग के लिए क्रिस डिकेंस को भी ऑस्कर अवॉर्डस मिले, लेकिन अब भी हर भारतीय एक नाम सुनने को तरस रहा था और वो था ए आर रहमान। ये घड़ी भी जल्द ही आ गई। ए आर रहमान को ऑरिजिनल स्कोर के लिए बतौर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार ऑस्कर से सम्मानित किया गया। जिस गीत जय हो ने भारत की जय का झंडा बुलंद किया उसके लिरिक्स के लिए गुलजार को बतौर सर्वश्रेष्ठ गीतकार ऑस्कर दिया गया। इस बार के लगभग सारे ऑस्कर उड़ा लेने के बाद बारी थी इस अज़ीमो शान फिल्म के निर्देशक डैनी बॉयल की, और बिना शक इस सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के नाम के साथ ऑस्कर विनर की मुहर लग गई। ऑस्कर की गिनती के लिहाज से देखें तो स्लमडॉग ने टाइटेनिक को भी पछाड़ दिया है।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के डिबही गांव की पिंकी ने भी इस खुशी में थोडी और मिठास घोल दी है। अपने कटे होंठ की वजह से उपहास का शिकार बनी इस बच्ची के संघर्ष और उसके होठों के इलाज पर आधारित कहानी स्माइल पिंकी को सर्वश्रेष्ठ शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए ऑस्कर दिया गया।
ये केवल बॉलीवुड की ही नहीं बल्कि उन करोड़ों तरसती आंखों की जीत है जो ऑस्कर को अपनी धरती पर देखने के लिए तरसती रही हैं। आज लाखों नम आंखें जय हो का खम ठोक रही हैं। ए आर रहमान जैसे संगीतकार पर फख्र कर रही हैं। करोड़ों हाथ एक साथ मिलकर भारत की विजय पर ताल ठोक रहे हैं। हालांकि बॉलीवुड के किसी फनकार को अपना फन साबित करने के लिए ऑस्कर जैसी विदेशी सनद की ज़रूरत नहीं है, लेकिन अगर हमारी शोहरत में एक और सितारा जड़ जाए तो खुशी होना लाज़िमी है। मन कह रहा है कि रहमान आखिरकार तुमने कर दिखाया, रिंगा रिंगा रिंग को अंग्रेजों की खुशी का ही नहीं बल्कि स्लम की खुशी का संगीत बना दिया। जय हो की तान छेड़कर भारत की जय कर दी। तुम ऑस्कर में नामित होने के बाद पहले भारतीय हो जो ऑस्कर छीन लाए। सच है कि सोना आग में तपकर ही कुंदन बनता है, तो हम भी कहें जय हो।

क्या आप भी TELEVISIONITIS के मरीज़ हैं?

@टीवी पर दिखाए जा रहे फिल्मों एवं सीरियलों के झूठे, मनगढ़ंत और तन-मन-जीवन को दूषित करने वाली कहानियो को सच्ची मानकर इन्हीं के अनुरूप जीने लगना। #टीवी पर विज्ञापित वास्तु पर जरुरत से अधिक विश्वास करना और सिर्फ़ इन्हीं वस्तुओं को खरीदना और उपयोग करना। @सीरियल और फ़िल्म के नट-नटीनियों और क्रिकेट खिलाड़ियों को भगवान्, अपना रोल मोडल या कोई अजूबा आदमी मानने लगना। #टीवी-सिनेमा के कलाकारों की नक़ल उतारते हुए ख़ुद भी और अपने बेटे-बेटियों के द्वारा भी वैसे ही कपड़े और फैशन को अपनाना. @अपने बेटे-बेटियों को फिल्मी जोकरों की तरह रिकॉर्डिंग डांस और फिल्मी गाने सिखवाने की जूनून सवार होना. #पति-पत्नी के बीच रोज-रोज झगडे एवं विवाद होना. @अपने बच्चों के शिक्षा एवं संस्कार देने के प्रति लापरवाह होना. #पति या पत्नी या फिर दोनों का विवाहेतर सम्बन्ध रखना. @स्कूल-कॉलेज जाने वाले लड़के-लड़कियों द्वारा एक-दूसरे को फिल्मी हीरो-हिरोइन समझते हुए प्यार का चक्कर चलाना और चोरी-छिपे देह-मिलन का खेल खेलना. #घर में कैदी की तरह बंद होकर दिन-रात टीवी से चिपके रहना और अपने बच्चों में भी टीवी देखने की आदत डालना. @अपने पड़ोसियों से ज्यादा फ़िल्म-सीरियल के कलाकारों के बारे में जानकारी रखना. #सुंदर-सुहावने प्राकृतिक दृश्यों को देखने के लिए कभी घर से बहार न निकलना. दिन-भर बस टीवी के विभिन्न चैनलों के नकली प्राकृतिक दृश्यों को देखकर ही संतोष कर लेना. @सिगरेट, शराब एवं कोल्ड ड्रिंक पिने की आदत का लगना. #बच्चों का पढ़ाई-लिखाई में रूचि न लेकर फ़िल्म और सीरियल देखने में अधिक रूचि लेना. @घर-बाहर, स्कूल-कॉलेज, चलती बस या ट्रेन में, विभिन्न सभा-सम्मेलनों में लोगों का आपस में गप्प लड़ाने का विषय फ़िल्म, सीरियल या क्रिकेट का होना. #बच्चों का छोटी उमर में बड़ी-बड़ी बातें करना। हिंसा-अपराध की घटनाओं में दस से बीस साल के बच्चों का शामिल होना. @कमर दर्द, मोटापा, तनाव, आँख सम्बन्धी रोग, अस्थमा, पीठ दर्द आदि रोगों से ग्रसित होना. जरा TELEVISIONITIS के इन लक्षणों पर गौर फरमाएं।
आपका इस ब्लॉग पर भी स्वागत है: होशोहवास

