आज कहीं पर एक रचना पढ़ी...अच्छी लगी इसलिए आप सब के सामने प्रस्तुत कर .रहा..हूँ.................................. पहचान को कोई नाम .ना...दो,स्वार्थ की ..seedhhi....................चढ़े रिश्ते,कभी आकाश की ख़बर नहीं रखते,चाय के प्याले में नहीं घुलेगी,हमारे दिलों की मेल,तेरा साथ एक ..नकली...सिक्के के अलावा कुछ भी नहीं,जो हर जगह जलील करता है,पथ के मुसाफिर जरूरी नहीं है,एक ही मंजिल के राही हो!तेरे ख़त के जवाब में बस इतना ही लिख रहा हूँ....!.पसंद आए .तो...कृपया करके अपने विचारों से अवगत कराएँ....www.yeduniyahai.blogspot.com
1.3.09
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1 comment:
पथ के मुसाफिर जरूरी नहीं है,एक ही मंजिल के राही हो.....
fantastic....
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