मैं इसे दूसरी पारी कहूंगा। बहुत समय पहले भड़ास का सदस्य बनने के कुछ ही महीनों के भीतर मैंने भड़ास पर लिखा कि यहां जो कुछ हो रहा है उसे देखकर लिखने का मन नहीं करता। इसी दौरान मैंने भड़ास के मूल्यों और मर्यादाओं की बात भी की। तब इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। हां बाद में इसके कुछ दुष्परिणाम भी आए। सच कहूं तो मैं इसका इंतजार कर रहा था। कुछ दिन की यायावरी के बाद यशवतं भाई अपने असली फार्म में है। अब जो भड़ास है वहां कुछ विचार हैं, कुछ आह्वान है और मैं सही सुन रहा हूं तो कुछ चीखें भी हैं। अभी आवेश जी की पोस्ट पढ़ रहा था। ऐसा क्यों हुआ कि अदालत को इस विषय में बीच में आना पड़ा। अब ब्लॉगिंग में हो रही अनाप शनाप बकवास के संबंध में आवेश जी कहते हैं इसको नियंत्रित करने के लिए कानून का इस्तेमाल करने के बजाय,परम्पराओं का निर्माण करना ज्यादा जरुरी हैं। मैं भी कुछ ऐसा ही कहने का प्रयास कर रहा था।
2.3.09
मैं इसे दूसरी पारी कहूंगा
यहां मैं कोई प्वाइंट जीतने नहीं आया हूं। लेकिन मुझे लगता है जब समाज का डण्डा काम नहीं करे तो न्यायपालिका का डण्डा बजना जरूरी हो जाता है। पिंक चड्डी कैंपेन में कितनी महिलाओं की रुचि रही होगी मुझे इसकी जानकारी नहीं है लेकिन किसी भी महिला को अपने सबसे निजी भाग से जुडे वस्त्र के साथ ऐसी मजाक अच्छी लगी हो, मैं नहीं मान सकता। अब भी समय है। अगर लोग चेत जाते हैं तो ठीक वरना प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और श्रव्य माध्यमों से अधिक सशक्त माध्यम एक बार फिर आम आदमी के हाथ से निकल जाएगा। अति हर चीज की बुरी है। अश्लील शब्दों का इस्तेमाल, दूसरे लोगों की बुराई और सार्वजनिक भर्त्सना का शुरूआती दौर अब खत्म हो जाना चाहिए। ब्लॉगिंग वास्तव में सीरियस मैटर है। इसे जितना जल्दी गंभीरता से लिया जाए उतना अच्छा है।
अगर मूल्यों और परम्पराओं को स्थापित ही करना है तो ब्लॉग के ऊपर की पट्टी पर दिए गए ध्वज के ऑप्शन को जोरदार तरीके से काम में लेते हुए घटिया लोगों को ब्लॉक करने का सिलसिला शुरू करना होगा। इससे एक ओर ऊटपटांग लिखने वालों के दिमाग में भय पैदा होगा वहीं दूसरी ओर प्रीत भी। अन्यथा मामला नियंत्रणकारी दूसरी शक्तियों के हाथ पहुंचा तो एक बार फिर मूषक बनना पड़ेगा।
भड़ास पर दूसरी पारी में आपके साथ आकर सहज महसूस कर रहा हूं।
इस लौ को जलाए रखने के लिए धन्यवाद, यशवंत जी।
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