-आवेश
अगर आप हिंदी कविता के मायने समझते हैं ,उससे पसीज रहे मर्म को महसूस कर रहे हैं तो क्या आप रश्मिप्रभा,अरुणा राय ,ज्योत्स्ना पाण्डेय,जेन्नी शबनम ,संगीता ,आभा क्षेत्रपाल,श्रद्धा जैन ,अनीता अग्रवाल , प्रीति ,वर्तिका को जानते हैं ? , अगर आप इन्हें नहीं जानते या इनके जैसी उन अन्य महिलाओं को नहीं जानते जो घर के चूल्हा चक्कड़,काम काज के अलावा हर पल कविता को न सिर्फ जी रही हैं बल्कि की -बोर्ड से बातें करते हुए उसे नए आयाम दे रही हैं तो आप हिंदी साहित्य के एक बड़े और ऐतिहासिक परिवर्तन से अछूते हैं |पिछले तिन दशकों में हिंदी साहित्य में कविताओं का प्रस्त्तुतिकरण बदला ,पत्र बदले ,परिदृश्य बदला ,लेकिन कविता कहने वाले ,लिखने वाले और पढने वाले स्थिर रहे ,पठनीयता के घोर संकट के बावजूद कवितायेँ लिखी गयी ,मगर अफ़सोस कवियों,पाठकों,और उनको प्रकाशित करने वाले एक जमात का हिस्सा बन गए एक ऐसी जमात जिसमे अन्दर झाँकने का साहस किसी भी बाहर वाले को नहीं था चाहे वो स्त्री हो या पुरुष |कविता के इस हाराकिरी के बीच इन्टरनेट आया ,अभिव्यक्ति आसान हुई इन्टरनेट ने आम हिन्दुस्तानी के जीवन जीने का ढंग बेहद द्रुत गति से बदल दिया लेकिन साहित्य के क्षेत्र में सबसे बड़ा परिवर्तन जो हुआ वो ये था कि दुनिया उन महिलाओं को पढने लगी जिन्हें वो जमात और खुद हम सब सिर्फ रसोई घर और नौकरी चाकरी करने वाली अक्सर बंद कमरे में रहने वाली औरत समझते थे |इन्होने लिखा और खूब लिखा जम कर लिखा ,आप यकीं मानिये यहाँ इन्टरनेट पर भारत का सबसे उन्नत साहित्य लिखा जा रहा है ,जिसे न पढना और न जानना कविता के अस्तित्व के लिए भी चुनौतियाँ पैदा कर देगा |ये एक मंच परएक साथ खड़ी है ,इनमे तेजी के साथ सहेलीपना भी पनप रहा है इन्हें न तो नामचीन पत्रिकाओं में छपने का शौक है और न बड़ी साहित्यिक सम्मेलनों की दरकार |
रश्मिप्रभा को ज्यादातर लोग माँ कहते हैं ,फौजी बेटे की माँ रश्मिप्रभा ज्यादातर वक़्त या तो ढेर सारे बच्चों की माँ होती हैं या फिर एक कवियत्री |वे खुद कहती हैं 'अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते...मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं...'जी हाँ सही कहती हैं रश्मि यकीं न हो तो रश्मि की कविता 'शब्द 'की ये चार पंक्तियाँ पढें
सांय सांय चलती हुई हवा से उड़ता हुआ एक शब्द
मेरे पास आ गिरा
असमंजस में रही
उठाऊं या नहीं
आँखें मींच ली
पर शब्द के इशारे होते रहे
निकल पड़ी बाहर
सोचा
शाम के धुंधलके में सन्नाटा देखकर
शायद लौट जाए
लौटकर देखा
मेरी प्रतीक्षा में कुम्हलाया हुआ शब्द
मेरी कलम के पास सर टिका कर बैठा है
रश्मि निर्भीकता से कहती हैं मेरी कविता की सार्थकता पाठकों की आलोचना ,समालोचना में ही निहित हैं सुमित्रा नंदन पन्त की मानस पुत्री रश्मि की कविताएँ उन्ही की तरह है ,आप उनसे न सिर्फ चुप्पी की बल्कि क्रांति की भी उम्मीद कर सकते हैं |
अरुणा राय ,ये नाम उत्तर प्रदेश पुलिस कीशानदार महिला पुलिस अधिकारी का है ,और साथ में एक ऐसी कवियत्री का नाम भी है जिस तक पहुँचते पहुँचते हिंदी कविता को भी ठहर जाना पड़ता है उनके शब्दों में न सिर्फ धूप है बल्कि ढेर सारी छाँव भी है |अगर सीधे साधे शब्दों में कहें तो अरुणा की कविता सबकी कविता है वो कविता हमारी हो सकती है आपकी हो सकती है , हमारे इर्द गिर्द मौजूद किसी बिसरा दिए जाने वाले चेहरे की हो सकती है या फिर ,गाजियाबाद में देर रात स्टेशन से घर जाने को आतुर किसी लड़की की कविता हो सकती है अरुणा जब खुद को केंद्र में रखकर कविता लिखती है तो लगता है ये खुद से लड़ने का अब तक का सबसे विश्वसनीय दस्तावेज है ,यानि की इसके बाद अब व्यक्तिगत संघर्षों की दास्तान बयां करने वाली कोई और कविता नही हो सकती |अरुणा की ये कविता पढें -