I never take help from eaunch

बहुत दिनों से सोंच रहा था कि मैं भी कोई सीधी बात करूँ। पर जब भी सोंचता हर बात टेढी नजर आती। आख़िर यहाँ सीधा है ही क्या? जब धरती ही सीधी नही, हमारी जबान सीधी नही, रास्ते सीधे नही, तो बात सीधी कैसे हो सकती है। मुझे तो सब कुछ टेढा नजर आता है। तो चलिए कुछ "टेढी बात" ही की जाए । हो सकता है मेरी टेढी बात आप लोगों के भेजे में सीधे तरीके से आ जाए।
बात कुछ ही दिनों पहले की है। आदतन अपनी छुट्टी की शाम कुछ दोस्तों के साथ दिल्ली के चर्चित इलाके साकेत में व्यतीत कर रहा था। हम ४ दोस्त एक छोटे से बिअर बार में थे। कुछ मस्ती थी और कुछ शरारत। हाथों में ग्लास था और दिमाग में हफ्ते भर की थकान। कुल मिलकर माहौल अच्छा था। लोग थिरक रहे थे। लडकियां लड़को के गले में बाहें डाल कर झूम रही थी। पता नही खुमारी शराब की थी या माहौल का। खैर इधर उधर टेढा घुमा दिया आप लोगों को अब सीधे सीधे मुद्दे पर आता हूँ।
अचानक ही माहौल शांत हो गया। एक लड़का (कम से कम ६' लंबा और उतना ही चौडा होगा) एक लड़की के साथ जबरदस्ती करने को तत्पर था। हो सकता है वो लड़की उसके बाप की जागीर हो। मुझे नही पता। लड़की अपनी बचाव को चिल्लाती रही पर हम सब लोग (तकरीबन १०० से भी ज्यादा) चुपचाप तमाशा देखते रहे। अब हम जैसे सभ्य लोगों को शोभा भी तो नही देता झगडे झन्झट पे पड़ना। खैर मेरी एक दोस्त ने वेटर से कहा क्यों नही वो लोग बिच बचाव कर रहे है तो वेटर का बड़ा jenune सा जवाब था "लड़की धंधे वाली ही तो है चुप चाप उसके साथ चली क्यों नही जाती? ज्यादा नखरे दिखा रही है" बात तो सीधी सी ही थी... सच ही तो है हमारे देश में ऐसे लोगों को अपनी इक्छा रखने की आजादी सिर्फ़ सविधान में ही है। हम भी यही सोंच रहे थे ख़म-ख्वाह में इस लड़की के कारण हमारी पार्टी ख़राब हो रही है। जल्दी से जल्दी हम उस बला के टलने का इन्तेजार कर रहे थे। पर लगता था जैसे इतनी जल्दी कुछ होने वाला नही था। पता नही कहाँ से एक सजान युवा को समाज सुधारने का शौक चढ़ गया। वो बिच बचाव के लिए आ गया। पहले तो उसने पहले वाले सजान को समझाया। और कुछ कर भी नही सकता था, शरीर में तो वो उसका सिर्फ़ आधा था। पर पहले वाले के भेजे में बात आई नही और उसने चुप चाप इससे बिच से हट जाने की धमकी दी वरना वो उसका बहुत कुछ बिगाड़ सकता था। पर इस गधे के भेजे में भी बात सीधी तरीके से आई नही और उसने लड़की का हाथ पकड़ा और वहां से उशे चुप चाप ले जाने लगा। अब पहले वाले को ये अपनी बेइज्जती लगी और उसने भी धो डाला उस लड़के को। अब बात दो लड़को के मार-पिट पर आ गई थी तो बार वालो को बिच में आन पड़ा। पहले वाले सज्जन चिल्लाते हुए, गलियाँ देते हुए वहां से चले गए। खैर अच्छी बात इतनी थी वो लड़की बच गई, पर बचने वाला लड़का नही। उशे शायद ज्यादा ही मार पड़ी थी। ख़ुद से खड़ा भी नही हुआ जन रहा था। एक और सज्जन पुरूष ने जब उशे उठाने में मदद करनी चाही तो उसने मना कर दिया और "i never take help from eaunh (neutrals). you hundreds of people was watching the drama only. no one came here to safe this girl. you all are neutrals and your manliness is looking only on bed only. तुम सब सिर्फ़ बिस्तर पर मर्द हो। और मैं हिजडो से मदद नही लेता"
बात उसने कितनी सीधी कही थी। पल भर में उसने हम सब को हिजडा साबित कर दिया। सच ही तो है हम १०० लोग मिलकर एक को नही रोक सके थे। उस १ ने हम १०० को हिजडा बना दिया।
आख़िर बात सीधी ही तो है। हम हिजडे ही तो है। हर जगह हर पल कुछ न कुछ ग़लत होता रहता है पर हम छु चाप रहते है। घर आ कर उसकी कहानियाँ सुनाते है, पर करते कुछ नही। अब और कितनी सीधी बात बताऊँ। एक छोटी से कहानी सुना दी आप लोगों को। सीधी सी बात बता दी सीधे तरीके से शायद आप लोगों की समझ में आ जाए। बात अगर ठेधि कह दी हो तो माफ़ कीजियेगा।