अभी तूने वह कविता कहां लिखी है
मैंने कहां पढी है वह कविता
अभी तो तूने मेरी आंखें लिखीं हैं,
होंठ लिखे हैं
कंधे लिखे हैं उठान लिए
और मेरी सुरीली आवाज लिखी है
पर मेरी रूह फना करते उस शोर की बाबत
कहां लिखा कुछ तूने
जो मेरे सरकारी जिरह-बख्तर के बावजूद
मुझे अंधेरे बंद कमरे में एक झूठी तस्सलीबख्श
नींद में गर्क रखती है
अभी तो बस तारीफ की है मेरे तुकों की लय पर
प्रकट किया है विस्मय
पर वह क्षय कहां लिखा है
जो मेरी निगाहों से उठती
स्वर लहरियों को बारहा जज्ब किए जा रहा है
अनीता अग्रवाल की कविताओं को लेकर मेरे एक मित्र ने कभी कहा था की उनकी कविताएँ चुपचाप आपके भीतर पहुँचती है और अन्दर पहुंचकर विस्फुटित हो जाती है |मेरा मानना है वो सही कहते हैं ,मैंने भी महसूस किया अनीता एक कवि के रूप में कभी हारती नहीं चाहें कितने भी झंझावात हों ,शायद उनकी कविताओं में कभी- कभार मानवीय जीवन की कठोरता के प्रति बेतकल्लुफी भी इसी वजह से नजर आती है |अपनी बीमार माँ की जिजीविषा को खुद भी जी रही अनीता की एक कविता पढें -
ये भी क्या बात हुई कि
चलते रहे
बस हम ही हम
कुछ कदम तुम बढ़ते कुछ कदम हम
तो लुत्फ़ ही कुछ और होता
ज्योत्स्ना पाण्डेय जब कविता नहीं लिखती तब घर के काम करती हैं ,हम जानते हैं कि मुंबई काण्ड के बाद शब्दों की धनी ये महिला अचानक फूट फूट कर रो पड़ी थी |उनकी कविता कभी भी किसी वक़्त भी जन्म ले सकती है उनमे शब्दों का कोलाहल इस कदर होता है कि कभी कभी वो मस्तिष्क और जिव्हा से चिपक जाते हैं जो कि बहुत चाहने पर भी उखाड़ कर नहीं फेंके जा सकते |आप यकीं नहीं मानेंगे ज्योत्स्ना पत्रिकाओं में अपनी कविताओं के प्रकाशन कि बात पर ही उखड जाती हैं वो साफ़ तौर पर कहती हैं मेरी कविताएँ मेरे घर -परिवार और ,मेरे मित्रों के लिए है ,मैं इसे सार्वजनिक चीज नहीं मानती |ज्योत्स्ना की ये कविता मुझे बेहद पसंद है |
इस दिसम्बर से जीवन में अधकचरे रिश्तों की धुंध घने कोहरे सी छाई थी-----
उमंगों का शिथिल होना,
ठिठुरती ठण्ड के आभास जैसा विचारों को संकुचित करता,
भावनाओं से उठती सिहरन से कोमल मन कंपकपाता था-----
ऐसे में तुम काँधे पे झोली लटकाए,
मेरे जीवन में रंग भरने के लिए प्यार का हर रंग साथ लिए
नए सपने, नई आशाएं, मोहक मुस्कान, कोमल स्पर्श का मृदुल एहसास लिए-----
मुझमे एक गुनगुना जोश भर देते हो
तुम संता क्लॉज़ की तरह मेरी ज़िन्दगी में आए हो
अपनी झोली के सारे उपहार तुमने मुझे दे दिए हैं-----
इस दिसम्बर (जीवन) में, तुम्हारे होंठों का स्पर्श मुझे ताप से भर गया है,
सदा-सदा के लिए--------
श्रद्धा जैन की कविताओं के प्रति लोगों के प्रेम का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की उनकी ऑरकुट की प्रोफाइल में अब एक हजार से ज्यादा प्रशंसक मौजूद है |सिंगापूर में रह रही श्रद्धा या तो बच्चों को स्कूल में पढाती हैं या कविताएँ लिखती हैं |इन्होने शायर फॅमिली नाम से एक पोर्टल शुरू किया ,और इन्टरनेट पर आने वाले लोगों की रचनाओं को बेहद खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया |श्रद्धा आजकल अपना ज्यादातर समय अपने साथ के लोगों के प्रमोशन में लगा रही हैं ,श्रद्धा की कविता की सबसे बड़ी खासियत ये है कि वो अपनी कविता से खुद गायब रहती हैं उन्होंने हमेशा समुदाय को अपनी कविता का विषय बनाया है |
अच्छी है यही खुद्दारी क्या
रख जेब में दुनियादारी क्या
जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या
हंस के जो मिलो सोचे दुनिया
मतलब है, छुपाया भारी क्या
वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या
बातें तो कहे सच्ची "श्रद्धा"
वे सोचे मीठी खारी क्या
और अंत में बात आभा क्षेत्रपाल की ,अपने माँ बाप के लिए बेटे की जिम्मेदारी निभा रही आभा की एक कम्युनिटी है 'सृजन का सहयोग'जिसमे दो सौ से जयादा लोग हर पल -प्रतिपल अपनी नयी कविताएँ पोस्ट कर रहे हैं जानते हैं आभा क्या कहती हैं अपनी इस कम्युनिटी के बारे मैं ?वो कहती हैं 'सृजन मेरी बेटी की तरह है ,हम चाहते है वो दुनिया की सबसे खुबसूरत बेटी हो |सच कहती है आभा ,बतौर कवि ,आभा की कविता हर पल जिंदगी की क्रूर सचाइयों पर चोट करती नजर आती है वो आहत होती है ,गिरती है फिर उठ खड़ी होती है |वो लिखती हैं -
लाखो सुं रेत की है ये बिखरी आशाएं
कंटीली झाडिया हैं ये आँखों में चुभते सपने
तपती धुप है ये सुलगती आशाएं
चीखता पुकारता सन्नाटा है ये मेरा अकेलापन
सूखी धरती है ,ये मेरा प्यासा मन
आखिर कोई तो बताये ये मैं हूँ या मरुस्थल
इस पोस्टिंग में हमने उन्ही कवियों का जिक्र किया जिन्हें मैं जानता था ,जिन्हें हम नहीं जानते उन महिलाओं के प्रयास इससे भी बढ़कर हो सकते हैं |जो भी हो ये सच है ,आज हिंदी कविता फिर से अपनी तरुणाई मैं लौट आई है ,आइये इन महिलाओं का स्वागत करें अपनी इस दुनिया में ,जहाँ हम खुली साँसे ले रहे हैं ,जहाँ हर शब्द बेचारगी की कोख से पैदा नहीं हुआ है
8.3.09
चुल्हा चक्कड़ और चौथी दुनिया की कवितायें
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
9 comments:
aapne bahut accha likha hai.
आज महिला दिवस पर इस ब्लोग को पहली बार खोला और जो सौगात मुझे मिली उसे शब्दों मे व्यक्त नही कर पा रही हू ,पहली बार जाना इन लोगों के बारे में--- मेरा उनको शत-शत नमन। मेरी तरफ़ से महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं उनको ।
हमारा प्रयास और आपका दृष्टिकोण......मैं प्रभावित हूँ इस बात से कि आपने एक सूक्ष्म विश्लेषण किया है,हमारे प्रयास को सराह कर हमें स्थापित किया है और इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं , साथ ही महिलाओं के प्रति सशक्त कदम ....
awesjh jee ap ko bahut bahut dhanyevad..............
iss purush vadi samaj main apney chand line hum istriyon key liye bhi likhi............
awesjh jee ap ko bahut bahut dhanyevad..............
iss purush vadi samaj main apney chand line hum istriyon key liye bhi likhi............
आवेश जी,
आपका ये लेख आज महिला दिवस के दिन महिलाओं के प्रति आपके उच्च दृष्टिकोण को दिखा रहा है | आपने इन महान कवित्रिओं के साथ मेरा नाम शामिल किया, इतने मान के लायक मैं सच में नहीं हूँ | आपने मुझे बहुत सम्मान दिया, आपका तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ |
एक बात कहना चाह रही कि, एक दिन औरतों के सम्मान केलिए अंतर्राष्ट्रिये दिवस के रूप में मानना महज औपचारिकता सा लगता है | औरतों को मन से सम्मान कहाँ कभी कोई दे पाया अबतक | रिश्तों का निर्वाह किसी तरह करके औरतों के प्रति उपकार और बड़प्पन दिखाना एक चलन सा है है | औरतों की स्थिति समाज में कितनी सोचनिये है, ये पूरी दुनिया जानती है |
आपकी इस रचना से मन को बहुत तसल्ली मिली कि अब भी कुछ लोग हैं, जिनकी नज़र में नारी सम्मानिये है | यूँहीं लिखते रहें | शुभकामनायें |
जुग जुग जियो आवेश भाई....यही सोच और जज्बा सबमें हो...
आपको बधाई देने के लिए मेरे पास शब्द कम पड़ गए है
बहुत अच्छी पोस्ट के लिए आभार. हिंदी कविता का भविष्य अब इसी तरह के गैर पेशेवर कवियों से उज्जवल होगा, यह एक अत्यंत शुभ संकेत है. बहुत बहुत बधाई.
Post a Comment