मतिभ्रम की पाठशाला ... कामेडी कमाल की

पेश है ... मतिभ्रम की पाठशाला- पार्ट २... कामेडी कमाल की.... चैनल बदलते रहिये .. या तो कॉमेडी का आतंक है या आतंक के नाम पर नेताओं और चैनल्स की कॉमेडी है ...

जय हो जय हो जय हो

उमेश पंतwww.naisoch.blogspot.com
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आजा आजा जिन्द सामियाने के तले। और इसके बाद जय हो। आस्कर सेरेमनी में अभी जब इस संगीत के सामियाने में ए आर रहमान पुरस्कार ले रहें हैं तो दिल गर्व से गदगद हो रहा है। हांलाकि ए आर रहमान पहले गोल्डन ग्लोब और उसके बाद बाफटा में कमाल दिखा चुकी थी। लेकिन आस्कर आंखिर आस्कर है। ये हर भारतीय के लिए गर्व की बात है कि भारत के संगीत को इस बार विश्व में अलग पहचान मिली है। इसे एक विडंबना जरुर कहा जा सकता है कि जिस विषय पर यह फिल्म बनी है उस विषय का अस्तित्व हमारे यहां कायम है। और उस विषय पर फिल्म किसी विदेशी ने बनायी। हांलाकि इस बात को लेकर बहस भी की गई कि फिल्म भारत की गलत छवि को दिखा रही है। लेकिन सच्चाई को कितना ही छुपा लिया वा छुपती नहीं। और जो सच है। वो है। पर अभी सबसे बढ़ा सच ये है कि स्लमडौग मिलिनियर ने भारत की जय पूरे विश्व में करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

गुलजार जैसे शब्दों के बाजीगर को देर से ही सही उसका स्थान मिला। और रसूल कुटटी को भी बेस्ट साउन्ड एडिटिंग का पुरस्कार मिला। दरअसल किसी कलाकार को जब उचित सम्मान मिलता है तो उसके अन्दर की खुशी में एक आध्यात्मिक सा सुख होता है। रहमान या कुटी जब स्टेज पर पुरस्कार ले रहे थे तो यह सुख साफ झलक रहा था। आस्कर जैसे फिल्मी दुनिया के सबसे बड़े सम्मान का हकदार तो रहमान और गुलजार हमें बना ही चुके हैं लेकिन बइ सवाल उस सच्चाई को स्वीकारने का भी है जो फिल्म की रगों में समाई हुई है। वो गरीबी वो फरेब सब कुछ सच है। डैनी बोएल ने उसे देखा है और उसे सिनेमा के पर्दे पर उतारा है और अब हम उसे देखें और उसके लिए कुछ करें तो यह सम्मान सार्थक हो पायेगा। एक फिल्म के रुप में झंडे गाड़ चुकी इस फिल्म के बहाने हम सोचें कि
मखमल के परदे के पीछे
फूलों के उस पार।
ज्यों का त्यों है बसा आज भी
मरघट का संसार।


इस गौरवशाली मौके पर ये पंक्तियां आपको निराश कर सकती हैं। आपकी उत्सवधर्मिता को ठेस पहुंचा सकती हैं। पर यहां आग्रह यही है कि खुशियां मनायें पर न भूलें कि खुशियां मनाने की वजह सात अवार्ड धड़ाधड़ दिला सकती है लेकिन एक देश को इन सच्चाइयों को स्वीकारे बगैर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। फिलवक्त भारतीय संगीत और संगीतकारों की जय हो कहने से मुझे कोई नही रोक सकता।